Here is a compilation of essays on ‘Control’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Control’ especially written for college and management students in Hindi language.

Essay on Control


Essay Contents:

  1. नियन्त्रण का अर्थ (Meaning of Control)
  2. नियन्त्रण की विशेषताएँ अथवा लक्षण (Characteristics or Features of Control)
  3. नियन्त्रण के उद्देश्य (Objects of Control)
  4. नियन्त्रण का क्षेत्र (Control Areas or Scope of Control)
  5. अच्छी नियन्त्रण-प्रणाली के आवश्यक तत्व (Essential of Good Control System)
  6. नियन्त्रण के सिद्धान्त (Principles of Control)
  7. नियन्त्रण का प्रबन्ध के अन्य कार्यों से सम्बन्ध (Relationship of Control with Other Functions of Management)
  8. नियन्त्रण की सीमाएँ अथवा नियन्त्रण की कठिनाइयाँ (Limitations of Control or Difficulties in Control)


Essay # 1. नियन्त्रण का अर्थ (Meaning of Control):

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प्रबन्धकीय प्रक्रिया में नियन्त्रण अन्तिम चरण है क्योंकि इसकी आवश्यकता नियोजन संगठन तथा निर्देशन के पश्चात् पड़ती है । यह प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य है प्रबन्ध के सभी कार्यों की सफलता प्रभावशाली नियन्त्रण पर ही निर्भर करती है । नियन्त्रण के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि प्रबन्ध अपने लक्ष्यों की प्राप्ति अपनी योजनाओं के अनुसार कर पा रहा है अथवा नहीं यदि नहीं कर पा रहा तो उसके क्या कारण है उसके मार्ग में क्या बाधाएं हैं और उन्हें दूर करने के लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिए ।

इस प्रकार योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीकों से, सही साधनों द्वारा तथा सही समय पर हो पा रहा है या नहीं, इसे नियन्त्रण द्वारा मालूम किया जा सकता है तथा विष्णु, त्रुटियों तथा समस्याओं के सम्बन्ध में सुधारात्मक उपाय (Corrective Actions) किये जा सकते हैं ।

अत: स्पष्ट है कि केवल योजनाएँ बना देना, उद्देश्य तथा नीतियां निर्धारित कर देना या संगठन बनाकर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में कार्य, अधिकार और दायित्वों का स्पष्ट व निश्चित बंटवारा कर देना, नियन्त्रण नहीं है । अपितु नियन्त्रण के अन्तर्गत इन योजनाओं, उद्देश्यों व नीतियों के सन्दर्भ में वास्तविक प्रगति की समीक्षा की जाती है तथा किसी भी विचलन (Deviation) को देखकर उसे दूर करने के लिए आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है ।

यहाँ यह बता देना सामयिक होगा कि नियन्त्रण शब्द का अर्थ भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न लगाया जाता है । जहां आम बोलचाल की भाषा में इसका अर्थ विभिन्न क्रियाओं पर प्रतिबन्ध लगाने से लगाया जाता है वहां दूसरे अर्थ में इस शब्द का अर्थ उचित कार्यों के लिए “सूचनाएँ व आँकड़े प्रदान करने” के लिए भी लगाया जाता है परन्तु प्रबन्धकीय क्षेत्र में नियन्त्रण शब्द का प्रयोग “योजनाओं के अनुसार कार्यों का सम्पादन करवाने” के रूप में लगाया जाता है ।


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Essay # 2. नियन्त्रण की विशेषताएँ अथवा लक्षण (Characteristics or Features of Control):

नियन्त्रण को भली-भांति जानने के लिए इनकी विशेषताओं को जान लेना आवश्यक है जो निम्नलिखित हैं:

(i) नियन्त्रण का आधार नियोजन है (Planning is the Basis of Control):

नियोजन के अभाव में नियन्त्रण सम्भव नहीं होता । प्रबन्धक को नियन्त्रण करने के लिए योजना का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि उसे नियन्त्रण करते समय यही देखना पड़ता है कि क्या कार्य योजना के अनुरूप हो रहा है अथवा नहीं । अतएव नियोजन, नियन्त्रण का आधार है ।

ADVERTISEMENTS:

नियन्त्रण व नियोजन प्रबन्ध के दोनों कार्य एक-दूसरे के सम्बन्ध में हैं इन दोनों को एक दूसरे से अलग नहों किया जा सकता । एक के बिना दूसरे का अस्तित्व निरर्थक है । दोनों के सम्बन्धों को मेरी कुशिंग नाइल ने ठीक ही व्यक्त किया है, नियन्त्रण नियोजन का एक पहलू तथा प्रतिरूप है । जहाँ नियोजन मार्ग निर्धारण करता है, वहाँ नियन्त्रण मार्ग से विचलनों को अवलोकन करता है और ऐसी कार्यवाही करता है कि चुने गये मार्ग पर अथवा एक उपयुक्त रूप से बदले हुए मार्ग पर लौटा जा सकें ।

(ii) नियन्त्रण अग्रदर्शी अर्थात् आगे देखने वाला कार्य है (Control is Forward Looking):

