Here is an essay on ‘Collective Bargaining’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Collective Bargaining’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Collective Bargaining


Essay Contents:

  1. सामूहिक सौदेबाजी की परिभाषाएँ (Definitions of Collective Bargaining)
  2. सामूहिक सौदेबाजी के सिद्धान्त (Principles of Collective Bargaining)
  3. सामूहिक सौदेबाजी की आवश्यकता (Needs of Collective Bargaining)
  4. सामूहिक सौदेबाजी ठहराव की विषय-सामग्री एवं क्षेत्र (Content and Coverage of a Collective Bargaining Agreement)
  5. विभिन स्तरों पर सामूहिक सौदेबाजी समझौते (Collective Bargaining Agreement at Different Levels)


Essay # 1. सामूहिक सौदेबाजी की परिभाषाएँ (Definitions of Collective Bargaining):

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सामूहिक सौदेबाजी का अर्थ निम्नलिखित परिभाषाओं से स्पष्ट होता है:

डेल योडर (Dale Yoder) के अनुसार:

“सामूहिक सौदेबाजी का प्रयोग उस स्थिति में होता है, जिसमें रोजगार की आवश्यक शर्तो का निर्धारण एक ओर श्रमिक के एक समूह के प्रतिनिधियों तथा दूसरी और एक या अधिक नियोक्ताओं के प्रतिनिधि/प्रतिनिधियों के द्वारा सौदेबाजी की विधि से किया जाता है ।”

एडविन बी.फिलिणो (E.B. Flippo) के अनुसार:

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”सामूहिक सौदेबाजी वह विधि है, जिसमें एक श्रमिक संगठन के प्रतिनिधि तथा व्यापार संगठन के प्रतिनिधि मिलते हैं, और एक अनुबन्ध या समझौता करने का प्रयास करते हैं, जिसमें श्रमिकों एवं नियोक्ता संघ के सम्बन्धों की प्रकृति को स्पष्ट किया जाता है ।”

एम.बी.कमिंग (M.B. Cuming) के अनुसार:

”सामूहिक सौदेबाजी का सम्बन्ध उन व्यवस्थाओं से है, जिनके अन्तर्गत सामान्य रूप से रोजगार की शर्तों मजदूरी का निर्धारण नियोक्ता तथा श्रमिक संगठनों के बचे हुए समझौते से होता है ।”

एन्साइक्लोपीडिया सामाजिक विज्ञान (Encyclopaedia of Social Science) के अनुसार:

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”सामूहिक सौदेबाजी दो पक्षकारों के बीच वाद-विवाद तथा विचारों के ‘आदानप्रदान’ की एक प्रणाली है, जो एक या दोनों पक्षों के व्यापारियों के समूह के बीच हो सकती है । यह विचार-विमर्श का निर्णय श्रमिकों की काम की दशाओं तथा नियोजन सम्बन्धी समझौते का रूप लेता है । अधिक स्पष्ट रूप में सामूहिक सौदेबाजी वह कार्यविधि है, जिसमें एक नियोक्ता या बहुत से नियोक्ता और नियोक्ताओं का समूह श्रमिकों की काम की दशाओं से सम्बन्धित कोई समझौता करते हैं ।”

नेशनल एसोसिएशन ऑफ मैन्यूफैक्चर्स (National Association of the Manufacturers) के अनुसार:

“सामूहिक सौदेबाजी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्रबन्धक तथा श्रमिक एक-दूसरे की समस्याओं के बारे में जानकारी प्रान्त करते हैं, तथा रोजगार सम्बन्धों की रूप रेखा तैयार करते हैं । दोनों पक्ष परस्पर सहयोग प्रतिष्ठा एवं लाभ की दृष्टि से काम करते हैं ।”

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संक्षेप में, सामूहिक सौदेबाजी को सेवायोजकों तथा कर्मचारियों की यूनियन द्वारा प्रतिनिधित्व प्राप्त संगठित श्रमिकों द्वारा अपनाये गये समझौते तथा अन्य सम्बद्ध दबाव रणनीतियों (जैसे threats तथा couter-threats) की एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, ताकि सेवायोजक की शर्तें तय की जा सकें ।

