Read this article in Hindi to learn about the three main steps involved in the recruitment process. The steps are: 1. Recruitment Policy 2. Forecast of Manpower Requirement 3. Sources of Recruitment.

Step # 1. भर्ती नीति (Recruitment Policy):

कर्मचारियों की भर्ती के लिए प्रत्येक कम्पनी में एक सर्वमान्य नीति का निर्धारण किया जाना चाहिए । कर्मचारियों की भर्ती इस नीति के अनुसार की जानी चाहिए । इस नीति का उद्देश्य विभिन्न पदों पर की जाने वाली भर्ती में एकरूपता लाना है । भर्ती नीति, सेविवर्गीय नीति का एक भाग है । उसका अभिप्राय यह है कि किसी भी कम्पनी की भर्ती नीति उसकी सेविवर्गीय नीति के अनुसार बनाई जानी चाहिए ।

एक प्रभावी भर्ती नीति में निम्न शर्तों का होना आवश्यक है:

(1) भर्ती नीति पूर्ण स्पष्ट एवं व्यापक होनी चाहिए ।

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(2) भर्ती नीति सामान्य सेविवर्गीय नीति के अनुसार होनी चाहिए ।

(3) यह नीति संगठन की वर्तमान एवं भावी आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए ।

(4) भर्ती नीति में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि भर्ती केन्द्रीयकृत (Centralised Recruitment) होगी अथवा विकेन्द्रीयकृत (Decentralised Recruitment) । संभवतया भर्ती केन्द्रीय स्थान से की जानी चाहिए ।

(5) भर्ती नीति में, आन्तरिक स्रोतों एवं बाह्य स्रोतों (Internal Sources and External Sources) के सम्बन्ध में नीति स्पष्ट होनी चाहिए ।

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(6) भावी कर्मचारी की भर्ती करते समय कम्पनी की ओर से उन्हें कोई आश्वासन नहीं देना चाहिए ।

(7) भर्ती योग्यता के आधार पर की जानी चाहिए ।

(8) भर्ती नीति, अन्य संगठनों की भर्ती नीति तथा सरकारी नीति दोनों को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए ।

(9) पदोन्नति तथा स्थानान्तरण सम्बन्धी नीति पूर्ण स्पष्ट होनी चाहिए ।

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(10) भर्ती नीति लोचपूर्ण होनी चाहिए ताकि संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उसमें सरलता से परिवर्तन करना सम्भव हो ।

(11) भर्ती नीति में रोजगार उद्देश्यों के साथ व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति का आश्वासन मिलना चाहिए ।

(12) नीति गतिशील होनी चाहिए जिससे कि वह कर्मचारी की रुचियों एवं कार्य की प्रकृति में समन्वय स्थापित कर सके ।

(13) भर्ती नीति में विशिष्ट बातों का समावेश आवश्यक है, इसके अन्तर्गत संस्था को अनुसूचित जातियों तथा पिछड़ी जनजातियों, अपंग एवं अपाहिज व्यक्तियों, कर्मचारी पर निर्भर व्यक्तियों आदि को प्राथमिकता सम्बन्धी नीति का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए ।

Step # 2. श्रम-शक्ति का पूर्वानुमान लगाना (Forecast of Manpower Requirement):

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श्रम शक्ति नियोजन (Manpower Planning) के आधार पर कम्पनी सही किस्म (Right Kind) व सही संख्या (Right Quantity) का अनुमान लगाती है । अन्तत: लाइन मैनेजर के साथ विचार-विमर्श करके कार्य विवरण (Job Description) व व्यक्ति अपेक्षा-विवरण (Man-Specification) का निर्धारण किया जाता है ।

कार्य विवरण (Job-Description) का उद्देश्य कार्य की प्रकृति के विषय में सही जानकारी देना होता है । व्यक्ति अपेक्षा-विवरण (Man Specification) स्पष्ट करता है कि एक कार्य को उचित रूप से करने के लिए, कर्मचारी में क्या न्यूनतम मानसिक व शारीरिक योग्यताएँ होनी चाहिए । उपर्युक्त प्राप्त विवरण के आधार पर सही कार्य पर सही व्यक्ति नियुक्त किया जा सकता है ।

Step # 3. भर्ती के स्रोत (Sources of Recruitment):

भर्ती के निम्न दो स्रोत हैं:

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1. आंतरिक स्रोत तथा

2. बाह्य स्रोत ।

1. आंतरिक स्रोत (Internal Source):

