Here is an essay on the ‘Grievance Handling of Workers’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Grievance Handling of Workers’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on the Grievance Handling of Workers


Essay Contents:

  1. परिवेदना का अर्थ (Meaning of Grievance)
  2. परिवेदन के कारण (Causes of Grievance)
  3. परिवेदना निवारण कार्यविधि (Grievance Handling Procedure)
  4. परिवेदना निवारण कार्यविधि की विशेषताएँ (Characteristics of the Grievance Handling Procedure)
  5. परिवेदना निवारण पद्धति की अवस्थाएँ (Stages of the Grievance Handling Procedure)
  6. आदर्श परिवेदना पद्धति (Model Grievance Procedure)
  7. परिवेदना निवारण प्रक्रिया के सिद्धान्त (Principles of the Grievance Handling Procedure)
  8. भारतीय सेविवर्गीय प्रबन्ध संस्थान द्वारा सुझाई गई परिवेदना कार्यविध (Grievance Procedure Suggestion by the Indian Institute of Personnel Management)
  9. श्रम पर राष्ट्रीय आयोग के विचार (Views of the National Commission on Labour)
  10. परिवेदना पद्धति को प्रभावशाली बनाने हेतु सुझाव (Suggestion for Effective Grievance)


Essay # 1. परिवेदना का अर्थ (Meaning of Grievance):

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परिवेदना एक प्रकार से ऐसा असन्तोष है, जो कि उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव डालता है, कर्मचारियों के असन्तोष की विभिन्न अवस्थाएं-होती है । विभिन्न अवस्थाओं के लिए साधारण बोलचाल में केवल शिकायत शब्द का ही प्रयोग किया जाता है, किन्तु यथार्थ में इनके लिए क्रमश: असन्तोष (Dissatisfaction), शिकायत (Complaint), परिवेदना (Grievance) प्रयोग करने चाहिए ।

पिगर्स एवं मायर्स (Pigors and Myres) ने इसमें निम्न प्रकार से भेद किया है । उनके अनुसार कोई भी बात जो कर्मचारी की शान्ति को भंग करती है, चाहे वह अपनी अशान्ति के शब्दों में व्यक्त करे या न करे- ‘असन्तोष’ कहलाती है । शिकायत कहा गया या लिखकर दिया गया वह असन्तोष है, जो पर्यवेक्षक के ध्यान में लाया जाए ।

शिकायत में असन्तोष का कोई विशेष कारण देना आवश्यक नहीं है । इसके विपरीत, ‘परिवेदना’ वहशिकायत है, जो औपचारिक रूप से लिखित रूप में, प्रबन्ध के दृष्टिकोण से श्रम सम्बन्धों की भाषा में एक प्रबन्ध प्रतिनिधि या संघ पदाधिकारी को प्रस्तुत की जाती है ।

परिवेदना शब्द को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है:

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कैल्हन के अनुसार:

”परिवेदना कोई भी ऐसी स्थिति है, जिसे कर्मचारी गलत सोचता या समझता है तथा उससे कर्मचारी की विचारधारा भंग होती है ।”

बीच के अनुसार:

”परिवेदना ऐसे असन्तोष एवं अन्याय की भावना है, जो एक व्यक्ति अपने रोजगार की स्थिति में अनुभव करता है, और जिसके लिए प्रबन्ध का ध्यान आकर्षित किया जाता है ।”

ADVERTISEMENTS:

माइकल ज्यूलियस के अनुसार:

”परिवेदना ऐसा कृत्य है, जिससे व्यक्त अथवा अव्यक्त, उचित अथवा अनुचित असन्तोष प्रकट होता है, जिसका सम्बन्ध संस्था से है तथा जिसके बारे में कर्मचारी सोचता है, विश्वास करता है, अथवा अनुभव करता है, कि अमुक कार्य अनुचित है, न्यायसगत और समान नहीं है ।”

पीगर्स एवं मायर्स के अनुसार:

”परिवेदना औपचारिक रूप से लिखित असन्तोष है, जो संगठन के क्रियाकलाप द्वारा उत्पन्न होता है । शिकायत प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति संगठन के क्रियाकलाप को अनुचित, अन्यायपूर्ण, गलत एवं असमान समझता है ।”

ADVERTISEMENTS:

संक्षेप में, परिवेदना औपचारिक रूप से लिखित में प्रस्तुत किया गया असन्तोष है, जो संगठन से सम्बन्धित मामलों में उत्पन्न होता है, और जिसे परिवेदना प्रस्तुतकर्त्ता स्वयं के प्रति अनुचित (Unfair), अन्यायपूर्ण (Unjust), गलत (Wrong) एवं असमान (Inequitable) सोचता है, एवं विश्वास करता है ।


Essay # 2. परिवेदन के कारण (Causes of Grievance):

परिवेदनायें व्यक्तियों की भावनाओं में निवास करती हैं । कार्य की पातस्थतियाँ, व्यक्ति की सम्भावनाएँ, सामाजिक स्थिति, संगठन का वातावरण, पर्यवेक्षण का व्यवहार, आदि परिवेदनाओं को जन्म देने वाले स्रोत हैं ।

वास्तव में, परिवेदना नीतियों, नियमों एवं व्यवहारों की गलत व्याख्या तथा गलत ढंग से नियुक्त किये-जाते हैं । दोनों का कार्य एवं वेतन समान है, किन्तु संस्था एक व्यक्ति को रहने मकान की सुविधा देती है, और दूसरे को नहीं ।

ADVERTISEMENTS:

नीतियों के गलत प्रयोग एवं गलत व्याख्या से उपयुक्त उदाहरण की तरह परिवेदना को जन्म मिलता है । इसी प्रकार परिवेक्षकों के द्वारा किया गया पक्षपातपूर्ण व्यवहार भी परिवेदना को जन्म देता है ।

परिवेदनाओं की उत्पत्ति के मुख्य कारण संक्षेप में निम्न हो सकते हैं:

(1) प्रेरणा व्यवस्था के दोष;

(2) फोरमैन अथवा पर्यवेक्षकों का गलत व्यवहार;

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(3) पक्षपापूर्ण पदोन्नतियाँ;

(4) दोषपूर्ण कार्य दशा;

(5) सामूहिक सौदेबाजी के समझौते का उलंघन;

(6) सुरक्षा एवं चिकित्सा सम्बन्धी उपायों की अपर्याप्तता,

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(7) मान्यता व सराहना का अभाव,

(8) स्थानान्तरण, निष्कासन, कार्य-मुक्ति का अनुचित ढंग से होना;

(9) पर्यवेक्षण अवस्था की त्रुटि;

(10) कार्य-वितरण अनुशासन एवं अभिप्रेरणा की दोषपूर्ण प्रणाली;

(11) समय पर उत्पादन सामग्री, आदि उपलब्ध न होना,

(12) साथी कर्मचारियों की त्रुटि, आदि ।

ADVERTISEMENTS:

संक्षेप में कहा जा सकता है, कि परिवेदनाएँ अनेक कारणों से जन्म लेती हैं, इसलिए उन कारणों का पता लगाकर उनका विश्लेषण किया जाना चाहिए और दूर करने हेतु शीघ्रातिशीघ्र उपाय किये जाने चाहिए ताकि ये परिवेदनाएँ भयंकर एवं उग्र रूप न ले सकें ।


Essay # 3. परिवेदना निवारण कार्यविधि (Grievance Handling Procedure):

परिवेदना निवारण पद्धति एक तकनीकी उपाय है, जिसके माध्यम से परिवेदनाओं को दूर किया जाता है । इसे निर्धारित करना मुख्यत: उच्च प्रबन्धको (Top Management) का काम है, किन्तु श्रम संघ के प्रतिनिधि भी इसमें सहयोग प्रदान कर सकते हैं । एक सुव्यवस्थित परिवेदना निवारण विधि के अनेक लाभ हैं ।