दूसरे शब्दों में यह श्रमिकों तथा सेवायोजकों के संगठनों द्वारा सामूहिक तौर पर अपनाई गई एक तकनीक है, ताकि वे एक तृतीय पक्षकार की सहायता के साथ या सहायता के बिना अपने विद्यमान या भावी अन्तरों को हल कर सकें ।

दोनों पक्षकारों के लिए स्वीकार्य एक समझौते तथा पहुँचना इसका अन्तिम उद्देश्य है । यद्यपि उनमें से प्रत्येक pressure tactics तथा negotiations के माध्यम से एक-दूसरे पर अपनी अपनी शर्तों को थोपने का प्रयास कर सकते है ।

सामूहिक सौदेबाजी की विचारधारा से निम्न महत्वपूर्ण तथ्य उभरते हैं:

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(i) यह व्यक्तिगत आधार के एकदम अलग सामूहिक तौर पर की जाती है । इस प्रकार सामूहिक सौदेबाजी लोगों के समूहों द्वारा सौदेबाजी होती है ।

(ii) सौदेबाजी की प्रक्रिया में, सेवायोजक तथा उनके संघ मुख्य अभिनेता होते हैं ।

(iii) सामूहिक सौदेबाजी का उद्देश्य Rule-Making अर्थात् रोजगार सम्बन्धों के सन्दर्भ में नियमों को निर्दिष्ट करके एक समझौते पर पहुँचना है ।

(iv) इन नियमों का मुख्य संकेन्द्रण रोजगार की शर्तों पर होता है ।

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(v) सामूहिक सौदेबाजी कर्मचारियों तथा प्रबन्ध के बीच, एक ठहराव तथा पहुँचने के इरादे से, एक “सभ्य द्विप क्षीय टकराव” (Civilised Bipartite Confrontation) है, जिसका उद्देश्य Warfare न होकर Compromise का रहता है ।

(vi) यह अपने हितों के सैरक्षण के लिए मजदूरी कमाने वालों द्वारा प्रयुक्त एक तंत्र तथा प्रक्रिया (Device and Procedure) दोनों ही हैं । वस्तुत: यह दो

पक्षकारों के बीच विचार-विमर्श तथा समझौतों के लिए एक औद्योगिक संगठन का एक तंत्र या संस्थान (An Institution or Instrument) होता है ।

(vii) यह एक तकनीक (Technique) है, जिसके द्वारा श्रमिकों तथा सेवायोजकों के उद्देश्यों तथा आवश्यकताओं के समाधान का प्रयास किया जाता है, तथा यह औद्योगिक समाज का अभिन्न अंग है ।

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(viii) सामूहिक सौदेबाजी का सारतत्व विवाद के दोनों पक्षकारों की एक समझौते तक पहुँचने या पारस्परिक तौर पर संतोषजनक ठहरावों तक पहुँचने की तत्परता में निहित है । यह इसमें शामिल लोगों के मनोभावों के बारे में और साथ ही उनके हितों के तर्क के साथ सम्बन्धित होता है ।


Essay # 2. सामूहिक सौदेबाजी के सिद्धान्त (Principles of Collective Bargaining):

Arnold F. Campo ने सामूहिक सौदेबाजी के कुछ सामान्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है,

जो निम्नलिखित हैं:

यूनियन तथा प्रबन्ध के लिए (For Union and Management):

(1) सामूहिक सौदेबाजी को एक शेक्षणिक तथा साथ ही एक सौदेबाजी प्रक्रिया बनाई जानी चाहिये । इसको ट्रेड यूनियन के नेताओं को कर्मचारियों की इच्छाओं अपेक्षाओं तथा शिकायतों व रुझानों को प्रबन्ध के सामने पेश करने का एक अवसर प्रदान करना चाहिए तथा प्रबन्धक के लिए यह सम्भव बनाना चाहिए कि यूनियन के नेताओं द्वारा उनके माध्यम से उन आर्थिक समस्याओं को कर्मचारियों को समझा सकें जो उनके सामने हैं ।