(i) अपने कर्मचारियों की पदोन्नति या पदावनति:

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जब किसी संस्था में फोरमैन, निरीक्षक और विभागीय अधिकारियों के स्थान रिक्त होते हैं तब इन स्थानों पर बाहर के व्यक्तियों की भर्ती के स्थान पर अपनी ही संस्था में काम कर रहे योग्य, कुशल अनुभवी एवं जाने-पहचाने कर्मचारियों की पदोन्नति, या पदावनति कर उनकी नियुक्ति कर दी जाती है ।

पदोन्नति का अर्थ है किसी कर्मचारी को जिस पद पर वह कार्यरत है उससे उच्च पद पर स्थानांतरण कर्मचारी की रुचि के अनुरूप किसी अन्य समान पद पर लगा देना स्थानांतरण कहलाता है । जब किसी कर्मचारी को किसी निम्न पद पर हस्तांतरित कर दिया जाता है तब उसे पदावनति कहते हैं ।

यह विधि व्यवसाय के लिए अधिक उपयोगी एवं लाभदायक सिद्ध होती है क्योंकि इस विधि में अपने विश्वास के अनुभावी कर्मचारी मिल जाते हैं । इससे संस्था को लाभ होता ही है, साथ ही कर्मचारियों का स्तर और मनोबल भी ऊँचा उठता है क्योंकि प्राय: संस्था में पदोन्नति ही की जाती है ।

(ii) अतिरिक्त घोषित किए जाने वाले कर्मचारी की नियुक्ति (Transfer of Surplus Employees):

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कभी-कभी एक संस्था में किसी विशिष्ट काम की कमी या कार्य प्रणाली में परिवर्तन हो जाने के कारण कुछ विभागों में कर्मचारियों की आवश्यकता कम हो जाती है और कई अन्य विभागों में बढ़ जाती है ।

फलस्वरूप कर्मचारी प्रबन्धक यह प्रयत्न करते हैं कि उन विभागों से, जहाँ कर्मचारी, अनावश्यक घोषित कर दिये गए हैं ऐसे विभागों में खपा दिये जाएँ जहाँ और अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता है ।

लाभ (Advantages of Internal Sources):

आंतरिक स्रोत द्वारा भर्ती के निम्न लाभ हैं:

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i. मनोबल ऊँचा होना (High Morale):

आंतरिक स्रोत द्वारा भर्ती से कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा रहता है क्योंकि यह विधि उन्हें पदोन्नति तथा सुरक्षा का अवसर प्रदान करती है ।

ii. अधिक वफादार (More Faithful):

आन्तरिक स्रोतों से भर्ती करने से कर्मचारी संस्था के प्रति अधिक वफादार बनते हैं, अनुशासन में रहते हैं और अधिक परिश्रम करते हैं । इसके साथ-साथ कार्य सम्पादन में भी अधिक रुचि तथा कार्यक्षमता दिखाते हैं ।

iii. प्रशिक्षण के व्यय में कमी (Reduction in Training Expenses):

इस स्रोत द्वारा भर्ती से कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर होने वाला व्यय कम हो जाता है, क्योंकि संस्था में पहले से ही कार्य कर रहे कर्मचारी अनेक कार्य-संचालन विधियों से परिचित रहते हैं । अत: उन्हें पुन: प्रशिक्षण देने की कोई आवश्यकता नहीं होती है ।

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iv. मूल्यांकन (Evaluation):

आंतरिक स्रोत द्वारा भर्ती से कर्मचारियों की योग्यता एवं क्षमता का उचित व सामाजिक मूल्यांकन होता रहता है । उच्च अधिकारियों को कर्मचारियों के संस्था में कार्य करते रहने के कारण उनकी कार्य रुचि, कार्य व्यवहार तथा वफादारी के सम्बन्ध से सही-सही जानकारी रहती है ।

v. अच्छा प्रभाव (Good Effect):

आंतरिक स्रोत द्वारा भर्ती ने केवल वर्तमान कर्मचारियों पर अच्छा प्रभाव डालती है बल्कि संस्था में पदोन्नति के उचित अवसरों को देखकर बाहर से आने वाले कुशल एवं परिश्रमी व्यक्ति भी नियुक्ति के लिए आकर्षित होते हैं ।

दोष (Disadvantages of Internal Sources):

