Here is an essay on ‘Line Organisation’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Line Organisation’ especially written for college and management students in Hindi language.

Essay on Line Organisation


Essay Contents:

  1. रेखा संगठन का अर्थ (Meaning of Line Organisation)
  2. रेखा संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Line Organisation)
  3. रेखा संगठन का प्रकार (Types of Line Organisation)
  4. रेखा संगठन का क्षेत्र अथवा उपयुक्तता (Scope of Line Organisation or Suitability)
  5. रेखा संगठन के लाभ (Advantages of Line Organisation)
  6. रेखा संगठन के दोष (Disadvantages of Line Organisation)


Essay # 1. रेखा संगठन का अर्थ (Meaning of Line Organisation):

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यह संगठन का सबसे प्राचीन व सरल प्रारूप है । इस संगठन को कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे- सैनिक संगठन (Military Organisation), विभागीय संगठन (Departmental Organisation), लम्बवत् संगठन (Vertical Organisation) आदि । संगठन के इस रूप का मूल आधार यह है कि इसमें अधिकार एक सीधी रेखा में ऊपर से नीचे की ओर चलते हैं तथा उत्तरदायित्व का नीचे से ऊपर की ओर एक सीधी रेखा में प्रवाह होता है ।

इस प्रकार अधिकारों व उत्तरदायित्वों का प्रवाह एक निश्चित एवं सीधी रेखा में होता है । इस कारण इसे रेखा संगठन कहते हैं । इस संगठन में विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले व्यक्तियों के बीच स्पष्ट, प्रत्यक्ष एवं औपचारिक लम्बवत् होते हैं । इसलिए इसे लम्बवत् संगठन के नाम से पुकारते हैं । इसे सैनिक संगठन इसलिए कहते हैं कि इस प्रकार के संगठन को प्रयोग का आरम्भ सेना में ही हुआ ।

मोटेतौर पर सेना में इसी संगठन को प्रयोग में लाया जाता है । सैनिक संगठन में यदि कोई आदेश देना होता है तो वह सर्वोच्च अधिकारी से निम्न और निम्नतर और अधिकारियों द्वारा अन्तिम सैनिक पंक्ति तक पहुँचता है । इस संगठन को विभागीय संगठन इसलिए कहते हैं क्योंकि इस संगठन में संस्था के का कार्यों अनेक विभागों में विभाजित कर दिया जाता है । प्रत्येक विभाग स्वतन्त्र होता है और उसका एक अधिकारी होता है । यह अधिकारी अपने विभाग के लिए पूरी तरह उत्तरदायी होता है ।

इस अधिकारी के नीचे क्रमश: पदाधिकारी नियुक्त किए जाते है जो क्रमश: अपने उच्च पदाधिकारियों के प्रति उत्तरदायी होते हैं । इस प्रकार संगठन में सामान्य प्रबन्धक (General Manager) सबसे बड़ा अधिकारी होता है । इसके अधीन विभागीय प्रबन्धक होते हैं । विभागीय प्रबन्धकों को आदेश सामान्य प्रबन्ध से मिलते हैं जो इन आदेशों के अपने सहायक कर्मचारियों से लागू करने के लिए देता है ।

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इस प्रकार सामान्य प्रबन्धक का आदेश विभागीय प्रबन्धकों के माध्यम से नीचे के पदाधिकारियों के पास लागू करने के लिए पहुँचता है । जैसे-जैसे व्यवसाय का आकार बढ़ता जाता है उसी हिसाब से विभागों की संख्या भी बढ़ती जाती है और संगठन संरचना का आकार पिरामिड की तरह चौड़ा होता जाता है ।

मैकफरलैंड (McFarland) के शब्दों में: “रेखा संरचना में प्रत्यक्ष शीर्ष रेखा सम्बन्ध होते हैं जो प्रत्येक स्तर की स्थिति एवं उन स्तरों के ऊपर नीचे के कार्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है ।” एल.ए. ऐलन ने रेखा संगठन को आदेश सम्प्रेषण एवं उत्तरदेयता की शृंखला कहा है ।


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Essay # 2. रेखा संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Line Organisation):

(i) इस संगठन में आदेश व अधिकार ऊपर से नीचे की ओर एक रेखा में चलते है तथा प्रार्थना व निवेदन (Request) नीचे से ऊपर की ओर पहुँचाए जाते हैं ।

