Here is an essay on ‘Leadership’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Leadership’ especially written for college and management students in Hindi language.
Essay on Leadership
Essay Contents:
- नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Leadership)
- नेतृत्व की प्रकृति (Nature of Leadership)
- नेतृत्व का महत्व (Importance of Leadership)
- नेतृत्व के प्रकार अथवा भेद (Types of Leadership)
- नेतृत्व के गुण (Qualities of Leadership)
- नेतृत्य के मार्ग में बाधाएँ (Hindrances of Leadership)
- नेतृत्य का निष्कर्ष (Conclusion to Leadership)
Essay # 1. नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Leadership):
प्रत्येक संस्था में कर्मचारियों को कार्य हेतु अभिप्रेरित करने के लिए जिन साधनों का प्रयोग किया जाता है उनमें से नेतृत्व (Leading or Leadership) भी एक प्रमुख साधन एवं तकनीक है । प्रबन्ध जगत् में नेतृत्व का एक अपना ही विशेष स्थान है । एक संस्था की सफलता या असफलता काफी हद तक नेतृत्व की किस्म पर निर्भर करती है ।
यदि कर्मचारियों की क्रियाओं का सही ढंग से संचालन किया गया और उनका प्रभावी ढंग से मार्ग-दर्शन किया गया तो कोई भी कारण ऐसा नहीं होगा जिसकी वजह से संस्था को असफलता का सामना करना पड़े । पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार- “प्रबन्धक किसी व्यावसायिक उपक्रम का प्रमुख एवं दुर्लभ प्रसाधन है । अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के असफल होने का प्रमूख कारण अकुशल नेतृत्य ही है ।”
ग्लोवर भी कहते हैं कि- ”अधिकांश व्यावसायिक प्रतिध्वनों के असफल होने में अकुशल नेतृन्ध जितना उत्तरदायी है ऊना कोई अन्ध कारक नहीं है ।” अत: स्पष्ट है कि प्रभावशाली नेतृत्व एक उपक्रम की सफलता तथा विकास का मूलाधार है ।
सामान्य शब्दों में नेतृत्व से तात्पर्य किसी व्यक्ति विशेष के उस गुण से है जिसके माध्यम से वह अन्य व्यक्तियों, “अधीनस्थों” का मार्ग-दर्शन करता है । इस प्रकार नेतृत्व का अर्थ एक व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्तियों की क्रियाओं का इस प्रकार निर्देशन करना है कि निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति सरलता से हो जाये ।
नेतृत्व की प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं:
(1) सामाजिक विज्ञान के शब्दकोष के अनुसार- “नेतृत्य से आशय किसी व्यक्ति एवं समूह के मध्य ऐसे सम्बन्ध से है, जिससे कि सामान्य हित के लिए दोनों परस्पर मिल जाते हैं और अनुयायियों का समूह के निर्देशानुसार ही कार्य करता है ।”
(2) जार्ज आर. टैरी के अनुसार- “नेतृत्व व्यक्तियों को पारस्परिक उद्देश्यों के लिए स्वैच्छिक प्रयत्न करने हेतु प्रभावित करने की योग्यता है ।”
(3) कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के अनुसार- किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सम्प्रेषण के माध्यम द्वारा व्यक्तियों को प्रभावित कर सकने की योग्यता नेतृत्व कहलाती है ।
(4) चेस्टर आई. बर्नार्ड (Chester I. Barnard) के अनुसार- “नेतृत्व से आशय व्यक्ति के व्यवहार के उस गुण से है जिसके द्वारा यह अन्य व्यक्तियों या उनकी क्रियाओं को संगठित प्रयास में मार्ग-दर्शन करता है ।”
(5) हाज एवं जॉनसन (Hodge and Johnson) के अनुसार- “नेतृत्व मुख्य रूप से औपचारिक एवं अनौपचारिक परिस्थितियों में अन्य व्यक्तियों के व्यवहार और अभिमृत्तियों को रूप देने की योग्यता है ।”
(6) लिविंगस्टन (Livingstone) के अनुसार- “नेतृत्व अन्य व्यक्तियों में किसी सामान्य उद्देश्यों को अनुसरण करने की इच्छा को जागृत करने की योग्यता है ।”
सारांश रूप में नेतृत्व वह शक्ति है जिसके द्वारा अधीनस्थों या कर्मचारियों के एक समूह से वांख्ति कार्य स्वेच्छपूर्ण तथा बिना दबाव के कराये जाते हैं ।