नियन्त्रण तो आगे की जाने वाली क्रियाओं या प्रयासों का ही हो सकता है । इस प्रकार नियन्त्रण भविष्य से सम्बन्ध रखता है । जो क्रियाएँ अथवा घटनाएँ भूतकाल में हो चुकी हैं उनको नियन्त्रित नहीं किया जा सकता किन्तु भूतकाल के आँकड़े सूचनाओं तथा अनुभवों के आधार पर भविष्य की क्रियाओं को नियन्त्रित करने का प्रयत्न किया जा सकता है । इस प्रकार नियन्त्रण अग्रदर्शी विकास व सुधार की प्रक्रिया है ।

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(iii) नियन्त्रण एक सतत् प्रक्रिया है (Control is a Continuous Process):

जैसे नियोजन एक सतत् प्रक्रिया है ठीक उसी प्रकार नियन्त्रण भी एक सदा चलती रहने वाली प्रक्रिया मानी गई है । क्योंकि जब तक कोई कार्य या प्रयास किसी लक्ष्य क उद्देश्य की पूर्ति हेतु सम्पन्न किया जा रहा है तब तक नियन्त्रण का कार्य चालू रहता है । प्रबन्धक निरन्तर पूर्व निर्धारित मार्ग और वास्तविक कार्य सम्पादन पर नजर रखते हैं ।

(iv) सभी प्रबन्धकीय स्तरों में व्याप्त होता है (Control Exists at Every Management Level):

नियन्त्रण संगठन के सभी स्तरों और सभी प्रकार के कार्यों पर लागू होने वाली प्रक्रिया है । उच्च प्रबन्ध से लेकर निम्न स्तरीय प्रबन्ध तक सभी प्रबन्धक नियन्त्रण का काम करते हैं । इस प्रकार नियन्त्रण का काम प्रत्येक प्रबन्धक को करना पड़ता है चाहे वह किसी क्षेत्र में हो या किसी भी स्तर का प्रबन्धक हो यह ठीक है कि प्रबन्ध-स्तर के अनुसार नियन्त्रण का स्वरूप, क्षेत्र व विस्तार में अन्तर अवश्य होगा कूण्ट्ज व ओ’ डोनेल ने भी इसी बात पर बल देते हुए कहा है कि नियत्नण का कार्य प्रत्येक प्रबन्धक को करना पड़ता है ।

ADVERTISEMENTS:

(“…..Control is, Therefore, is an Essential Managerial Function at Every Level”. Koontz and O’ Donnell)

(v) नियन्त्रण एक समन्वित एकीकृत पद्धति है (Control is a Coordinated, Integrated System):

नियन्त्रण एक समन्वित एकीकृत पद्धति है अर्थात् इसमे बहुत-सी अन्तर्सम्बन्धित उप-पद्धतियों का एक संग्रह (A set of Interlocking Sub-System) होता है ।

(vi) नियन्त्रण हस्तक्षेप नहीं हैं (Control is Different from Interference):

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कुछ लोग नियन्त्रण को हस्तक्षेप मानते हैं परन्तु उनकी यह धारणा गलत है । नियन्त्रण न तो अधीनस्थों के अधिकारों को कम करता है और न ही उनके कार्यों में हस्तक्षेप करता है बल्कि नियन्त्रण तो तथ्यों पर आधारित एक किया है । इसका उद्देश्य तो लक्ष्यों को अधिक कुशलता से प्राप्त करना हे नियन्त्रण कार्य को सही दिशा प्रदान करता है । वह कार्य में अवरोध उत्पन्न नहीं करता जैसा कि हस्तक्षेप में पाया जाता है । इसलिए नियन्त्रण को हस्तक्षेप नहीं अपितु मार्ग-दर्शन माना जाता है ।

(vii) नियन्त्रण का सार सुधारात्मक कार्यवाही है (Corrective Action is the Essence of Control):

नियन्त्रण के अन्तर्गत निर्धारित प्रमापों के आधार पर वास्तविक निष्पादन का तुलनात्मक अध्ययन करके विचलनों (Deviations) को ज्ञात किया जाता है तथा इन विचलनों को टूर करने के लिए सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है इन सुधारात्मक उपायों के द्वारा भावी-क्रियाओं को इन विचलनों की पुनरावृत्ति से मुक्त किया जा सकता है । अतएव विचलनों को दूर करने के लिए सुधारात्मक कार्यवाही करना नियन्त्रण का सार है ।

(viii) नियन्त्रण के लिए लक्ष्यों व प्रमापों का होना (Control Implies Existence of Certain Goals and Standards):

ADVERTISEMENTS:

नियन्त्रण के लिए लक्ष्यों व प्रमापों का होना आवश्यक है । इनके अभाव में नियन्त्रण का कोई अर्थ नहीं है । अत: नियोजन प्रक्रिया इन लक्ष्यों एवं प्रमापों का निर्धारण करती है । इस प्रकार नियन्त्रण विशेष योजनाओं लक्ष्यों अथवा नीतियों का परिणाम है । नियोजन न केवल नियन्त्रण को प्रभावित करता है बल्कि इससे प्रभावित भी होता है ।

