Read this article in Hindi to learn about Tannenbaum-Schmidt continuum of Leader Behaviour Model in the field of management.

राबर्ट टेननबॉम तथा वारेन एच. शिमिट (Robert Tannenbaum and Warren Schmidt) ने 1957 में नेता व्यवहार का एक निरन्तरता मॉडल प्रस्तुत किया था । उस मॉडल के अनुसार नेता अपने स्वयं की, अनुयायियों की तथा परिस्थिति की शक्तियों पर विचार करते हुए सात प्रकार के नेतृत्व व्यवहार में से किसी एक का चुनाव करता है ।

नेतृत्व व्यवहार का यह सातत्य-क्रम (Continuum) अथवा विस्तार (Range) निम्न दो व्यवहार अतियों (Extremes) के बीच फैला होता है:

(i) निरंकुश अथवा कार्य: अभिमुखी व्यवहार,

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(ii) जनतन्त्रीय अथवा सम्बन्ध-अभिमुखी व्यवहार ।

ओहियो तथा मिशिगन के अध्ययनों से स्पष्ट हो गया था कि एक नेता का व्यवहार उपरोक्त में से एक प्रकार का हो सकता है:

(i) वह अपने कर्मचारियों को यह कह सकता है कि क्या करना है तथा कैसे करना है (कार्य-अभिमुखी व्यवहार);

(ii) वह कार्य के नियोजन एवं क्रियान्वयन में कर्मचारियों को भागीदार बना सकता है तथा अपने नेतृत्व के दायित्वों को बांट सकता है (सम्बन्ध-अभिमुखी व्यवहार) अथवा जनतन्त्रीय व्यवहार ।

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नेता की निरंकुश शैली, इस मान्यता पर आधारित है कि सत्ता पद से प्रवाहित होती है और व्यक्ति स्वभाव से आलसी तथा अविश्वसनीय होते हैं (X विचारधारा) । दूसरी ओर, जनतन्त्रीय व्यवहार इस मान्यता पर आधारित है कि नेता को सत्ता अपने समूह से प्राप्त होती है तथा उचित रूप से अभिप्रेरित करने पर व्यक्ति स्व-निर्देशित तथा सृजनात्मक हो सकता है (Y विचारधारा) ।

टेननबाम तथा शिमिट के अनुसार निरकुंश तथा जनतन्त्रीय व्यवहार की इन दो अतियों (Extremes) के बीच नेता के निम्न सात प्रकार के व्यवहार हो सकते हैं, जिनमें से वह किसी भी एक व्यवहार का चुनाव विद्यमान परिस्थितियों के अनुसार कर सकता है:

(i) नेता अर्थात् प्रबन्धक स्वयं निर्णय लेता है तथा इसे घोषित कर देता है । (Manager Makes Decision and Announces it);

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(ii) प्रबन्धक अपने निर्णय को “बेचता” है अर्थात् इसे स्वीकार करने के लिए दूसरी को प्रभावित करता है । (“Sells” Decisions);

(iii) प्रबन्धक विचार पेश करता है तथा प्रश्न आमन्त्रित करता हे । (Manager Presents ideas and Invites Questions);

(iv) प्रबन्धक प्रायोगिक निर्णय पेश करता है परन्तु इनमें अपेक्षित परिवर्तन की गुंजाइश रखता है । (Manager Presents Tentative Decisions Subject to Change);

(v) प्रबन्धक समस्या प्रस्तुत करता है, सुझाव प्राप्त करता है तथा निर्णय लेता है । (Manager Presents Problem, Gets Suggestions Subject to Change);

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(vi) प्रबन्धक सीमाओं को परिभाषित करके समूह से निर्णय लेने के लिए कहता है । (Manager Defines Limits, asks Group to Make Decisions);

(vii) प्रबन्धक अपने द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत अधीनस्थों को कार्य करने की स्वतन्त्रता देता है । (Manager Permits Subordinates to Function within Limits Defined by Superiors) .

उपरोक्त नेतृत्व व्यवहार शैलियाँ (Behaviour Styles) एक सिरे पर निरंकुश (Autocratarian) व अधिकारी-केन्द्रित (Boss-Centered) नेतृत्व व्यवहार से शुरू होकर दूसरे छोर पर जनतन्त्रीय (Democratic) अथवा अधीनस्थ-केन्द्रित (Subordine-Centred) नेता व्यवहार को एक सातव्य-क्रम अथवा निरन्तरता (Continuum) के रूप में दर्शाती हैं । दूसरे शब्दों में, नेतृत्व व्यवहार “निरंकुशं” अथवा “जनतन्त्रीयं” शैली दो में न बँटा होकर इन दो अतियों (Extremes) के बीच फैला होता है । अत: नेतृत्व शैली का चुनाव इन दोनों चरम नेतृत्व-शैलियों के बीच होता है ।

किसी प्रबन्धक को अपने लिए उपयुक्त नेतृत्व व्यवहार का निर्धारण करते समय निम्नलिखित घटकों पर विचार करना चाहिए:

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(1) स्वयं प्रबन्धक का व्यक्तित्व;

(2) अधीनस्थों की विशेषताएँ;

(3) प्रस्तुत परिस्थितियां ।

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(1) प्रबन्धक का व्यक्तित्व:

नेता को सर्वप्रथम अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं को ध्यान में रखना चाहिए । यह उसके मूल्य (Values), अधीनस्थों में विश्वास, नेतृत्व शैलियों के प्रति समझ, अनिशिचित परिस्थितियों में सुरक्षा का बोध एवं अनुभव का योग है । उसे यह विचार करना चाहिए कि वह किस सीमा तक अधीनस्थों को निर्णय लेने में सहभागी बनाना चाहता है तथा वह उन पर कितना विश्वास करता है । फिर यह कि वह निर्देशन शैली में अथवा टोली नेतृत्व के रूप में नेतृत्व-व्यवहार को अपनाना चाहता है । अतएव प्रबन्धक को अपनी प्रबन्धकीय शक्तियों को पहचान कर ही नेतृत्व शैली का चुनाव करना चाहिए ।

(2) अधीनस्थों की विशेषताएँ:

नेता को अपने अधीनस्थों की विशेषताओं का भी मूल्यांकन करना चाहिए कि उनमें कितनी क्षमता, प्रतिबद्धता तथा अभिप्रेरणा है । यदि उनमें आत्मनिर्भरता की अत्यधिक आवश्यकता है, निर्णय के उत्तरदायित्व को ग्रहण करने की तत्परता है, अस्पष्टता के प्रति उच्चस्तरीय सहनशीलता है, समस्या में रुचि है, संगठनात्मक लक्ष्यों के प्रति समझ तथा प्रतिबद्धता है, निर्णय लेने के लिए आवश्यक ज्ञान, कुशलता व अनुभव है तथा निर्णयन में सहभागी बनने की अपेक्षा है तो उन्हें निर्णय लेने की अधिक स्वतन्त्रता दी जा सकती है इस प्रकार अधीनस्थ शक्तियों (Forces in Subordinates) की पहचान भी भली-भांति कर ली जानी चाहिए ।

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(3) प्रस्तुत परिस्थितियाँ:

परिस्थितियों में निहित शक्तियाँ भी नेतृत्व-शैली के चुनाव को प्रभावित करती है । जैसे कि संगठन की विशेषताएँ, जैसे उसके मूल्य तथा परम्पराएँ, इकाई का आकार, उनका भौगोलिक स्थल, समूह सदस्यों की एक इकाई के रूप में साथ-साथ काम करने की क्षमता, समस्या की प्रकृति व उसके लिए अपेक्षित ज्ञान व क्षमता, समय का दबाव तथा दीर्घकालीन व्यूह-रचना ।

टेननबाम व शिमिट किसी प्रबन्धक की उन दो विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं जो कि एक सफल नेतृत्व-शैली को अपनाने के लिए जरूरी हैं:

(i) उसे अपने अधीनस्थों की वैयक्तिक रूप से तथा समूह-सदस्यों के रूप में विशेषताओं का तथा संगठन एवं वातावरण में निहित शक्तियों का पता होना चाहिए ।

(ii) तथा उसमें परिस्थिति के अनुरूप उपयुक्त नेतृत्व: शैली को अपनाने की योग्यता होनी चाहिए । इन विद्वानों के अनुसार एक सफल प्रबन्धक न तो सुदृढ़ (Strong) होता है और न ही अनुमोदक (Permissive), वह वर्तमान परिस्थितियों का उचित आकलन करके अपने लिए सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व-व्यवहार का निर्धारण करता है तथा वैसा ही व्यवहार करता है । वह अन्तर्दृष्टिकोण तथा लोचशील दोनों होता है, इसलिए उसे नेतृत्व की समस्या असमंजस्य में नहीं डालती है ।

इस प्रकार टेननबाम तथा शिमिट ने प्रबन्धकों के लिए नेतृत्व शैलियों के चुनाव के लिए व्यावहारिक मार्ग-दर्शन की रूपरेखापेशकी है । उनके अनुसार सभी परिस्थतियों में कोई एक विशिष्ट नेतृत्व-शैली प्रभावशाली नहीं होती । अतएव प्रबन्धकों को प्रस्तुत परिस्थितियों के अनुरूप अपने नेतृत्व व्यवहार में परिवर्तन करना चाहिए ।

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इस मॉडल में यह स्वीकार किया गया है कि कोई भी नेतृत्व शैली सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकती है । एक शैली जो एक स्थिति में उपयुक्त है, दूसरी स्थिति में अनुपयुक्त है, दूसरी स्थिति में अनुपयुक्त हो सकती है अत: उपयुक्त शैली का निर्धारण नेता, अनुयायी तथा समय एवं स्थिति की माँग पर निर्भर करता है ।

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