Essay # 2. नेतृत्व की प्रकृति (Nature of Leadership):
नेतृत्व एक अत्यन्त कठिन, लेकिन महत्वपूर्ण कार्य है । अत: इसका सही उपयोग करने के लिए इसकी प्रकृति को समझना आवश्यक है ।
(1) प्रबन्धक और अधीनस्थ के बीच व्यक्तिगत स्तर के सम्बन्ध (Man-to-Man Relationship between a Manager and his Subordinate):
न्यूमेन तथा समर के अनुसार- “यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक प्रबन्धक अपने साथ काम करने वालों के व्यवहार को प्रत्यक्ष तथा व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करता है और जिसके द्वारा उसके अधीनस्थ, अपनी बारी में, उसे अत्यन्त व्यक्ति मानकर व्यक्तिगत प्रतिक्रिया से लेकर कार्यकारी दशाओं से सम्बन्धित जानकारियों तक ऐसी सूचनाएँ देता है जो एक प्रबन्धक को अपने उत्तरोत्तर कार्यों को करने में महत्वपूर्ण मदद दे ।”
नेतृत्व को दो व्यक्तियों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह सम्बन्ध एक-दूसरे के विश्वास पर आधारित होता है और यह विश्वास कुछ समय तक साथ-साथ काम करने से उत्पन्न संवेगों, भावनाओं तथा मनोवृत्तियों पर निर्भर करता है । यह आवश्यक नहीं है कि नेता ऊपर से नियुक्त किया जाये । सामान्य जीवन में प्राय: कुछ व्यक्ति अपनी योग्यता व मिलनसार प्रकृति के कारण स्वयं नेता मान लिये जाते हैं ।
(2) नेतृत्व प्रबन्ध का एक भाग है, समुचित प्रबन्ध नहीं (Leadership is a Part of Management but not all of it):
कुछ समाजशास्त्री प्रबन्ध को नेतृत्व का पर्यायवाची मानते है, लेकिन यह गलत है । सर्वप्रथम नेतृत्व का अर्थ है अधीनस्थों को निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में सार्थक ढंग से प्रेरित करना । लेकिन प्रबन्ध एक व्यापक शब्द है जिसमें उद्देश्यों की व्याख्या से लेकर उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए योजना बनाना कर्मचारियों का संगठन बनाना, आदेश व निर्देश देना तथा नियन्त्रण करना तक सभी कुछ शामिल है ।
इस प्रकार नेतृत्व प्रबन्ध का एक भाग है, परन्तु पूर्ण प्रबन्ध नहीं है । दूसरे, एक नेता का कार्य केवल अपने अधीनस्थों को एक निश्चित दिशा दिखाने तक सीमित रहता है लेकिन एक प्रबन्धक को अपने अधीनस्थों का मार्गदर्शन भी करना पड़ता है ।
साथ ही उसे अपनी संस्था के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर अपने अधीनस्थों के प्रयत्नों को उस ओर मोड़ना होता है न कि केवल अधीनस्थों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सर्व उद्देश्य निर्धारित करना और उनकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना तीसरे, नेतृत्व एक अत्यन्त असंगठित समूह के कार्यों में भी किया जा सकता है लेकिन प्रबन्ध चलाने के लिए एक संगठित समूह बनाना आवश्यक है । अन्त में, यदि एक नेता नियोजन, तथा संगठन में कमजोर है तो वह अच्छा नेता होने के नेतृत्व कला एवं नेतृत्व बावजूद एक सफल प्रबन्धक नहीं हो सकता लेकिन एक प्रबन्धक जो नियोजन, संगठन एवं नियन्त्रण में निपुण है एक कुशल नेता न होने पर भी एक सफल प्रबन्धक हो सकता है ।
(3) नेतृत्व सम्भव को यथार्थ में बदल देता है (Leadership Transform Potential into Reality):
अच्छा नेतृत्व एक ऐसी शक्ति है जो संस्था तथा कर्मचारियों की सुप्त क्षमताओं को जाग्रत कर देता है और उन्हें एक दिशा में समन्वित तथा प्रशस्त करके चमत्कारिक परिणामों को प्राप्त करने में मदद करता है । फलस्वरूप, उस नेता के अनुयायी अनेक कठिनाइयों तथा असुविधाओं को सहकर भी, पूर्ण निष्ठ तथा श्रद्धा के साथ एक उत्सर्ग की भावना लेकर अत्यन्त परिश्रम और उत्साह से काम करते हैं और असम्भव वाले लक्ष्य को भी सम्भव कर डालते हैं । सामान्यतया, नेतृत्व की यह अभिव्यक्ति चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अधिक दृष्टिगोचर होती है ।
