Read this article in Hindi to learn about the various parties to industrial relations.

औद्योगिक विकास एवं औद्योगिक शान्ति अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों पर निर्भर करती है । औद्योगिक सम्बन्ध संगठन मे कार्यरत कर्मचारियों में रोजगार के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं । मूल रूप से इस में दो पक्ष होते हैं: श्रमिक वर्ग एवं नियोक्ता वर्ग किन्तु राज्य भी इन सम्बन्धों को नियन्त्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

डनलप के अनुसार:

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”औद्योगिक समाज निश्चित रूप से औद्योगिक सम्बन्धों को जन्म देता है, जिन्हें श्रमिकों प्रबन्धकों तथा सरकार के जटिल अन्तर्सम्बन्धों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है ।”

अत: औद्योगिक सम्बन्धों की प्रक्रिया में तीन महत्वपूर्ण पक्षकार हैं श्रमिकों, प्रबन्धक तथा सरकार ।

(1) श्रमिकों एवं उनके संगठन (Workers and their Organizations):

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श्रमिक वर्ग एव श्रम-संघों को औद्योगिक सम्बन्धों की स्थापना में एक महत्वपूर्ण भूमिका है । इनमें श्रमिकों के व्यक्तिगत गुणों जैसे कि उसका सांस्कृतिक स्तर, शिक्षा का स्तर योग्यता कुशलता कार्य के प्रति रुचि आदि पर ध्यान दिया जाता है । संगठन में श्रमिकों का प्रतिनिधित्व श्रमसंघों के द्वारा किया जाता है ।

श्रम-संघ अपने सदस्यों के आर्थिक एवं सामाजिक हितों की रक्षा करते हैं व प्रबन्धकों पर इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दबाव डालते हैं । साधारणतया श्रम-संघों का सम्बन्ध राजनैतिक दलो से होता है । जिम्मेदार एवं शक्तिशाली श्रम-संघ संगठन से सहयोग करके अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

(2) प्रबन्धक एवं उनके संगठन (Employers and their Organizations):

प्रबन्धकों की भी औद्योगिक सम्बन्धों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है एवं अधिकतम उत्पादन के लिए उन पर नियन्त्रण रखते हैं । अपनी सामूहिक सौदेबाजी की क्षमता में वृद्धि करने के लिए प्रबन्धकों के विभिन्न उद्योगों में प्रबन्धकों के सुव्यवस्थित संगठन हैं ।

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ये संगठन अपने हितों के लिए सरकार, श्रम संघों से संघर्ष करते हैं तथा सरकार द्वारा गठित विभिन्न समितियों में अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों की स्थापना में भाग लेते हैं ।

(3) सरकार की भूमिका (Role of the Government):

देश के आर्थिक विकास के लिए औद्योगिक शान्ति बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है । किसी देश में औद्योगिक सम्बन्धों की व्यवस्था वहाँ की राजनीतिक सरकार के स्वरूप पर आधारित है ।

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सरकार श्रमिकों के लिए उचित मजदूरी, कार्य के घण्टे, कार्य की दशाएँ, बोनस, आदि के सम्बन्ध में श्रम-कानूनों के द्वारा औद्योगिक सम्बन्धों में महत्वपूर्ण प्रयास करती है ।

औद्योगिक सम्बन्धों में पहले दोनों पक्षकार प्रबन्ध एवं उनके संगठन तथा श्रमिकों एवं उनके संगठन प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होते हैं । संगठन में नियन्त्रण एवं व्यवस्था स्थापित करना तथा आदेशों को जारी करन-प्रबन्ध की जिम्मेदारी है ।

इन्हें लागू करना श्रमिकों की जिम्मेदारी है । श्रमिको के संगठन औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं । औद्योगिक सम्बन्धों में तीसरा पक्षकार है- सरकार । इसका कार्य है नियमों एवं अधिनियमों का निर्माण एवं उनको लागू करने की व्यवस्था करना ।

साधारणतया सरकार प्रथम दोनों पक्षकारों की अन्तर्क्रियाओं में हस्तक्षेप नहीं करती । अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों की स्थापना प्रबन्धकों, श्रमिकों एवं सरकार की संयुक्त जिम्मेदारी है ।

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यदि इन तीनो पक्षकारों के विचारों में पारस्परिक अनुकूलता एवं एकरूपता होगी, तो औद्योगिक सम्बन्ध अच्छे एवं मधुर होंगे । यदि इनके विचारों में पारस्परिक अनुकूलता एवं एकरूपता की कमी होगी, तो औद्योगिक सम्बन्धों में अस्थिरता की सम्भावना होगी ।