Here is an essay on ‘Employee Discipline’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Employee Discipline’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Employee Discipline


Essay Contents:

  1. कर्मचारी अनुशासन का अर्थ (Meaning of Employee Discipline)
  2. अनुशासन की विशेषताएँ (Characteristics of Discipline)
  3. अनुशासन के उद्देश्य (Objectives of Discipline)
  4. अनुशासन के रूप (Forms of Discipline)
  5. अनुशासन का महत्व (Importance of Discipline)
  6. अनुशासन के सिद्धान्त (Principles of Discipline) 
  7. अनुशासनहीनता के कारण (Causes of Indiscipline) 
  8. प्रभावपूर्ण अनुशासन के लिए सुझाव (Suggestions for Effective Discipline)


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Essay # 1. कर्मचारी अनुशासन का अर्थ (Meaning of Employee Discipline):

किसी भी समूह को चाहे वह क्लब हो या समाज, व्यवसाय हो या राष्ट्र सुचारु रूप से कार्य संचालन के लिए अनुशासन अत्यन्त आवश्यक है । अनुशासन का अर्थ निर्धारित नियमों, कानूनों तथा मान्यताओं के अनुसार, चाहे वे लिखित हों या अलिखित आचरण करना है ।

दूसरे शब्दों में अनुशासन का अभिप्राय प्रत्येक ऐसे काम से परहेज करना होता है, जिसे देश धर्म समाज या समूह बुरा समझते हो ।

विभिन्न विद्वानों ने अनुशासन शब्द को निम्न प्रकार परिभाषित किया है:

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विलियम आर.स्प्रीगल (William R. Spriegal) के अनुसार:

”अनुशासन वह शक्ति है, जो व्यक्ति या समूह को नियमों एवं कार्यविधियों का जो किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक है, पालन करने के लिए प्रेरित करती है । अनुशासन वास्तव में वह शक्ति या शक्ति का भय होता है, जो व्यक्तियों एवं समूहों को ऐसे समस्त कार्य करने से रोकता है, जो संस्था के प्रमुख उद्देश्य को प्राप्ति में बाधक हों । अनुशासन की परिभाषा के अन्तर्गत संस्था के नियमों का उल्लंघन करने पर दण्ड की व्यवस्था भी सम्मिलित है ।”

रिचर्ड पी.केल्हून के अनुसार:

”अनुशासन एक शक्ति है, जो व्यक्तियों अथवा समूह को उन नियमों प्रमापों या मानकों और पद्धतियों के अनुकरण करने के लिए प्रेरित करती है, जिन्हें एक संगठन के लिए आवश्यक समझा गया है ।”

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डेल एस.के.बीच के शब्दों में:

“अनुशासन का आशय मानवीय व्यवहार को (पुरस्कार अथवा दण्ड द्वारा) नियमित करना है ।”

पिगर्स के अनुसार:

”अनुशासन वह शक्ति है, जो एक व्यक्ति या समूह को किसी उद्देश्य प्राप्ति के लिए आवश्यक समझे गये नियमों का पालन करने के लिए अभिप्रेरित करती है ।”

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ओर्डवे डीड के शब्दों में:

”अनुशासन एक सुनियोजित कार्य है, जिसमें संगठन के सदस्य स्वेच्छा से नियमों का पालन करते हुए सामूहिक रूप से लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, ताकि इन लक्ष्यों की प्राप्ति से उनकी इच्छाएँ समूह में उचित ढंग से कार्य करने पर पूरी हो सकें ।”

उपर्यक्त परिभाषाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन स्पष्ट करता है कि ”अनुशासन एक ऐसी मानसिक अभिवृत्ति या शक्ति है, जो कि कर्मचारियों को अपने समूह के पूर्वनिर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समूह के नियमों, नियमनों, पद्धतियों एवं कार्यविधियों की स्वेच्छा से आज्ञा-पालन करने के लिए प्रेरित करती है । यह मानसिक अभिवृत्ति किसी पुरस्कार अथवा दण्ड का परिणाम हो सकती है ।”


Essay # 2. अनुशासन की विशेषताएँ (Characteristics of Discipline):

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अनुशासन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

(1) अनुशासन एक शक्ति है (Discipline is a Force):

अनुशासन एक ऐसी शक्ति है, जो उपक्रम के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाये गये नियमों, नीतियों, कार्यविधियों का पालन करने के लिए कर्मचारियों अथवा समूह को प्रेरित करती है ।

(2) अनुशासन एक मानसिक अभिवृत्ति है (Discipline is a Mental Attitude):

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अनुशासन कर्मचारियों से आत्म-संयम की मानसिक अभिवृत्ति है, जो उनको उपक्रम के हितों के अनुकूल कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती है ।

(3) अनुशासन धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है (Discipline may be Positive or Negative):

