Here is a compilation of essays on ‘Business Communication’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Business Communication’ especially written for college and management students in Hindi language.
Essay on Business Communication
Essay Contents:
- संचार का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions Communication)
- व्यावसायिक संचार की अवधारणा (Concept of Business Communication)
- व्यावसायिक संचार के उद्देश्य (Objectives of Business Communication)
- संचार प्रक्रिया के आधारभूत प्रकार (Basic Forms of Communication Process)
- व्यावसायिक संचार के कार्य (Functions of Business Communication)
- व्यावसायिक संचार की विशेषताएँ (Characteristics of Business Communication)
Essay # 1. संचार का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions Communication):
आज के अत्यन्त व्यस्त और प्रतिस्पर्धात्मक युग में संचार की महत्वपूर्ण भूमिका है । संचार ही वह माध्यम है जिसके द्वारा दूर-दूर बैठे हुए व्यवसायी अपने व्यवसाय की सारी शर्तें बिना एक-दूसरे से मिले ही निर्धारित कर लेते हैं । समय की कमी होने के कारण या समय की बचत करने की भावना बलवती होने के कारण भी संचार का महत्व अधिक बढ़ जाता है ।
यही कारण है कि हरित क्रान्ति एवं औद्योगिक क्रान्ति के उपरान्त अब संचार क्रान्ति हो रही है और संचार के ऐसे अभिनव माध्यम बाजार में उपलब्ध हैं जिनकी कुछ समय पूर्व कल्पना भी नहीं की जा सकती थी । इलेक्ट्रानिक माध्यमों ने तो संचार को और अधिक आधुनिक व प्रभावी बना दिया है । कहा जाने लगा है कि अब दौड़ने के लिए पैरों की नहीं संचार की ज्यादा आवश्यकता है । सूचनाओं के आदान-प्रदान के बिना कोई संगठन नहीं चल सकता । सूचनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम ही संचार है ।
संचार शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द “Communis” से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है “Common” किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्य (Common) बना देना है । इस प्रकार संचार शब्द का अर्थ है विचारों तथा सूचनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह पहुँचाना कि वह उन्हें जान सके तथा समझ सके ।
इस तरह संचार एक द्वि-मार्गी (Two way) प्रक्रिया है । इसके लिए यह आवश्यक है कि यह सम्बन्धित व्यक्तियों तक उसी अर्थ में पहुँच सके जिस अर्थ में संचारकर्त्ता ने उन विचारों का हस्तान्तरण किया है । इस रूप में यदि हमने कुछ बोला या लिखा त था पढ़ने या सुनने वाला उसे प्राप्त नहीं करता या प्राप्त करने पर उससे वह अर्थ नहीं लेता जो उसका वास्तविक अर्थ है तब इसे संचार नहीं कहा जा सकता ।
परिभाषाएँ (Definitions):
संचार की विभिन्न विद्वानों के द्वारा अलग-अलग परिभाषाएँ दी गई हैं ।
इनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं:
कीथ डेविस के अनुसार- ”संचार वह प्रक्रिया है जिसमें सन्देश व जानकारी को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को पहुंचाया जाता है ।”
न्यूमैन व समर के शब्दों में- ”संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों, राय एवं भावनाओं का आदान-प्रदान है ।”
फ्रेड जी. मायर के शब्दों में- ”संचार शब्दों में, पत्रों, सूचनाओं, विचारों एवं सम्पत्तियों के आदान-प्रदान करने का साधन है ।”
