Read this article in Hindi to learn about:- 1. Types of Personnel Policy 2. Principles of Personnel Policies 3. Origin and Sources 4. Steps/Mechanism.

सेविवर्गीय नीतियों के प्रकार (Types of Personnel Policy):

सामान्यत: नीतियों को दो भागों में विभाजित किया जाता है- मुख्य नीतियाँ तथा नाममनात्र सहायक नीतियाँ । मुख्य नीतियों में संस्था के उद्देश्यों, गतिविधियों, नियन्त्रण आदि को शामिल किया जाता है ।

उन्हें संचालकों द्वारा निर्धारित किया जाता है । ये वे सीमा तैयार करती हैं जिनके अन्तर्गत संस्था की अन्य नीतियों को बनाया जाता होता है । अन्य नीतियाँ किसी विशेष कार्य या गतिविधि के बारे में बनाई जाती हैं । ये संस्था की मुख्य नीतियों के अन्दर ही रह कर बनाई जाती हैं ।

इसके अतिरिक्त नीतियों के घटक/तत्व संस्था, उद्योग, संगठनात्मक संरचना, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ आदि से प्रभावित एवं परिवर्तित होते रहते हैं ।

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अत: विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार नीतियों को दो भागों/समूहों में बाँटा जाता है:

1. संगठनात्मक समूह नीतियाँ (Organisational Grouping of Policies)

2. कार्यात्मक समूह नीतियाँ (Functional Grouping of Policies)

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1. संगठनात्मक समूह नीतियाँ (Organisational Grouping of Policies):

(i) कम्पनी की सामान्य नीति (General Company Policy):

ये वे नीतियाँ हैं जो पूरी संस्था पर लागू होती हैं । यह उच्च प्रबन्धकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं उदाहरणतया यदि उच्च प्रबन्धक नीति बनाते हैं तो संस्थाओं की पदोन्नति आय के आधार पर की जाएगी तथा सभी विभागों में ही यह नीति लागू की जाएगी ।

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(ii) आन्तरिक नीति (Internal Policy):

यह संस्था के आन्तरिक कार्यों से सम्बन्धित होती है । यह संस्था के विभिन्न विभागों में सहयोग एवं समन्वय स्थापित करने के लिए बनायी जाती है । यह समानान्तर (Vertical) तथा स्तम्भकार (Horizontal) भी हो सकती है ।

यह नीतियाँ संस्था के निम्न प्रबन्ध स्तर हेतु बनायी जाती हैं जो उन्हें अन्य विभागों से व्यवहार के समय लागू करनी होती है । समानान्तर नीतियाँ एक ही स्तर पर व्यवहार करते समय बनाये गए नियम होते हैं ।

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(iii) केन्द्रीय नीति (Centralised Policy):

यह उन कम्पनियों द्वारा निर्धारित की जाती है जिनका व्यवसाय विभिन्न स्थानों पर होता है । वे अपने मुख्य कार्यालय के लिए नीति निर्धारित करते हैं । इसी तरह से अन्य स्थानों हेतु नीति तय की जाती है । अन्य स्थानों/शाखाओं को परिस्थितियों के अनुसार कुछ स्वायतता भी दे दी जाती है ।

2. नीतियों का कार्यात्मक समूह (Functional Grouping of Policies):

ये नीतियाँ संस्था के विशेष कार्यों या विभागों के कार्यों के लिये निर्धारित की जाती है । इसका सम्बन्ध विभाग विशेष से हो सकता है पूरी संस्था से नहीं । उदाहरण के तौर पर उत्पादन नीति विपणन नीति आदि । अत: ये नीतियाँ सम्बन्धित विभाग या कार्य जैसे कर्मचारी, नियोजन, संगठन, निर्देशन तथा नियन्त्रण से जुड़ी होती हैं । ये सभी नीतियाँ मानव संसाधन के उचित उपयोग करने हेतु निर्धारित की जाती हैं ।

सेविवर्गीय नीतियों के सिद्धान्त (Principles of Personnel Policies):

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जैसा कि हम जानते हैं कि सेविवर्गीय नीतियाँ प्रबन्धकों के लिए मार्ग मानचित्र (Roadmap) का कार्य करती हैं । वे श्रमिकों एवं प्रबन्धकों को कार्य के दौरान मार्ग दर्शन करती हैं । अत: नीति निर्धारित करते समय प्रबन्धकों को श्रमिकों एवं नियोक्ता के मध्य से संस्था के उद्देश्यों एवं आवश्यकताओं के अनुसार सन्तुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए ।

