Here is an essay on ‘Functional Organisation’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Functional Organisation’ especially written for college and management students.

Essay # 1. क्रियात्मक संगठन का अर्थ (Meaning of Functional Organisation):

संगठन के इस प्रारूप का प्रतिपादन फ्रेडरिक डब्ल्यू॰ टेलर (Fredric W.Taylor) ने किया । इस संगठन को “क्रियात्मक फोरमैनशिप” भी कहते हैं । रेखा एवं कर्मचारी संगठन में स्टॉफ का काम केवल परामर्श देना होता है परन्तु संगठन के इस प्रारूप में “स्टॉफ” रेखा-अधिकारी को केवल परामर्श ही नहीं देते बल्कि उनके अधीनस्थ कर्मचारियों को प्रत्यक्ष रूप से आदेश व निर्देश भी देते हैं ।

इस प्रकार क्रियात्मक संगठन में “स्टॉफ” (विशेषज्ञों) की योग्यता का पूरा लाभ उठया जाता है । इस संगठन में कार्य को छोटे-छोटे कार्यों में विभाजित करके उस काम के विशेषज्ञ को सौंप दिया जाता है । इस प्रकार विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त किए जाते हैं । इस गठन में अधिकारियों को विभागों की बजाय कार्यों के आधार पर बाँटा जाता है ।

एफ. डब्ल्यू. टेलर के अनुसार- “क्रियात्मक संगठन में प्रबन्ध के कार्यों को इस प्रकार विभाजित किया जाता है जिससे सहायक अधीक्षक से लेकर नीचे तक के व्यक्तियों को इतने कम कार्य दिए जाएं जितने वे आसानी से पूरा कर सकें । यदि व्यावहारिक हो तो प्रबन्ध के प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही महत्वपूर्ण कार्य दिया जाना चाहिए ।”

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टेलर ने कारखाने के प्रत्येक विभाग (Shop) में प्रबन्ध के कार्य को दो भागों में बाँटा:

(i) योजना विभाग;

(ii) कार्यकारी विभाग ।

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टेलर ने चार फोरमैन योजना विभाग में तथा चार फोरमैन कार्यकारी विभाग में नियुक्त करने पर जोर दिया । योजना विभाग में काम करने वाले फोरमैन नियोजन का काम करते हैं तथा कार्यकारी विभाग में काम करने वाले फोरमैन उत्पादन कराते हैं । ये फोरमैन अपने कार्य के विशेषज्ञ प्रबन्धक होते हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर टेलर ने 8 नायकों या विशेषज्ञों की नियुक्ति का सुझाव दिया ।

ये अधिकारी अथवा बिशेषज्ञ निम्नलिखित हैं:

योजना विभाग के अधिकारी:

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(i) समय एवं लागत लिपिक (Time and Cost Clerk):

यह लिपिक श्रमिक द्वारा कार्य में लगाए गए समय का विवरण तथा काम पर खर्च होने वाली विभिन्न मदों में राशि से सम्बन्धित लेखे तैयार करता है ।

(ii) कार्यक्रम लिपिक (Routine Clerk):

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यह लिपिक दैनिक कार्यक्रम की योजना तैयार करता है । यह कार्यों की सूची तैयार करता है तथा किस क्रम में किस व्यक्ति और यन्त्र से काम लिया जाना है, इसका निर्धारण भी करता है ।

(iii) संकेत कार्ड लिपिक (Instruction Card Clerk):

यह लिपिक श्रमिकों के लिए संकेत कार्ड तैयार करता है । इन कार्डों में कार्य की प्रकृति, कार्य को करने की विधि, उस कार्य में प्रयोग होने वाली सामग्री तथा यन्त्रों के प्रयोग के बारे में सूचनाएं दी जाती है तथा इन कार्डों को टोली नायकों को दे दिया जाता है ।

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(iv) अनुशासक (Shop Displinasian):

इसका कार्य कारखाने में पूर्ण अनुशासन बनाये रखना है ताकि काम योजना के अनुसार चले तथा उसमें किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न होने पाये । यह अनुशासक श्रम विवादों के समाधान मैं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

कार्यकारी विभाग अथवा कारखाना स्तर से सम्बन्धित अधिकरी:

(i) टोली नायक (Gang Boss):

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यह श्रमिकों के कार्य निश्चित करता है तथा आवश्यक सामग्री एवं यन्त्र आदि की व्यवस्था करता है । आवश्यकता पड़ने पर कभी-कभी यह श्रमिकों को कार्य करने की पद्धति का प्रदर्शन भी करता है ।

(ii) गति नायक (Speed Boss):

यह नायक श्रमिकों के कार्य करने की गति का अध्ययन करना है । इससे पता चलता है कि क्या श्रमिकों के कार्य करने की गति सन्तोषजनक है ? क्या वे प्रमाणित कार्य प्रमाणित समय में कर लेते हैं ?

