Read this article in Hindi to learn about the various concepts of industrial relations.

सभी मानवीय संसाधन प्रबन्ध समस्याएँ जो आधुनिक काल में कारपोरेट परिप्रेक्ष्य में उभरी हैं, उनमें से औद्योगिक सम्बन्धों की समस्या अन्य समस्याओं से अधिक महत्वपूर्ण है ।

मानव संसाधन प्रबन्ध के इस जीवट पहलू की बढ़ती महत्ता एक एकाकी घटक के कारण रही है, कि यह ऐसे लोगों से व्यवहार करता है, जो उद्योग के आधार होते हैं- लोगों का एक ऐसा वर्ग जो चीजों को बदलने के लिए विवश कर देता है ।

उनकी निष्क्रियता या हिंसात्मक कार्यवाही बहुधा समाचार-पत्रों के मुख्य समाचार बन जाते हैं । निश्चय ही हड़ताल, श्रम शक्ति द्वारा घिराव (Strikes, Redundancies, Gherao by the Work Force) तथा विभिन्न श्रम समस्याओं से निपटने में सेवायोजकों का उदासीन तथा गैर-मानवीय व्यवहार एवं रुझान सभी के लिए चिन्ता का विषय रहा है । वास्तव मे श्रम तथा प्रबन्ध के बीच सम्बन्ध ही औद्योगिक सम्बन्धों का आधार होता है ।

‘औद्योगिक सम्बन्ध’ शब्द को प्रबन्ध तथा श्रमिकों के बीच सामूहिक सम्बन्धों की अभिव्यक्ति हेतु प्रयोग किया जाता है । दो शब्द-श्रम-प्रबन्ध सम्बन्ध तथा सेवायोजक-कर्मचारी सम्बन्ध पर्यायवाची रूप में प्रयोग किये जाते हैं । उद्योग में श्रमिकों तथा प्रबन्ध के बीच सम्बन्ध विद्यमान होते हैं ।

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यही कारण है कि Bethal and Associates ने अपनी पुस्तक ‘Industrial Organization and Management’ में ”औद्योगिक सम्बन्धों को प्रबन्ध का वह भाग बताया है जो उपक्रम की श्रम शक्ति से सम्बन्ध रखता है ।” किसी भी उपक्रम की श्रम-शक्ति को ‘प्रबन्ध’ तथा ‘श्रमिकों’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है ।

सम्बन्ध या तो सौहार्द्रपूर्ण हो सकते हैं या अन्यथा, जो प्रबन्ध के रुझानों, पहुँचों तथा श्रमिकों के रुझानो पर निर्भर करता है । ऐसे रुझान तथा पहुँचें जटिल तथा विविध होती हैं । जबकि रुझान आन्तरिक होता है, व्यक्ति की मानसिक स्थिति (Psychic or Mental State of a Person) तक पहुँच ऐसे एक रुझान की बाहरी अभिव्यक्ति हो सकती है, तथा यह पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण करती है ।

लेकिन यह उल्लेखनीय है कि औद्योगिक सम्बन्ध सरल सम्बन्ध नहीं होते । ये विभिन्न घटकों-आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक, वैधानिक, आदि द्वारा प्रभावित होते हैं ।

जे. हेनरी रिचर्डसन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “An Introduction to the Study of Industrial Relations” में औद्योगिक सम्बन्धों की परिभाषा देते हुए लिखा है,

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”औद्योगिक सम्बन्ध एक कला है, उत्पादन के उद्देश्यार्थ एक साथ जीने की कला” (Industrial Relations in an Art, the Art of Living Together for Purpose of Production) एक साथ काम करते हुए विभिन्न पक्षकार आपस में मेलजोल के चातुर्यों (Skills of Adjustment) को प्राप्त करके इस कला को सीखते हैं ।

यद्यपि यह परिभाषा मानवीय सम्बन्धों के अन्त: वयैक्तिक पहलू को स्पष्ट करती है, तथापि यह उस टकराव की सम्भावनाओं के प्रति शान्त है, जो उत्पादन में व्यवधानों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं ।

श्रमिक एक समूह के रूप में ट्रेड यूनियनों का सृजन करते हैं, सेवायोजक अपने-अपने संघ बनाते हैं, तथा सरकार सम्बन्धों के नियंत्रण हेतु संस्थाओं की व्यवस्था करती है ।

रिचर्डसन की परिभाषा औद्योगिक सम्बन्धों के इन संस्थागत पहलुओं (Industrial Aspects) का उल्लेख नहीं करती ।