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(2) प्रबन्ध तथा ट्रेड यूनियन की सामूहिक सौदेबाजी को सर्वाधिक सम्भव समाधान के माध्यम के रूप में देखना चाहिये, तथा न कि एक ऐसे साधन के तौर पर कि जो जितना ले सके लूट ले जबकि न्यूनतम झुका जाये । समर्पण के स्थान पर समस्या के समाधान पर ईमानदार प्रयास किया जाना चाहिए ।

(3) विवाद के दोनों ही पक्षकारों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए तथा उनमें इतनी सौदेबाजी शक्ति होनी चाहिए कि एक ऐसे ठहराव की शर्तों को लागू कर सकें जिस पर वे पहुँच सके हैं ।

(4) उनमें सामूहिक सौदेबाजी को व्यवहार में सक्षम बनाने के लिए पारस्परिक भरोसा, सद्‌भावना तथा इच्छा होनी चाहिए ।

(5) एक ईमानदार योग्य तथा उत्तरदायी नेतृत्व होना चाहिए क्योंकि केवल इसी प्रकार का नेतृत्व सामूहिक सौदेबाजी को प्रभावी तथा सार्थक बना सकता है ।

(6) दोनों ही पक्षकारों को सभी राष्ट्रीय तथा राजकीय कानूनों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए जो भी सामूहिक सौदेबाजी पर लागू होते हैं ।

(7) दोनों ही पक्षकारों को ध्यान में रखना चाहिए कि सामूहिक सौदेबाजी एक दृष्टि से मूल्य निर्धारण का एक स्वरूप है, तथा कोई भी सफल सामूहिक सौदेबाजी अन्तिम समीक्षा में इस बात पर निर्भर करती है, कि क्या प्रबन्ध तथा ट्रेड यूनियन यह सुनिश्चित करने का एक अच्छा काम करते हैं, कि श्रम का मूल्य अन्य मूल्यों के प्रति उचित तौर पर समायोजित किया जाता है ।

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प्रबन्ध के लिए (For the Management):

(1) प्रबन्ध को सतत् तौर पर करते हुए उसका एक वस्तुनिष्ठ श्रम नीति विकसित अनुगमन करना चाहिए जो उसके सभी प्रतिनिधियों द्वारा स्वीकृत तथा क्रियान्वित की जानी चाहिए ।

(2) यह सुनिश्चित करने के लिए ट्रेड यूनियन अनुभव करती है, कि उनकी संगठन या कारखाने में स्थिति सुरक्षित है, प्रबन्ध को बिना किसी मर्यादा के उसको मान्यता प्रदान करनी चाहिए तथा उसको संगठन तथा उद्योग में एक रचनात्मक शक्ति के रूप में स्वीकार करना चाहिए ।

(3) प्रबन्ध को यह नहीं मानना चाहिए कि कर्मचारी की ख्याति सदैव ही उसके लिए है । उसको सामाजिक तौर पर नियमों तथा नियम-विधानों का परीक्षण करना चाहिये जिससे श्रम शक्ति संचालित होती है । इस तरीके से वह कर्मचारियों के रुझानों के निर्धारण में समर्थ होगा, उनके आराम को सुनिश्चित करेगा तथा उनकी ख्याति तथा सहयोग प्राप्त कर सकेगा ।

(4) प्रबन्ध को इस मान्यता पर काम करना चाहिए कि ट्रेड यूनियन को एक उत्तरदायी तथा परम्परावादी सस्था बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके साथ उचित व्यवहार किया जाये । साथ ही उसको ट्रेड यूनियन तथा उसके प्रतिनिधियों के साथ ऐसे संतोषजनक सम्बन्धों को स्थापित करना चाहिए कि वे कुछ भी ऐसा हल्के-फुल्के तौर पर न करें जो इस सम्बन्ध को गड़बड़ाने में सक्षम हो ।