लुईस ए. एलन के शब्दों में- ”संचार उन सब बातों का योग है जो एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को अपनी बात समझाने के लिए करता है । इसमें कहने, सुनने और समझने की विधिवत क्रिया निरन्तर चलती रहती है ।”
एडविन ब्राउन फ्लिप्पो के अनुसार- ”संचार अन्य व्यक्तियों को इस तरह प्रोत्साहित करने का कार्य है, जिससे वह किसी विचार का उसी रूप में अनुवाद करें जैसा कि लिखने या बोलने द्वारा चाहा गया है ।”
सी.जी.ब्राउन के शब्दों में- “संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच सूचनाओं का सम्प्रेषण है, चाहे उससे विश्वास उत्पन्न हो अथवा नहीं और पारस्परिक विनिमय हो या नहीं, लेकिन इस प्रकार दी गई सूचना प्राप्तकर्त्ता को समझ आ जानी चाहिए ।”
Essay # 2. व्यावसायिक संचार की अवधारणा (Concept of Business Communication):
व्यावसायिक संचार, व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है । यह व्यवसाय का जीवन है । व्यावसायिक संचार में सन्देश वाहन के द्वारा ही विभिन्न व्यक्तियों के मध्यविचारों का आदान-प्रदान किया जाता है । व्यवसाय चलाने के लिए अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क रखना पड़ता है तथा निरन्तर अपने ग्राहकों से, कर्मचारियों से तथा अन्य व्यक्तियों से संवाद करना पड़ता है । यही संवाद की प्रक्रिया व्यावसायिक संचार कहलाती है ।
संचार किसी भी व्यक्ति को किसी संगठन में बना सकता है व बाहर कर सकता है, क्योंकि यह किसी भी संगठन की आन्तरिक व बाह्य गतिविधियों की सूचना देता है जो उस संगठन के हित या अहित में होती है ।
किन्हीं भी व्यावसायिक उद्देश्यों को संगठन के सामूहिक प्रयोसों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि संचार में व्यक्तियों के बीच सन्देशों, तथ्यों, विचारों, भावनाओं, सम्पतियों तथा तर्कों का आदान-प्रदान होता है । व्यावसायिक संचार व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है तथा इसके बिना उसका संचालन ही नहीं हो सकता ।
व्यावसायिक संचार को एक सर्वमान्य परिभाषा की सीमा में बांधना एक कठिन कार्य है क्योंकि एक ओर कुछ विद्वान सूचनाओं के प्रेषण की प्रक्रिया को संचार में सम्मिलित करते है तो दूसरी ओर कुछ अन्य विद्वान प्रेषण के साधनों एवं तकनीक को संचार से जोड़ते हैं ।
इस सम्बन्ध में प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:
सी.जी. ब्राउन के शब्दों में- “व्यावसायिक संचार सन्देशों तथा व्यवसाय से जुड़े लोगों को जानने की प्रक्रिया है । इसमें संचार के माध्यम सम्मिलित होते हैं ।”
“व्यावसायिक संचार संगठन के अंगों और लोगों के बीच जानकारी और सूचनाओं के आदान-प्रदान की एक प्रक्रिया है । सन्देशों के आदान-प्रदान के कई नमूने और माध्यम इस प्रक्रिया में सम्मिलित रहते हैं ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि व्यावसायिक संचार के अन्तर्गत विचारों का सम्प्रेषण संचार होता है । यह सूचना प्रदान करने की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सूचना प्राप्त करने वाला उसे उसी तरह समझे जैसे सूचना प्रेषक उसे समझाना चाहता है अर्थात् संचार का मेश्य सूचनानुसार कार्यवाही करना है साथ ही सूचना प्रदान करते समय विचारों में भावानाओं का समावेश होना आवश्यक है ।
Essay # 3. व्यावसायिक संचार के उद्देश्य (Objectives of Business Communication):
