Read this article in Hindi to learn about  Likert’s system of leadership.

रेन्सिस लिकर्ट मिशिगन इन्स्टीट्‌यूट ऑफ सोशल रिसर्च, अमेरिका के डायरेक्टर थे । उन्होंने काफी लम्बे समय तक प्रबन्ध नेतृत्व के क्षेत्र में गहन शोध अध्ययन किया । उनका उद्देश्य उच्च उत्पादनशील प्रबन्धको के नेतृत्व के सामान्य प्रारूप का पता लगाना था । उनका मत है कि किसी संगठन की प्रभावशीलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि प्रबन्धक अपने अधीनस्थों का नेतृत्व किस प्रकार करते हैं । उनके विचार में व्यक्तियों का नेतृत्व करने के लिए सबसे अच्छा प्रभावी ढंग यह है कि उन्हें निर्णयन (Decision-Making) में सहभागी बनाया जाए ।

प्रभावी संचार-प्रणाली की व्यवस्था की जाए तथा समर्थिक वातावरण (Supporting Atmosphere) बनाया जाए ताकि कर्मचारियों को अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अवसर मिल सकें और ये अपनी गुणवत्ता को अनुभव कर सकें उन्होंने नेतृत्व शैलियों को चार वर्गों में बाँटा जिसे वे चार-प्रणाली कहते हैं ।

यह प्रबन्ध जगत् में “लिकर्ट की चार प्रबन्ध-प्रणाली” के नाम से जानी जाती है:

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(i) प्रणाली 1- शोषणकारी निरंकुश नेतृत्व (System 1- Exploitive Autocratic Leadership):

ऐसे नेता अत्यधिक निरंकुश तथा उत्पादन केन्द्रित होते हैं । ऐसे नेताओं का अपने अधीनस्थों पर बहुत कम विश्वास होता है । ये एक पक्षीय ढंग से लक्ष्यों को तथा उन्हें प्राप्त करने के तरीकों को तय करते हैं । उनका अपने अधीनस्थों से काम करवाने का तरीका अत्यन्त आदेशात्मक तथा निर्देशात्मक होता है । वे निर्णयन-सत्ता को अपने तक सीमित रखना चाहते हैं । ऐसे नेता अपने अधीनस्थों के विचार, सुझाव व राय कभी-कभार प्राप्त करते हैं ।

इस प्रणाली के अन्तर्गत अधीनस्थों को अपनी कार्य समस्याओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करने की कोई स्वतन्त्रता नहीं होती है । इस प्रणाली में संचार की प्रकृति अत्यधिक औपचारिक होती है तथा इसका प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है । प्रेरणा की नकरात्मक विधियों का अधिक सहारा लिया जाता है अधीनस्थों को भय, दण्ड तथा चेतावनी आदि देकर कार्य करने के लिए विवश किया जाता है ।

कभी-कभार उन्हें पुरस्कार भी दिया जाता है उन पर कड़ा नियन्त्रण रखा जाता है ।

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(ii) प्रणाली 2- हितैषी निरंकुश नेतृत्व (System 2: Benevolent Autocratic Leadership):

इस प्रणाली में नेता अपने अधीनस्थों के प्रति कभी संरक्षणात्मक तो कभी कड़ा रूख अपनाते है । उनके और अधीनस्थों के बीच मालिक-नौकर की तरह का सम्बन्ध होता है । अधिकांश निर्णय उच्च स्तर पर ही लिए जाते हैं । किन्तु कुछ निर्णय निम्न स्तरों पर भी लेने दिए जाते हैं । अभिप्रेरणा के लिए “गाजर तथा छड़ी” (Carrot and Stick) विधि को अपनाया जाता है । इस प्रणाली में एक-मार्गीय संचार (One-way Communication) पायी जाती है । संगम का वातावरण भय व आशंका से स्म नहीं होता ।

(iii) प्रणाली 3- सलाहकारी अथवा सहभागी नेतृत्व (System 3: Consultative or Participative Leadership):

इस प्रणाली के अन्तर्गत नेता अपने अधीनस्थों में कुछ रुचि दिखाते हैं । वे अधीनस्थों पर पर्याप्त विश्वास रखते हैं, लेकिन पूरी तरह नहीं । अधीनस्थों से प्राय: विचार-विमर्श किया जाता है । यद्यपि सामान्य नीति तथा निर्णय उच्च स्तर पर लिए जाते हैं फिर भी कुछ छोटे-मोटे निर्णय निचले स्तर पर लेने की स्वतन्त्रता होती है । इसमें संचार प्रवाह द्विमार्गीय (Two way) होता है । अभिप्रेरणा के लिए सकारात्मक विधियों का अधिक प्रयोग किया जाता है । नियन्त्रण-प्रणाली लोचशील तथा लक्ष्य-केन्द्रित होती है ।

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(iv) प्रणाली 4- जनतन्त्र नेतृत्व (System 4: Democratic Leadership):