(4) नेतृत्व एक गतिशील एवं नवोन्मेषी सम्बन्ध है (Leadership is a Dynamic and Evolving Relationship):
एक प्रबन्धक के लिए नेतृत्व कभी न समाप्त होने वाली प्रक्रिया है । इसका कारण यह है कि किसी भी दल की समस्याएँ तथा काम करने की परिस्थितियाँ कभी एक-सी नहीं रहती, वे नित्य बदलती रहती हैं और प्रबन्धक के नेतृत्व के लिए नित्य नए अवसर प्रदान करती है यही नहीं, नेतृत्व एक गतिशील व नवोन्मेषी (Dynamic and Evolving) सम्बन्ध भी है क्योंकि नेता को नित्य नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है ।
(5) नेता इसलिए बनते हैं क्योंकि कुछ व्यक्ति किसी का अनुगमन करना चाहते हैं (Leadership is Something a Person does, not Something he has):
मनोवैज्ञानिक रूप से अनेक व्यक्ति स्वावलम्बी नहीं होते, वे दूसरों के आदेश तथा निर्देश में काम करना चाहते हैं । अत: नेतृत्व इन लोगों की नेतृत्व की आवश्यकताओं को पूरा करता है लेकिन ये लोग नेता से यह आशा करते हैं कि वह उनके व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति में उनकी सहायता करें ।
(6) नेतृत्व वह है जो एक व्यक्ति करता है, न कि वह, जो एक व्यक्ति है (Leadership is Something a Person does, not Something he has):
दूसरे शब्दों में नेतृत्व दूसरे लोगों को उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित करने की कुशलता है, न कि संगठन की योजना में निर्धारित पद की गरिमा । यही कारण है कि अनेक प्रबन्धक उच्चतर पद ग्रहण करने के बाद भी सफल नेता नहीं बन पाते और अनेक युवा प्रबन्धक अपनी व्यवहार कुशलता, योग्यता, मिलनसार प्रकृति तथा विश्वासपूर्ण शैली के कारण, सभी जगह, सभी लोगों का सहर्ष सहयोग प्राप्त कर लेते हैं ।
यहाँ यह भी स्मरणीय है कि एक नेता की सफलता केवल अपने व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर नहीं करती बल्कि नेतृत्व की परिस्थिति तथा अनुयायियों की आवश्यकताओं व अपेक्षाओं पर भी निर्भर करती है । इसलिए कहा गया है कि नेतृत्व तीन बातों पर निर्भर करता है: नेता, अनुयायी तथा परिस्थिति ।
Essay # 3. नेतृत्व का महत्व (Importance of Leadership):
प्रत्येक संगठन में जहाँ निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक से अधिक व्यक्ति कार्य करते हैं, वहाँ नेतृत्व की आवश्यकता एवं महत्व को भुलाया नहीं जा सकता । आज की परिवर्तित परिस्थितियों में चाहे संगठन धार्मिक हो सामाजिक हो, आर्थिक हो राजनीतिक हो या व्यावसायिक हो, प्रत्येक में नेतृत्व का बिशेष महत्व है ।
योग्य एवं अनुभवी नेताओं ने ही विश्व के इतिहास को बनाया है । इतिहास के पृष्ठ उलटने से विदित होता है कि नेपोलियन बोनापार्ट (Nepoleon Bonapart), विन्सटन चर्चिल (Winston Churchill), जार्ज वाशिंगटन (George Washington) और महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) आदि नेताओं ने अपने कुशल नेतृत्व द्वारा जनता का मार्गदर्शन किया । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समूह को अभिप्रेरित एवं निर्देशित करने के लिए नेता का होना परम आवश्यक है ।
प्रबन्ध जगत् में नेतृत्व एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । एक संस्था की सफलता या असफलता बहुत हद तक नेतृत्व पर निर्भर करती है । यदि कर्मचारियों की क्रियाओं का सही ढंग से संचालन किया गया और उनका प्रभावी ढंग से मार्ग-दर्शन किया गया, तो संस्था की सफलता सुनिश्चित है ।
नेतृत्व की आवश्यकता एवं महत्व को हम इस प्रकार और अधिक स्पष्ट कर सकते हैं:
(1) सामूहिक क्रियाओं का संचालन करने हेतु (To Organise Group Activities):