व्यावसायिक संचार का प्रमुख उद्देश्य उचित व्यक्ति को उचित समय उचित तरीके से उचित जगह पर उचित सूचना पहुँचाना है ताकि एक संगठन का प्रत्येक प्रसास सरलता से क्रियाशील हो सके एवं उसकी व्यावसायिक प्रक्रिया को संचालित करने में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो ।
व्यावसायिक संचार के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
(i) प्रबन्धकीय कौशल का विकास (Development of Managerial Skills):
संचार प्रबन्धकों को कार्य पर मानव व्यवहार समझने में सहायता करता है । व्यक्तियों के आचरण एवं संस्था में होने वाली विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में तथ्यों विचारी दृष्टिकोणों सूचनाओं एवं भावनाओं आदि का संचार प्रबन्धकों के ज्ञान में वृद्धि करता है । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संचार सीखने की एक प्रक्रिया है ।
(ii) परिवर्तनों को लागू करना (Implementation of Changes):
बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्थाओं व्यावसायिक घटनाओं में तीव्र परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । इस परिवर्तन के प्रभावी संचार पर व्यावसायिक सफलता एवं विकास निर्भर करता है । इसलिए कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल ने कहा है- ”अपने व्यापक अर्थों में उपक्रम में संचार का मुख्य उद्देश्य परिवर्तन को लागू करना हे ।”
(iii) सही सूचनाओं एवं सन्देशों का प्रेषण (Conveying the Right Information and Messages):
संचार का मुख्य उद्देश्य सही व्यक्ति को सही सूचना एवं सन्देश का प्रेषण करना होता है । सन्देश पूर्णरूपेण समझने योग्य होना चाहिए तथा प्राप्तकर्त्ता द्वारा मूल रूप से प्राप्त किया जाना चाहिए जैसाकि प्रेषक ने सम्प्रेषित किया हो । उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थों से संचार करते समय सूचना आदेश एवं सलाह, आदि का संचार करते है तथा कभी-कभी अधीनस्थों द्वारा सुझाव भी दिये जाते है ।
(iv) प्रयासों में समन्वय (Coordination of Efforts):
प्रत्येक व्यवसाय के अपने लक्ष्य निर्धारित होते है तथा उन व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त करना व्यवसाय में निहित प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व होता है । लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक हे कि विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न कार्यों में समन्वय होना चाहिए । दूसरे शब्दों में प्रत्येक कर्मचारी व्यावसायिक लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए समुचित प्रयास करता है, उन सभी व्यक्तियों के प्रयासों में समन्वय होना चाहिए जो केवल प्रभावशाली संचार प्रक्रिया के द्वारा ही सम्भव हो सकता है ।
(v) बाहरी पक्षों से सम्बन्ध (Contact with External Parties):
संचार केवल संचार के आन्तरिक प्रबन्ध के लिए ही आवश्यक नहीं है बल्कि बाह्य पक्षों से भी सम्बन्ध स्थापित करने के लिए इसकी आवश्यकता पड़ती है । बाह्य पक्षकारों से सम्बन्ध स्थापित करने से संस्था की ख्याति बढ़ती है तथा अन्य लोगों का संस्था के प्रति सकारात्मक नजरिया बनता है ।
(vi) नीतियों की प्रभावोत्पादकता (Effectiveness of Policies):
व्यावसायिक संचार कर्मचारियों के मार्गदर्शन के लिए तथा उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए नीतियों एवं कार्यक्रमों का निर्माण करता है तथा उनका सम्बन्धित व्यक्तियों को प्रेषण किया जाता है । केवल संचार प्रक्रिया के द्वारा ही नीतियों एवं कार्यक्रमों को मूल रूप से सम्बन्धित व्यक्तियों को प्रेषण किया जा सकता है ।