जब कर्मचारी स्वेच्छा से उपक्रम के नियमों, नीतियों एव कार्यविधियों का पालन करने के लिए तत्पर रहते हैं, तो इसे धनात्मक अनुशासन व्यवस्था कहते हैं । इसके विपरीत कर्मचारी किसी भय अथवा दण्ड व्यवस्था के कारण उपक्रम के नियमों, नीतियों एवं कार्यविधियों का पालन करने के लिए प्रेरित होते हैं, तो इसे ऋणात्मक अनुशासन व्यवस्था कहते हैं ।


Essay # 3. अनुशासन के उद्देश्य (Objectives of Discipline):

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(1) नियमों, विनियमों एवं व्यवस्था के प्रति संगठन के सदस्यों को स्वैच्छिक सहमति प्राप्त करना है ।

(2) कर्मचारियों अर्थात् संगठन के सदस्यों में सहिष्णुता एवं समायोजन की भावना का विकास करना ।

(3) निर्देश एवं उत्तरदायित्व प्रदान करना तथा प्राप्त करना ।

(4) मानवीय व्यक्तित्व एवं मानवीय सम्बन्धों के प्रति सम्मान का वातावरण उत्पन्न करना ।

(5) संगठन की कार्यकुशलता एवं मनोबल को बढाना, जिससे कि उत्पादन बढ़ सके, लागत कम हो सके और उत्पाद की किस्म अच्छी हो सके ।

(6) समूह उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समन्वय को सुगम बनाना, जिससे कि संगठन का निर्बाध कार्य संचालन सम्भव हो सके ।

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इस प्रकार अनुशासन का उद्देश्य कर्मचारियों को दण्डित करना नहीं है, अपितु उन्हें अच्छे व्यवहार की ओर प्रोत्साहित करना है, और अच्छे आचार-विचार, व्यवहार तथा आचरण सीखना है, जिसमें कि वे संगठन की प्रगति और विकास के साथ-साथ अपने स्वयं की प्रगति और विकास कर सकें ।


Essay # 4. अनुशासन के रूप (Forms of Discipline):

(1) धनात्मक अनुशासन (Positive Discipline):

धनात्मक अनुशासन एक ऐसी अनुशासन प्रणाली है, जिसमें कर्मचारी अपनी इच्छा से उपक्रम के नियमों का पालन करते है । धनात्मक अनुशासन प्रशिक्षण एवं वातावरण के साथ व्यक्ति के अनुकूल व्यवहार के समायोजन से पैदा होता है । अनुशासन की इस प्रणाली को प्राप्त करने के लिए प्राय: प्रत्येक प्रबन्धक प्रयत्नशील रहता है ।

अनुशासन पर्यवेक्षक की कुशलता, संगठन के कुशल संचालन तथा कर्मचारियों द्वारा भली-भाति स्वीकार किये जाने पर ही सफल हो सकता है । चूंकि धनात्मक अनुशासन एक मानसिक किया है, अत: इसमें कर्मचारी की मानसिक प्रवृत्ति इस प्रकार से प्रभावित करना चाहिए कि वह संगठन के प्रति विश्वास की भावना रख सके । यह अनुशासन बिना औपचारिकता के समन्वय और प्रभावी सहयोग को प्रेरित करता है ।

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(2) ऋणात्मक अनुशासन (Negative Discipline):

ऋणात्मक अनुशासन को निषेधात्मक अनुशासन भी कहा जाता है । ऋणात्मक अनुशासन की प्रकृति धनात्मक अनुशासन के विपरीत होती है । यह अनुशासन सहयोग के स्थान पर दण्ड की व्यवस्था में विश्वास करता है । इसका उद्देश्य भय के वातावरण के अनुशासन की स्थापना करना है ।

इसमें अनुशासन तोड़ने वाले कर्मचारी को भय अथवा दण्ड द्वारा दण्डित किया जाता है । दूसरे सब्दों में, यह कहा जा सकता है कि ऋणात्मक अनुशासन के अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्य करने की प्रेरणा न देते हुए अनुशासनहीनता पर दण्डित किया जाता है ।


Essay # 5. अनुशासन का महत्व (Importance of Discipline):

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अनुशासन एक साधन है, जिसके द्वारा उपक्रम के उद्देश्यों से व लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है । अच्छे मानवीय सम्बन्धों के विकास तथा श्रेष्ठतम काम करने की प्रेरणा देने में अनुशासन का बहुत योग होता है ।

अनुशासन की दशा में उपक्रम का कार्य सुचारुपूर्वक एवं बिना किसी बाधा के निरन्तर प्रगति पर रहता है । उपक्रम के सभी कार्य पूर्व निश्चित योजनानुसार होते हैं, एवं मार्ग में आने वाली बाधाओं की दशा में उन पर विजय पा लेना भी सरल होता है । इससे उपक्रम की उत्पादकता भी बढ़ती है ।