नेतृत्व की आवश्यकता के महत्व के पक्ष में सबसे वेस तर्क यह पेश किया जाता है कि जहाँ भी निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा की जाएगी वही नेतृत्व की आवश्यकता होगी । लक्ष्यों की पूर्ति हेतु की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं को एक सूत्र में पिरोने का कार्य नेता ही करता है ।
यदि नेता द्वारा समूह की क्रियाओं का संचालन न किया जाए तो समूह अव्यवस्थित हो जाता है । अव्यवस्थित समूह के सदस्यों द्वारा की गई क्रियाएं-सामूहिक की पूर्ति में सफल नहीं होतीं । अत: सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सामूहिक क्रियाओं के कुशल संचालन हेतु नेतृत्व का अत्यन्त महत्व है ।
(2) सहयोग प्राप्त करने हेतु (To Secure Co-Operation):
सहयोग प्राप्त करने की आधारशिला भी नेतृत्व ही है । एक कुशल नेता ही विभिन्न साधनों के माध्यम से अपने सहयोगियों एवं अनुयायियों का सहयोग प्राप्त कर सकता है । एक नेता अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार, प्रभावी सम्प्रेषण व्यवस्था कार्य की मान्यता शिकायतों के शीघ्र समाधान और आदर्श आचरण द्वारा अधीनस्थों का हार्दिक एवं स्वैछिक सहयोग प्राप्त करने में असफल होता है । सहयोग से कार्य करने से न केवल कार्य ही अधिक होता है वरन् कार्य की किस्म भी अच्छी होती है ।
(3) अधिकारी-वर्ग को सुविधा प्रदान करने हेतु (To Provide Facilities to the Authorities):
नेतृत्व की आवश्यकता केवल कार्यकारी-वर्ग को ही होती है । अधिकारी-वर्ग को आवश्यक सुविधा प्रदान करने हेतु भी नेतृत्व की आवश्यकता होती है । नेतृत्व अधिकारी-वर्ग को ऐसी सुविधा प्रदान करता है जिससे संस्था का कार्य बिना बाधा के निर्बाध गति से चलता रहता है ।
नेता में कुशल संचालन के सभी गुण होने के कारण अनुयायियों में परिश्रम करने की भावना जाग्रत हो जाती है जिससे संस्था के कार्य संचालन में कोई बाधा नहीं आती । इस प्रकार नेतृत्व कार्य संचालन में आने वाली बाधाओं को दूर करके अधिकारी वर्ग को सुविधा प्रदान करता है ।
(4) अभिप्रेरणा का स्त्रोत (Source of Motivation):
नेतृत्व वह प्रेरक शक्ति है जो समूह के सभी लोगों को संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरणा प्रदान करता है । प्रबन्ध वास्तव में अन्य लोगों से काम लेने की कला है और बिना कुशल नेतृत्व के यह सम्भव नहीं होता ।
(5) औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन में एकीकरण (Integration between Formal and Informal Organisation):
एक सुयोग्य नेतृत्व संस्था के औपचारिक संगठन तथा कर्मचारियों के अनौपचारिक संगठन के बीच समन्वय स्थापित करके उन्हें रचनात्मक सहयोग की ओर प्रेरित करता है और इस प्रकार संस्था और कर्मचारियों के बीच हित-ऐक्यता (Community of Interests) कायम करने में मदद देता है ।
(6) प्रबन्धक को सामाजिक प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित करने हेतु (To Change Management into a Social Process):
कुशल नेतृत्व के द्वारा प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित हो जाता है । प्रबन्ध वास्तव में अन्य के साथ मिलकर कार्य करने और कराने की मुक्ति ही है । अत: एक कुशल नेता ही एक कुशल प्रबन्धक हो सकता है । प्रबन्धक अपने मार्गदर्शन और सहयोग से ही कर्मचारियों को निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर अग्रसर करते हैं इसके अतिरिक्त प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर भी नेतृत्व की आवश्यकता होती है । कुशल नेतृत्व से जब कर्मचारी अपने व्यक्तिगत हितों का बलिदान करके संस्था के हितों की रक्षा करने को तत्पर हो जाते हैं तो प्रबन्धक भी कर्मचारियों को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सहर्ष तैयार हो जाते हैं ।
(7) व्यवसाय की सफलता हेतु गृह (To Attain Success):