(5) प्रबन्ध को उसकी जानकारी में कर्मचारियों की शिकायतों को लाने के लिए ट्रेड यूनियन की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये, वरन् ऐसी परिस्थितियों का सृजन करना चाहिये जिसमें ट्रेड यूनियन ऐसा नहीं करेंगे तथा कर्मचारियों की शिकायतों को हल कर लेना चाहिए इससे पहले कि ट्रेड यूनियन उनको प्रबन्ध की जानकारी में लायें ।

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(6) प्रबन्ध को संगठन में केवल एक ही ट्रेड यूनियन से व्यवहार करना चाहिए । यदि दो ट्रेड यूनियन मान्यता माँग रही हैं, तो तब तक कोई भी विचार विनिमय नहीं किया जाना चाहिए जब तक उनमें से एक उसके संगठन में कर्मचारियों की सदस्यता का बहुमत पाने का तथ्य स्थापित न करे ।

सामूहिक सौदेबाजी के आर्थिक पण्घिमों का मूल्यांकन करते हुए प्रबन्धक को सामाजिक विचारों पर ध्यान देना चाहिए ।

ट्रेड यूनियन के लिए (For the Trade Union):

(1) स्वीकृत अधिकारों को देखते हुए संगठित श्रम के लिए आवश्यक है, कि ट्रेड यूनियनों को अपने-अपने संगठनों के भीतर Recketeering तथा अन्य अप्रजातांत्रिक व्यवहारों का समापन कर देना चाहिए ।

(2) ट्रेड यूनियन के नेताओं को यह मानना चाहिए कि उसका एकमात्र कार्य अपने सदस्यों के लिए अधिक मजदूरी दिलाना तथा काम के कम घंटे एवं उनको अच्छी कार्य परिस्थितियाँ उपलब्ध करना है । वे तथा उनके सदस्यों का बर्बादी को रोकने तथा उत्पादन की मात्रा एवं गुणवत्ता सुधारने में प्रबन्ध की सहायता का भी दायित्व बनता है ।

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(3) ट्रेड यूनियन के नेताओं को सामूहिक सौदेबाजी के आर्थिक प्रभावों को समझना चाहिए क्योंकि उनकी माँगों को सामान्यत: संस्था की आय तथा लाभों से ही तो पूरा किया जायेगा जिसमें उनके सदस्य सेवारत हैं ।

(4) ट्रेड यूनियन के नेताओं को ऐसे प्रतिबाधक नियमों तथा नियम-विधानों के निराकरण में सहायता करनी चाहिए जो लागत तथा मूल्य बढ़ा सकते है, उस राशि को घटा सकते हैं, जो मजदूरी के रूप में चुकाई जाती है, तथा नीचे रोजगार की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं, तथा दीर्घकाल में समाज के सभी वर्गों के रहन-सहन स्तर को गिरा सकते है ।

(5) ट्रेड यूनियनों को हड़ताल का सहारा केवल तभी लेना चाहिए जब विवाद के निपटान की अन्य सभी विधियाँ संतोषजनक परिणाम लाने में असफल हो जायें ।


Essay # 3. सामूहिक सौदेबाजी की आवश्यकता (Needs of Collective Bargaining):

सामूहिक सौदेबाजी की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है:

(1) सेवायोजकों को श्रमिकों से अपेक्षित सहयोग प्राप्त करने के लिए तथा श्रम तथा पूँजी के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करने के लिए इस प्रणाली की आवश्यकता होती है ।

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(2) शोषण के विरुद्ध मुक्ति पाने के लिए सामूहिक सौदेबाजी की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक श्रमिक व्यक्तिगत रूप से सेवायोजकों का सामना नहीं कर सकता है ।

(3) समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक विचार-विमर्श आवश्यक है ।