जिनमें से कुछ मुख्य लाभ निम्न प्रकार हैं:

(1) परिवेदना निवारण में एकरूपता आती है ।

(2) यह कर्मचारियों को विश्वास दिलाती है कि यदि उनकी परिवेदना को भली प्रकार नहीं समझा गया है, तो वे किसी अन्य अधिकृत अधिकारी से सम्पर्क कर सकते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

(3) परिवेदनाग्रस्त व्यक्ति को यह भी विश्वास हो जाता है, कि उसकी परिवेदना के कारणों की खोज की जायेगी और उचित समय के भीतर ही परिवेदना का निवारण किया जायेगा ।

(4) परिवेदना निवारण में रखी जाने वाली सावधानी एवं व्यवहार की जाने वाली निष्पक्षता के प्रति भी विश्वास तथा आस्था बढ़ती है ।

(5) वास्तव में यह पद्धति सौहार्द्रपूर्ण एवं शान्तिमय सम्बन्धों को विकसित करती है ।

भारत में क्रियाविधि (Procedure of India):

The Industrial Employment (Standing Orders) Act, 1946 के लागू होने से पूर्व तक हमारे देश में श्रमिकों की दिन-प्रतिदिन की शिकायतों के समाधान के लिए बहुत अधिक ध्यान नहीं जुटा सका था ।

Industrial Employment (Standing Orders) Act, 1966 के प्रति Schedule में Model Standing orders का Clause 15 बताता है कि:

ADVERTISEMENTS:

सेवायोजक की ओर से या उसके एजेन्ट की ओर से अनुचित व्यवहार या गलत कार्यवाही के सम्बन्ध में शिकायतों सहित रोजगार से उत्पन्न सभी प्रकार की शिकायतें सेवायोजक को अपील के अधिकार के साथ प्रबन्धक को या उसकी ओर से निर्दिष्ट किसी अन्य व्यक्ति को सौंपी जायेगी ।

कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत राज्य सरकार ने श्रम कल्याण अधिकारियों से ऐसी अपेक्षा करते हुए नियमावली तैयार की है, ताकि शिकायतों का समाधान सुनिश्चित किया जा सके; लेकिन यह प्रावधान इन अधिकारियों की दोहरी भूमिका के कारण पर्याप्त तौर पर सिद्ध सहायक नहीं हुआ है ।

विगत में, Model Agreement द्वारा व्यक्त व्यापक शिकायत प्रक्रियाएँ केवल कुछ ही यूनिटों में विद्यमान थीं । लेकिन इनमें से अधिकांश यूनिटों में शिकायतों के निदान हेतु कोई मशीनरी विद्यमान नहीं थी । जब दिन-प्रतिदिन की शिकायतों की संख्या अधिक हो जाती है, तो श्रमिकों की संक्षिप्त असंतुष्टि सामान्यत: औद्योगिक विवादों के रूप में प्रकट होगी ।

अत: शिकायत प्रविधि के सृजन के सम्बन्ध में विषय को Indian Labour Conference, 1957 के पन्द्रहवें सत्र को सौंपा गया जिसने Code of Discipline की रचना की यह व्यवस्था करते हुए कि ”प्रबन्ध तथा यूनियनें एक पारस्परिक सहमति के आधार पर एक शिकायत प्रक्रिया की स्थापना करेंगे जो शीघ्र तथा पूर्ण जाँच पड़ताल सुनिश्चित कर सके जो समाधान की ओर ले जायें ।”

मार्गदर्शक सिद्धान्त जिनको इस उद्देश्य हेतु ‘कोड’ के अन्तर्गत प्रतिपादित किया गया तथा पक्षकारों द्वारा अपनाये जाने के लिए Model Grievance Procedure की सितम्बर 1958 में एक त्रिपक्षीय समिति में व्यवस्था की गई ।