वास्तव में ये दोनों एक-दूसरे से विपरीतार्थक रूप में सम्बद्ध (Reciprocally Related) हैं इस विपरीतार्थ रूप में सम्बद्धता को निम्न रूप से स्पष्ट दर्शाया गया है:

(ix) नियन्त्रण अन्तिम कड़ी है (Control is the Last Link):

नियन्त्रण प्रबन्ध कार्य की अन्तिम कड़ी अथवा क्रिया है । नियन्त्रण का आधार नियोजन होता है । प्रत्येक उपक्रम के निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए नियन्त्रण प्रक्रिया का होना आवश्यक है ।

ADVERTISEMENTS:

(x) नियन्त्रण नकारात्मक कार्य नहीं है (Control is Not a Negative Job):

प्रबन्ध के क्षेत्र में नियन्त्रण कार्य को नकारात्मक कार्य माना जाता है, जबकि नियन्त्रण सभी प्रकार की संस्थाओं के प्रबन्ध का सामान्य, व्यापक तथा सकारात्मक (Positive) कार्य है । ये कार्य संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक माना गया है ।

(xi) नियन्त्रण बहु-अर्थीय विचारधारा है (Control is a Multimeaning Concept):

प्रबन्ध क्षेत्र में नियन्त्रण कार्य को विभिन्न अर्थों में लिया जाता है इसलिए इसे बहु-अर्थीय विचारधारा कहा गया है । उच्च स्तरीय प्रबन्धकों के लिए नियन्त्रण कार्य का अर्थ सम्पूर्ण परिणामों के मूल्यांकन से है मध्यस्तरीय प्रबन्धकों के लिए नियन्त्रण कार्य का अर्थ संस्था के नियन्त्रण से है । संस्था के विभिन्न अंग सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति की दशा में किस प्रकार सहयोग कर रहे है । निम्न स्तरीय प्रबन्धकों के लिए नियन्त्रणों कार्य का अर्थ अधीनस्थों की कार्य प्रगति (Progress Report) को देखने-जाँचने तथा सुधारात्मक कार्यवाही करने से है ।


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Essay # 3. नियन्त्रण के उद्देश्य (Objects of Control):

अनेक विद्वानों के नियन्त्रण के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन किया है जो निम्नलिखित हैं:

(i) योजनाओं के अनुसार क्रियाओं को निर्देशित करना ।

(ii) संस्था के उद्देश्यों साधनों तथा प्रयासों में समन्वय स्थापित करना ।

(iii) निर्धारित प्रमापों के आधार पर कार्य निष्पादन की प्रगति ज्ञात करना ।

(iv) निर्धारित प्रमापों व कार्य निष्पादन में विचलन होने पर उसके कारणों का पता लगाना तथा आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही करना ।

ADVERTISEMENTS:

(v) निष्पादन कार्य की किस्म लागत तथा समय के बारे में जानकरी प्राप्त करना ।

(vi) नियन्त्रण का उद्देश्य अवरोध पैदा करना नहीं बल्कि प्रवाह बनाये रखना है ।

(vii) अपव्ययों को रोकना तथा लागत को न्यूनतम करना ।

(viii) विकेन्द्रीकरण तथा अधिकार-अन्तरण (Decentralisation and Delegation of Authority) को सफल बनाना ।

(ix) उत्पादन के सभी साधनों का सही व सन्तुलित उपयोग करना ।

(x) कर्मचारियों को अभिप्रेरित (Motivate) करना तथा उनका मनोबल बनाए रखना ।

ADVERTISEMENTS:

(xi) इस सम्बन्ध में आश्वस्त होना कि कार्य पूर्व-नियोजित कार्यक्रम के अनुसार हो रहा है ।

(xii) मानवीय संसाधनों का सहयोग प्राप्त करना और क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना ।

(xiii) मशीनों व औजारों का अधिकतम उपयोग करना ।

(xiv) संस्था में अव्यवस्था तथा अराजकता को समाप्त करना ।

(xv) त्रुटियों की पुनरावृत्ति को रोकना ।

अतएव नियन्त्रण का मुख्य उद्देश्य भौतिक तथा मानवीय साधनों व प्रयासों को संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में निर्देशित करना लागत को कम करना अपव्ययों को रोकना तथा संस्था की कार्यक्षमता को बढ़ाना है ।


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Essay # 4. नियन्त्रण का क्षेत्र (Control Areas or Scope of Control):

नियन्त्रण का क्षेत्र बहुत व्यापक है ।

होल्डन, फिस तथा स्मिथ ने अपनी पुस्तक (Top Management, Organization and Control) में नियन्त्रण के 13 प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख किया है जो निम्नलिखित हैं:

(i) नीतियों पर नियन्त्रण (Control over Policies):

नीतियाँ प्रबन्ध में अपनाये जाने वाले वे सिद्धान्त हैं जिन्हें उच्च प्रबन्धक बनाते हैं तथा जो विवरणों (Statements) या निर्देश (Guides) के रूप में व्यक्त किये जाते हैं । नीतियां संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बनाई जाती हैं ये प्रबन्ध की क्रियाओं का मार्गदर्शन करती हैं इसलिए उन पर नियन्त्रण की आवश्यकता होती है इसलिए नीतियों पर नियन्त्रण करने के लिए ‘नीति-पुस्तिका’ (Policy Manual) का प्रयोग किया जाता है । इस नीति पुस्तिका को संस्था के उच्च प्रबन्धक तैयार करते हैं । इस पुस्तिका में लिखित नीतियों का सभी अधिकारियों तथा कर्मचारियों को पालन करना पड़ता है

