Here is an essay on the ‘Trade Unions in India’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Trade Unions in India’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on the Trade Unions in India


Essay Contents:

  1. श्रम संघ का अर्थ (Meaning of Trade Union)
  2. श्रम संधों के उदेश्य (Objectives of Trade Union)
  3. श्रम संघ के कार्य (Functions of Trade Unions)
  4. संघों के प्रकार (Types of Unions)
  5. श्रम संघों की विशेषताएँ (Characteristics of Trade Union)
  6. श्रम संघों की संरचना (Structure of Trade Unions)
  7. श्रम संघों का पंजीकरण (Registration of Trade Unions)
  8. भारत में श्रम संघों की कमियाँ एवं समस्याएँ (Problems and Shortcoming of Trade Unions In India)
  9. श्रम संघों को सुदृढ़ बनाने के उपाय (Measures for Strengthening Trade Unions)


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Essay # 1. श्रम संघ का अर्थ (Meaning of Trade Union):

श्रम संघ प्रत्येक देश में उद्योग का एक जरूरी लक्षण माना जाता है । श्रम संघों का उदय पूँजीवाद तथा फैक्टरी सिस्टम के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था । औद्योगीकरण की प्रारम्भिक अवस्था में श्रमिक नियोक्ताओं के हाथों की कठपुतली थे, क्योंकि उनकी सुरक्षा के लिए कोई वैधानिक नियम नहीं था । इसलिए श्रमिकों ने अपने हितों की रक्षा के लिए आपस में हाथ मिला लिए ।

श्रम संघ को विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विभिन रूप में परिभाषित किया गया है । कुछ विद्वानों का कथन है, कि ये केवल कर्मचारियों (सेविवर्गीय) के संगठन हैं, जो उद्योग में या किसी-न-किसी प्रकार के व्यवसायों में लगे हैं, और मजदूरी पर आश्रित हैं । कुछ विद्वानों की मान्यता है, कि इनमें नियोक्ता संगठन मैत्री संस्थाएँ, व्यावसायिक क्लब आदि भी सम्मिलित किये जाने चाहिए ।

विद्वानों में आज भी यह मत है, कि श्रम संघ किसे कहा जाय किन्तु इस बात पर सभी एकमत हैं कि सभी संगठन अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करने के लिए बनाये जाते हैं, उनकी सौदेबाजी की क्षमता में वृद्धि करते हैं, प्रबन्धकीय एकाधिकार समाप्त करते हैं, तथा श्रमिक व नियोक्ताओं के मध्य सम्बन्ध सुधारने में सहायक होते हैं ।

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श्रम संघ की परिभाषाओं को संकुचित और विस्तृत दो रूप में बाँटा जा सकता है:

(1) संकुचित परिभाषाएँ (Narrow Definition):

(i) येल योडर के मत में:

”श्रम संघ एक निरन्तर तथा दघिकालीन कर्मचारी संगठन है, जो विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करने तथा श्रम सम्बन्धों में सुधार हेतु बनाये जाते हैं ।”

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(ii) एस. डी. पुनेकर के अनुसार:

”श्रम संघ औद्योगिक कर्मचारियों का निरन्तर संगठन है, जो नियोक्ता अथवा श्रमिकों द्वारा स्वतन्त्र रूप से बनाया जाता है । इसका उद्देश्य अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना है ।”

(iii) वेब, सिडनी एवं बिएट्‌सि के शब्दों में:

”श्रम संघ एक निरन्तर संगठन है, जो वेतनभोगी कर्मचारियों के स्तर और उनकी आर्थिक दशाओं में सुधार करने की दृष्टि से बनाया जाता है ।”

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ये विचारक श्रम संघों की एक ऐसी संस्थाएँ मानते हैं, जो प्रबन्धकीय एकाधिकार को समाप्त करने की दृष्टि से बनायी जाती हैं, तथा श्रमिकों को अधिक शक्ति प्रदान करने एवं अच्छी कार्य की दशाए प्रदान करने में सहायक होती हैं ।

मिलने बेल का कथन है कि:

”उपर्युक्त परिभाषाएं कलातीत हो चुकी हैं तथा अधिक स्थैतिक हैं, क्योंकि अब श्रम संघ केवल श्रमिक संघ नहीं रहे हैं । ये सभी वर्ग के कर्मचारियों के सघ हैं, जिनका उद्देश्य अपने सदस्यों की कार्य दशाएँ सुधारने तक ही सीमित न होकर अन्य क्षेत्रों में भी व्यापक है, ये समस्याएँ मजदूरी भुगतान कार्य के घण्टों, कार्य की दशाओं तथा कार्य के स्थान आदि से सम्बन्धित होनी चाहिए ।”