The Industrial Disputes (Amendment) act, 1982 कुछ औद्योगिक विवादों को Grievance Settlement Authorities को भेजे जाने की व्यवस्था करता है ।

ADVERTISEMENTS:

आधिनियम की धारा 9-C बताती है, कि प्रत्येक संस्थान जिसमें पचास या अधिक कर्मचारी विगत 12 माह के दौरान कार्यरत हैं या कार्यरत रहे हैं, वहाँ सेवायोजक एक समयबद्ध शिकायत प्रदान प्रक्रिया की स्थापना करेगा । लेकिन इस धारा को अभी लागू नहीं किया जा सका ।


Essay # 4. परिवेदना निवारण कार्यविधि की विशेषताएँ (Characteristics of the Grievance Handling Procedure):

परिवेदनाओं के निवारण के लिए जो भी कार्यविधि निधारित की जाये,

उसमें निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक है:

(1) यह प्रदृश्य से न्यायोचित होनी चाहिए ।

(2) क्रियाविधि सम्बन्धी प्रावधान सुगम एवं स्पष्ट होने चाहिए ।

ADVERTISEMENTS:

(3) यह अविलम्ब संचालित होनी चाहिए । संक्षेप में, सुव्यवस्थित क्रमिक आधार परिवेदना निवारण पद्धति में वे समस्त विशेषताएँ होनी आवश्यक हैं, जो कि परिवेदन का पूर्ण निवारण कर सकें ।


Essay # 5. परिवेदना निवारण पद्धति की अवस्थाएँ (Stages of the Grievance Handling Procedure):

प्रत्येक संगठन अपनी आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के अनुसार किसी उपयुक्त परिवेदना निवारण पद्धति का निर्धारण कर लेता है, किन्तु इन पद्धतियों की कुछ सुस्पष्ट अवस्थाएँ होती हैं, जो किसी न किसी रूप में प्रत्येक पद्धति में पाई जाती हैं ।

ये अवस्थाएँ निम्न हैं:

(1) प्रथम अवस्था वह है, जिसमें एक असन्तुष्ट कर्मचारी अपने तात्कालिक सुपरवाइजर के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करता है । वह साक्षात्कार अनौपचारिक हो सकता है ।

(2) यदि शिकायतकर्त्ता असन्तुष्ट रहता है, तो दूसरे कदम के अन्तर्गत अब शिकायत एक परिवाद का रूप ग्रहण कर लेती है ।

(3) संगठन के अन्तर्गत एक अन्तिम कदम के रूप में अनिर्णित परिवाद (Unsettled Grievance) उच्च स्तरीय प्रबन्ध के पास पहुँचते हैं । परिवाद पर सुनवाई के समय श्रम संघ की कार्यवाही समिति के सदस्य भी उपस्थित रहते हैं ।

(4) अधिकांश परिवाद कार्यविधियों में सीमान्त कदम ऐच्छिक मध्यस्थता का है । ऐच्छिक मध्यस्थता के लिए ऐसे परिवाद रखे जाते है, जो सामूहिक सौदे या व्यक्तिगत ठहराव की व्याख्या या क्रियान्वयन के बारे में मत भेद से सम्बन्धित है । इसका निर्णय दोनों पक्षों की स्वीकार्य (Acceptable) होता है ।


Essay # 6. आदर्श परिवेदना पद्धति (Model Grievance Procedure):

भारतीय श्रम सम्मेलन द्वारा 1958 में एक नमूने की परिवेदना पद्धति स्वीकृत की गई है,

जो संक्षेप में निम्न प्रकार है:

(1) पीड़ित पक्षकार सर्वप्रथम व्यक्तिगत रूप से स्वयं अपनी परिवेदना को मौखिक रूप से प्रबन्ध द्वारा इस उद्देश्य से नियुक्त एवं मनोनीत किये गये अधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत करेगा । यह अधिकारी परिवेदना प्रस्तुति के 48 घण्टे में अपना निर्णय देगा ।