एक अनुशासित व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के लिए आदर्श उपस्थित कर उन्हें अधिक और अच्छा काम करने की प्रेरणा देता है । वह अपनी सीमा को समझता है, तथा अपने कर्त्तव्यों के प्रति सजग रहता है । सीमाओं तथा कर्त्तव्यों का पालन होने से आपस में टकराव की सम्भावना कम हो जाती है, तथा मिलकर काम करने की भावना को बल मिलता है ।

वास्तव में कार्यों को ठीक ढंग से करने के लिए उपयुक्त वातावरण के निर्माण के लिए अनुशासन से अधिक सहायक और कोई साधन नहीं हो सकता ।


Essay # 6. अनुशासन के सिद्धान्त (Principles of Discipline):

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एक उपयुक्त अनुशासन प्रणाली के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं:

(1) अनुशासन सम्बन्धी नियम कर्मचारी की सहमति से तथा सरलता से समझ में आने वाले बनाने चाहिए ।

(2) सभी कर्मचारियों के लिए नियमों का समान रूप से पालन करना चाहिए ।

(3) नियमों को उपयोगी एवं प्रभावी बनाये रखने के लिए उनमें नियमित अन्तराल से परिवर्तन करते रहना चाहिए ।

(4) अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का उत्तरदायित्व उत्तरदायी व्यक्ति को सौंपना चाहिए ।

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(5) अनुशासन प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक दोषपूर्ण कार्यवाही हेतु दण्ड का निर्धारण कर लिया जाना चाहिए ।

(6) किसी नियम के बार-बार भंग होने पर उसकी व्यावहारिकता का पता लगाना चाहिए ।

(7) अनुशासनात्मक फैलाने वाले लोगों पर विशेष नजर रखी जानी चाहिए ।

(8) अनुशासनात्मक कार्यवाही के विरुद्ध अपील की व्यवस्था करनी चाहिए तथा इस बात का उल्लेख कर्मचारी-पुस्तिका में कर दिया जाना चाहिए ।

(9) अनुशासन प्रणाली में दण्ड के स्थान पर अपराध रोकने पर अधिकाधिक बल दिया जाना चाहिए ।

(10) अनुशासन व्यवस्था प्राकृतिक न्याय के आधार पर होनी चाहिए ।

(11) अनुशासनात्मक कार्यवाही शीघ्र एवं शुद्ध होनी चाहिए ।

(12) अनुशासन की कार्यवाही किसी प्रतिशोध की भावना से नहीं की जानी चाहिए ।

(13) अनुशासनात्मक कार्यवाही पूर्णत: गुफा होनी चाहिए ।


Essay # 7. अनुशासनहीनता के कारण (Causes of Indiscipline):

(1) प्रभावी नेतृत्व का अभाव (Lack of Effective Leadership):

फेयोल (Feyol) के अनुसार, ”अनुशासन वह है, जो नेता बनाते हैं (Discipline is that which leaders make it) |” वास्तव में अनुशासनहीनता अनेक दशाओं में प्रबन्धकों की त्रुटियों से उत्पन्न होती है जब मार्गदर्शक ही अनुशासन हीन होंगे तो उनके अनुयायियों से अनुशासन की कैसे आशा की जा सकती है । परिणामस्वरूप नेतृत्व के अभाव में सहयोग का वातावरण नहीं बन पाता ।

(2) नैराश्य की भावना (Feelings of Frustration):

कर्मचारियों में नैराश्य की भावना भी अनुशासनहीनता एक प्रमुख कारण है । यदि उन्हे प्रबन्धकों की निष्पक्षता में संदेह प्रतीत होता है, तो उन्हें अपनी प्रगति की सम्भवनाएँ दिखाई नहीं देतीं जिससे उनमें अनुशासनहीनता की भावना बढ़ती है ।

(3) दोषपूर्ण पर्यवेक्षण (Defective Supervision):

कुशल पर्यवेक्षण के अभाव में कर्मचारियों में काम के प्रति उदासीनता तथा अनुशासनहीनता पनपती है । दोषपूर्ण पर्यवेक्षण के कारण साधनों का दुरुपयोग होता है, परिणामस्वरूप कर्मचारियों में असन्तोष की भावना उत्पन्न होने लगती है ।

(4) अनुशासनात्मक कार्यवाहियों का समरूप न होना (Not Uniform to Discilinary Actions):

अनुशासनात्मक कार्यवाहियाँ समरूप होनी चाहिए जिससे सभी सम्बन्धित व्यक्तियों के प्रति न्याय हो सके । यदि इनके स्तर अनावश्यक बदले जाते हैं, अर्थात् एक समान दोष के लिए विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न स्तरों पर विभिन्न दण्ड दिये जायें तो अनुशासनहीनता बढ़ती है ।