(4) सेवायोजकों के स्वतन्त्र निर्णयों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए यह प्रणाली आवश्यक है ।

(5) श्रम संघों के अस्तित्व के लिए भी सामूहिक सौदेबाजी आवश्यक है ।

(6) औद्योगिक वातावरण शान्तिपूर्ण बनाये रखने के लिए सामूहिक सौदेबाजी का होना अनिवार्य है ।


Essay # 4. सामूहिक सौदेबाजी ठहराव की विषय-सामग्री एवं क्षेत्र (Content and Coverage of a Collective Bargaining Agreement):

इस बात का कोई प्रमापित विशिष्टीकरण नहीं है, कि अनुबन्ध में क्या शामिल किया जाये तथा क्या शामिल न किया जाये । यद्यपि कुछ बातें बहुधा सामूहिक सौदेबाजी में शामिल न करने तथा विचारार्थ तथा प्रबन्ध के निपटान हेतु बनाये रखने की बात कही जाती है ।

टेलर कहते हैं:

”स्वतंत्र सामूहिक सौदेबाजी का सारतत्व है, सम्बन्धों का क्षेत्र समझौता वार्ता की प्रक्रियाएँ तथा संयुक्त व्यवहार, एवं रोजगार की सम्मुष्ट शर्तें सभी ऐसे निजी विषय हैं, जिन पर सरकारी हस्तक्षेप या निर्देशों के बिना प्रबन्ध तथा यूनियन द्वारा काम किया जाता है ।”

हाल के वर्षों में सामूहिक सौदेबाजी का क्षेत्र व्यापक तौर पर बढ़ा है, तथा इसमें अनेक नये विषय जुड़े हैं । रेण्डेल कहते हैं, ”सामूहिक सौदेबाजी के क्षेत्र में विस्तार विभिन्न घटकों के कारण हुआ है ।”

जिनको उन्होंने बताया उनमें प्रमुख हैं:

(1) यूनियनों की बढ़ती ताकत जिसने प्रबन्ध पर दबाव बनाया है, कि ठहराव में नये-नये विषयों को सम्मिलित किया जाए;

(2) बढ़े हुए लाभों ने कर्मचारियों की माँगों के प्रति एक अनुकूल प्रत्युत्तर को जन्म दिया है;

(3) बढ़े हुए मूल्यों के साथ बढ़े हुए उत्पादन ने सामूहिक सौदेबाजी हेतु विषयों में विस्तार के प्रति योगदान किया है; तथा

(4) न्यायालयों के निर्णयों तथा वैधानिक अधिनियमों में स्पष्ट होते उदार तथा सहानु भूतिपूर्ण व्यवहार एवं रुझान ने भी इसकी वृद्धि का पक्ष लिया है ।

अनुबन्ध में शामिल किये जाने वाले विषय सामान्यत दोनों पक्षकारों की सौदेबाजी सम्बन्धों की परिपक्वता पर निर्भर करते हैं । जैसे-जैसे सौदेबाजी सम्बन्ध परिपक्व होते हैं, तथा दोनों पक्षकार पारस्परिक विश्वास तथा भरोसे में आगे बढ़ते हैं, ठहराव शान्तिपूर्ण तरीके से रोजमर्रा के विवादों के निपटान के एक ढाँचे के रूप में काम करता है ।

जब नये अनुबन्धों पर वाताएँ होती हैं तो सामूहिक सौदेबाजी में नये-नये अतिरिक्त विषयों को लाया जाता है ।

Contract Provisions को चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- Union Security, Worker Security, Economic Factor तथा Management Protection.