(2) यदि अधिकारी निर्धारित समय में अपना निर्णय नहीं दे पाता है, अथवा कर्मचारी निर्णय से असन्तुष्ट है, तो वह विभागीय प्रतिनिधि के समक्ष स्वय या अपने विभाग प्रमुख द्वारा अपनी शिकायत करेगा ।

(3) यदि विभागाध्यक्ष द्वारा दिया गया निर्णय असन्तोषप्रद है, तो पीड़ित कर्मचारी की प्रार्थना पर उसकी परिवेदना को ‘परिवेदना समिति’ के पास भेज दिया जायेगा जो कि प्रस्तुति के समय से लेकर 7 दिन के अन्दर अपनी सिफारिश प्रबन्धक को भेजेगी । यदि वह निर्धारित समय के अन्तर्गत सिफारिश भेजने में असमर्थ रहता है, तो उसे असमर्थता के कारणों का भी उल्लेख करना होगा ।

(4) प्रबन्धक द्वारा सर्वसम्मति से पारित की गई सिफारिशों को ही लागू किया जाता है । यदि समिति के सदस्यों में किसी प्रकार का मतभेद है, तो अन्तिम निर्णय करना प्रबन्धक के हाथों में होता है । प्रबन्धक का अन्तिम निर्णय अथवा समिति की सर्वसम्मति से पारित निर्णय सेविवर्गीय प्रबन्धक द्वारा पीड़ित कर्मचारी तक प्रेषित किया जाता है । यह सब कार्य उसे तीन दिन में करना होता है ।

(5) यदि कर्मचारी, प्रबन्धक के अन्तिम निर्णय से सन्तुष्ट नहीं हुआ है, तो वह पुनर्विचार के लिए प्रबन्धक से अपील कर सकता है, और इस हेतु वार्ता में सुविधा के लिए वह अपने साथ किसी संघीय पदाधिकारी को ले जा सकता है । प्रबन्धक अपना निर्णय पुनर्विचार हेतु की गई अपील के समय से एक सप्ताह के भीतर देगा ।

(6) यदि किसी कारणवश निर्णय नहीं होता है, तो परिवेदना के मामले को ऐच्छिक पंचनिर्णय के लिए सौंप दिया जायेगा । ऐसी स्थिति में जब तक कि पद्धति की समस्त कार्यवाहियाँ पूरी न हो जायें तब तक औपचारिक समझौता व्यवस्था किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगी ।

(7) कोई भी परिवेदना उस समय औद्योगिक विवाद का रूप धारण करेगी जबकि परिवेदना के सम्बन्ध में दिये गये निर्णय को कर्मचारी स्वीकार नहीं करता है ।

(8) यदि कोई परिवेदना प्रबन्ध के किसी आदेश से उत्पन्न हुई है, तो ‘परिवेदना निवारण व्यवस्था’ से सहायता लेने से पूर्व सम्बन्धित कर्मचारियों को उस आदेश का पालन करना होगा ।

(9) जहाँ परिवेदना निष्कासन के कारण उत्पन्न होती है, वहाँ सम्बद्ध व्यक्ति को ऐसे आदेश के विरुद्ध निष्कासित करने वाले अधिकारी या इस सम्बन्ध में नियुक्त विशेष अधिकारी के पास अपील करने का अधिकार होगा । ऐसी अपील निष्कासन के समय से 7 दिन के भीतर की जानी चाहिए ।


Essay # 7. परिवेदना निवारण प्रक्रिया के सिद्धान्त (Principles of the Grievance Handling Procedure):

जूसियस ने विभिन्न कम्पनियों की परिवेदना निवारण पद्धति का अध्ययन करके परिवेदना निवारण के निम्न सिद्धान्तों का उल्लेख किया है:

(1) साक्षात्कार का सिद्धान्त:

सेवायोजकों या प्रबन्धकों को परिवेदना निवारण के लिए कर्मचारियों अथवा श्रमिकों से साक्षात्कार करना चाहिए तथा किसी भी परिवेदना की उत्पत्ति के प्रमुख कारणों का पता लगाना चाहिए ।

कर्मचारियों से बातचीत करते समय अनौपचारिकता को विशेष महत्व देना चाहिए तथा कर्मचारियों द्वारा बतलाये गये तथ्यों को गुप्त रखना चाहिए । साक्षात्कार के समय कर्मचारी की भावनाओं को विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए ।

(2) कर्मचारियों के प्रति सद्‌भावना का सिद्धान्त:

प्रबन्धकों को परिवेदना से पीड़ित पक्षकार के साथ सद्‌भावना रखनी चाहिए । जो भी कर्मचारी अपने परिवेदना अधिकारियों के समक्ष रखता है, प्रबन्धकों को उसको अपना विरोधी नहीं मानना चाहिए अपितु उस कर्मचारी से सभी प्रकार की जानकारी सद्‌भावना के साथ ही प्राप्त करनी चाहिए । प्रबन्धकों को कभी यह बात नहीं माननी चाहिए । कि श्रमिक अज्ञानी है अथवा उसकी परिवेदना अनुचित है ।

(3) दीर्घकालीन सिद्धान्त:

परिवेदना निवारण का यह सिद्धान्त बताता है, कि कर्मचारियों की परिवेदनाओं के निवारण का दीर्घकालीन प्रभाव होना चाहिए । केवल अल्पकालीन समस्याओं के समाधान से उपक्रम में शान्ति स्थापित नहीं हो सकती ।

अत: प्रबन्धकों को कर्मचारियों द्वारा प्रस्तुत की गई परिवेदना का गहन अध्ययन करना चाहिए और सद्‌भावना का वातावरण बनाये रखते हुए उन सभी कारणों का समाधान करना चाहिए, जिनके कारण से परिवेदना उत्पन्न होती है ।

परिवेदना का निवारण इस प्रकार करना चाहिए ताकि श्रमिकों एवं प्रबन्धकों के मध्य आपसी विश्वास एवं सद्‌भावना बनी रहे ।


Essay # 8. भारतीय सेविवर्गीय प्रबन्ध संस्थान द्वारा सुझाई गई परिवेदना कार्यविध (Grievance Procedure Suggestion by the Indian Institute of Personnel Management):

(1) सर्वप्रथम परिवेदना का निवारण निम्न स्तर पर किया जाये, अर्थात् पीड़ित कर्मचारी अपनी परिवेदना अपने निकटस्थ उच्चाधिकारी (Immediate Superior) को प्रस्तुत करे ।

(2) प्रत्येक कर्मचारी को अपील करने के स्तरों की जानकारी दी जानी चाहिए जिससे कि निकटस्थ अधिकारी के निर्णय से सन्तुष्ट होने पर वह अगले उच्चाधिकारी के पास अपनी परिवेदना प्रस्तुत कर सके ।

(3) परिवेदनाओं का निपटारा अविलम्ब किया जाना चाहिए ।

(4) यदि कोई परिवेदना तात्कालिक अधिकारियों के विरुद्ध है, तो निर्णय होने तक पीडित कर्मचारी को उस अधिकारी के निर्देशों का पालन यथावत् करते रहना होगा ताकि अनुशासन बना रहे ।

(5) परिवेदना निवारण व्यवस्था की कार्यवाही तक दोनों ही पक्षकारों द्वारा राजकीय मशीनरी या व्यवस्था काम में नहीं लानी चाहिए । यदि निर्णय के पश्चात् भी कोई असन्तोषजनक रह जाए तो राजकीय व्यवस्था तक पहुँचा जा सकता है ।