(5) अनुशासन नियमावली का अभाव (Lack of Code of Discipline):

एक सुस्पष्ट एवं सुनिश्चित अनुशासन नियमावली के अभाव में या जब यह बनाई तो गई हो परन्तु कर्मचारियों को बताई न गई हो तो कर्मचारियों के लिए अनुशासन सम्बन्धी नियमों के अनुसार चलना कठिन होता है और अनुशासनहीनता को बल मिला है ।

(6) शिकायतों की अपेक्षा (Avoidance of Grievance):

कर्मचारियों की शिकायतों की उपेक्षा करने से उनकी कार्य कुशलता कम होने लगती है, उनमें असन्तोष की भावना जन्म लेती है, उनका मनोबल (Morale) गिरता है, और उनमें अनुशासनहीनता बढ़ती है ।

(7) पदोन्नति आदि के सम्बन्ध में पक्षपातपूर्ण नीति (Based Policy regarding Promotion etc.):

पदोन्नति, नियुक्ति, दण्ड, आदि के सम्बन्ध में पक्षपातपूर्ण व्यवहार से कर्मचारियों में असन्तोष फैलता है, तथा अनुशासन बनाये रखना कठिन हो जाता है, कर्मचारियों पर इस प्रकार कुशासन करना और फिर उनसे अनुशासन की आशा रखना परस्पर विरोधी बातें हैं ।

(8) फट डालो और राज करो की नीति (Divide and Rule Policy):

कुछ प्रबन्धक कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाते हैं । इससे भी अनुशासनहीनता बढ़ती है । फेयोल के अनुसार, ‘शत्रु को कमजोर करने के लिए उनकी सेना में फूट डालना बुद्धिमता की बात है, परन्तु अपनी ही टीम में फूट डालना व्यापार के प्रति एक भीषण अपराध है ।’

(9) व्यक्तिगत समस्याओं के प्रति उदासीनता (Negligence for Effective Discipline):

कर्मचारियों की व्यक्तिगत समस्याओं के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार सेभी अनुशासनहीनता बढ़ जाती है । श्रमिकों के व्यक्तिगत समस्याओं में फँसे होने से उपक्रम के उनके रवैये, काम करने में रुचि तथा अनुशासन की अत्यधिक प्रभावित होती, अत: प्रबन्धकों को उन्हें यथासम्भव सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए ।


Essay # 8. प्रभावपूर्ण अनुशासन के लिए सुझाव (Suggestions for Effective Discipline):

प्रभावपूर्ण अनुशासन के लिए अनुशासनहीनता के उपर्यक्त सभी कारणों को दूर करना चाहिए; जैसे- शिकायतों पर ध्यान दिया जाये पदोन्नति आदि के सम्बन्ध में उचित नीति अपनाई जाये अनुशासन नियमावली बनाई जाये एवं सभी कर्मचारियों को उनकी जानकारी दी जाये कुशल पर्यवेक्षण हो व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाया जाये आदि ।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित उपाय भी अपनाये जाने चाहिये:

(1) अनुशासन के प्रति कर्मचारियों का स्वस्थ दृष्टिकोण:

अनुशासन सम्बन्धी अनेक समस्याएँ प्रतिकूल दृष्टिकोण के कारण उत्पन्न होती हैं । यदि कर्मचारी अनुशासन के लाभों एवं अनुशासनहीनता की हानियों से परिचित हो जाएँ और उन्हें यह विश्वास हो जाए कि अनुशासन बनाये रखना उनके हित में है, तो अनुशासन बनाये रखना सरल हो जाता है ।

(2) अनुशासन समिति:

प्रत्येक उपक्रम में एक अनुशासन समिति की स्थापना की जानी चाहिए जिसमें श्रमिकों के प्रतिनिधि भी शामिल हों । किसी कर्मचारी के विरुद्ध कार्यवाही करने के पूर्व इस समिति से परामर्श ले लेना चाहिए । इससे अनुशासन बनाये रखने में सुविधा होगी ।

(3) दण्ड-व्यवस्था के साथ संघर्ष को निपटाने का प्रयत्न:

यद्यपि अनुशासनहीनता की दशा में दण्ड की व्यवस्था होती है, परन्तु जहाँ तक सम्भव हो सके दण्ड देने की अपेक्षा अनुशासनहीनता के कारणों को दूर करके व्यक्ति को पुन: सुधरने का अवसर देकर संघर्ष को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि अनुशासन की कार्यवाही का उद्देश्य भविष्य में अपराध की प्रवृत्ति को रोकना है, अपराधी से बदला लेना नहीं । अत: एक निर्दिष्ट समय की अवधि के बाद उसे विगत अपराधों के लिए क्षमा प्रदान कर देनी चाहिए ।


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