इसमें कोई सन्देह नहीं कि नेतृत्व की किस्म ही सामान्यत: एक व्यावसायिक उपक्रम की सफलता और असफलता को निश्चित करती है । पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार- “व्यवसायिक नेता किसी व्यावसायिक उपक्रम के आधारभूत और दुर्लभ प्रसाधन है ।”
अनेक व्यावसायिक उपक्रमों की असफलता का मुख्य कारण अप्रभावी नेतृत्व ही है । इसी प्रकार जॉन जी. ग्लोबर के अनुसार- “अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के असफल होने में अकुशल नेतृत्व जितना उत्तरदायी रजना कोई अन्य कारण उत्तरदायी नहीं है ।”
अत: यह स्पष्ट है कि व्यवसाय की सफलता के लिए कुशल नेतृत्व की अति आवश्यकता है ।
Essay # 4. नेतृत्व के प्रकार अथवा भेद (Types of Leadership):
व्यावसायिक एवं ओद्योगिक उपक्रमों में पाए जाने वाले नेतृत्व को उसकी प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है:
(1) जनतन्त्रीय नेता (Democratic Leader):
जनतन्त्रीय नेता वह है जो कि अपने समूह से परामर्श तथा नीतियों एव विधियों के निर्धारण में उनके सहयोग से कार्य करता है । यह वही करता है जो उसका समूह चाहता है । इस प्रकार का व्यक्ति अपने अधिकारों के विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास रखता है ऐसा व्यक्ति नेता की स्थिति इसलिए बनाए रखता है कि वह अपने दल के प्रति पूर्ण निष्ठा रखे तथा हितों की रक्षा करे । जब तक ऐसे व्यक्ति को अपने समूह का सहयोग एवं समर्थन मिलता रहता है, तब तक उसका नेतृत्व कायम रहता है ।
(2) निरंकुश नेता (Autocratic or Authoritarian Leader):
ऐसा नेता समस्त अधिकार एवं निर्णयों को स्वयं अपने में केन्द्रित कर लेता है । उनका विश्वास है कि लोग प्राय: आलसी होते हैं, उत्तरदायित्व लेना नहीं चाहते और जो कहा जाए, वही करने से सन्तोष का अनुभव करते है । अत: वह समस्त निर्णय एवं सारी योजनाएँ स्वयं बनाता है, काम सौंपता है तथा अपने अधीनस्थों को क्या करना है और कैसे करना है, इसके बारे में भी निर्देश देता है ।
(3) निर्बाधवादी नेता (Laissez-Faire Leader):
यह वह नेता होता है जो अपने समूह को अधिकतर अपने भरोसे छोड़ देता है । समूह के सदस्य स्वयं अपने लक्ष्य निर्धारित करते और अपनी समस्याओं की सुलझाते है । वे स्वयं को प्रशिक्षित करते और स्वयं ही अपने को अभिप्रेरित करते है नेता का कार्य तो एक सम्पर्क कड़ी का रहता है वह उन्हें कार्य करने के लिए केवल आवश्यक सूचना और साधन प्रदान करता है, अधिक कुछ नहीं करता ।
(4) संस्थात्मक नेता (Institutional leader):
यह वह नेता होता है जिसे अपने पद के प्रभाव से उच्च स्थिति प्राप्त होती है । फलत: वह अपने अनुयायियों को प्रभावित करने की स्थिति में होता है आहरण के लिए चाहे सरकारी विभाग हो अथवा गैर-सरकारी विभाग उसमें उच्च पदों पर स्थित लगभग सभी अधिकारियों का अपने अनुयायियों का एक विशिष्ट समूह होता है जिसे वे हर सम्भव तरीकों से सहयोग प्रदान करते हैं ।
ऐसे व्यक्तियों के समूह में प्राय: वे व्यक्ति होते हैं जिनमें:
(i) उस व्यक्ति-विशेष के प्रति निष्ठ होती है ।
(ii) कुर्सी के प्रति असीम भक्ति होती है ।
(iii) किसी अनुचित लाभ पाने की लालसा होती है ।
(iv) अन्य किसी अधिकारी के प्रति द्वेषभाव होता है । अत: वे इस व्यक्ति की शरण में जाने के लिए बाध्य होते हैं ।
(v) कुछ लोगों में आज्ञापालन करने की शुरू से आदत होती है ।
(vi) कुछ व्यक्ति अपनी कमियों को छिपाने के लिए भी नेता का समर्थन करना प्रारम्भ कर देते हैं ।
(5) व्यक्तिगत नेता (Personal Leader):
व्यक्तिगत नेतृत्व की स्थापना व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर होती है । ऐसा नेता किसी कार्य के निष्पादन के सम्बन्ध में निर्देश एवं अभिप्रेरणा स्वयं अपने मुख द्वारा अथवा व्यक्तिगत रूप से देता है । इस प्रकार का नेता अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है क्योंकि अपने अनुयायियों से इनका निजी एवं सीधा सम्बन्ध रहता है । इसमें नेता के बौद्धिक ज्ञान का विशेष महत्व होता है ।