वे कुछ ठोस आधारों पर निर्भर होनी चाहिए । सिद्धान्त कुछ आधारभूत तथ्य या सत्य होते हैं जो विचारों या क्रियाओं को दिशा प्रदान करते हैं । वे कारण और प्रभाव में तथ्यपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करते हैं । अत: कुछ सामान्य सिद्धान्तों की पालना अवश्य की जानी चाहिए ।

कुछ सिद्धान्तों की व्याख्या यहाँ की जा रही है:

(1) नीतियाँ सरल तथा समझने में आसान होनी चाहिए । इन्हें सरलता से लागू भी किया जा सके । यह ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए । नीतियों की स्पष्टता कार्यों को प्रभावपूर्ण बनाने में सहायक होती है ।

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(2) नीतियों को उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ठोस आधारशिला प्रदान करनी चाहिए । यह संस्था के आर्थिक उद्देश्यों की सफलता से सम्बन्धित की जानी चाहिए ।

(3) नीतियाँ लिखित होनी चाहिए तथा सम्बन्धित पक्ष को इसका संदेश अवश्य दिया जाना चाहिए । इसके अन्तर्गत अस्पष्ट शब्दों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए । इससे श्रमिकों में अनावश्यक संदेह उत्पन्न नहीं होता है ।

(4) नीतियों में स्थायित्व के तत्व का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि यह लम्बे समय तक प्रबन्धकों का मार्गदर्शन करती है । परन्तु परिस्थितियों के अनुसार लचीलापन भी रखा जाना चाहिए ।

(5) नीतियाँ उन सभी पक्षों की सहमति से तय की जानी चाहिए जिन पर उन्हें लागू किया जाना होता है । उससे नीतियों की स्वीकार्यता अधिकाधिक होती है । इससे वे उद्देश्य प्राप्ति के लिए उत्साहपूर्ण कार्य करते हैं ।

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(6) नीतियों की एक अन्तराल के पश्चात् समीक्षा अवश्य की जानी चाहिए । जैसा कि संस्था के आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण में परिवर्तन होता रहता है अत: समीक्षा करते समय परिवर्तन का ध्यान रखा जाना चाहिए ।

(7) नीतियों का निर्धारण इस तरह से होना चाहिए कि संस्था एक समन्वित समूह के रूप में कार्य करें । इससे विभिन्न विभागों का उचित समन्वय स्थापित किया जा सकता है ।

(8) नीति वास्तविक होनी चाहिए अन्यथा वे श्रमिकों की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है तथा संस्था के उद्देश्य भी सही तरीके से प्राप्त नहीं हो पाते ।

(9) नीतियाँ दीर्घकाल की दृष्टि से बनाई जानी चाहिए । वे भविष्य की ओर देखते हुए निर्धारित की जानी चाहिए ।

अत: नीतियाँ कम्पनियों के श्रमिकों के प्रति न्यायपूर्ण व्यवहार तय करती हैं । उचित सलाह-मशवरा एवं भागीदारी अवश्य की जानी चाहिए । इसे श्रमिकों के सहयोग से भी उद्देश्यों को प्रभावी तरीके से प्राप्त किया जा सकता है ।

सेविवर्गीय नीतियों की उत्पत्ति एवं स्रोत (Origin and Sources of Personnel Policies):

नीतियाँ संस्था के सेविवर्गीय तथा संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निर्धारित की जाती हैं । इसमें संस्था के विभिन्न विषयों/घटकों को शामिल किया जाता है जैसे रोजगार सम्बन्धी शर्तें, कर्मचारियों के सामाजिक एवं कल्याण सम्बन्धी बातें, (वेतन, रोजगार के घण्टे, पेंशन योजना, कर्मचारी कल्याण) कार्य दशाएं एवं सुविधाएँ । अन्य तत्व जैसे मानवीय तत्व जैसे उत्तरदायित्व, संतुल्य कार्य की गतिविधि के अन्तर्गत मानवीय सम्बन्ध आदि को भी इसके अन्तर्गत निर्धारित किया जा सकता है ।

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सेविवर्गीय नीतियाँ मुख्य तौर, पर बाह्य तत्वों जैसे कानूनी तथा सरकारी नियम, श्रम स्थिति, श्रम बाजार की अवस्था, सामाजिक दशाएँ एवं अपेक्षाएँ, कर्मचारियों के सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्य, कार्य दशाओं पर श्रम संस्थाओं को प्रभाव आदि से प्रभावित होती हैं ।

