Read this article in Hindi to learn about the basic and incentive methods of wage payment.

श्रमिकों की मजदूरी भुगतान की अनेक प्रणालियाँ हैं । इन सबके अपने-अपने गुण व दोष हैं । अत: किसी एक प्रणाली को सर्वोत्तम नहीं कहा जा सकता और न ही किसी एक प्रणाली को सभी परिस्थितियों में अपनाया जा सकता है ।

किसी संस्था में कर्मचारियों को मजदूरी देने की प्रणालियों को निम्न दो वर्गों में विभाजित किया जाता है:

1. मूल प्रणालियाँ (Basic Methods),

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2. प्रेरणात्मक प्रणालियाँ (Incentive Methods) ।

1. मूल प्रणालियाँ (Basic Methods):

मजदूरी भुगतान की मूल प्रणालियाँ निम्न दो प्रकार की हैं:

(a) समयानुसार मजदूरी प्रणाली (Time Wage Methods/System),

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(b) कार्यानुसार मजदूरी प्रणाली (Piece Rate Wage Methods/System) ।

(a) समयानुसार मजदूरी या दैनिक मजदूरी प्रणाली (Time Wage or Daily Wage System):

मजदूरी भुगतान की यह सबसे प्राचीन, सरल एवं प्रचलित प्रणाली है । मजदूरी भुगतान की इस प्रणाली में मजदूरी का भुगतान समय के आधार पर किया जाता है । इस प्रणाली में श्रमिक की मजदूरी श्रमिकों द्वारा किए गए उत्पादन पर नहीं अपितु उसने कितने समय तक कार्य किया है, इस पर निर्भर करती है ।

समयानुसार मजदूरी की दर प्रति घंटा, प्रतिदिन, प्रति सप्ताह, प्रतिमाह अथवा प्रतिवर्ष हो सकती है । उदाहरण के लिए, किसी श्रमिक को रु 5 प्रति घंटा की मजदूरी पर नियुक्त किया जाता है और वह प्रतिदिन 8 घंटे काम करता है तो एक दिन की कुशल मजदूरी रुपये होगी ।

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इसको निकालने का सूत्र निम्न है:

उपयुक्तता (Suitability):

यद्यपि समयानुसार पद्धति कुशल तथा अकुशल दोनों के लिए ही लाभदायक नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ परिस्थितियों में इसकी उपयुक्तता अद्वितीय है ।

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ये परिस्थितियाँ हैं:

(i) जहाँ कार्य का मापन सम्भव नहीं है ।

(ii) जहाँ वस्तु गुण को प्राथमिकता दी जाती है ।

(iii) जहाँ श्रम-निरीक्षण या नियंत्रण सम्भव है, जैसे छोटे पैमाने का उत्पादन ।

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(iv) जहाँ श्रम अथवा उत्पादन में कोई सम्बन्ध न हो ।

(b) कार्यानुसार मजदूरी भुगतान प्रणाली (Piece Rate Wage System):

कार्यानुसार मजदूरी भुगतान प्रणाली में श्रमिक को मजदूरी उसके द्वारा किए गए कार्य के आधार पर दी जाती है । मजदूरी भुगतान की इस प्रणाली में जो श्रमिक जितना कार्य करता है उसे उतनी मजदूरी ही दी जाती है ।

इसमें समय का कोई महत्व नहीं होता । उदाहरण के लिए, एक श्रमिक को रु 25 प्रति कुर्सी बनाने के लिए रखा जाता है और वह एक सप्ताह में 15 कुर्सियाँ बनाता है तो उसकी साप्ताहिक मजदूरी 15 × 25 = 375 रुपये होगी ।

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इसका सूत्र निम्न है:

कार्यानुसार मजदूरी भुगतान करने की मुख्य पद्धतियाँ निम्न हैं:

(1) कार्यानुसार मजदूरी की समान दर (Straight Piece Rate):

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इस प्रणाली के अनुसार मजदूरी का प्रत्यक्ष सम्बन्ध उत्पादन से होता है । अर्थात् मजदूरी श्रमिक के द्वारा किये जाने वाले काम की मात्रा के बढ़ने के साथ बढ़ती है ।

उदाहरण के लिए यदि मजदूरी की दर रु 2 रुपये प्रति इकाई है । एक श्रमिक 20 वस्तुएँ बनाता है तो उसे रु 40 मिलेंगे और दूसरा श्रमिक 25 वस्तुएँ बनाता है तो उसे रु 50 मिलेंगे ।