(vii) मधुर औद्योगिक सम्बन्ध (Good Industrial Relations):
संचार प्रक्रिया मधुर औद्योगिक सम्बन्धों का सृजन करती है । संचार प्रक्रिया में एक पक्ष से दूसरे पक्ष को भावनाओं, विचारों दृष्टिकोणों एवं सूचनाओं का प्रेषण किया जाता है जो कि अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का विकास करते है । संचार प्रकिया से दोनों पक्ष-प्रबन्धक और अधीनस्थ एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ लेते हैं तथा गलतफहमी (Misunderstanding) दूर हो जाती है जिससे मधुर सम्बन्धों की नींव पड़ती है ।
(viii) भ्रमों को हटाना (Avoid Illusion):
सूचना विभिन्न स्तरों से होकर गुजरती है और विभिन्न व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार उसका विश्लेषण करते है जिससे भ्रम व गलतफहमी उत्पन्न होती है । भ्रम संचार प्रक्रिया का सबसे बड़ा शत्रु है । संचार को प्रभावी बनाने के लिए भ्रमों को हटाना अनिवार्य होता है ।
(ix) मानवीय सम्बन्धों का सृजन (Building of Human Relations):
मानव उत्पादन का एक प्रभावी एवं सक्रिय तत्त्व है तथा मधुर मानवीय सम्बन्ध औद्योगिक शान्ति एवं समन्वय का आधार हैं । उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थों को संस्था की आवश्यकताओं एवं लक्ष्यों का प्रेषण करते हैं तथा अधीनस्थ अपने उच्चाधिकारियों को अपने सुझाव विचार एवं प्रतिक्रियाओं का प्रेषण करते हैं । यह सभी केवल संचार प्रक्रिया के द्वारा ही सम्भव हो पाता है । इस प्रकार, प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया मधुर मानवीय सम्बन्धी का सृजन करती है ।
(x) शीघ्र निर्णयन एवं उसका क्रियान्वयन (Prompt Decision and Its Implementation):
शीघ्र निर्णय लेने के लिए समंकों का संकलन अनिवार्य है । कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले सम्बन्धित सूचनाओं का संकलन करना आवश्यक होता है । इसके लिए प्राथमिक स्तर पर संचार प्रक्रिया को ही अपनाया जाता है । निर्णय का प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वयन करने के लिए पुन: संचार प्रक्रिया की सहायता ली जाती है । इसलिए निर्णय लेने एवं इसे क्रियान्वित करने के लिए प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है ।
व्यावसायिक संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विचार (Idea), प्रेषक (Sender), संवाद (Message), माध्यम (Medium) तथा प्रतिपुष्टि (Feedback) निहित है ।
Essay # 4. संचार प्रक्रिया के आधारभूत प्रकार (Basic Forms of Communication Process):
संचार के माध्यमों का विकास मानवीय सभ्यता के विकासक्रम से जुड़ा है । जैसे-जैसे सभ्यता एवं तकनीकी ज्ञान का विकास होता गया संचार के नये-नये साधन प्रयोग में आए । यदि हम संचार माध्यमों के विकासक्रम का अध्ययन करें तो पायेंगे कि मानव सम्यता के प्रारम्भिक काल में विचारों का आदान-प्रदान संकेतों, ध्वनि, इशारों या मुद्राओं (भावभंगिमा) के द्वारा करता था इसके बाद चित्रलिपि (Hieroglyphics) का प्रयोग किया गया जिसमें सूक्ष्म भाव एवं गतिविधियों का प्रयोग किया जाता था ।
धीरे-धीरे शब्द भाषा का विकास हुआ और सन्देशों के लिए मौखिक व लिखित शाब्दिक भाषा का प्रयोग किया जाने लगा वर्तमान समय में तो इलेक्ट्रोनिक एवं डिजिटल संचार माध्यमों का प्रयोग किया जाने लगा है ।