यह एक आदर्श प्रकार की नेतृत्व-शैली है । इस प्रणाली में नेता अधीनस्थों पर पूरा विश्वास रखते हैं और उन पर भरोसा करते हैं । वे अधीनस्थों के विचारों और परामर्शी का सम्मान करते हैं तथा उनका रचनात्मक प्रयोग करते है दोनों पक्षों के बीच सौहार्द्रपूर्ण तथा मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होता है । इसमें संचार प्रणाली खुली तथा प्रभावशाली होती है । अधीनस्थों को लक्ष्य निर्धारण और निर्णयन की प्रक्रियाओं में सक्रिय हिस्सेदार बनाया जाता है ।

इस प्रणाली के अन्तर्गत नेताओं का नेतृत्व अधीनस्थों को उच्चस्तरीय निष्पादन के लिए अभिप्रेरित करने वाला होता है सहभागिता मधुर सम्बन्ध, मान्यता (Recognition) आत्म-विकास के अवसर, मौद्रिक पुरस्कार आदि अभिप्रेरणा के साधन होते हैं । नेता आपसी सदविश्वास, समर्थन तथा भरोसे के वातावरण का निर्माण करते हैं । नियन्त्रण समंकों का उपयोग नियन्त्रण के बजाय स्वयं के मार्ग-दर्शन के लिए किया जाता है ।

रेनसिस लिकर्ट ने इस प्रबन्ध प्रणालियों को कार्य-निष्पादन की विशेषताओं जैसे- उत्पादकता, कर्मचारी आवर्तन (Labour Turnover), अनुपस्थिति (Absentee), गुणवत्ता नियन्त्रण, संसाधन अपव्यय तथा छीजन से तोड़ने का प्रयास किया है । उन्होंने अपने शोध-अध्ययन में पाया कि प्रणाली । पर केन्द्रित संगठनों की स्थिति बहुत ही असन्तोषजनक है, जबकि प्रणाली 4 पर आधारित संगठनों की स्थिति बहुत अच्छी है ।

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इस प्रकार लिकर्ट प्रणाली 4 का समर्थन करते हुए कहते हैं कि जिन प्रबन्धकों द्वारा इस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है वे उच्च निष्पादन को प्राप्त करते हैं । इससे स्वस्थ तथा समर्थित वातावरण बनता है और कर्मचारियों के मनोबल तथा सन्तुष्टि में वृद्धि होती है ।

अतएव लिकर्ट प्रणाली 4 को ही प्रमाणिक तथा तर्कसंगत मानते हैं जिनके द्वारा अनुकूलतम निष्पादन उत्पादकता तथा कर्मचारी-सन्तुष्टि के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है । यह प्रणाली मानव संसाधन विकास के लिए सबसे अधिक उपयोगी है । इससे जहाँ संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति प्रभावशाली ढंग से होती है, वहीं इससे लोगों की सूचना हिस्सेदारी अन्तर-सम्पर्क प्रभाव, उत्तरदायित्त्व, उपलब्धि, प्रगति से सम्बन्धित व्यक्तिगत आवश्यकताएं भी पूरी होती हैं ।

संक्षेप में, प्रणाली 1, कार्य-अभिमुखी (Job Oriented), उच्च रूप से संरचित (Structured) तथा निरंकुश प्रबन्ध शैली (Relation Oriented) है । दूसरी ओर प्रणाली 4 सम्बन्ध-अभिमुखी शैली है जो कि परस्पर विश्वास, दलीय भावना तथा सन्तुष्टि पर आधारित है । इन दोनों अतियों (Extremes) के बीच प्रणाली 2 तथा प्रणाली 3 आती है जो कि लगभग “एक्स” (X- Theory) तथा “वाई” (Y- Theory) विचारधारा के समान हैं ।

आलोचनाएँ (Criticisms):

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यद्यपि लिकर्ट की इन प्रणालियों को विद्वानों का पर्याप्त समर्थन मिला है और प्रबन्धकों को प्रबन्ध के दर्शन को समझने में मदद मिली है परन्तु फिर भी इसकी निम्न आधारी पर आलोचना की गई है:

(i) लिकर्ट की यह मान्यता है कि जो प्रबन्धक प्रणाली-4 को अपनाएगा वह नेता के रूप में बहुत सफल होगा । यह प्रणाली प्रत्येक परिस्थिति में खरी नहीं उतरती ।

(ii) इसमें स्थित्यात्मक (Situational) घटकों तथा उनके प्रभावी की उपेक्षा की गई है, जबकि सच्चाई यह है कि नेता की सफलता व परिस्थितियों की माँग के अनुसार अपनेआप को बनाने पर निर्भर करती है ।

(iii) लिकर्ट के विचार एक छोटे-समूह से सम्बन्धित थे, अत: सम्पूर्ण संगठन पर इनको लागू करना सन्देहजनक लगता है ।

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