अत: ये बहुत से स्रोतों से उत्पन्न होती हैं:

1. संस्था का उद्देश्य,

2. संस्था के वर्तमान साधन,

3. संस्था की भूतपूर्व स्थिति एवं नीतियाँ,

4. उद्योग की वर्तमान नीतियाँ,

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5. उच्च स्तरीय प्रबन्धकों की सोच एवं दृष्टिकोण,

6. विभिन्न प्रबन्ध के स्तरों से प्राप्त सुझाव,

7. सरकार द्वारा बनाये गए नियम एवं कानून,

8. श्रमिकों एवं संघों की शिकायतें एवं संदेह,

9. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिति,

10. संस्था के संदर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति ।

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अत: नीति निर्धारण एक जटिल प्रक्रिया है और उच्च प्रबन्धकों को नीति निर्धारण के समय इसके प्रभावों को सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए ।

नीति निर्धारण की प्रक्रिया/चरण (Steps/Mechanism of Policy Formulation):

नीति निर्धारण एक कठिन प्रक्रिया है । नीतियाँ विभिन्न प्रबन्धकीय कार्यों को प्रभावी तरीके से करने के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं । इसके लिए सावधानीपूर्वक सोच एवं जागरूक प्रयास आवश्यक है ।

उच्च स्तरीय प्रबन्ध विशेषज्ञों की मदद से संस्था की आधारभूत नीतियाँ निर्धारित करती हैं । इसके अतिरिक्त सम्बन्धित अधिवासी को उसके क्षेत्र की नीति निर्धारित करने के लिए शामिल किया जाना चाहिए । नीति निर्धारण के कुछ निश्चित क्रम होते हैं ।

प्रथम स्तर पर नीति निर्धारण के लिए आवश्यक सूचनाओं को एकत्रित किया जाता है । इसके आधार पर उस क्षेत्र को निश्चित किया जाता है, जिसके बारे में नीति-निर्धारित करनी है । तत्पश्चात् उन आन्तरिक एवं बाह्य तत्वों का अध्ययन किया जाता है जो नीतियों को प्रभावित करते हैं ।

एक व्यवस्थित एवं योजनाबद्ध विधि से सम्बन्धित उद्योग एवं उसकी नीतियों का सर्वेक्षण किया जाता है । संस्था के विभिन्न स्तरों के अधिशासियों से सुझाव आमन्त्रित किये जाते हैं ताकि नीतियों को प्रभावी बनाया जा सके । अत: नीति निर्धारण करने वाले संस्था के भूतकाल, वर्तमान स्थिति एवं भविष्य की योजनाओं से परिचित होने चाहिए । अत: सूचना एकत्रित करने एवं सर्वेक्षण पश्चात् उच्च प्रबन्ध नीति का खाका (Draft) तैयार करते हैं ।

दूसरे चरण में इस ड्राफ्ट को प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों पर भेजा जाता है । ऐसा नीतियों की स्वीकार्यता तैयार करने के लिए किया जाता है । इसके प्रेषण के समय सभी स्तरों से सहयोग की अपेक्षा की जाती है । उनकी भागीदारी उनमें उत्तरदायित्व की भावना भी उत्पन्न करती है ।

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ऐसा करने के पश्चात् इस प्रथम ड्राफ्ट का नवीनीकरण किया जाता है तथा दिए गए सुझावों को इसमें सम्मिलित कर लिया जाता है । इसके पश्चात् इसे लागू किये जाने के लिए संस्था में प्रेषित कर दिया जाता है ।

तीसरे और अन्तिम चरण में नीतियों की समीक्षा की जाती है । उनका विश्लेषण किया जाता है तथा इसमें आवश्यक परिवर्तन भी किये जाते हैं । ऐसा उन्हें प्रभावी बनाने के लिए किया जाता है । नीतियों की लगातार समीक्षा आवश्यक है । बदलते हुए वातावरण के अनुसार इनमें परिवर्तन अवश्य होने चाहिए ।

संक्षेप में नीति निर्धारण निम्न चरणों में होकर गुजरता है:

1. नीति की प्रेरणा,

2. तथ्यों एवं सूचनाओं का एकत्रीकरण,

3. नीति ड्राफ्ट को लिखित रूप में तैयार करना,

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4. विभिन्न स्तरों पर इसको प्रेषित करना एवं सुझाव आमन्त्रित करना,

5. उच्च स्तर द्वारा नीति लागू करना,

6. समीक्षा एवं परिवर्तन ।

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