Read this article in Hindi to learn about the top seven theories of leadership. The theories are: 1. The Trait Theory 2. The Situation Theory 3. The Follower Theory 4. The Behavioural Approach Theory 5. The Group Approach Theory 6. X and Y Theory and Leadership 7. Composite Approach.

1. गुण-मूलक विचारधारा (The Trait Theory):

आर्डवे टीड (Ordway Tead) और चेस्टर आई. बर्नार्ड (Chester I. Barnard) इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते है । नेतृत्व की यह परम्परागत विचारधारा सर 1940 तक अपना विशेष महत्व रखती थी । इस विचारधारा की यह मान्यता है कि वह व्यक्ति ही एक सफल नेता हो सकता है जिसमें नेतृत्व सम्बन्धी कुछ विशिष्ट गुण होते है । इन गुणों में शारीरिक मानसिक और मनोबल सम्बन्धी गुणों को सम्मिलित किया जाता है । चेस्टर बनार्ड आर्डवे टीड हैरी उर्विक आदि विद्वानों ने भी नेतृत्व के गुणों के बारे में अपनी-अपनी राय दी है ।

संक्षेप में हम इन गुणों को 12 वर्गों में रख सकते हैं:

(i) बुद्धिमत्ता (Intelligence) यह औसत बुद्धिमता से अधिक होनी चाहिए;

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(ii) व्यापक रुचि (Interest) तथा सुदृढ़ शैक्षणिक तथा तकनीकी ज्ञान (Knowledge);

(iii) पहल-क्षमता (Initiative) तथा सृजनात्मक योग्यता (Creativity);

(iv) अधीनस्थों के साथ विचार-विनिमय एवं सम्प्रेषण की योग्यता (Communicationability);

(v) विवेकपूर्ण निर्णय की क्षमता (Sound Judgement);

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(vi) सम्बन्धित तथ्यों एवं तत्वों के उचित मूल्यांकन पर आधारित तत्काल निर्णय (Quick Decisions) लेने की क्षमता;

(vii) मानसिक तथा आवेगात्मक परिपक्वता (Mental and Emotion Maturity) तथा वैज्ञानिक प्रणाली में अभिरुचि व कुशाग्रता;

(viii) उत्तरदायित्व निभाने की तत्परता (Sense of Responsibility);

(ix) लोगों के साथ व्यवहार करने की कुशलता तथा उनका सहयोग लेने की निपुणता;

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(x) पथ प्रदर्शन तथा अधीनस्थों की प्रशिक्षण देने की योग्यता (Ability to Guide and Train);

(xi) उत्साह (Enthusiasm);

(xii) शारीरिक शक्ति और कार्य शक्ति (Physical Energy and Stamina);

इस विचारधारा का वर्तमान में पर्याप्त महत्व होते हुए भी यह दोष रहित नहीं है इसकी अनेक कमियाँ अथवा आलोचनाएं (Criticism) है जिनमें से प्रमुख निम्न हैं:

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(i) यह विचारधारा व्यक्ति के शील गुणों पर ही अधिक ध्यान देती है परिस्थित्यात्मक घटकों (Situational Factors) की ओर कोई ध्यान नहीं देती ।

(ii) यह विचारधारा यह भी स्पष्ट नहीं करती कि नेता के अनेक गुणों में से कौन-से गुण अधिक महत्व के हैं और कौन-से गुण कम महत्व के ।

(iii) यह विचारधारा एक नेता में जो गुण होने चाहिए उन सभी को जन्मजात मानती है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि ये सभी जन्मजात हो इनमें से कुछ को अर्जित भी किया जा सकता है ।

(iv) यह विचारधारा नेता के आचरण या व्यवहार को स्पष्ट करती है लेकिन विश्लेषण नहीं करती ।

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(v) यह विचारधारा यह भी स्पष्ट नहीं करती है कि कौन-से गुण एक व्यक्ति में नेता होने के लिए आवश्यक हैं और कौन-से उसे इस पद पर बनाये रखने के लिए आवश्यक हैं ।