(ii) अधीनस्थों को आदेश केवल एक अधिकारी द्वारा दिये जाते हैं इसलिए आदेश में एकरूपता रहती है ।

(iii) प्रत्येक कर्मचारी को आदेश उसके निकटतम अधिकारी द्वारा प्राप्त होते है तथा वह इसके प्रति ही दायी होता है ।

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(iv) प्रत्येक अधिकारी के नियन्त्रण में अधीन कर्मचारियों की संख्या सीमित होती है ।

(v) संगठन का यह सबसे आसान व प्राचीन प्रकार है ।

(vi) सभी कार्यों का दायित्व सर्वोच्च अधिकारी का होता है ।

(vii) इसमें अधिकारियों व अधीनस्थों के बीच प्रत्यक्ष लम्बवत् सम्बन्ध होते हैं ।

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(viii) अधिकार सत्ता सर्वोच्च अधिकारी के पास केन्द्रित होती है ।

(ix) सर्वोच्च अधिकारी का मुख्य कार्य आदेश एवं निर्देश देना एवं उनका दूसरी से पालन कराना है ।


Essay # 3. रेखा संगठन का प्रकार (Types of Line Organisation):

यह संगठन दो प्रकार का होता है:

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(i) शुद्ध रेखा संगठन (Pure Line Organisation):

संगठन की इस प्रणाली के अर्न्तगत एक स्तर पर एक ही प्रकार की क्रियाएं की जाती हैं । इसमें प्रत्येक व्यक्ति नीचे से लेकर उच्च स्तर तक एक ही प्रकार का कार्य करता है । प्रत्येक क्रिया समूह स्वयं में एक पूर्ण इकाई होती है जिसमें अपने कार्य को पूरा करने का सामर्थ्य होता है ।

उद्योगों पर आजकल, इस प्रकार का संगठन प्राय: नहीं पाया जाता क्योंकि व्यवहार में ऐसे उद्योग कम देखने को मिलते हैं जहां सारी क्रियाएं समान होती हैं यह वर्गीकरण केवल नियन्त्रण की सुविधा के लिए किया जाता है ।

भारतीय जीवन बीमा निगम इसका आहरण है, जो निम्नलिखित चार्ट से स्पष्ट है:

(ii) बिभागीय रेखा संगठन (Departmental Line Organisation):

इस प्रणाली के अन्तर्गत सम्पूर्ण संस्थान को अनेक विभागों में विभक्त कर दिया जाता है । विभाग बनाते समय क्रियाओं की एकरूपता को ध्यान में रखा जाता है । प्रत्येक विभाग का एक अध्यक्ष होता है जो अपने विभाग के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है । यह सामान्य प्रबन्धक से आदेश प्राप्त करता है । फिर वे अध्यक्ष प्राप्त आदेशों के अनुरूप अपने निकटतम अधीनस्थों को आदेश देते हैं ।

इस प्रकार इस प्रणाली में अधिकारों व आदेशों का प्रवाह उच्चाधिकारियों से नीचे के अधिकारियों की ओर चलता है । सभी विभागीय अध्यक्ष संस्था में अपने विभागों से सम्बन्धित कार्य स्वतन्त्रता पूर्वक करते हैं । सभी विभागों के अध्यक्षों का स्तर समान होता है ।

विभागीय रेखा संगठन को आगे पृष्ठ पर प्रदर्शित किया गया है ।


Essay # 4. रेखा संगठन का क्षेत्र अथवा उपयुक्तता (Scope of Line Organisation or Suitability):

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संगठन की यह प्रणाली निम्नलिखित क्षेत्र में अपनाई जाती है:

(i) जहाँ व्यावसायिक इकाई का आकार बहुत बड़ा व जटिल न हो अर्थात जहाँ इकाई का आकार छोटा तथा मध्यम हो ।

(ii) जहाँ कर्मचारियों की संख्या सीमित हो ।

(iii) जहाँ श्रम तथा प्रबन्ध की समस्या को हल करना आसान हो ।

(iv) जहाँ सम्पूर्ण कार्य को विभिन्न इकाइयों में सरलता से विभक्त किया जा सके ।

(v) जहाँ कर्मचारी अनुशासित हों ।

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(vi) जहाँ एक ही प्रकृति का व्यवसाय होता हो ।

(vii) जिन उद्योगों में विशिष्टीकरण की आवश्यकता न हो ।


Essay # 5. रेखा संगठन के लाभ (Advantages of Line Organisation):