(ii) संगठन पर नियन्त्रण (Control over Organisation):

संगठन पर नियन्त्रण करने के लिए संगठन चार्ट तथा संगठन पुस्तिका आदि का प्रयोग किया जाता है । इनके द्वारा ही कार्य का विवरण, अधिकारों को सौंपना, दायित्वों का निर्धारण व पारस्परिक सम्बन्धों की स्थापना की जाती है ।

(iii) कर्मचारियों पर नियन्त्रण (Control over Personnel):

संस्था के कर्मचारियों पर नियन्त्रण का काम सेविवर्गीय प्रबन्धक अथवा अध्यक्ष द्वारा किया जाता है । कर्मचारियों पर नियन्त्रण की प्रक्रिया में प्रत्येक कर्मचारियों को सौंपे गए कार्य का निष्पादन कार्यविधि, उनके प्रयासों का निर्देशन एवं उनके व्यवहार को शामिल किया जाता है ।

(iv) मजदूरी व वेतन पर नियन्त्रण (Control over Wages and Salaries):

यह नियन्त्रण कार्य-मूल्यांकन (Job Evaluation) तथा मजदूरी व वेतन विश्लेषण (Wage and Salary Analysis) के आधार पर किया जाता है । यह नियन्त्रण सेविवर्गीय विभाग तथा और औद्योगिक अभियान्त्रिक विभाग (Personnel and Industrial Engineering Departments) के द्वारा किया जाता है ।

(v) लागतों पर नियन्त्रण (Control over Costs):

लागत पर नियन्त्रण करने के लिए लागत प्रमापों (Standard Over Costs) को निर्धारित कर दिया जाता है तथा बाद में इन प्रमापों से वास्तविक लागत (Actual Costs) आँकड़ों की तुलना की जाती है तथा भविष्य में लागतों को कम करने के प्रयत्न किये जा सकते हैं ।

(vi) कार्य विधियों व मानव-शक्ति पर नियन्त्रण (Control over Methods and Manpower):

व्यावसायिक कार्यविधियों में ढील विलम्ब, जटिलता तथा लोचहीनता का निवारण इस नियन्त्रण द्वारा करने की कोशिश की जाती है । अधिकतर कार्यविधियों के प्रमापित व औपचारिक स्वरूप निर्धारित कर दिये जाते हैं । कार्य-विधि नियन्त्रण की सफलता कार्यविधियों के सरल निर्धारण, आवश्यकतानुसार परिवर्तन तथा क्रियाओं के पालन में कर्मचारियों की रुचि पर निर्भर होती है ।

(vii) पूँजीगत व्यय पर नियन्त्रण (Control over Capital Expenditure):

इस प्रकार के नियन्त्रण के अन्तर्गत सारी सस्था का एक पूँजी-बजट बनाया जाता है कि जिसके माध्यम से पूँजीगत व्ययों को नियन्त्रित किया जाता है । पूंजी-बजट को पूँजी बजट कमेटी द्वारा स्वीकृत किया जाता है तथा यह कमेटी ही उसका अवलोकन (Review) भी करती है । इस नियन्त्रण में परियोजनाओं (Projects) को स्वीकृति देने से पूर्व उनकी लाभदायकता (Profitability) की पूरी जांच की जाती है ।

(viii) सेवा विभागों अथवा कार्यों पर नियन्त्रण (Control over Service Departments of Functions):

सेवा विभागों पर नियन्त्रण के अन्तर्गत संस्था के विभिन्न विभागों में बजटरी-कन्ट्रोल की प्रणाली को अपनाया जाता है ।

(ix) उत्पादन पर नियन्त्रण (Control over Productions):

इस नियन्त्रण के अन्तर्गत बाजार की आवश्यकताओं, उपभोक्ताओं की मांग व रुचि का नियन्त्रण अध्ययन किया जाता है तथा उत्पादन की किस्म, उत्पादन की प्रकृति व मात्रा का विश्लेषण करके उत्पादित वस्तुओं में सुधार के सुझाव दिए जाते हैं ।

(x) अनुसन्धान व विकास पर नियन्त्रण (Control over Research and Development):

यह नियन्त्रण शोध विभाग के कर्मचारियों द्वारा विभिन्न योजनाओं की उपयोगिता लाभप्रदता, मितव्ययिता तथा विक्रय-वृद्धि की शक्ति ककर किया जाता है । इनके अतिरिक्त अनुसन्धान बजटों का निर्माण करके भी इन पर कुछ नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है ।

(xi) बाह्य सम्बन्धों पर नियन्त्रण (Control over External Relations):