(2) कार्यानुसार मजदूरी की बढ़ती दर (Increasing Piece Rate):

इस प्रणाली में उत्पादन की मात्रा के बढ़ने के साथ-साथ प्रति इकाई मजदूरी भी बढ़ती है । उदाहरण के लिए, 20 इकाइयों तक के उत्पादन के लिए प्रति रु 2 इकाई मजदूरी एवं 20 से अधिक इकाइयों के उत्पादन पर प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए रु 2.5 मजदूरी की दर से मजदूरी मिलेगी ।

(3) कार्यानुसार मजदूरी की घटती दर (Descreasing Piece Rate):

इस प्रणाली में श्रमिक द्वारा किए गए उत्पादन की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ मजदूरी की दर कम हो जाती है । उदाहरण के लिए, 20 इकाइयों के उत्पादन पर प्रति इकाई रु 2 और 20 इकाइयों से कम उत्पादन किए जाने पर प्रत्येक इकाई के लिए रु 1.5 की दर से मजदूरी दी जाएगी ।

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उपयुक्तता (Suitability):

कार्यानुसार मजदूरी देने की यह पद्धति निम्न परिस्थितियों में सबसे अधिक उपयुक्त रहती है:

(1) जहाँ कार्य माप सम्भव हो तथा मूल्यांकित किया जा सकता है ।

(2) जहाँ पुनरावृतक प्रकृति के काम किए जाते हैं तथा वस्तु की किस्म पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है ।

(3) जहाँ पर कार्य प्रमापित हो अर्थात् जहाँ पर समान किस्म की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता हो ।

(4) जहाँ कार्य-निरीक्षण की आवश्यकता अनुभव नहीं की जाती हो ।

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कार्यानुसार मजदूरी प्रणाली का क्षेत्र:

इस प्रणाली में नियोक्ता एवं श्रमिक दोनों ही लाभान्वित होते हैं । इस प्रणाली को उन उद्योगों में सरलतापूर्वक अपनाया जा सकता है जहाँ कार्य का प्रमापीकरण हो चुका है तथा एक-समान वस्तुओं का निर्माण होता है तथा कार्य की मात्रा को मापा जा सकता है । जहाँ पर कार्य में परिवर्तन होता रहता है, वहाँ इस प्रणाली को सरलता से अपनाया जाना सम्भव नहीं है ।

2. मजदूरी भुगतान की प्रेरणात्मक योजनाएँ (Incentive Plans of Wage Payment):

मजदूरी भुगतान की समयानुसार तथा कार्यानुसार दोनों ही प्रणालियाँ अपने आप में अधूरी एवं दोषपूर्ण हैं । समयानुसार प्रणाली में श्रमिकों को अधिक कार्य करने की प्रेरणा नहीं मिलती और कार्यानुसार प्रणाली में श्रमिक को न तो वस्तु के गुणों में वृद्धि करने की और न ही न्यूनतम मजदूरी की गारण्टी ही होती है ।

अत: इन दोनों प्रणालियों के दोषों को दूर करने तथा कार्यक्षमता एवं मजदूरी में वृद्धि करने के लिए कुछ वैज्ञानिक विधियाँ अपनायी जाती हैं जिन्हें प्रेरणात्मक योजनाएँ कहते हैं ।

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प्रेरणात्मक प्रणाली का तात्पर्य एक ऐसी योजना से है जो श्रमिकों अधिक काम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकें । प्रेरणात्मक प्रणालियों के अनुसार श्रमिकों को न्यूनतम पारिश्रमिक के अतिरिक्त कुछ बोनस या प्रीमियम भी मिलता है ।

सभी प्रेरणात्मक प्रणालियों में दो बातें मुख्य रूप से पाई जाती हैं:

(i) प्रमापित निश्चित समय:

सभी प्रणालियों में एक प्रमापित समय निश्चित कर दिया जाता है और उस समय में दिया हुआ कार्य पूरा करना पड़ता है जिसके लिए एक निश्चित मजदूरी होती है ।

(ii) अधि-लाभांश (Bonus) समय:

यदि कोई श्रमिक उस कार्य को या उतनी इकाइयों को समय से पहले ही पूरा कर ले तो उस प्रमापित समय से कम समय में कार्य करने के लिए या प्रमापित कार्य से अधिक कार्य करने के प्रतिफल के रूप में अतिरिक्त भुगतान दर निश्चित कर दी जाती है ।