(iii) जीर्णोद्धार नायक (Repair Boss):

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यह नायक देखता है कि श्रमिक अपनी मशीनों, यन्त्रों आदि को ठीक प्रकार से रखें । यह मशीनों की सफाई व तेल आदि की व्यवस्था करता है तथा इनकी टूट-फूट की मरम्मत भी करता है ।

(iv) निरीक्षक (Inspector):

यह निर्मित वस्तुओं की गुण व किस्म की जाँच निर्धारित प्रमाप से करता है तथा कमी होने पर नियन्त्रण की व्यवस्था करता है ।

Essay # 2. क्रियात्मक संगठन की विशेषताएं (Characteristics of Functional Organisation):

(i) इस संगठन की संरचना विशिष्टीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है अर्थात् इस संगम में कार्यों का विभाजन विशिष्टीकरण के आधार पर छोटी-बेटी उपक्रियाओं में किया जाता है ।

(ii) इस संगठन प्रारूप में विशेषज्ञों को रेखा प्रबन्धकों की स्थिति में रखा जाता है अर्थात् इस संगठन में विशेषज्ञ केवल परामर्श ही नहीं देते बल्कि कार्य निष्पादन में प्रत्यक्ष सहायता करते हैं ।

(iii) संगठन के इस प्रारूप में प्रत्येक कर्मचारी का कार्य-क्षेत्र सीमित होता है ।

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(iv) इस संगठन में नियोजन तथा क्रियान्वयन कार्यों को अलग कर दिया जाता है ।

(v) इस संगठन प्रारूप में अधिकारी तथा उत्तरदायित्वों का वितरण विभाग के आधार पर न होकर कार्यों के आधार पर होता है ।

(vi) इस संगठन में एक श्रमिक को किसी एक अधिकारी की अपेक्षा अनेक अधीक्षकों अथवा आठ नायकों से आदेश प्राप्त होते हैं अर्थात् इस संगठन में आदेश की अनेकता पाई जाती है ।

(vii) इसमें कार्य की विधि तथा कार्य सम्पन्न किए जाने वाले समय को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है ।

एफ.डब्ल्यू. टेलर ने क्रियात्मक संगठन को निम्नलिखित चित्र द्वारा अपनी पुस्तक में दर्शाया है:

Essay # 3. क्रियात्मक संगठन के लाभ (Advantages of Functional Organisation):

इस संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

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(i) कार्यक्षमता में वृद्धि:

यह प्रारूप विशेषज्ञों की सेवाओं का पूर्ण उपयोग करता है । श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के सिद्धान्तों पर यह संगठन संरचना पर आधारित होने से संस्था की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है । इस संगठन में कर्मचारियों व श्रमिकों को सीमित क्षेत्र में काम करना पड़ता है । अत: उनकी कार्यकुशलता बढ़ जाती है जिससे संस्था की कार्यक्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है ।

(ii) इस संगठन में मानसिक व शारीरिक कार्यों में अन्तर किया जाता है ।

(iii) इस संगठन-संरचना में संस्था के आकार के बढ़ाने के साथ-साथ अथवा विविधीकरण (Diversification) के साथ-साथ वांछित परिवर्तन करना आसान होता है परिवर्तनों का समायोजन समस्त ढाँचे को बिना बदले आसानी से किया जा सकता है । इस प्रकार यह प्रारूप अत्यन्त लोचदार (Flexible) होता है ।

(iv) इस संगठन में विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है जिससे संस्था में अनुसन्धान व शोध को प्रोत्साहन मिलता है ।

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(v) इस संगठन में क्रियाओं के प्रमापीकरण व विशिष्टीकरण होने के कारण बड़े पैमाने पर उत्पादन करना सम्भव होता है ।

