Read this article in Hindi to learn about the process of employee motivation in a company.
अभिप्रेरण का अर्थ परिभाषा प्रकृति विशेषताओं महत्व तथा इसके विभिन्न सिद्धान्तों का विस्तार सहित अध्ययन करने के पश्चात् यह प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है कि प्रबन्ध अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को किस प्रकार अभिप्रेरित करते हैं ।
अभिप्रेरण प्रक्रिया एक निरन्तर चलने वाली चक्रीय प्रक्रिया है जिसका मूल उद्देश्य कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना, उसकी अभिप्रेरित भावना को कायम रखना और उसमें बढ़ोतरी करना होता है ।
इसके लिए प्रबन्धकों को क्रमानुसार कुछ कदम उठाने पड़ते हैं जिसे अभिप्रेरण प्रक्रिया कहते हैं । विभिन्न प्रबन्ध विशेषज्ञों ने अभिप्रेरण प्रक्रिया के भिन्न-भिन्न चरण बताए हैं ।
माइकल जे. जूसियस (Michael J. Jucius) ने अभिप्रेरणा प्रक्रिया के मुख्य रूप से चार चरणों को स्पष्ट किया है:
(i) अभिप्रेरणात्मक अवस्थाओं की जानकारी करना,
(ii) अभिप्रेरण के साधनों का समूहीकरण करना,
(iii) उचित अभिप्रेरण का चयन एवं उसका उपयोग करना और
(iv) अनुवर्तन ।
कीथ डेविस (Keith Davis) ने अभिप्रेरण प्रक्रिया का विस्तृत रूप से वर्णन किया है, उनके अनुसार अभिप्रेरण प्रक्रिया के निम्नलिखित सात चरण हैं:
(1) अभिप्रेरण के उद्देश्यों का निर्धारण (Determination of Objectives of Motivation):
अभिप्रेरण प्रक्रिया का यह प्रथम चरण है जिसमें अभिप्रेरण के उद्देश्यों को निर्धारित किया जाता है । उद्देश्यों के अभाव में अभिप्रेरण के स्तर का मूल्यांकन करना कठिन हो जाएगा, प्रबन्धक अभिप्रेरण के तौर तरीकों का कुशलतापूर्वक चयन नहीं कर पाएगा और वह इस बात से भी अनभिज्ञ रहेगा कि किस दिशा में अधीनस्थ कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना है । अत: प्रबन्धक को पहले से ही यह निश्चित कर लेना चाहिए कि उसे अभिप्रेरण किन्हें और किन कारणों से प्रदान करना है ।
(2) कर्मचारियों की भावना का अध्ययन (Study of the Feeling of Employees):
अभिप्रेरण के दूसरे चरण में कर्मचारियों की भावना का अध्ययन किया जाता है जिससे उनकी कार्य के प्रति मनोदशा ज्ञात हो सके । अत: कर्मचारियों को पूर्ण रूप से प्रेरित करने के लिए प्रबन्धक के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि वह कर्मचारियों की भावना का अध्ययन करें और उन्हें उचित रूप से समझने का प्रयत्न करें ।
(3) सम्प्रेषण व्यवस्था (Communication System):
अभिप्रेरण प्रक्रिया की जानकारी कर्मचारियों को दे देनी चाहिए जिसके लिए अच्छी सम्प्रेषण व्यवस्था आवश्यक है । यदि प्रबन्धक अपनी बात को उचित प्रकार से कर्मचारियों तक पहुँचाने में समर्थ रहता है, तो वह निश्चित रूप से अपने कर्मचारियों को उचित प्रकार से अभिप्रेरित करने में भी सफल रहेगा ।
(4) हितों का एकीकरण (Integration of Interests):
अभिप्रेरण प्रक्रिया के इस चरण में प्रबन्धकों को संगठन के उद्देश्यों और कर्मचारियों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए संस्था के उद्देश्यों का कर्मचारियों के व्यक्तिगत हितों के साथ इस प्रकार समायोजन करना होता है ताकि संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के साथ-ही-साथ कर्मचारियों को भी अधिकाधिक प्रेरणा मिल सके ।
(5) सहायक कार्य-दशाओं की व्यवस्था (Provision of Auxiliary Conditions):
कर्मचारियों को उत्प्रेरित करने के लिए आवश्यक है कि उनको कार्य करने की सहायक दशाएँ उपलब्ध कराई जाएँ । इस सम्बन्ध में कर्मचारियों का प्रशिक्षण, उत्तम उपकरण एवं अनुकूल वातावरण की स्थापना अत्यन्त आवश्यक है ।
(6) टीम-भावना (Team-Work):
अभिप्रेरण प्रक्रिया के इस चरण में कर्मचारियों में टीम या समूह भावना का विकास करना चाहिए, जिससे संस्था में कार्यरत सभी व्यक्तियों के कार्य एवं प्रयत्न संस्था के सम्पूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए केन्द्रीभूत हो सकें और वे व्यक्तिगत स्तर से ऊपर उठकर संस्था के हितों के लिए प्रयत्नशील हो सकें, क्योंकि संस्था के हित-संवर्द्धन में ही कर्मचारियों का हित निहित होता है ।
कीथ डेविस के द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरण के छ: चरणों के विवेचन के पश्चात्, एक और महत्वपूर्ण चरण जिसका प्रतिपादन माइकल जे. जूसियस ने किया है, यहाँ जोड़ना उचित समझा जाता है ।
जिसके कारण ‘अनुवर्तन’ सातवें चरण के रूप में निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है:
(7) अनुवर्तन (Follow Up):
अभिप्रेरण प्रक्रिया के अन्तिम चरण में, प्रबन्धक के लिए आवश्यक है वह अभिप्रेरण के पश्चात् समय-समय पर इस बात का मूल्यांकन करता रहे कि अभिप्रेरण की कौन सी विधि का किस सीमा तक प्रभाव हुआ है ।
ऐसा करने से वर्तमान की त्रुटियों को भविष्य के लिए समाप्त किया जा सकता है तथा अनावश्यक क्रियाओं का उन्मूलन भी किया जा सकता है । ऐसा करने से भविष्य में अभिप्रेरण के लिए मार्गदर्शन मिलता है ।