संक्षेप में संचार प्रक्रिया के आधारभूत प्रकार इस प्रकार हैं संचार प्रक्रिया के आधारभूत प्रकार इस प्रकार हैं:
शाब्दिक माध्यम (Verbal Medium):
मानव की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी शाब्दिक भाषा (Verbal Language) है । यही कारण है कि मानव को प्राणियों में श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त है । अन्य प्राणी केवल ध्वनि एवं इशारे पर आश्रित हैं जबकि मानव अपने भावों की अभिव्यक्ति शब्दों से कर सकता है शब्दों में अभिव्यक्ति सरल सुगम एवं बोधगम्य हो जाती है शाब्दिक संचार संचार की वह शाखा है जिसमें सन्देश शाब्दिक रूप में प्रसारित किये जाते हैं ।
शाब्दिक रूप में सन्देश दो रूपों में हो सकते हैं, एक मौखिक (Oral) व दूसरा लिखित (Written) मौखिक रूप में सन्देशकर्त्ता तथा सन्देश प्राप्तकर्त्ता अपने विचारों का अदान-प्रदान या तो एकदूसरे के सम्मुख बैकर या किसी यांत्रिक (Mechanical) या विद्युत् (Electrical) उपकरण जैसे: टेलीफोन इत्यादि के माध्यम से करता है ।
इस प्रकार मौखिक संचार के दो प्रमुख प्रकार हैं: प्रथम एक-दूसरे के सम्मुख बैठकर बातचीत करना जिससे कि हम विचार-विनिमय (Discussion) के अतिरिक्त शारीरिक भाषा (Body Language) के संकेतों को भी समझ सकें द्वितीय टेलीफोन मोबाइल तथा कम्प्यूटर वॉयस मेल ।
प्रथम साधन की अपेक्षा द्वितीय साधन उतना प्रभावी नहीं है जितना कि प्रथम जिसमें एक दूसरे के सम्मुख बैठकर वार्तालाप करना आता है, क्योंकि इस साधन का प्रयोग करके सन्देश प्राप्तकर्त्ता के भावों (Facial Impression) का अध्ययन नहीं किया जा सकता । यद्यपि इनके प्रयोग से सन्देश की प्रतिक्रिया (Reaction) या प्रतिपुष्टि (Feedback) तुरन्त प्राप्त हो जाती है परन्तु शारीरिक हाव-भाव का अध्ययन करना सम्भव नहीं है ।
इस प्रकार शाब्दिक अभिव्यक्ति को दो भागों में बाँटा जा सकता है:
अशाब्दिक माध्यम (Non-Verbal Medium):
संचार प्रक्रिया में सन्देशों का आदान-प्रदान होता है । प्रेषक तथा प्राप्तकर्त्ता सन्देश एवं विचार को एक समान अर्थ में समझते हैं । जब इस प्रक्रिया में सन्देश शब्दों में व्यक्त किया जाए तो उसको शाब्दिक संचार (Verbal Communication) कहते हैं ।
इसके विपरीत, जब सन्देश शब्दों के अतिरिक्त चिन्हों (Signs), लक्षणों अथवा संकेतों (Signals) तथा सूचित चिन्हों (Indicators) के द्वारा सम्प्रेषित हो तो उसको अशाब्दिक संचार (Non-Verbal Communication) कहते हैं ।
प्रारम्भ में जब मानव सभ्यता ने शब्द भाषा की खोज की थी उस समय भी वह अपने सन्देशों का आदान-प्रदान संकेतों एवं चिह्नों के द्वारा करता था आज जब इक्कीसवीं शताब्दी में मानवीय सभ्यता काफी विकसित हो गई है, सूचना संचार के अनेकों आधुनिक साधन एवं तन्त्र मानव सभ्यता के पास उपलब्ध हैं, लेकिन आज भी अशाब्दिक संचार महत्त्वपूर्ण है ।
वह विचार, भाव अथवा सन्देश जो हजारों शब्दों में सम्प्रेषित नहीं हो पाता, वह मात्र संकेत, चित्र, हाव- भाव, भाव-भंगिता द्वारा कुछ पलों में ही सम्प्रेषित किया जा सकता है क्योंकि मानव की ज्ञानेन्द्रिय (Sensory) का बोध एवं उसका प्रभाव मानव जीवन के स्वस्थ अस्तित्व का प्रमाण है ।
इस प्रकार संचार का एक शक्तिशाली, स्वाभाविक एवं प्राकृतिक माध्यम अशाब्दिक संचार है । इसको संकेत (Sign) सम्प्रेषण भी कहते हैं । अशाब्दिक संचार के संकेत ज्ञान (Knowledge), विचारों (Opinions), दृष्टिकोण (Attitudes), विश्वास एवं भावनाओं (Emotions) के प्रतीक होते है जिनका संचार हेतु चयन वातावरण के अनुरूप सामयिक ढंग से किया जाता है ।