बाह्य सम्बन्धों पर नियन्त्रण करने के लिए जन सम्पर्क विभाग की स्थापना की जाती है । यह विभाग कुछ निश्चित सूचनाओं का प्रकाशन निश्चित साधनों द्वारा करता है जो बाह्य सम्बन्धों में सुधार करने के लिए औजार के रूप में प्रयोग किए जाते हैं । अन्य शब्दों में यह विभाग कुछ निश्चित सूचनाओं का प्रकाशन निश्चित साधनों द्वारा करता है जो बाह्य सम्बन्धों में सुधार करने के लिए औजार के रूप में प्रयोग किये जाते हैं । अन्य शब्दों में यह विभाग संस्था की रीतियों-नीतियों के अनुरूप संस्था के बाह्य सम्बन्धों को नियमित व नियन्त्रित करता है ।

(xii) विदेशी क्रिया-कलापों पर नियन्त्रण (Control over Foreign Operations):

इस नियन्त्रण के अन्तर्गत विदेश में स्थापित संस्थाओं का नियन्त्रण उसी प्रकार किया जाता है जैसे कि घरेलू संस्थाओं का । इसमें वही औजार व तकनीकें प्रयोग में लाई जाती हैं जो घरेलू संस्थाओं में अन्तर केवल इतना होता है कि विदेश स्थित संस्थाओं के अध्यक्षों को स्वतन्त्र निर्णय लेने का अधिकार अधिक मात्रा में दिया जाता है ।

(xiii) सम्पूर्ण नियन्त्रण अथवा व्यापक नियन्त्रण (Overall Control):

इस प्रकार के नियन्त्रण के लिए वह वृहद् योजना (Master Plan) तैयार की जाती है तथा इसमें सभी विभागो की योजनाओं को शामिल किया जाता है । हम बृहद् योजना द्वारा संस्था पर सम्पूर्ण अथवा व्यापक नियन्त्रण किया जाता है । लाभ-हानि खाता तथा स्थिति विवरण भी व्यापक नियन्त्रण के लिए प्रयोग में लाये जा सकते हैं ।


Essay # 5. अच्छी नियन्त्रण-प्रणाली के आवश्यक तत्व (Essential of Good Control System):

एक अच्छी व प्रभावशाली नियन्त्रण प्रणाली में निन्नलिखित तत्वों का पाया जाना आवश्यक है:

(i) विचलनों की शीघ्र सूचना (Promptness in Reporting Deviation):

एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली में ऐसी व्यवस्था हो जिससे कि विचलनों की तुरन्त सूचना प्राप्त हो सके । जितनी जल्दी विचलनों की सूचना प्राप्त होगी उतनी जल्दी ही उन्हें दूरी करने की सुधारात्मक कार्यवाही भी की जा सकेगी ।

(ii) सरल एवं सुबोध (Simple and Understandable):

नियन्त्रण प्रणाली सरल व स्पष्ट होनी चाहिए । ऐसा होने से कर्मचारी उसे आसानी से समझ सकेंगे तथा उसे आसानी से लागू भी किया जा सकेगा ।

(iii) मितव्ययी (Economical):

एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली वही मानी जायेगी जो अपने ऊपर व्ययों से अधिक लाभ संस्था के लिए कमा सके ।

(iv) लोचपूर्ण (Flexible):

नियन्त्रण प्रणाली में आवश्यकतानुसार फेर-बदल की गुंजाइश होनी चाहिए ताकि परिस्थितियों तथा अनुभवों के आधार पर उसमें उपयुक्त संशोधन किये जा सकें । इसमें नये विकास को ग्रहण करने की क्षमता भी होनी चाहिए । एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली भविष्य में भी तभी प्रभावी बनी रह सकती है, जबकि उसमें जोचशीलता का गुण होगा ।

(v) उद्देश्यपूर्ण (Objective):

एक अच्छी नियन्त्रण व्यवस्था उद्देश्यपूर्ण, निश्चित कार्यकारी (Workable), मापन योग्य (Measurable) तथा जाँचने-योग्य होनी चाहिए ।

(vi) युक्तता (Suitability):

एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली संस्था के कार्य की प्रकृति तथा आवश्यकता के अनुरूप एवं उपयुक्त होनी चाहिए । इस प्रकार नियन्त्रण व्यवस्था में संगठन की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता होनी चाहिए ।

(vii) अग्रदर्शी अथवा भविष्यदर्शी (Forward Looking):

नियन्त्रण प्रणाली का सम्बन्ध भूतकाल से न होकर भविष्य से होता है । अतएव एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली में वास्तविक निष्पादन का निर्धारित प्रमापों में अन्तरों (Deviations) का भविष्य में अनुमान लगाये जाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही की जा सके । नियन्त्रण वास्तव में भविष्य में आवश्यक सुधार करने के लिए अधिक लाभदायक रहता है ।

(viii) महत्वपूर्ण नियन्त्रण बिन्दुओं का निर्धारण (Determining of Strategic Points of Control):

एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली वही मानी जाती है जिसमें उन महत्वपूर्ण नियन्त्रण बिदुओं को निर्धारित कर दिया जाय जहां पर नियन्त्रण को केन्द्रित रखना हो । नियन्त्रण प्रणाली को संगठन संरचना में सभी जगह फैलाना अव्यावहारिक होगा क्योंकि ऐसा करने से नियन्त्रण व्यय बढ़ेंगे । इसलिए यह उचित होगा कि कुछ महत्वपूर्ण नियन्त्रण बिन्दुओं को स्थापित कर लिया । जिनके माध्यम से सम्पूर्ण संस्था की प्रगति को नियन्त्रित किया जा सके ।