(6) अव्यक्तिगत नेता (Impersonal Leader):
अव्यक्तिगत नेतृत्व की स्थापना प्रत्यक्ष रूप से नेताओं तथा उप-नेताओं के अधीन कर्मचारियों के माध्यम से होती है । इसमें मौखिक बातों के स्थान पर लिखित बातें होती हैं । अत: समस्त निर्देश आदेश नीतियाँ, योजनाएँ तथा कार्यक्रम लिखित होते हैं । ऐसे उपक्रमों में जहां कि कर्मचारियों की संख्या अत्याधिक होने के कारण नेता का व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित करना कठिन होता है, अव्यक्तिगत नेतृत्व लोकप्रिय होता है । आजकल इस प्रकार का नेतृत्व प्राय: सभी उपक्रमों में विद्यमान है ।
(7) क्रियात्मक नेता (Functional Leader):
जैसा कि इनके नाम से स्पष्ट है, क्रियात्मक नेता वह होता है जो अपनी योग्यता कुशलता अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर अपने अनुयायियों का विश्वास प्राप्त करता है एवं उनका मार्गदर्शन करता है अनुयायी नेता के निर्देशन एवं सलाह के आधार पर ही क्रियाओं का निर्धारण एवं निष्पादन करते हैं ।
जॉर्ज आर. टैरी ने नेतृत्व का निम्न भागों में वर्गीकरण किया है:
(i) व्यक्तिगत नेतृत्व (Personal Leadership);
(ii) अव्यक्तिगत नेतृत्य (Impersonal Leadership);
(iii) निरंकुश नेतृत्य (Authoritarian Leadership);
(iv) जनतन्त्रीय नेतृत्व (Democratic Leadership);
(v) देशी नेतृत्व (Indigenous Leadership) ।
इसका उद्गम औपचारिक सामाजिक संगठन समूहों द्वारा होता है जो कि विविध प्रकार के होते हैं । ये विभिन्न स्थानों पर व्यक्तियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करते हैं ।
(vi) पैतृक नेतृत्व (Paternalistic Leadership):
इसमें अनुयायियों तथा नेता के मध्य पैतृक सम्बन्धों पर बल दिया जाता है ।
Essay # 5. नेतृत्व के गुण (Qualities of Leadership):
पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) एवं जॉन जी. ग्लोवर (John G. Glover) आदि विद्वानों का मानना है कि किसी व्यावसायिक प्रतिल्टन की सफलता या असफलता नेतृत्व की किस्म पर निर्भर करती है । अत: प्रभावी नेतृत्व ही व्यवसाय की सफलता की कामना को पूरा करने में समर्थ हो सकता है । इसलिए एक नेता में अनेक गुणों का होना आवश्यक है ।
जार्ज आर. टैरी (George R. Terry) के अनुसार एक नेता में निम्न गुणों का होना आवश्यक है:
हेनरी फेयोल (Henry fayol) के अनुसार एक नेता में निम्न गुण होने चाहिए:
सी.एल. अर्विक (C.L. Urwick) ने एक नेता में निम्न गुणों का होना आवश्यक माना है:
चेस्टर आई. बर्नार्ड (Chester I. Barnard) के अनुसार एक नेता में निम्न गुण होने चाहिए:
आर्डवे टीड (Ordway Teed) के अनुसार नेता में निम्न गुण होने चाहिए:
नेता के गुणों के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों का अध्ययन करने के पश्चात् हम कह सकते हैं कि नेता में निम्न गुणों का होना आवश्यक है:
(i) निर्णायकता (Decisiveness):
यह गुण नेता की निर्णय करने की क्षमता से सम्बन्ध रखता है । इसके कारण सही समय पर सही कार्य होना सम्भव होता है । निर्णय की असफलता नैतिक साहस को दुर्बल कर देती है और कभी-कभी तो यह संस्था की कुशलता को बहुत अधिक हानि पहुंचाती है ।
(ii) उत्तरदायित्व (Responsibility):
बर्नार्ड के मतानुसार- “उत्तरदायित्व का तात्पर्य उस भावनात्मक परिस्थिति से है जो एक व्यक्ति को जबकि वह अपने किसी नैतिक कर्त्तव्य को पूरा नहीं करें तीस असन्तोष देती है ।” चूंकि नेता ऐसे सब असन्तोषों से बचना चाहेगा, इसलिए उसका व्यवहार स्थायी होता है और उसके अनुसरणकर्त्ताओं द्वारा अनुमान किया जा सकता है । यह नेतृत्व का एक महत्वपूर्ण गुण है ।