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एच.ए. क्लेग ने अपनी पुस्तक “Industrial Democracy and Nationalization” में लिखा है, ”औद्योगिक सम्बन्धों का क्षेत्र श्रमिकों एवं उनके श्रम संघ प्रबन्ध, सेवायोजकों के संघों तथा रोजगार के नियंत्रण से सम्बद्ध राजकीय संस्थानों के अध्ययन का समावेश करता है ।

The National Commission on Labour, Report of National Commission on Labour-1969 ने इसी भावना को प्रकट करते हुए लिखा है, ”औद्योगिक सम्बन्ध न केवल दो सहभागियों के हितों को ही प्रभावित करते हैं- श्रम तथा प्रबन्ध-वरन् साथ ही उन आर्थिक तथा सामाजिक उद्देश्यो को जिनको स्वयं राज्य सम्बोधित करता है ।

एक सामाजिक तौर पर वांछनीय शृंखला में इन सम्बन्धों के नियंत्रण एवं नियमन हेतु यह एक ऐसा कार्य है जिसे पूरा करने में राज्य ही सर्वोत्तम स्थिति में होता है ।”

उपर्युक्त परिभाषाएँ स्पष्ट करती हैं कि औद्योगिक सम्बन्ध सेवायोजक श्रमिक अनेक तरीकों से सरकार द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं । औद्योगिक सम्बन्धों की विचारधारा को राज्य के सेवायोजकों, श्रमिकों तथा अनेक संगठनो के साथ सम्बन्धों की अभिव्यक्ति करने के लिए और आगे बढ़ाया जा चुका है ।

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अत: यह विषय व्यक्तियों, उनके सम्बन्धों, सेवायोजकों तथा श्रमिकों के बीच परामर्श (Consultation) सेवायोजकों तथा उनके संगठनों एवं ट्रेड यूनियनों के बची सामूहिक सम्बन्धों (Collective Relation) का समावेश करता है ।

साथ ही, इन सम्बन्धों को नियमित करने में सरकार द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका का भी अध्ययन किया जाता है । अत: औद्योगिक सम्बन्ध सेवायोजकों तथा कर्मचारियों के बीच मात्र सम्बन्धों का ही समावेश नहीं करता । वे जटिल तथा बहुआयामी होते हैं, जो आर्थिक (Economic), सामाजिक (Social), नैतिक (Ethical), राजनीतिक(Political), वैधानिक (Legal) तथा अन्य चरों पर अवलम्बित होते हैं ।

औद्योगिक सम्बन्ध एक विकासशील एवं गतिशील धारणा (Concept) है । सामान्यत: औद्योगिक सम्बन्ध शब्द सेवायोजक (Employer) एवं कर्मचारी के मध्य जो सम्बन्ध होता है, उसकी प्रकृति को प्रकट करने के लिए प्रयोग किया जाता है ।

औद्योगिक सम्बन्धों को दो प्रकार से स्पष्ट किया जाता है । संकुचित अर्थ में इसका अभिप्राय औद्योगिक इकाई में नियोक्ता तथा कर्मचारियो के बीच स्थापित सम्बन्धों से है, जबकि विस्तृत अर्थोमें, औद्योगिक सम्बन्धों में नियोजन से उत्पन्न सभी प्रकार के सम्बन्ध शामिल होते हैं । औद्योगिक शान्ति बनाए रखने के लिए नियोक्ता एवं कर्मचारी के बीच मधुर सम्बना होना आवश्यक है ।

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औद्योगिक सम्बन्धों की अवधारणा को निम्नलिखित विद्वान निम्न शब्दों में स्पष्ट करते हैं:

बेथिल, स्मिथ एवं अन्य:

”औद्योगिक सम्बन्ध, प्रबन्ध का वह अंग है, जोकि संगठन की मानव शक्ति से सम्पर्क रखता है, चाहे यह मानवीय शक्ति या मशीन को चलाने वाली शक्ति हो या कुशल श्रमिक या प्रबन्धक ।”

ई.एफ.एल. ब्रेच (E.F.L Breach):

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“औद्योगिक सम्बन्ध तथा कर्मचारी सम्बन्धों में कोई विशेष अन्तर नहीं है, केवल इस अन्तर के साथ कि औद्योगिक सम्बन्ध मधुर सम्बन्धों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रशासन की नीतियों तथा क्रियाओं की तुलना में कर्मचारी सम्बन्धों पर अधिक बल देता है ।”

डेल योडर (Dale Yoder):

“औद्योगिक सम्बन्धों के क्षेत्र के अन्तर्गत श्रमिकों की भर्ती, चुनाव, प्रशिक्षण, सेविवर्गीय प्रबन्ध, सामूहिक सौदेबाजी, आदि सभी को सम्मिलित किया है ।”

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O):

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“औद्योगिक सम्बन्धों के अन्तर्गत राज्य तथा सेवायोजकों के बीच सम्बन्धों को शामिल किया है ।”