(vi) संगठन की इस संरचना में अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का विभाजन अधिकतम सीमा तक किया जा सकता है ।

(vii) संचालन में मितव्ययिता (Economy in Operation):

कार्यों का विभाजन होने, नई तकनीकों के उपयोग करने तथा वैज्ञानिक विधियों के अपनाने से बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाना सरल बन जाता है । जब उत्पादन का पैमाना बड़ा हो जाएगा तो प्रति इकाई लागत में भी कमी आयेगी और संचालन में मितव्ययिता आयेगी ।

(viii) पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास (Development of Mutual Co-Operation):

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वैचारिक विषमता के अवसर नहीं मिलने से सभी कार्यरत कर्मचारियों में पारस्परिक भावना का विकास होता है । यह भावना आगे जाकर उपक्रम के लिए लाभदायक साबित हो सकती है ।

(ix) प्रतिस्पर्द्धात्मक शक्ति में सुधार (Improves Competitive Power):

उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में विशिष्टीकरण आने से प्रतिस्पर्द्धात्मक शक्ति में सुधार आता है । मात्रा, कीमत एवं किस्म की दृष्टि से एक छोटा उपक्रम भी वृहद् उद्योग के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त यह पद्धति प्रेरणात्मक है तथा इसमें कर्मचारियों के अधिकारों एवं दायित्वों का अधिकतम सीमा तक विभाजन किया जा सकता है, उससे उपक्रम की कुशलता बढ़ती है ।

Essay # 4. क्रियात्मक संगठन के दोष (Demerits of Functional Organisation):

इस संगठन के प्रमुख दोष निम्न हैं:

(i) समन्यय की समस्या (Problem of Co-Ordination):

कामों को अनेक विभागों तथा उप-विभागों में बाँट दिए जाने कारण उनकी क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने की समस्या सामने आती है । साथ ही विभागों की संख्या बढ़ते रहने से समन्वय कार्य उतना ही कठिन होता जाता है ।

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(ii) उत्तरदायित्व निश्चित करने में कठिनाई (Problem in Fixing Responsibility):

इस संरचना में आदेशों की अनेकता होने के कारण असन्तोषजनक कार्य के लिए किसी व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराना कठिन हो जाता है ।

(iii) अनुशासन का अभाव (Lack of Discipline):

इस प्रारूप में नियन्त्रण का विकेन्द्रीकरण होने तथा विशेषज्ञों के बीच आपसी मतभेद रहने के कारण कर्मचारियों तथा प्रबन्धकों में अनुशासन बनाए रखना कठिन कार्य है ।

(iv) कार्य एवं निर्णय लेने में देरी (Delay in Decision-Making and Work):

यह प्रारूप कागजी कार्यवाही को बढ़ाता है । छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी सूचनाएँ व आदेश जारी करने पड़ते हे जिससे कार्य में देरी होती है । दूसरे इस संगठन में शीघ्र निर्णय लिए जा सकते हैं क्योंकि ये निर्णय विशेषज्ञों द्वारा सामूहिक रूप से लिए जाने होते हैं इसलिए इनमें देरी होती है ।

(v) कार्य में नीरसता (Monotony in Work):

इस संगठन के प्रारम्भ में श्रमिक को कार्य का एक छोटा-सा हिस्सा करने को दिया जाता है जिसे वह बार-बार करते ऊब जाता है । अत: उसे अपने कार्य में नीरसता अनुभव होने लगती है ।

(vi) श्रमिकों की स्थिति दुविधापूर्ण:

इस संगठन में श्रमिकों के अनेक अधिकारी होते हैं, जैसे- इन्जीनियर, टाइमकीपर, उत्पादन प्रबन्धक, श्रम अधिकारी आदि । ऐसी स्थिति में श्रमिक किसके आदेश की पालना को प्राथमिकता दें, यह निश्चित करना कठिन होने से उनकी स्थिति दुविधापूर्ण हो जाती है ।

(vii) खर्चीली (Expensive):

इस पद्धति को लागू करने पर उपक्रम में अनेक प्रकार के विशेषज्ञों को रखा जाता है यह पद्धति छोटे-छोटे कारखानों के लिए खर्चीली है ।

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