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आंतरिक स्रोत द्वारा भर्ती के निम्न दोष हैं:

i. पर्याप्त संख्या में कर्मचारी मिलने की निश्चितता न होना (No Certainty of Getting Sufficient Number of Employees):

नये रिक्त स्थानों के लिए उपलब्ध कर्मचारियों में पर्याप्त संख्या में कर्मचारी मिल जायेंगे यह कोई निश्चित नहीं है ।

ii. पदोन्नति में कठिनाई (Difficulty in Promotion):

यदि पदोन्नत व्यक्ति में आवश्यक शारीरिक तथा मानसिक योग्यता एवं क्षमता की कमी हो तब वरिष्ठता (Seniority) के आधार पर की गई पदोन्नति में यह कठिनाई सामने आ सकती है ।

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iii. अतिरिक्त भार (Additional Burden):

कर्मचारी की योग्यताओं एवं क्षमताओं के सामयिक मूल्यांकन का भाव उच्च अधिकारियों पर एक अतिरिक्त भार एवं जिम्मेदारी डालता है ।

iv. वफादारी में संदिग्धता (Doubt in Faithfulness):

कर्मचारी द्वारा भूतकाल में संस्था के प्रति दिखाई गई वफादारी इस बात का कोई आश्वासन नहीं होता है कि वह भविष्य में भी उतना ही वफादार एवं अनुशासित रहेगा ।

2. बाह्य स्रोत (External Source):

जब कर्मचारियों की भर्ती संस्था में कार्यरत कर्मचारियों में से न करके बाहरी व्यक्तियों में से की जाती है तो उसे बाह्य स्रोतों द्वारा भर्ती करना कहा जाता है ।

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निम्न बाह्य स्रोतों से कर्मचारियों की भर्ती की जा सकती है:

(i) विज्ञापन (Advertisement):

समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में विज्ञापन के माध्यम से दूर-दूर से तथा सभी प्रकार के, विशेषकर कुशल व शिक्षित व्यक्तियों को आकर्षित किया जा सकता है । भर्ती की इस विधि में पक्षपात के अवसर कम हो जाते हैं । परन्तु बहुत अधिक आवेदन-पत्रों (Applications) की प्राप्ति व्यवस्थापकों के लिए एक सिरदर्द व समस्या बन जाती है ।

(ii) रोजगार कार्यालय (Employment Exchange):

रोजगार कार्यालय के माध्यम से भी कर्मचारियों की भर्ती की जा सकती है । रोजगार चाहने वाले व्यक्ति इन कार्यालयों में अपना नाम पंजीकृत करा देते हैं । दूसरी तरफ कर्मचारी चाहने वाली संस्था वांछित कर्मचारियों की आवश्यकता की पूर्ण विवरण सहित सूचना इन कार्यालयों को भेज देती है । इसके पश्चात् यह कार्यालय ‘रोजगार चाहने वाले व्यक्ति’ तथा ‘कर्मचारी चाहने वाली संस्था’ दोनों में सम्पर्क स्थापित करा देता है ।

(iii) भूतपूर्व कर्मचारी (Former Employees):

यदि कर्मचारी किसी कारणवश एक संस्था को छोड़कर चले जाते हैं और वे पुन: संस्था में आना चाहते हैं तो ऐसे पुराने कर्मचारियों की भर्ती की जा सकती है, यदि उनका पिछला व्यवहार व रिकार्ड ठीक है । पुराने कर्मचारी नये कर्मचारियों की अपेक्षा कार्य की प्रकृति से भली-भांति परिचित होते हैं और उन पर प्रशिक्षण व्यय भी अधिक नहीं करना पड़ता ।

(iv) वर्तमान कर्मचारियों के मित्र तथा सम्बन्धी (Friends and Relatives of Present Employees):

कुछ संस्थाएँ अपने वर्तमान कर्मचारियों की सिफारिशों के आधार पर उनके मित्रों एवं रिश्तेदारों को भर्ती कर लेती हैं । प्रबन्धक का प्राय: यह विश्वास होता है कि जब उनके वर्तमान कर्मचारी विश्वासपात्र हैं, कठोर परिश्रमी हैं, अनुशासित हैं, कार्यकुशल हैं, तो वे व्यक्ति, जिनकी वे सिफारिश कर रहे हैं, उतने ही विश्वसनीय, परिश्रमी, अनुशासित एवं कार्यकुशल होंगे ।