2. नेतृत्य का पारिस्थित्यात्मक परीक्षण सिद्धान्त (The Situation Theory):

इस सिद्धान्त की यह मान्यता है कि परिस्थितियाँ भी एक नेता को प्रभावित करती है । स्टागडील (Stogdill) के अनुसार- एक व्यक्ति जो अमुक परिस्थितियों में एक सफल नेता सिद्ध हुआ हो, यह आवश्यक नहीं कि वह अन्य परिस्थितियों में भी एक कुशल नेता सिद्ध हो ।

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक इस बात को तो स्वीकार करते है कि नेता एवं प्रबन्धक में कुछ गुण (जैसे- स्वस्थ शरीर एवं प्रभावी व्यक्तित्व भाषण देने की योग्यता, धैर्य, साहस, पहलपन, बुद्धिमता आदि) तो होने ही चाहिए, परन्तु अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि परीक्षा की घड़ियों में वह उन गुणों का जिस प्रकार प्रयोग करता है ।

इस प्रकार एक नेता में किन गुणों का होना आवश्यक है, यह विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करता है । उदाहरण के लिए, चर्चिल युद्ध की परिस्थितियों में तो एक सफल नेता सिद्ध हुआ किन्तु बाद में शांति अवधि में वह अधिक सफल नहीं हुआ ।

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आलोचना (Criticism):

गुणमूलक विचारधारा के सिद्धान्त की भांति परिस्थितिमूलक परीक्षण सिद्धान्त को भी आलोचना की दृष्टि से देखा जाता है, क्योंकि इसमें भी नेतृत्व के केवल एक पक्ष पर आवश्यकता से अधिक ध्यान दिया जाता है । मैकूफरलैण्ड के अनुसार- “गुण सिद्धान्त की भाँति परिस्थिति सिद्धान्त भी नेतृत्व का अपूर्ण तथा सीमित स्पष्टीकरण देता है ।”

विशेष रूप से इस सिद्धान्त में निम्न कमियाँ हैं:

(i) यद्यपि यह सिद्धान्त इस बात को स्पष्ट करता है कि प्रस्तुत परिस्थिति में वर्तमान नेता सफल होगा अथवा नहीं परन्तु क्या वह दूसरी परिस्थिति में भी सफल होगा इसका इसमें कोर्ड उत्तर नहीं मिलता एवं

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(ii) यह सिद्धान्त यह नहीं बताता कि एक संगठन में अच्छे नेता कैसे बनाए जायें जिससे उनकी सफलता की गारण्टी दी जा सके ।

3. अनुसरण विषयक सिद्धान्त (The Follower Theory):

उपर्युक्त दो सिद्धान्तों की दुर्बलता ने इस तीसरे सिद्धान्त को जन्म दिया । श्री एफ.एच.सन्फोर्ड (F.H. Sanford) के अनुसार अनुयायियों के द्वारा भी नेतृत्व प्रभावशाली हो जाता है जो नेता अपने अनुयायियों की सामाजिक तथा व्यक्तिगत आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में सकल होते हैं उनके अनुसरणकर्ता सदैव उन्हीं पर निर्भर रहते हैं ।

इस प्रकार किसी व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता को मालूम करने के लिए उसके अनुयायियों सम्बन्धी आचरण का अध्ययन करना नितान्त आवश्यक है । नेतृत्व की विशेषताओं में हमने अध्ययन किया कि नेता के लिए कुछ-न-कुछ अनुयायियों का होना आवश्यक है, बिना अनुयायियों के नेतृत्व का कोई अस्तित्व नहीं होता ।

अत: नेतृत्व की धारणा को सही अर्थ में समझने के लिए अनुयायियों की विशेषताओं का अध्ययन किया जाना चाहिए । इस विचारधारा के अनुसार एक कुशल एवं प्रभावी नेता वह है जो अपने अनुयायियों की विभिन्न आवश्यकताओं जैसे: निर्वाह, सुरक्षात्मक, सामाजिक, अहंकारी एवं आत्म-विकास सम्बन्धी सभी आवश्यकताओं को सतुष्ट करने में प्रयत्नशील हो ।