(iii) योग्यता एवं तकनीकी सामर्थ्य (Intelligence and Technical Competence):
एक नेता में उसके अनुयायियों से अधिक योग्यता एवं तकनीकी सामर्थ्य होनी चाहिए योग्य नेता जहां एक ओर संगठन में उत्पन्न समस्याओं को समझकर उपयुक्त हल प्रस्तुत कर सकता है वहाँ दूसरी ओर अनुयायियों का अच्छा मार्ग-दर्शन भी कर सकता है ।
इसके अतिरिक्त नेता प्रबन्धकीय कार्य जैसे: नियोजन संगठन समन्वय अभिप्रेरणा एवं नियन्त्रण आदि के निष्पादन में भी योग्य होना चाहिए नेता में पर्याप्त सामर्थ्य भी होना चाहिए । उसे तकनीकी, आर्थिक वैधानिक, वित्तीय आदि सभी का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए ।
(iv) स्फूर्ति एवं सहिष्णुता (Vitality and Endurance):
एक कुशल नेता में स्फूर्ति एवं सहिष्णुता का होना अति आवश्यक है स्फूर्ति से आशय चैतन्य या सजगता से है । सहिष्णुता या सहनशीलता से आशय संकटकालीन परिस्थितियों में धैर्य से कार्य करने से है । एक नेता को सदैव भावी परिस्थितियों से सजग रहना चाहिए और आप्रत्तियों एवं कठिनाइयों में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए । सजग एवं धैर्यवान नेता ही समस्याओं पर निरन्तर विचार कर सकता है, उनका प्रभावी समाधान ढूँढ सकता है और अनुयायियों को उचित मार्ग-प्रदर्शन कर सकता है ।
(v) आत्म-विश्वास (Self-Confidence):
एक कुशल नेता में आत्म-विश्वास अवश्य होना चाहिए । यह आत्म- विश्वाम अन्य तथ्यों के अलावा आत्म-ज्ञान (Self-Knowledge) पर आधारित होना चाहिए । एक नेता जिसमें आत्म-विश्वास होता है वह दूसरी का विश्वास जीतने में भी सफल होता है । एल.एफ.उर्विक (L.F. Urwick) अनुसार- ”अनुयायियों का पूर्ण विश्वास प्राप्त करने के लिए नेता में आत्म-विश्वास खेना चाहिए ।” अत: यह ठीक ही कहा गया है कि जिस व्यक्ति में स्वयं आत्म-विश्वास नहीं होता वह दूसरों का विश्वास भी नहीं जीत सकता ।
(vi) अनुभूति (Persuasiveness):
यह एक नेता का महत्वपूर्ण गुण है । इस गुण के अभाव में अन्य सब गुण प्रभावहीन हो जाते हैं । बर्नार्ड का कहना है कि- ”अनुभूति के अन्तर्गत अन्य लोगों के दृष्टिकोण, हितों तथा परिस्थितियों को समझना होता है ।”
(vii) साहस (Courage):
उर्विक (Urwick) ने एक नेता में जिन गुणों का होना आवश्यक माना है उनमें का “साहस” सबसे महत्वपूर्ण है । इनके अनुसार एक नेता में जिन क्रियाओं को वह सही मानता है उन्हें करने का नैतिक साहस होना चाहिए और निर्णय लेने एवं उन्हें लाग करने में दृढ़ता होनी चाहिए साहसी नेता ही सत्यता के पथ से विचलित नहीं होता और अपने चापलूस अनुयायियों के चंगुल में नहीं फँसता । साहसी नेता के अनुयायी भी उसका अनुसरण करके निडरता से अपनी क्रियाओं का निष्पादन करते हैं । अत: नेता में नैतिक साहस का होना अत्यावश्यक है ।
(viii) सम्प्रेषण की योग्यता (Ability to Communicate):
एक नेता का मुख्य कार्य अपने अनुयायियों एवं दूसरे व्यक्तियों को सूचनाओं, आदेशों, विचारों आदि का सम्प्रेषण करना होता है । अत: उसमें अनुयायियों को मुख्यतया निर्देश देने और सामान्य जनता को आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करने की योग्यता होनी चाहिए । नेता द्वारा अनुयायियों को निर्देशन देना ही पर्याप्त नहीं है, इन निर्देशों का अनुयायियों द्वारा पालन करना आवश्यक है । अत: अनुयायियों को निर्देश देना ओर अनुयायियों द्वारा उनका पालन दोनों ही नेता की सम्प्रेषण-योग्यता में सम्मिलित है ।
(ix) प्रेरित करने की योग्यता (Ability to Inspire):
एक नेता में अपने अनुयायियों को कार्य के प्रति प्रेरित करने की योग्यता होनी चाहिए योग्य एवं अनुभवी नेता निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अनुयायियों की रुचियों, विचारें, भावताओं, आवश्यकताओं आदि का अध्ययन करके और अनुयायियों को आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करके कार्य हेतु प्रेरित कर सकता है इस प्रकार जो नेता अनुयायियों पर प्रभाव रखता है वह अनुयायियी को प्रेरित करने में सफल होता है ।