(ix) सुधारात्मक सुझाव देने वाली (Suggestive or Corrective Action):

नियन्त्रण प्रणाली का उद्देश्य केवल विचलनों को ज्ञात करना ही नहीं होता बल्कि इन विचलनों को दूर करने के लिए उचित उपाय भी सुझाना है । अतएव प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि वह विचलनों एवं रुकावटों को दूर करने के लिए आवश्यक सुझाव भी दे सके ।

(x) संगठन ढाँचे के अनुरूप (According to Organisational Structures):

नियन्त्रण प्रणाली ऐसी हो कि वह संगठन-ढांचे के अनुरूप हो तथा संगत हो अर्थात् वह संगठन के ढाँचे से मेल खाती हो ।

(xi) समय पर तथा पर्याप्त (Timely and Adequate):

नियन्त्रण प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो सभी सूचनाएं ठीक समय पर, ठीक व्यक्ति को तथा ठीक मात्रा में उपलब्ध करा सके ताकि ठीक समय पर सुधार किया जा सके ।

(xii) समझने योग्य (Understandable):

एक अच्छी नियन्त्रण अवस्था के लिए यह जरूरीं है कि वह सरल व स्पष्ट हो तथा प्रबन्धकों को इसे लागू करने के बारे में पता होना चाहिए । इसके साथ-साथ कर्मचारियों को भी यह पता होना चाहिए कि उनके कार्यों का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाएगा ।

(xiii) निरन्तर प्रक्रिया (Continuous Process):

नियन्त्रण प्रक्रिया लगातार चलती रहनी चाहिए । कूण्ट्ज के अनुसार- “जिस तरह का जहाज का चालक निरन्तर यह देखता रहता है कि क्यका जहाज ठीक दिशा की ओर चल रहा है, अंक क्खी प्रकार एक व्यावसायिक प्रबन्धक को भी अपने नियन्त्रण तत्न द्वारा यह देखना चाहिए कि क्यका उपक्रम सही दिशा की ओर चल रहा है ।”


Essay # 6. नियन्त्रण के सिद्धान्त (Principles of Control):

नियन्त्रण प्रणाली को प्रभावी बनाने एवं बनाये रखने के लिए हैरोल्ड कूण्ट्ज ने निम्नलिखित चौदह सिद्धान्तों के अनुपालन को परमावश्यक माना है:

(i) नियन्त्रण की कुशलता का सिद्धान्त (Principle of Efficiency of Control):

नियन्त्रण तभी कुशल एवं कार्यक्षम माना जा सकता है, जबकि वह विचलनों को न केवल शीघ्र बतलाता हो बल्कि उनको इस प्रकार समाप्त भी करना हो कि संस्था पर कम-से-कम हानिकर प्रभाव पड़े ।

(ii) नियन्त्रण के दायित्य का सिद्धान्त (Principle of Responsibility of Control):

यह सिद्धान्त बतलाता है कि नियन्त्रण का दायित्व योजनाओं के क्रियान्वयन करने वाले अधिकारी का होता है ।

(iii) उद्देश्य सुरक्षा का सिद्धान्त (Principle of Assurance of Objective):

नियन्त्रण ऐसा होना चाहिए जो समूह उद्देश्यों की प्राप्ति के समय-समय पर प्रबन्धकों को नियोजित योजनाओं की क्रियान्विति में उत्पन्न विचलनों को बतलाकर तथा सुधारात्मक कदम प्रस्तावित कर सहयोग कर सके ।

(iv) प्रत्यक्ष नियन्त्रण का सिद्धान्त (Principle of Direct Control):

यह सिद्धान्त बतलाता है कि प्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित करने के लिए अधीनस्थ प्रबन्धकों को अधिकाधिक योग्य बनाया जाना चाहिए ।

(v) भावी नियन्त्रण का सिद्धान्त (Principle of Future Control):

यह सिद्धान्त बतलाता है कि न केवल वर्तमान विचलन अपितु भावी विचलनों की जानकारी और उनका निराकरण नियन्त्रण प्रणाली द्वारा सम्भव होना चाहिए ।

(vi) संगठनात्मक स्थिरता का सिद्धान्त (Principle of Organisational Stability):

नियन्त्रण प्रणाली न केवल संगठन संरचनाओं को बतलाने वाली हो अपितु उसे स्थिरता प्रदान करने वाली भी होनी चाहिए ।

(vii) योजनाओं के प्रतिबिम्ब का सिद्धान्त (Principle of Reflection of Plans):

नियन्त्रण साधनों एवं उपकरणों को इस प्रकार डिजाइन किया जाना चाहिए कि वे योजनाओं की प्रकृति एवं सरचना को प्रतिबिम्बित कर सकें ।

(viii) प्रमाप आ सिद्धान्त (Principle of Standards):

प्रभावी एवं कार्यक्षम नियन्त्रण हेतु कर्म-विषयक, परिशुद्ध एवं उपयुक्त प्रमाप निर्धारित किये जाने चाहिए ।