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एक अच्छी प्रेरणात्मक प्रणाली की विशेषताएँ (Characteristics of a Good Incentive Plan):

एक अच्छी प्रेरणात्मक प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं:

(1) सरल (Simple):

मजदूरी भुगतान प्रणाली इतनी सरल होनी चाहिए ताकि प्रबंधक व श्रमिक आसानी से यह गणना कर सकें कि कार्य करने के बाद कितनी मजदूरी दी जानी चाहिए ।

(2) प्रयास तथा मजदूरी में सीधा सम्बन्ध:

श्रमिक को अपने प्रयास के अनुसार मजदूरी मिलनी चाहिए । अतिरिक्त प्रयास के परिणामस्वरूप मिलने वाली मजदूरी भी शीघ्र ही मिल जानी चाहिए ।

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(3) न्यूनतम मजदूरी की गारण्टी:

एक अच्छी प्रेरणात्मक प्रणाली में श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का आश्वासन होता है जिससे वे अपने आपको सुरक्षित समझ सकें ।

(4) निश्चितता (Definiteness):

एक प्रेरणात्मक प्रणाली जो प्रयोग में लाई जाए निश्चित होनी चाहिए । इसमें परिवर्तन उस समय तक नहीं किया जाना चाहिए जब तक वास्तव में कार्य कराने की विधियों में कोई आधारभूत परिवर्तन न हुआ हो ।

(5) पारस्परिक विश्वास (Mutual Confidence):

श्रमिकों एवं नियोक्ताओं के बीच प्रेरणात्मक प्रणाली के प्रति पूर्ण विश्वास होना चाहिए । इसके लिए प्रणाली पारस्परिक विचार-विमर्श द्वारा तैयार की जानी चाहिए ।

(6) पर्याप्त प्रेरणा (Sufficient Incentive):

प्रेरणा इतनी आवश्यक हो कि वह व्यक्ति को अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित करें । कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि मिलने वाली प्रेरणा इतनी कम होती है कि प्रेरणा मिलने के स्थान पर प्रेरणा मारी जाती है ।

(7) उचित प्रमापों पर आधारित (Based on Proper Standards):

एक अच्छी प्रणाली कार्य के उचित प्रमापों पर आधारित होनी चाहिए । एक निर्धारित समय में किए जाने वाले कार्य के प्रमाप व्यावहारिक तथा न्यायसंगत होने चाहिए । इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि निर्धारित किए गए प्रमापों को एक सामान्य श्रमिक भी पूरा कर सकें ।

(8) न्यायपूर्ण (Just):

श्रमिक को अधिक कार्य करने के बदले अधिक उत्पादन का जो भी भाग मजदूरी के रूप में मिले वह न्यायसंगत होना चाहिए अर्थात् न तो वह इतना अधिक हो कि प्रबन्ध उसको दे ही न सके और न ही इतना कम हो कि मजदूर को प्रेरणा ही न मिलें ।

(9) सभी सम्बन्धित पक्षों को मान्य (Acceptable to all concerned):

मजदूरी की योजना तभी प्रभावी मानी जाएगी, जब वह सम्बन्धित सभी पक्षों, जैसे प्रबंधक, श्रमिक, श्रम संघ आदि को मान्य हो, अन्यथा वह फिर एक विवाद का कारण बन जाती है ।

प्रबन्धकों के लिए प्रेरणात्मक योजनाएँ (Incentive Plans for Managers):

प्रबन्धकों के लिए अनेक प्रेरणात्मक वेतन योजनाएँ हैं । ऐसी बहुत सी योजनाएँ आयकर विधानों के सम्बन्ध में अभिकल्पित की जाती है क्योंकि Individual Tax Rates काफी अधिक है ।

अधिकांश कम्पनियों ने अपने पेशेवर अधिकारियों को बनाये रखने के लिए ‘अनुलाभ’ (Perquisites या Perks) लागू किये हैं । इनमें नि:शुल्क यात्रा, चिकित्सा बीमा, किरायामुक्त मकान, बच्चों का शिक्षा भत्ता, क्लब की सदस्यता, पेशेवर संस्थानों की सदस्यता, आदि शामिल हैं ।

प्रबन्धकों के लिए महत्वपूर्ण अभिप्रेरणा योजनाओं में निम्न शामिल हैं:

(i) लाभों या व्यक्तिगत निष्पत्ति पर आधारित रोकड़ बोनस,

(ii) Employee Stock Option Plan (ESOP) जहाँ प्रशासक को भविष्य में एक निर्धारित दर पर या बाजार मूल्य से नीची कीमत पर कम्पनी के शेयर क्रय करने का विकल्प दिया जाता है ।

(iii) कम्पनी के लाभोपार्जन पर आधारित कमीशन या लाभ शेयरिंग ।

Employee Stock Option:

कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजनाओं का प्रारम्भ अमेरिका में 1910 के लगभग हो चुका था । लेकिन 1930 के दशक की भारी मंदी ने इन योजनाओं को विशेष आघात पहुँचाया तथा अधिकांश कम्पनियों ने इसे बन्द कर दिया ।

पुनरोद्धार के बाद अलग-अलग स्वरूपों में स्टॉक विकल्प योजनाओं का अमेरिका में पुन: प्रारम्भ हुआ तथा वे आजकल अत्यन्त लोकप्रिय हैं । लेकिन भारत में, स्टॉक विकल्प योजनाओं को उतनी लोकप्रियता नहीं मिल पायी है क्योंकि कम्पनी अधिनियम में ऐसी योजनाओं के सृजन हेतु कोई व्यवस्था नहीं है ।

केवल 1998 में ही सरकार ने सॉफ्टवेयर कम्पनियों द्वारा स्टॉक विकल्प योजनाओं के शुभारम्भ की आज्ञा दी । कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ESOP) मूलत: प्रशासकों (Executives) के लिए है ।

Stock Option Plan में समर्थ अधिकारियों को कम्पनी के अंशों को (जिन्हें Sweat Equity कहा जाता है) बाजार मूल्य से कम मूल्य पर आबंटित किया जाता है ।

यदि आगे आने वाले वर्षों में कम्पनी की निष्पत्ति अच्छी रहे तथा अंशों का बाजार मूल्य अधिक हो जाता है तो वे लाभान्वित हो जाते हैं । ऐसी कम्पनियाँ जो ऐसी एक योजना प्रस्तुत करती हैं कुशल अधिकारियों को आकर्षित करने में समर्थ होती है तथा साथ ही उनको आने वाले लम्बे समय के लिए रोक रखती हैं ।

ऐसे अधिकारी जिनको ESOP के अन्तर्गत अंश ऑफर किये जाते हैं कम्पनी के प्रति वचनबद्ध होते हैं तथा कम्पनी के विकास के लिए काम करते हैं । लेकिन यदि अंशों का बाजार मूल्य राजनैतिक अस्थिरता, सामान्य आर्थिक मंदी या किसी भी अन्य कारण से, नीचे जाता है तो ESOP के अन्तर्गत अंशों को रखने वाले कर्मचारी निश्चय ही ठगा हुआ अनुभव करेंगे ।

इसी कारण से अनेक अधिकारी एक प्रोत्साहन योजना के रूप में ESOP को प्राथमिकता नहीं देते । एडविन फिलिप्पो के अनुसार- विशिष्ट कर्मचारी स्वामित्व स्टॉक विकल्प योजना ऐसी एक तंत्र व्यवस्था प्रदान करती है जिसके माध्यम से विभिन्न समर्थ कर्मचारी घटे हुए मूल्य पर कम्पनी के स्टॉक का क्रय कर सकते हैं ।

पात्रता सामान्यत: मजदूरी स्तर या सेवा की अवधि या दोनों द्वारा निर्धारित की जाती है । यद्यपि एक नई फर्म बाजार दर पर स्टॉक अधिकांश का मूल्य 10 से 20 प्रतिशत से कम करके प्रस्तुत करती है । दूसरा विशिष्ट लक्षण होता है कि किश्त क्रय (Instalment Buying) के लिए व्यवस्था की जाती है ।

कर्मचारी प्रति माह एक Payroll Deduction का अधिकार दे देते हैं । कुछ योजनाओं का एक अन्य लक्षण होता है ”एक स्टॉक विकल्प प्रदान करना-एक व्यक्त मूल्य पर भविष्य में स्टॉक की एक कतिपय राशि के क्रय का एक अधिकार ।”

स्टॉक विकल्प लक्षण क्रियात्मक कर्मचारियों (Rank and File or Operative Employees) की अपेक्षा प्रशासकीय क्षतिपूर्ति योजनाओं में अधिक व्यापकत: प्रयुक्त होता है ।

कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना के लक्षण (Features of Employee Stock Option Plan):

(1) ESOP प्रकृति में स्वैच्छिक होती है ।

(2) यह एक निर्दिष्ट मूल्य पर भविष्य में या बाजार मूल्य की अपेक्षा कम मूल्य पर वर्तमान में स्टॉक या अंशों की एक कतिपय राशि खरीदने हेतु एक विकल्प प्रस्तुत करता है ।

(3) यह चाहा जाता है कि पेशेवर दक्ष लोगों को आकर्षित करने तथा संस्था में बनाये रखा जाये ।

(4) कर्मचारी को यह उस कम्पनी के एक आशिक स्वामी के रूप में बना देता है जहाँ वह काम कर रहा है ।

(5) हित की पारस्परिकता व्यक्ति तथा कम्पनी के बीच उत्पन्न होती है ।

(6) स्टॉक को प्रन्यास में रखा जाता है जब तक कर्मचारी योजना से हटने का चयन नहीं कर लेता या कम्पनी नहीं छोड़ जाता ।

ESOP को व्यवहार में रखना (Putting ESOP into Practice):

एक विशिष्ट कर्मचारी स्वामित्व योजना एक ऐसी तंत्र व्यवस्था की व्यवस्था करती है जिसके माध्यम से कम्पनी के अंशों को समर्थ कर्मचारी खरीद सकता है । समर्थता उनके मजदूरी स्तर तथा । या सेवा के वर्षों द्वारा सामान्यता: निर्धारित की जाती है । अत: योजना लाभ विभाजन का एक संवर्द्धित रूप है ।

अंशधारिताओं को विभिन्न साधनों से उपलब्ध कराया जाता है:

(i) बाजार मूल्य पर या घटे बाजार मूल्य पर कर्मचारियों द्वारा कम्पनी के अंशों का किश्त क्रय (Instalment Purchase) ।

(ii) स्टॉक विकल्प क्रय (Stock-Option Purchase) जिसमें कर्मचारी को एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर एक निर्दिष्ट दर पर अंशों की एक निर्दिष्ट संख्या खरीदने का प्रस्ताव किया जाता है । कर्मचारी ऐसे क्रय हेतु अपने निजी संसाधनों से व्यवस्था करता है ।

(iii) लाभ-विभाजन योजना में अपने अंश के एक भाग के रूप में कर्मचारी को सीधा उपहार (Outright Gift) ।

कर्मचारी स्टॉक विकल्प के लाभ (Merits of Employee Stock Option):

कर्मचारी स्टॉक विकल्प के निम्न लाभ हैं:

(i) यह कर्मचारियों तथा सेवायोजक के बीच हित की पारस्परिकता सुनिश्चित करता है । कर्मचारी को एक अंशधारक की दृष्टि से को जानने के लिए भी प्रेरित किया जाता है जैसे परिचालन परिणाम, चिट्ठा तथा वार्षिक रिपोर्ट जो उसको एक अंशधारक के रूप में भेजे जाते हैं, जिनका उसे एक कर्मचारी के रूप में अधिकार नहीं होता ।

(ii) कर्मचारियों को अंशधारकों की सभाओं में उपस्थिति होने का अवसर मिलता है तथा कम्पनी की प्रगति तथा भावी योजनाओं के बारे में व्यापक सूचनाएँ उनको मिलती हैं ।

(iii) यह कर्मचारियों में बचत कार्य क्षमता तथा सुरक्षा विकसित करती है । कर्मचारी अनुभव करते हैं कि वे मात्र नौकर नहीं हैं वरन् मास्टर भी हैं । कम्पनी की लाभ तथा हानि में हित बढ़ी हुई कार्य क्षमता के प्रति एक बड़ी अभिप्रेरक शक्ति होता है ।

(iv) कर्मचारी की आय लाभांश प्रतिपूरित होती है । प्रारम्भ में यह हो सकता है बहुत आकर्षक न हो लेकिन जब किसी श्रमिक द्वारा और अधिक अंश प्राप्त कर लिये जाते हैं प्राप्त लाभांश की रकम से तो उसका हित बढ़ता ही जाता है ।