(x) मानसिक क्षमता (Mental Capacity):
एक कुशल नेता में विकसित मानसिक क्षमता का होना आवश्यक हे आज विश्व के सभी देशों में सामाजिक आर्थिक परिर्वतन तीव्र गति से हो रहे हैं । अत: नेता का मस्तिष्क इतना लोचशील एवं सक्षम होना चाहिए कि वह परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार अपने विचारों में परिवर्तन कर ले ऐसा नेता कभी भी सफल सिद्ध नहीं होता जो “लकीर का फकीर” होता है मानसिक दृष्टि से विकसित एवं खुले विचार रखने वाला नेता ही द्वेष रहित परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल सभी को स्वीकार योग्य निर्णय ले सकता है ।
(xi) अन्य गुण (Other Qualities):
उपरोक्त के अतिरिक्त एक सफल नेता के अन्य गुण भी अग्रलिखित हैं:
(a) सम्मान;
(b) हास्य;
(c) अन्य लोगों के लिए स्नेह;
(d) प्रयत्नशीलता;
(e) रुचि;
(f) प्रभावशीलता;
(g) पहलपन;
(h) संगठन दक्षता;
(i) लोगों को समझने की शक्ति;
(j) स्वामिभक्ति;
(k) वैयक्तिक चाल-चलन;
(l) सिखाने की योग्यता
(m) शुभचिन्ता;
(n) चातुर्य इत्यादि ।
Essay # 6. नेतृत्य के मार्ग में बाधाएँ (Hindrances of Leadership):
प्राय: दुर्बलताएँ नेताओं की सफलता को धक्का पहुँचाती हैं ।
ऐसी दुर्वलता की चर्चा अलफर्ड एवं बीटी ने निम्न शब्दों में व्यक्त की है:
(1) कुछ नेता अस्थिर भावना वाले होते हैं । उन्हें यकायक क्रोध आ जाता है ।
(2) कुछ नेता अपना दृष्टिकोण सही रूप से प्रस्तुत नहीं कर पाते अथवा साथियों से राय नहीं लेते हैं ।
(3) कुछ नेता अपने अनुसरणकर्त्ताओं से दूर-दूर रहते हैं जिससे उन्हें उनकी प्रतिक्रियाओं का यथा समय पता नहीं लग पाता ।
(4) कुछ नेता मानव प्रकृति से परिचित न होने के कारण अन्य लोगों के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं बना पाते ।
(5) कुछ नेता अपने पद के समकक्ष योग्यता नहीं रखते, जिससे उनमें हीनता की भावना रहती है और हीनता की कसर को वे अपने साथियों के प्रति अनावश्यक श्रेष्ठता प्रदर्शित करके पूरा करते हैं ।
(6) कुछ नेताओं के व्यवहार में बड़ी अस्थिरता रहती है, जिससे उनके साथी उनके भावी व्यवहार के बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पाते और इसलिए अपनी स्थिति को बहुत अनिश्चित एवं असुरक्षित समझते हैं ।
(7) कुछ नेताओं में दूरदर्शिता का अभाव होता है, जिससे वे अपने दल का भावी कार्यक्रम ठीक प्रकार से नहीं बना सकते हैं ।
(8) कुछ नेता अर्थ-दण्ड या पुरस्कार की प्रेरणा को आवश्यकता से अधिक महत्व देते हैं और वे प्रशंसा, सम्मान आदि की प्रेरणाओं की उपेक्षा कर देते है ।
(9) कुछ नेता सब के सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति के कार्य में अपने साथियों के साथ सहयोग करने में असमर्थ रहते हैं ।
एक अच्छा नेता समय-समय पर अपने आचरण की परीक्षा करता रहता है, जिससे उनकी दुर्बलताएँ दूर हो सकें और स्थायी न बन सकें । इस प्रकार के आत्म-विश्लेषण से सन्तोषजनक परिस्थितियों को उनके स्थायी रूप से हानिकारक होने से पहले ही सुधारा जा सके ।
Essay # 7. नेतृत्य का निष्कर्ष (Conclusion to Leadership):
औद्योगिक नेता व्यक्तियों की प्राकृतिक क्षमताओं में सुधार करके बनाये जा सकते हैं । इसके लिए औपचारिक शिक्षा, औद्योगिक प्रशिक्षण एवं आत्म-विश्वास की आवश्यकता पड़ती है । औद्योगिक नेताओं के विकास के लिए दी जाने वाली औपचारिक शिक्षा मानव विज्ञानों से युक्त होनी चाहिए । यह शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उसके मानसिक अनुशासन को दृढ़ करें मानव सम्बन्धों का ज्ञान कराये । इसके अतिरिक्त नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कराये जाने चाहिए ।