(ix) महत्वपूर्ण-बिन्दु नियन्त्रण का सिद्धान्त (Principle of Strategic Point Control):

प्रभावी नियन्त्रण कार्य निष्पादन के मूल्यांकन के लिए जो घटक महत्वपूर्ण होते हैं उन पर अत्यधिक ध्यान देने को आवश्यक मानता है ।

(x) नियन्त्रनों की वैयक्तिता का सिद्धान्त (Principle of Individuality of Controls):

नियन्त्रण प्रणाली एवं साधन ऐसे होने चाहिए जो प्रत्येक प्रबन्धक की वैयक्तिक जरूरतों को पूरा कर सकें ।

(xi) कार्यवाही का सिद्धान्त (Principle of Action):

प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली वह जो उपयुक्त नियोजन, संगठन, निर्देशन आदि के जरिये विचलनों को तत्काल दूर करने वाली कार्यवाही को सम्भव बनाती है और उचित ठहराती है ।

(xii) पुनर्विचार का सिद्धान्त (Principle of Review):

नियन्त्रण प्रणाली का सर्वाधिक अंकेक्षण एवं परीक्षण किया जाना चाहिए ।

(xiii) उपबाद सिद्धान्त (Principle of Exception):

प्रभावी नियन्त्रण हेतु अपवादजनक स्थितियों में ही प्रबन्धकों का ध्यान आकृष्ट किया जाना चाहिए ।

(xiv) नियन्त्रणों की लोच का सिद्धान्त (Principle of Flexibility of Controls):

योजनाओं की एकबारगी असफलता के बावजूद भी नियन्त्रण प्रणाली उपयुक्त एवं प्रभावी बनी रहनी चाहिए ।


Essay # 7. नियन्त्रण का प्रबन्ध के अन्य कार्यों से सम्बन्ध (Relationship of Control with Other Functions of Management):

यह तो हम जानते हैं कि प्रबन्ध के विभिन्न कार्यों में नियन्त्रण प्रबन्ध का अन्तिम कार्य है । इसको प्रबन्ध का अन्तिम कार्य इसलिए माना जाता है क्योंकि इसकी जरूरत नियोजन संगठन एवं निर्देशन के बाद पड़ती है ।

लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं कि नियन्त्रण का महत्व कम है एवं अन्य कार्यों के साथ इसका कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है । वास्तविकता बिल्कुल इसके विपरीत है यह तो प्रबन्ध के कार्यों से अभिन्न रूप से जुड़ा है । वास्तव में प्रबन्ध के सभी कार्यों की सफलता प्रभावपूर्ण नियन्त्रण पर ही निर्भर करती है ।

नियन्त्रण का अन्य प्रबन्धकीय कार्यों से सम्बन्ध निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है:

(i) नियन्त्रण एवं नियोजन में सम्बन्ध (Relationship between Control and Planning):

नियन्त्रण के अन्तर्गत हम वास्तविक कार्यों की प्रगति की तुलना निर्धारित प्रमापों से करके विचलनों (Deviation) का पता लगाते हैं एवं महत्वपूर्व विचलने । में सुधार के लिए आवश्यक कार्यवाही करते हैं । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नियन्त्रण का आधार प्रमाप है और प्रमापी का निर्धारण नियोजन के अन्तर्गत ही किया जाता है ।

दूसरी ओर यह कहा जाता है कि नियोजन की सफलता नियन्त्रण पर आधारित है । नियोजन करने का कोई लाभ तय तक प्राप्त नहीं हो पाता जब तक कि वास्तविक कार्य की प्रगति की तुलना प्रमापी से करके कमिर्यों की न सुधारा जाए । निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि नियोजन के बिना नियन्त्रण एवं नियन्त्रण के बिना नियोजन अधूरे हैं ।

(ii) नियन्त्रण एवं संगठन में सम्बन्ध (Relationship between Control and Organisation):

यह बात ठीक है कि नियन्त्रण की सफलता मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करती है:

(a) विचलनों के कारणों एवं उनके लिए उत्तरदायी व्यक्तियों का पता लगाना;

(b) सुधारात्मक कार्यवाही करना । यह संगठन से मालूम होता है कि किस काम के लिए कौन व्यक्ति जिम्मेदार था एवं उसके अधिकार व कर्त्तव्य क्या थे ? स्पष्ट संगठन के अभाव में न तो गलती करने वाले व्यक्ति की ही पहचान हो सकती है और न ही उसके विरुद्धकोई कार्यवाही ही की जा सकती है ।

परिणामत: संस्था में कार्य गलत होते चले जाते है और उद्देश्यों को प्राप्त करना लगभग असम्भव-सा होता चला जाता है । अत: प्रभावी नियन्त्रण के लिए प्रभावी संगठन का होना अनिवार्य है । इस प्रकार हम कह सकते है कि नियन्त्रण और संगठन दोनों एक-दूसरे के अभाव में अधूरे हैं ।

(iii) नियन्त्रण एवं निर्देशन में सम्बन्ध (Relationship between Control and Direction):