इस संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

(i) सरल (Simple):

यह सबसे सरल संगठन है जिसे बनाने व चलाने की विधि सबसे सरल होती है ।

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(ii) सुनिश्चित उत्तरदायितत्व (Clear Responsibility):

इस संगम में प्रत्येक अधिकारी एवं कर्मचारी के उत्तरदायित्वों की प्रकृति सुनिश्चित होती है । वह अच्छी तरह जानता है कि वह किसके प्रति उत्तरदायी है और कौन-कौन से अधिकारी या कर्मचारी उसके प्रति उत्तरदायी हैं । अतएव इसके अर्न्तगत संगठन के विभिन्न स्तरों पर उत्तरदायित्व निर्धारित करने में कठिनाई नहीं होती ।

(iii) कड़ा अनुशासन (Strict Discipline):

इसमें कर्मचारियों के अधिकार व नियन्त्रण क्षेत्र निश्चित होने के कारण अनुशासन बना रहता है । एक ही अध्यक्ष होने से वे अधिक अनुशासित तथा जिम्मेदार बन जाते हैं ।

(iv) शीत निर्णय (Prompt Decision):

इस संगठन में अधिकारी शील निर्णय से सकते हैं क्योंकि अधिकतर मामलों में बे निर्णय लेने में स्वतन्त्र होते है तथा उनके पास आवश्यक अधिकार भी होते है ।

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(v) कर्मचारियों से सीधा सम्पर्क (Direct Contact with Subordinates):

प्रत्येक अधिकारी का अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से सीधा सम्पर्क होता है अत: वह उनके कार्य व समस्याओं के प्रति सचेत रहता है ।

(vi) समनव्य में आसानी (Easy to Co-Ordinate):

विभिन्न विभाग एक ही व्यक्ति के निर्देशन में कार्य करते है अत: उनमें समन्वय की स्थापना आसानी से की जा सकती है ।

(vii) लोचशीलता (Flexibility):

संगठन का यह प्रारूप बहुत लोचशील है । इसमें आवश्यकतानुसार विभागों की संख्या में परिवर्तन किया जा सकता है ।

(viii) प्रबन्धक-विकास (Development of Management):

संगठन की इस प्रणाली में विभागाध्यक्षों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं जिससे उनकी कुशलता प्रतिभा योग्यता व क्षमता का विकास होता है ।

(ix) दोषी को दण्ड देने में सुविधा (Easy to Penalise the Defaulter):

कोई भी कर्मचारी अपने दायित्व से बच नहीं सकता । अत: दोषों व कमियों का पता लगाकर दोषी कर्मचारी को दण्ड देने की सुविधा रहती है । परिणामस्वरूप, सभी कर्मचारी निष्ठा व लगन से कार्य करते हैं ।

(x) आदेश में एकता (Unity of Command):

संगठन के इस प्रारूप के अन्तर्गत विभिन्न विभागों के आदेश एक ही अधिकारी से प्राप्त होने के कारण संगठन में आदेश में एकता पायी जाती हैं ।

(xi) स्थायित्व प्रदान करना (To Provide Stability):

संगठन का यह प्रारूप संगठन को स्थायित्व प्रदान करता है ।

(xii) शीध्र सन्देशवाहन सम्भव (Quick Communication Possible):

इस प्रारूप के अन्तर्गत सन्देशवाहन में सुगमता तथा शीघ्रता रहती है ।


Essay # 6. रेखा संगठन के दोष (Disadvantages of Line Organisation):

(i) विशिष्टीकरण का अभाव (Lack of Specialisation):

आधुनिक उद्योग इतने जटिल हो गए हैं कि एक ही व्यक्ति द्वारा सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक सम्पादन करना सम्भव नहीं है । विभागाध्यक्ष सभी क्रियाओं में विशेषज्ञ होना चाहिए परन्तु ऐसे विभागीय प्रबन्धक मिलने कठिन हैं । अत: इस प्रणाली में विशिष्टीकरण का अभाव पाया जाता है ।

(ii) अत्यधिक कार्य-भार (Over-Burdening):

इम संगठन में सभी कार्य उच्चाधिकारी को करने पड़ते हैं जिसके कारण उन पर कार्यों का अत्यधिक भार रहता है । फलम्बरूप उन्हें संस्था के महत्वपूर्ण कार्यों के लिए अवसर ही नहीं मिल पाता; जैसे-नियोजन नियन्त्रण अनुसन्धान व विकास आदि के लिए ।