(2) विस्तृत परिभाषाएँ अथवा आधुनिक परिभाषाएँ (Broad Definitions or Modern Definition):

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(i) क्यूनीसन के मत में:

”श्रम संघ, मृत्तिभोगी व्यक्तियों का एकाधिकारात्मक संगठन है, जो व्यक्तिगत उत्पादकों के रूप में एकदूसरे के पूरक हैं, किन्तु अपने श्रम का सौदा करने के सम्बन्ध में सभी एकरूप हैं । इनका सामूहिक उद्देश्य अपने सदस्यों की मोलभाव की क्षमता में वृद्धि करना है ।”

(ii) एन. एम. जोशी के शब्दों में:

“श्रम संघ निश्चित रूप से कर्मचारियों का संगठन है । यह नियोक्ता का संगठन नहीं है, न यह सह- भागियों (Co-Partner) का संगठन है, और न ही स्वतन्त्र श्रमिकों का ।”

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(iii) जी. डी. एच. कोल के विचार में:

“श्रम संघ से अर्थ एक या अधिक व्यवसायों/उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों के संगठन से है । ये संगठन अपने सदस्यों के लिए दैनिक कार्य में आर्थिक हितों की रक्षा तथा उनमें वृद्धि करने की दृष्टि से कार्य करते हैं ।”

(iv) आर. ए. लिस्टर के अनुसार:

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“श्रम संघ कर्मचारियों का एक संगठन है, जो श्रमिकों का स्तर सुधारने तथा कार्य की दशाएं सुधारने का कार्य करता है ।”

(v) एन. बैरोन के अनुसार:

”श्रम संघ मजदूरी व वेतन प्राप्तकर्त्ता तथा शुल्क द्वारा आय प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का एक ऐच्छिक संघ है, जो:

(i) कार्यरत कर्मचारियों की दशाएं सुधारने का प्रयास करते हैं, (नियोक्ता के साथ मधुर सम्बन्ध बनाकर) तथा सेवाओं एवं लाभ का अवसर प्रदान करते हैं,

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(ii) दोनों पक्षों के सम्बन्ध राज्य की दृष्टि से अच्छे रहते हैं, तथा

(iii) राष्ट्रीय जीवन में उत्पादकों, मजदूरों और वेतनभोगी व्यक्तियों के मध्य सहयोग की भावना जाग्रत करते हैं ।”

(vi) सोवियत श्रम संहिता धारा,151 के अनुसार:

“श्रम संघ कर्मचारियों का ऐसा संगठन है, जिसमें राज्य कर्मचारी सहकारी समितियों के कर्मचारी तथा निजी क्षेत्र के उत्पादन संस्थानों तथा अन्य व्यवसायों में लगे कर्मचारी संगठित होते हैं । श्रम-संघ अपने सदस्यों के लिए राज्य सरकार, प्रबन्धकों तथा अन्य संस्थाओं से विचारों का आदान-प्रदान करते हैं । श्रम कल्याण एवं समाज कल्याण सम्बन्धी समस्याओं के हल ढूँढने में तथा विभिन्न बैठकों में भाग लेकर ये संघ श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।”

(vii) ब्रिटिश ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1953 के अनुसार:

”श्रम संघ ऐसे संगठन हैं, जिनका मूल उद्देश्य श्रमिक एवं मालिक में श्रमिक एवं श्रमिक में तथा मालिक एवं मालिक में मधुर सम्बन्ध बनाना है, जिससे किसी व्यवसाय के क्रियाकलापों पर, श्रमिकों (अपने सदस्यों) के हितों की रक्षा हेतु आवश्यक नियन्त्रण रखा जा सके ।”

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(viii) कार्ल मार्क्स के मत में:

”श्रम संघ सर्वप्रथम संगठन केन्द्र रहा है इसमें कार्यकर्ताओं को एकत्रित करने की शक्ति है । श्रम संघ श्रमिकों की इच्छा से स्वत: विकसित हुए जिनका उद्देश्य अपने आपको ‘दास’ (Slave) के स्तर से ऊँचा उठाना तथा उचित अनुबन्ध-युक्त कार्य की दशाएँ उपलब्ध करना था ।”

(ix) श्रम संघ संशोधित अधिनियम, 1982 के अनुसार:

”श्रम संघ एक स्थायी अथवा अस्थायी संगठन है, जिसकी स्थापना श्रमिक तथा नियोक्ता में, श्रमिक एवं श्रमिक में तथा नियोक्ता व नियोक्ता से सम्बन्ध बनाने हेतु एवं किसी व्यवसाय के आचरण को नियन्त्रित करने हेतु की जाती है । इसके अन्तर्गत दो