निर्देशन वास्तविक प्रगति को नियन्त्रण की समीक्षा से पहले ही निर्देशन दिशाओं में कायम के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की कठिनाइयों एवं समस्याओं को दूर करता संगठन है । निर्देशन कर्मचारियों को और अधिक समर्थ व उत्साहित बनाने का प्रयास करता है । इसके साथ-साथ वह उनका मार्ग-दर्शन, प्रशिक्षण वह पर्यवेक्षण करता । इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि निर्देशन और नियन्त्रण भी आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा एक-दूसरे के अभाव में अधूरे हैं ।

(iv) नियन्त्रण का प्रबन्ध के अन्य कार्यों से सम्बन्ध (Relationship of Control with other Functions of Management):

नियन्त्रण का नियोजन, संगठन, निर्दशन के अलावा अन्य से भी गहरा सम्बन्ध है । सन्देश वाहन वास्तविक प्रगति सम्बन्धी तुलना को सम्भव बनाता है । अभिप्रेरण के द्वारा व्यक्तियों को उद्देश्य प्राप्ति की और प्रोत्साहित किया जाता है । उन्हें कार्य पर बनाए रखकर अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान की जाती है ।

निर्णयन द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि विचलन, को किस तरह से दूर किया जाए एवं सुधारात्मक कार्यवाही को किस तरह अन्नाम दिया जाए । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रस्थ्य के ये सब कार्य एक-दूसरे पर निर्भर है तथा एक-दूसरे के अभाव में अधूरे हैं ।

नियन्त्रण के प्रबन्धकीय कार्यों का, एक-दूसरे से सम्बन्ध को, दर्शाये गये चित्र द्वारा भी दर्शाया जा सकता है ।

उपरोक्त चित्र से स्पष्ट है कि नियन्त्रण का अन्य प्रबन्धकीय कार्यों से गहरा सम्बन्ध है कि इनके बारे में अलग-अलग सोचना भी मुश्किल है । प्रबन्ध का प्रत्येक कार्य नियन्त्रण को प्रभावित करना है एवं उसके द्वारा प्रभावित्न तोता है तथा एक-दूसरे के अभाव में अधूरा लगता है ।


Essay # 8. नियन्त्रण की सीमाएँ अथवा नियन्त्रण की कठिनाइयाँ (Limitations of Control or Difficulties in Control):

नियन्त्रण की प्रमुख सीमाएं निम्नलिखित है:

(i) बाह्य घटकों पर नियन्त्रण सम्भव नहीं (Control Cannot be Exercised over External Factors):

नियन्त्रण केवल संस्था के आन्तरिक घटकों पर ही किया जा सकता है, बाह्य घटकों पर नहीं बाह्य धटक जैसे सरकारी नीति बाजार की परिस्थितियां, मांग-पूर्ति आदि पर नियन्त्रण करना सम्भव नहीं होता है । बाह्य घटकों पर नियन्त्रण करना प्रबन्धकी के वश से बाहर होता है ।

(ii) प्रमापों का निर्धारण आसान नहीं (No Satisfactory Standards can be Established):

कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनके सन्तोषजनक प्रमाप निर्धारित करना अत्यन्त कठिन होता है । जैसे कर्मचारियों की निष्ठ, ईमानदारी व कौशल आदि के प्रमाप निर्धारित करना दुष्कर कार्य है इसलिए वास्तविक नियन्त्रण में बाधा पैदा होती है ।

(iii) उत्तरदायित्वों का निर्धारण कठिन (Difficult to Fix Responsibility):

कई बार उत्तरदायित्व का निर्धारण करना भी कठिन होता है । कई त्रुटियाँ होती ऐसी हैं जिनके लिए किसी एक व्यक्ति अथवा एक समूह को उत्तरदायी नहीं कराया जा सकता है । यह सत्य है कि नियन्त्रण प्रक्रिया में अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का भारार्पण किया जाता है ।

(iv) अधीनस्थों द्वारा विरोध (Opposition by Sub-Ordinates):

नियन्त्रण जब कर्मचारियों के कार्यों तथा विचारों में हस्तक्षेप करता है तब वे इसका अत्यन्त विरोध करते है ।

(v) समय व व्यय की अपर्याप्तता (Inadequacy of Time and Expenses):

एक विस्तृत नियन्त्रण प्रणाली लागू करना छोटे व्यवसायों के लिए कठिन होता है क्योंकि वे उसका व्यय भार सहन करने में असमर्थ होते हैं । साथ ही, नियन्त्रण प्रक्रिया में लगने वाला समय भी उनके विस्तार में बाधक होता है ।

(vi) सुधारात्मक कार्यवाही करना सम्भव नहीं (Difficulty in Taking Corrective Action):

कई बार विचलन ज्ञात हो जाते हैं लेकिन संगठन-संरचना ऐसी होती है कि सुधारात्मक कार्यवाही को लागू करना सम्भव नहीं होता ।

उपरोक्त सीमाएँ केवल सैद्धान्तिक हैं । व्यवहार में “नियन्त्रण” एक महत्वपूर्ण प्रबन्धकीय कार्य है, जो योजनाओं के अनुसार कार्य के निष्पादन को सम्भव बनाता है ।


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