Essay # 9. श्रम पर राष्ट्रीय आयोग के विचार (Views of the National Commission on Labour):

राष्ट्रीय श्रम आयोग (The National Commission on Labour) ने सिफारिश की है, कि ऐसी यूनिटों में जहाँ सौ या अधिक श्रमिक काम पर हैं । एक औपचारिक परिवेदना प्रणाली को लागू किया जाना चाहिए ।

इसकी निम्न सिफारिशें हैं:

(1) एक प्रभावी शिकायत प्रविधि के सृजन हेतु वैधानिक समर्थन होना चाहिए जो कि सरल, लोचपूर्ण, कम नीरस तथा लगभग आदर्श परिवेदना पद्धति (Model Grievance Procedure) के आधार पर ही होना चाहिए ।

(2) यह समयबद्ध होना चाहिए तथा इसमें चरणों की संख्या सीमित होनी चाहिए यथा निकटतम अधीक्षकीय स्टाफ तक पहुँच; विभागीय अध्यक्ष/प्रबन्ध के पास अपील; तथा द्विपक्षीय शिकायत समिति को अपील जो प्रबन्ध तथा मान्य यूनियन का प्रतिनिधित्व करे । विचित्र मामलों में, जहाँ मतैक्य समिति में छाया हो मामले को पंचनिर्णय को सौंपा जा सकता है ।

(3) एक शिकायत प्रविधि ऐसी होनी चाहिए कि वह व्यक्तिगत श्रमिक को संतुष्टि प्रदान करे प्रबन्धक को अधिसत्ता का उचित उपयोग दिखाये तथा यूनियनों को सहभागिता का एक भाव प्रस्तुत करे ।

(4) शिकायत समिति का गठन एक ऐसी व्यवस्था का समावेश करे कि यदि एकमत निर्णय सम्भव न हो तो क्या व्यवस्था की जाये । न सुलझाई गई शिकायतों को पंचनिर्णय को भेजा जा सकता है । प्रारम्भिक चरणों में एक श्रमिक को एक सह-श्रमिक के द्वारा प्रतिनिधित्व कराने तथा बाद में यूनियन के एक अधिकारी यदि विद्यमान हो द्वारा प्रतिनिधित्व कराने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।

(5) इसे 100 या अधिक श्रमिकों वाली सभी यूनिटों में लागू किया जाना चाहिए ।


Essay # 10. परिवेदना पद्धति को प्रभावशाली बनाने हेतु सुझाव (Suggestion for Effective Grievance):

एक व्यावसायिक या औद्योगिक संस्था में अपनाई जाने वाली परिवेदना पद्धति को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं :

(1) परिवेदना निवारण पद्धति सरल एवं समझने योग्य होनी चाहिए ।

(2) प्रबन्धकों को परिवेदना निवारण में सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ।

(3) कर्मचारी एवं प्रबन्धक दोनों को ही परिवेदना की उपयोगिता में विश्वास होना चाहिए ।

(4) परिवेदना निवारण कर्मचारियों के आधार पर न किया जाकर तथ्यों का विश्लेषण करके करना चाहिए ।

(5) संस्था की नीतियों तथा नियमों की प्रतियाँ परिवेदना निवारण में संलग्न सभी व्यक्तियों के पास होनी चाहिए ।

(6) परिवेदना निवारण पद्धति का समय-समय पर मूल्यांकन करना चाहिए और उसको व्यावहारिक बनाया जाना चाहिए ।

(7) परिवेदना निवारण पद्धति के प्रत्येक स्तर पर कार्य करने वाले अधिकारियों के अधिकारों का उल्लेख स्पष्ट होना चाहिए ।

(8) परिवेदना पद्धति एवं उसकी सफलता की जानकारी संस्था में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को नियमित रूप से दी जानी चाहिए ।

(9) परिवेदना पद्धति के सभी स्तरों पर लिए गये निर्णयों का सभी पक्षों द्वारा आदर किया जाना चाहिए ।


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