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4. नेता का आचरण या व्यवहार विषयक सिद्धान्त (The Behavioural Approach Theory):

रे.ए. किलियन (Ray A. Killian) के शब्दों में- “एक नेता चाहे मूल रूप से निर्णय लेने वाला हो, समस्या सुलझाने वाला हो, परामर्शदाता हो, सूचना देने वाला हो या नियोजक हो, उसे अपने अनुयायियों के समक्ष आदर्श आचरण प्रस्तुत करना चाहिए । अतएव इस सिद्धान्त के अनुसार नेता का आचरण व व्यवहार आदर्श होना चाहिए ।

यदि नेता स्वयं अनुशासन का पालन नहीं करता किन्तु अपने अनुयायियों से इसकी अपेक्षा करता है, तो ऐसी आशा निराधार होगी । इस विचारधारा के अनुसार नेतृत्व नेता के व्यवहार पर निर्भर करता है । यदि उसका स्वयं का आचरण ठीक है तो वह ठीक प्रकार से नेतृत्व कर पाएगा अन्यथा नहीं यदि नेता स्वयं अनुशासन में नहीं रहता परन्तु अपने अनुयायियों से अनुशासन में रहने की आशा करता है तो यह आशा निराधार है ।

वास्तव में यह विचारधारा नेता के आचरण एवं व्यवहार को सर्वाधिक महत्व देती है ।

5. समूह विषयक सिद्धान्त (The Group Approach Theory):

नेतृत्व की यह विचारधारा व्यक्ति और जिन परिस्थितियों में नेतृत्व की स्थापना होती है, के अध्ययन पर बल देती है । इस विचारधारा के प्रवर्तक श्री कर्ट लेविन (Kurt Lewin) थे । यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि नेता का एक व्यक्ति के रूप में अध्ययन करने के स्थान पर एक समूह के रूप में अध्ययन करना चाहिए क्योंकि उसका सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष से न होकर अनेक व्यक्तियों से होता है । इस प्रकार यह विचारधारा व्यक्ति (Individual) और समूह (Group) दोनों के महत्व पर बल देती है ।

6. X तथा Y सिद्धान्त एवं नेतृत्व (X and Y Theory and Leadership):

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मैफग्रेगर (Mc. Gregor) ने किया था । X सिद्धान्त का सार यह है कि कोई भी व्यक्ति निज की इच्छा से कार्य नहीं करता वास्तव में उससे काम कराने के लिए उसे डराना धमकाना, ताड़ना देना एवं पग-पग पर निर्देशन देने की आवश्यकता पड़ती है । इसके विपरीत Y सिद्धान्त की मान्यता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वेच्छा से तथा निज की प्रेरणा से कार्य करता है क्योंकि प्राकृतिक रूप से उसमें सृजन करने की शक्ति होती है अतएव नेतृत्व का कार्य तो “का चुप साधि रहउ हनुमाना” की भाँति उस शक्ति को प्रेरित करना होता है ।

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नेतृत्व मार्ग-दर्शन प्रदान करता है । इससे काम करने वाले व्यक्ति को अधिक सन्तोष की अनुभूति होती है । संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि X सिद्धान्त के अन्तर्गत नेता शक्ति का उपयोग करता है एवं कर्मचारियों पर अपने निर्णय बरबस थोपता है । इसके विपरीत Y सिद्धान्त में नेता कर्मचारियों के परामर्श से अपेक्षाकृत अधिक श्रेष्ठ निर्णय लेता है ।

7. आधुनिक सिद्धान्त (Composite Approach):

आजकल नेतृत्व के विषय में व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाता है । इसके अनुसार एक कुशल नेता में कुछ विशेषताएँ होनी ही चाहिए किन्तु साथ-साथ उसे परिस्थितियों से निपटने की शक्ति, अनुयायियों की भावना को समझने तथा उनसे आदर्श व्यवहार करने की शक्ति का होना भी आवश्यक है ।

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