अनुबन्ध के प्रथम प्रखण्ड में अनुबन्ध के पक्षकारों के नाम होते हैं, जो यूनियन को कर्मचारियों के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देते हैं । सामान्यत: यूनियन का एकमात्र प्रतिनिाइ ध्ग्त्व होता है । फिर इसमें एक Union Security Clause होता है, जो बताता है वह मात्रा जहाँ तक अनुबन्ध अपनी सदस्यता बनाये रखने में यूनियन को सरक्षण देता है ।

Union Security Clause एक ओर मात्र मान्यता से दूसरे सिरे पर ‘closed shop’ तक जा सकता है । अनेक अनुबन्धों में एक ‘check-off clause’ के भी शामिल किया जाता है, जो सेवायोजक से अपेक्षा करता है, कि कर्मचारी के वेतन से यूनियन की देय राशि काट लें तथा उसे सीधे ही यूनियन को भेज दें ।

Worker Security Clause वरिष्ठता सैरक्षण की व्यवस्था करता है, जो पदोन्नति, कार्य प्रभारण तथा छँटनी, आदि का समावेश करता है । Economics Items में मजदूरी तथा अन्य अनुलाभ शामिल होते हैं ।

अनुबन्ध में बहुधा ऐसे वाक्यांश होते हैं, जो प्रबन्ध को विवेक प्रदान करते हैं (Prerogatives) अर्थात् यूनियन के साथ पहले वार्ता किये बिना निर्णय लेने का अधिकार । प्रबन्ध अपने विवेक वाले क्षेत्र में एकपक्षीय अधिसत्ता लागू करता है, तथा अन्य निर्णय यूनियन के साथ संयुक्त तौर पर लिये जाते हैं ।

कुछ मामलों में, प्रावधान बताते है कि सभी बातें जो अनुबन्ध में नहीं आयी हैं, प्रबन्ध की अधिसत्ता के लिए आरक्षित हैं । अन्य मामलों में प्रावधान उन क्षेत्रों को स्पष्ट करते हैं, जिनमें प्रबन्ध द्वारा यूनियन से पूर्व वार्ता किये बिना निर्णय लिये जा सकते हैं ।

उदाहरण के लिए, निम्न को विशिष्टता: आरीक्षत किया जा सकता है:

(i) कर्मचारियों की संख्या;

(ii) उत्पादित की जाने वाली वस्तु की प्रकृति;

(iii) लाभांश नीति;

(iv) अंतिम उत्पाद का मूल्य;

(v) नये संयंत्रों की स्थापना;

(vi) लेखांकन तथा वित्तीय तकनीकें, आदि ।

प्रबन्ध अन्य क्षेत्रों में कार्यवाही शुरू कर सकता है, लेकिन अनुबन्ध यूनियन को अपनी शिकायत फाइल कराने का अधिकार देता है, यदि यह विश्वास करे कि कार्यवाही अनुचित है ।

ऐसे कुछ क्षेत्र जिसमें इस तरीके से विवेक (Prerogatives) लागू किये जाते हैं:

(i) उत्पादन का कार्यक्रम;

(ii) नई उत्पादकीय विधियों का निर्धारण;

(iii) नये पदों के लिए वेतनमानों का निर्धारण;

अंतत: यूनियन-प्रबन्ध सम्बन्धों की प्रक्रियाओं का नियंत्रण करने वाला वाक्यांश तथा परिहार प्रक्रिया (Grievance Procedure) इसमें शामिल होती है । यद्यपि ऐसा सदा नहीं किया जाता, तथापि यह अच्छा रहता है, कि उसके एक वाक्यांश में ठहराव की अवधि (Duration of Agreement) को भी स्पष्ट कर दिया जाये ।

The National Institute of Personnel Management, Kolkata ने सुझाया है, कि सामूहिक ठहराव में निम्न तथ्यों को शामिल किया जाना चाहिए:

(i) समझौते का उद्देश्य, उसका क्षेत्र तथा महत्वपूर्ण मदों की परिभाषाएँ;

(ii) प्रबन्ध तथा ट्रेड यूनियन के अधिकार तथा उत्तरदायित्व;

(iii) मजदूरी, बोनस, उत्पादन मानदण्ड, छुट्टियाँ सेवानिवृत्ति लाभ तथा अन्य लाभ एवं सेवा की शर्तें;