(iii) पक्षपात की सम्भावना (Chances of Favourism):

इस संगठन में एक उच्चाधिकारी सब कुछ होता है । उसकी इच्छनुसार ही सारा काम होता है । इसलिए इस उच्चाधिकारी द्वारा मनमानी व पक्षपात करने की सम्भावना बनी रहती है । वे अपने समर्थक कर्मचारियों अथवा सम्बन्धियों को अनावश्यक लाभ पहुँचाने की मनमानी व पक्षपातपूर्ण कार्यवाही कर सकते हैं ।

(iv) एक ही व्यक्ति पर निर्भरता (Dependence on a Single Person):

इस संगठन का सबसे बड़ा दोष यह है कि संस्था की सफलता तथा विकास एक उच्चाधिकारी की योग्यता तथा कुशलता पर निर्भर करते है क्योंकि निर्णय उसी द्वारा लिए जाते है । यदि उच्चाधिकारी अयोग्य व अकुशल होता है, तो संस्था की प्रगति रुक जाती है ।

(v) पहल शक्ति का अभाव (Lack of Initiative):

इस संगठन प्रणाली में सभी अधिकार उच्चाधिकारी में केन्द्रित होते हैं । अत: अधीनस्थ कर्मचारियों को निर्णय करने का मौका ही नहीं मिल पाता । दूसरे, अधीनस्थ कर्मचारियों को तो केवल आदेशों व निर्देशों के अनुरूप ही काम करने होते है जिससे इनमें पहल शक्ति का विकास नहीं हो पाता ।

(vi) विभागों के निर्माण में कठिनाई (Difficulty in Departmentation):

एक जटिल व मिश्रित उद्योगों में विभागों का निर्माण करना बहुत कठिन कार्य होता है । साथ ही इन विभागों की स्थापना के बाद इनमें अन्तर विभागीय सम्बन्धों का निर्धारण करना भी कठिन कार्य है ।

(vii) फोरमैन को अधिक महत्व (More Importance to Foreman):

डब्ल्यू.बी. कॉर्निल (W.B. Cornel) के अनुसार- ”फोरमैन सम्पूर्ण शॉप पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है तथा वही प्रत्यक्ष से उत्तरदायी होता है ।” इस स्वरूप के अन्तर्गत उत्पादन का सारा भार फोरमैन पर रहता है जिससे कार्यकुशलता में कमी आती है ।

(viii) लोचहीन पद्धति (Non-Flexible Method):

संगठन की यह प्रणाली स्थिर व लोचहीन है । इसमें एक बार पदों के बन जाने पर उन्हें बदलना अथवा समाप्त करना कठिन होता है । दूसरे, इस प्रणाली में कर्मचारियों की संख्या जरूरत पड़ने पर घटाना-बढ़ाना सम्भव नहीं होता ।

(ix) समन्वय की समस्या (Problem of Co-Ordination):

कठोर तथा कुशल उच्चाधिकारी की अनुपस्थिति में संगठन के विभागों में समन्वय स्थापित करना कठिन होता है । एक कुशल व योग्य उच्चाधिकारी भी विभिन्न विभागों में अस्थायी रूप से सहयोग स्थापित करा सकता है ।

(x) नियन्त्रण व अनुशासन का अभाव (Lack of Control and Discipline):

संगठन के इस प्रारूप के अन्तर्गत संस्था अथवा उपक्रम का आकार बढ़ाना सम्भव नहीं होता यदि कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि कर भी दी जाये तो संख्या बहुत अधिक हो जाने पर नियन्त्रण एवं अनुशासन भी सम्भव नहीं रह पाता ।

(xi) अन्य दोष:

(a) इस प्रणाली में नियम संस्था के सेवक की बजाय स्थायी बन जाते हैं और ये व्यक्तियों के लिए नहीं रहते बल्कि व्यक्ति नियमों के हो जाते हैं ।

(b) यह पद्धति बड़े उद्योगों के उपयुक्त नहीं होती ।

(c) उच्चाधिकारियों को ठीक सूचनाएं नहीं मिल पातीं । कार्य-कुशलता घटती है तथा कर्मचारियों में असन्तोष पनपता है ।

(d) इस स्वरूप के अन्तर्गत विभागीय अध्यक्ष अपने कार्य का विशेषज्ञ होने की बजाए Jack of all Trade but Master of None बन जाता है ।


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