(v) प्रबन्ध भी अच्छे सहयोग, अपेक्षाकृत कम अधीक्षण, घटी श्रम आवर्त, मधुर औद्योगिक सम्बन्धों, श्रमिकों की ओर से अच्छी सूझ-बूझ, क्षमों के निराकरण तथा कार्य क्षमता की वृद्धि के कारण लाभान्वित होता है ।

कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना का मूल्यांकन (Appraisal of ESOP):

ESOP का एक सामान्य रूप से पर व्यक्त उद्देश्य होता है हितों की पारस्परिकता विकसित करना होता है । कर्मचारी को एक अंशधारक के रूप में कम्पनी के दृष्टिकोण को समझने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है । अन्य सम्भाव्य मूल्य हैं बचत तथा सुरक्षा का विकास, कर्मक्षमता के साथ काम करने के लिए और अधिक अभिप्रेरणा का सृजन ।

ESOP को निम्न कारणों से प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है:

(a) कर्मचारी को कम्पनी में बचत तथा आय को निवेश करने के लिए कहा जाता है । अधिकांश श्रमिकों के पास अंशों में धन निवेश के लिए शायद ही कोई आधिक्य बचता है ।

(b) भविष्य में कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि की कोई गारण्टी नहीं होगी ।

(c) ज्यों ही अंशों का मूल्य अधिक होता है कर्मचारियों का मनोबल अपेक्षाकृत ऊँचा होता है । जब अंशों का मूल्य नीचे होने लगता है तो कर्मचारी सम्भवत: कम्पनी पर दोषारोपण करने लगेंगे ।

यह वह सब है जो 1930 के शक में अमेरिका में हुआ था । जब अंशों के मूल्य आर्थिक मंदी के कारण बुरी तरह कम हुए थे । अत: ऐसी योजनाएँ केवल समृद्धि काल में ही प्रभावी होती हैं ।

(d) कम्पनी सभाओं में कर्मचारी, प्रबन्ध तथा नियंत्रण कभी-कभी सहयोग के एक माध्यम की अपेक्षा कहीं व्यवधान अधिक सिद्ध हो सकते हैं ।

(e) कर्मचारियों के प्रयास तथा प्रतिफल के बीच एवं प्रतिफल की दूरी तथा अनिश्चितता के अप्रत्यक्ष सम्बन्ध के कारण यह एक अत्यन्त घटिया अभिप्रेरणा है ।

कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना बनाम कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना [Employees Stock Ownership Plan (ESOP) vs. Employees Stock Option Scheme (ESOS)]:

ESOP के विपरीत, ESOP मात्र एक ऐसी योजना है जिसके माध्यम से कम्पनी की अंशधारिता में कर्मचारियों की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाता है । कर्मचारियों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में अधिमान आबंटन मार्ग के माध्यम से अंश आबंटित किये जा सकते हैं या उनको एक नये निर्गमन में आरक्षण के माध्यम से अंश दिये जा सकते हैं ।

ESOS के अन्तर्गत कर्मचारियों को प्रत्यक्षत: अंश जारी किये जाते हैं । लेकिन एक ESOP में एक ऐसे प्रन्यास को अंश जारी किये जाते हैं जो कर्मचारियों के एक समूह के लाभार्थ अंशें को रखता ।

कम्पनियों को अमेरिका में ESOP के प्रति अंशदान करने के लिए कर लाभ मिलते हैं । लेकिन भारत में ऐसे प्रावधानों को आयकर अधिनियम, 1961 में अभी शामिल किया जाना बाकी है ।

भारत में ESOS (Employees Stock Option Scheme in India):

Disclosure and Investor Protection हेतु Securities and Exchange Board of India (SEBI) की मार्गदर्शक स्पष्ट करती है कि ESOS कम्पनी की ओर से स्वैच्छिक योजना है जो कम्पनी में कर्मचारी भागीदारी को बढ़ावा देती है । आरक्षण का एक उपयुक्त प्रतिशत अपनी कम्पनी के कर्मचारियों के लिए निर्गमन द्वारा बनाया जा सकता है ।

लेकिन, विद्यमान मार्गदर्शकों के अन्तर्गत, नये निगमन का 5% ESOS के लिए आरक्षित किया जा सकता है ऐसे प्रत्येक कर्मचारी को 200 अंशों की अधिकतम सीमा तक जो ESOS के प्रति भागीदारी करने के लिए सहमति देते हैं । साथ ही, ESOS की सदस्यता को कम्पनी के स्थायी कर्मचारियों तक ही सीमित किया जाना चाहिये ।

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