(iv) शिकायत निदान प्रविधि (Grievance Redressal Procedure);

(v) भावी सम्भावित विविदों के निपटाने की विधियाँ तथा तत्र; एवं

(vi) सेवा समाप्ति वाक्यांश (A Termination Clause) ।

अन्य ठहरावों पर एक-एक दृष्टि बताती है, कि ठहरावों के अन्तर्गत आने वाले विषयों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:

(a) रोजगार तथा कार्यदशाएँ;

(b) श्रम कल्याण, श्रम भर्ती तथा प्रबन्धन विषय; तथा

(c) संगठनात्मक मुद्दे ।

पहले दो में मजदूरी, बोनस, महँगाई भत्ता, सेवा-निवृत्ति लाभ, काम के घंटे, अवकाश के साथ छुट्टियाँ, रियायती दर पर मदों की आपूर्ति जैसे भोजन, परिवहन, आवास आदि worker-interest oriented विषय शामिल होते हैं ।

अन्तिम श्रेणी में यूनियन मान्यता, एकाकी सौदेबाजी अधिकार, check-off योजनाएँ, प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी आदि union-interest oriented विषय शामिल होते हैं ।

इन श्रेणियों में स्पष्टत: हितों का कुछ टकराव शामिल हो सकते हैं, लकिन अन्तिम समीक्षा में यूनियन के लाभ श्रमिकों के लाभों को पुन: क्रियाशील कर सकते हैं । इस प्रकार ऐसे लाभ जो श्रमिक-स्वामीभक्ति सुनिश्चित करके current worker oriented माँगों को संतुष्ट करते हैं, यूनियन को मजबूत बना सकते हैं ।

उपर्युका विवरण से यह स्पष्ट है, कि सामूहिक सौदेबाजी समझौते, प्रशासन लिखित समझौतों की समीक्षा व उपयोग, (सेवायोजकों तथा ट्रेड यूनियनों के द्वारा प्रतिनिधित्व पा रहे कर्मचारियों के बीच) तथा उन नीतियों तथा प्रक्रियाओं को स्पष्ट करता है, जो मजदूरी वेतन की दरों काम के घण्टों तथा रोजगार की अन्य शर्तों के निर्धारण तथा गणना का संचालन करेगा ।

अमेरिका, इंग्लैण्ड, जर्मनी, इटली, नॉर्वे, स्वीडन तथा स्विट्‌जरलैण्ड में एक सामूहिक सौदेबाजी ठहराव की विषय-वस्तु स्वयं पक्षकारों द्वारा निर्धारित की जाती है । एक ठहराव बनाते समय यह तथ्य जो ध्यान में रखा जाना चाहिये होता है, कि सेवायोजन की शर्तें एक मानदण्ड विशेष से नीचे नहीं गिरती तथा वे इस उद्देश्य हेतु लागू किये गये वैधानिक प्रावधानों के साथ असंगत नहीं होतीं ।

कुछ लैटिन अमेरिकन देशों में उदाहरणार्थ, ब्राजील तथा कोलम्बिया में ठहरावों को अनिवार्यत: ऐसी मदों से निपटना चाहिए जैसे मजदूरी, काम के घंटे, आराम के क्षण, छुट्टियाँ, एक ठहराव की अवधि तथा उसके विस्तार हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया ।

सामूहिक सौदेबाजी ठहराव में अन्य मदों को भी शामिल किया जा सकता है, कि बशर्ते कि वे प्रचलित कानूनों के विपरीत न हों । कनाडा में इन ठहरावों में ऐसी प्रविधियों का समावेश होता है, जिनको विवादों के निपटान हेतु तथा शिकायतों के निदान हेतु अपनाया जाता है ।


Essay # 5. विभिन स्तरों पर सामूहिक सौदेबाजी समझौते (Collective Bargaining Agreement at Different Levels):

संयंत्र स्तर पर (At Plant Level):