Essay # 5. व्यावसायिक संचार के कार्य (Functions of Business Communication):
व्यावसायिक संचार व्यवसाय में अनेक प्रकार की क्रियाएँ करता है ।
अध्ययन की सुविधा के लिए हम इन क्रियाओं को निम्नलिखित दो भागों में बाँट सकते हैं:
(1) आन्तरिक क्रियाएँ (Internal Functions):
व्यावसायिक संचार की वे समस्त क्रियाएँ जो व्यवस्था में ही आन्तरिक रूप से कार्य करती हैं, आन्तरिक क्रियाएँ कहलाती हैं ।
महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक आन्तरिक क्रियाएँ निम्नलिखित हैं:
(i) प्रबन्धक को सूचनाएँ (Information’s to Management):
व्यवसाय के बारे में विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ जो प्रबन्धकों के लिए आवश्यक होती है, उस व्यवसाय को सुचारु रूप से चलने के लिए व्यावसायिक संचार के द्वारा ही प्राप्त होती हैं ।
(ii) कर्मचारियों को सूचनाएँ (Information’s to Employees):
कर्मचारी वर्ग को अपने कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक सूचनाएँ भी समय-समय पर संचार के माध्यम से ही प्राप्त होती हैं । संचार प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के बीच अच्छे सम्बन्धों को विकसित करने में भी सहायक होता है । एक पक्ष के विचारों भावनाओं व दृष्टिकोण को दूसरे पक्ष तक पहुँचाने का कार्य संचार ही करता है ।
(iii) समन्वय (Co-Ordination):
व्यवसाय को चलाने के लिए विभिन्न वर्गों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य संचार ही करता है । व्यक्ति अथवा समूहों को संचार के माध्यम से ही इस प्रकार की जानकारी होती है कि अन्य पक्षकार उनसे क्या अपेक्षाएं रखते हैं ? विभिन्न पक्षकारों में पारस्परिक समन्वय संचार द्वारा ही सम्भव है ।
(iv) अन्य कार्य (Other Functions):
उपर्युक्त के अतिरिक्त व्यवसाय के बारे में अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी जैसे कि कर्मचारियों को उनके कार्य की जिम्मेदारी का अहसास कराना, कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि करना, कर्मचारियों में सुरक्षा की भावना जाग्रत करना कर्मचारियों की कार्य-कुशलता तथा उपस्थिति को बढ़ाना एवं कर्मचारियों को प्रेरणा देना इत्यादि संचार के ही सम्भव हो पाती हैं ।
(2) बाह्य क्रियाएँ (External Functions):
बाह्य व्यावसायिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ होती हैं जो किसी व्यवसाय के बाहर से सूचनाओं का आदान-प्रदान करती हैं ।
बाह्य क्रियाएं निम्नलिखित हैं जो व्यावसायिक संचार के द्वारा की जाती हैं:
(i) व्यवसाय के स्वामियों को सूचनाएँ प्रदान करना (To Provide Information’s to Owners of Business):
व्यावसायिक संचार का यह एक महत्त्वपूर्ण कार्य है कि वह व्यवसाय के बारे में समस्त आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराये तथा व्यवसाय को वस्तुगत स्थिति की जानकारी दे ।
(ii) सरकार को सूचनाएँ (Information’s to Government):
सरकार को विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ जो कानूनी तौर पर देनी आवश्यक होती हैं, को उपलब्ध कराये । समय-समय पर सरकार द्वारा सूचनाएँ मांगी जाती हैं ।
(iii) वस्तु और सेवा प्राप्त करना (To Receive Goods and Services):
विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं को प्राप्त करने के लिए संचार का सहारा लेना पड़ता है ।
(iv) वस्तु एवं सेवा को बेचना (To Sale Goods and Services):
वस्तु एवं सेवाओं को बेचने के लिए संचार का सहारा लेना पड़ता है । सम्भावित ग्राहकों को अपने माल व सेवाओं की गुणवत्ता की जानकारी संचार द्वारा ही दी जाती है ।
(v) पूर्तिकर्त्ताओं के साथ सम्बन्ध (Relations with Suppliers):
क्रय किए जाने वाले माल के सम्बन्ध में जानकारी, माल की पूर्ति की शर्तें, भुगतान की शर्तें, इत्यादि तय करने के लिए पूर्तिकर्त्ताओं के साथ सम्बन्ध निश्चित करने के लिए व्यावसायिक संचार की आवश्यकता पड़ती है ।
(vi) अन्य पक्षों को सूचना देना (Information to Other Parties):
उपर्युक्त के अतिरिक्त बैंक, सरकारी अधिकारियों, अन्य व्यावसायिक सहयोगियों, अन्वेषकों इत्यादि को सूचनाओं का आदान-प्रदान संचार के माध्यम से ही किया जाता है । व्यावसायिक संचार न केवल कार्य सन्तोष (Job Satisfaction), सुरक्षा (Safety), उत्पादकता (Productivity) इत्यादि प्रदान करता है वरन् लाभ को बढ़ाने में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा अनुपस्थितियाँ (Absentees), शिकायतें (Complaints) और अकुशलता (Inefficiencies) को कम करने में भी सहायता प्रदान करता है ।
Essay # 6. व्यावसायिक संचार की विशेषताएँ (Characteristics of Business Communication):
(i) संचार विचारों का आदान-प्रदान (Exchange of Ideas) है अत: दोतरफा (Two way Traffic) है तथा सन्देश देने वाला अर्थात् प्रेषक तथा सन्देश प्राप्त करने वाला दोनों के लिए आवश्यक है ।
(ii) संचार का लक्ष्य आदेशों एवं निर्देशों को उन सभी व्यक्तियों तक पहुँचाना है जिनसे वे सम्बन्धित हैं ।
(iii) संचार केद्वारा कर्मचारियों का विकास किया जाता है चूंकि उन्हें उपक्रम से सम्बन्धित विभिन्न जानकारियाँदी जाती हैं जिससे उनके ज्ञान में वृद्धि होती है ।
(iv) संचार व्यक्तिगत समझ और मनोदशा पर निर्भर करता है । इसका मुख्य उद्देश्य पूर्व निर्धारित नीतियों एवं निर्देशों को क्रियान्वित करना होता है । यह विचारों को कार्यों में परिवर्तित करता है ।
(v) संचार उपक्रम के विभिन्न विभागों में समन्वय (Co-Ordination) स्थापित करता है । कर्मचारियों के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित करना इसका ध्येय होता है । इससे उनके मनोबल में वृद्धि होती है ।
(vi) संचार शब्दों में भी किया जा सकता है और संकेतों में भी (Words as well as Symbols) । इसका उद्देश्य आपसी समझ (Mutual Understanding) को बढ़ाना है ।
(vii) संचार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हो सकता है । इसमें प्रयुक्त शब्द अलग-अलग अर्थ रखते हैं ।
(viii) बिना संदेश के संचार नहीं हो सकता । यह केवल एक बार का संवाद नहीं होता वरन् निरन्तर चलता रहता (Continuous Process) है ।
(ix) संचार सूचना से कुछ अधिक है क्योंकि सूचना के अतिरिक्त व्यावहारिक विनिमय को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है । यह निर्देशन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है ।
(x) संचार लिखित (Written), मौखिक (Verbal) एवं सांकेतिक (Non-Verbal) हो सकता है ।
संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य सन्देशों, विचारों, भावनाओं, सम्मतियों, तथ्यों तथा तर्कों का आदान-प्रदान है, जिससे व्यावसायिक उद्देश्यों एवं व्यवहार में एकरूपता आती है ।