संयंत्र स्तर पर एक सामूहिक सौदेबाजी समझौता केवल उसी संयन्त्र के लिए होता है, जिसके लिए इसको ड्राफ्ट किया जाता है, तथा इसका क्षेत्र तथा मात्रा केवल संयत्र विशेष तक ही सीमित रहती है । ठहराव सामान्यत: श्रम-प्रबन्ध सम्बन्धों के नियंत्रण के दृष्टिकोण से तथा धृणा एवं गलतफहमी के निराकरण हेतु आचरण के आम मानदण्डों की व्यवस्था करता है ।

इसमें ऐसे मुद्दों के तत्पर तथा आसान समाधान के लिए प्रावधानों का समावेश होता है, जिन पर दोनों पक्षकारों के बीच प्रत्यक्ष तथा तुरन्त समझौता वार्ता की आवश्यकता होती है । जब और ऐसे ही विवादास्पद मुद्दे उभरते हैं, या उनके भावी आचरण के लिए एक ढाँचे की व्यवस्था करता है ।

1955 से ही अनेक संयन्त्र स्तरीय ठहराव हो चुके हैं । इनमें शामिल हैं – The Bate Shoe Company Agreement (1955, 1958 तथा 1962), The Tata Iron & Steel Co. Agreement (1956 तथा 1959), The Modi Spining and Weaving Mills Company’s Agreement (1956), The National Newsprint Nepanagar Agreement (1956), The Belur Agreement (1956) जो एल्युमिनियम कम्पनी तथा उसके कर्मचारियों के बीच हुआ था ।

The Metal Corporation of India Agreement (1960 तथा 1961) | 1959 में Caltex India तथा उसके कर्मचारियों के बीच हुआ ठहराव; तथा Hind Mercantile Corporation तथा Chikangyakam, Hatti की मैंगनीज खानों के बीच श्रमिकों के बीच 1959 में समझौता हुआ था । Bhilai Steel Plant तथा उसके श्रमिकों के बीच 1968 में ठहराव हुआ था ।

Tata Iron and Steel Co. तथा उसके कर्मचारियों को यूनियन के बीच 1956 में जो ठहराव हुआ उसके मुख्य आकर्षण थे, “To establish and maintain orderly and cordial relations bet­ween the company and the union so as to promote the interests of the employ­ees and the efficient operation of the company’s business.”

उद्योग स्तर पर (At the National Level):

एक उद्योग स्तरीय ठहराव का सर्वोत्तम उदाहरण बम्बई तथा अहमदाबाद के वस्त्र उद्योग द्वारा दिया जाता है । Ahmedabad Mill Owner’s Association तथा Ahmedabad Textile Labour Association के बीच ठहराव जिस पर 27 जून, 1955 को हस्ताक्षर किये गये औद्योगिक विवादों के स्वैच्छिक निपटान तथा बोनस देने के लिए अपनाई जाने वाली प्रविधि का वर्णन करता था ।

राष्ट्रीय स्तर पर (At the National Level):

राष्ट्रीय स्तर पर ठहराव सामान्यत: द्विपक्षीय समझौते रहे हैं, तथा उनको भारत सरकार द्वारा आयोजित प्रबन्ध तथा श्रमिकों की गोष्ठियों में अन्तिम रूप दिया गया । 7 फरवरी, 1951 का Delhi Agreement तथा जनवरी 1956 का Bonus Agreement for Plantations Workers द्विपक्षीय समझौतों के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं ।

दिल्ली ठहराव श्रम तथ प्रबन्धकों के प्रतिनिधियों की गोष्ठी में हुआ था तथा यह विवेकीकरण (Rationalisation) तथा सहायक विषयों से सम्बन्धित था । The Bonus Agreement for Plantations Workers को जनवरी 1956 में Indian Trade Association तथा India Tea planters Association की ओर से तथा दूसरी ओर Hind Mazdoor Sabha एवं INTUC के द्वारा किया गया था जो लगभग दस लाख बागवानी श्रमिकों को बोनस भुगतान के बारे में था ।


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