संस्था द्वारा अपने वर्तमान कर्मचारियों पर विश्वास करने से उनका मनोबल ऊँचा होगा और वे संस्था के प्रति वफादार सिद्ध होंगे । साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि वर्तमान कर्मचारी सिफारिश करते समय अपने विश्वास को झूठा सिद्ध न होने दें ।

(v) कारखाने के दरवाजे पर भर्ती (Recruitment at Factory Gate):

कभी-कभी कारखाने के दरवाजे पर सूचना पटल (Notice Board) पर यह अंकित कर दिया जाता है कि संस्था को कर्मचारियों की आवश्यकता है । इस सूचना की जानकारी प्राप्त करके इच्छुक व्यक्ति कर्मचारी प्रबन्धक से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं ।

इसी प्रकार कुछ इच्छुक व्यक्ति डाक व्यवहार द्वारा भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि उनकी योग्यता अनुसार कोई रिक्त पद उपलब्ध हो तो कर्मचारी प्रबन्धक द्वारा उसे परीक्षण (Test) तथा साक्षात्कार (Interview) के लिए बुलाया जा सकता है ।

भर्ती करने की यह विधि अत्यन्त मितव्ययी है । इस विधि के आधार पर भर्ती करने की क्रिया में नियोक्ता (Employer) को अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता । साथ ही इस प्रकार नियुक्त किये गये कर्मचारी अधिक ऊँची दर से वेतन की माँग नहीं करते ।

जब कभी कारखाने में अस्थायी रूप से कार्य अधिक हो जाता है अथवा कुछ कर्मचारी अवकाश पर चले जाते हैं तब इस विधि से कर्मचारियों की नियुक्ति करना उचित होता है ।

(vi) अंशकालिक कर्मचारी (Part-Time Employees):

अनेक संस्थाओं में कर्मचारियों की आवश्यकता केवल एक विशेष समय या अवधि के लिए होती है । ऐसी संस्थाओं में कर्मचारियों की भर्ती अंशकालिक रूप में की जाती है ।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि आवश्यकता के समय ऐसे कर्मचारी पर्याप्त संख्या में नहीं मिल पाते, अत: अंशकालिक कर्मचारियों की एक सूची पहले से ही तैयार रखनी चाहिये । नीरस व ऊबने वाले कार्यों तथा पुनरावृत्यात्मक कार्यों (Repetitive Works) के लिए अंशकालिक कर्मचारी ही अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं ।

(vii) श्रम संघ (Trade Union):

श्रम संघ कार्यालय द्वारा भी कर्मचारियों की भर्ती की जा सकती है । कुछ संस्थाएँ कर्मचारियों की भर्ती अर्थात् श्रम पूर्ति के इस स्रोत को अच्छा नहीं समझते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में कर्मचारी संस्था के प्रति अधिक वफादार न होकर श्रम संघ (Trade Union) के प्रति अधिक वफादार होते हैं ।

(viii) कॉलेज, विश्वविद्यालय तथा तकनीकी संस्थाएँ (Colleges, Universities and Technical Institutes):

बहुत से कार्यों के लिए किसी प्रकार के पूर्व अनुभव की आवश्यकता नहीं होती अथवा बहुत सी संस्थाओं में कर्मचारियों को दायित्व सौंपने से पहले उनके यहाँ प्रशिक्षण की सुविधा होती है ।

अत: ऐसी संस्थाओं में कॉलेजों, विश्वविद्यालयों तथा तकनीकी संस्थाओं से सीधा सम्पर्क स्थापित करके वांछित योग्यता वाले कुशल नवयुवक तथा बुद्धिमान व्यक्ति प्राप्त किये जा सकते हैं ।

प्राय: इन संस्थानों द्वारा अपने युवा विद्यार्थियों को नौकरी दिलाने के दृष्टिकोण से एक रोजगार विभाग भी स्थापित कर दिया जाता है । संगठन के प्रबन्धक इन संस्थानों के रोजगार विभाग से सम्पर्क करके अपनी आवश्यकता के कर्मचारी प्राप्त कर लेते हैं । इस स्रोत को परिसर भर्ती (Campus Recruitment) भी कहते हैं ।

(ix) अनियमित आवेदन (Casual Application):

संस्थाओं द्वारा अनियमित रूप में भावी कर्मचारी से आवेदन-पत्र माँगे जाते रहते हैं और किसी स्थान के रिक्त हो जाने पर संस्था द्वारा इन्हीं आवेदनों में से कर्मचारियों को चुन लिया जाता है । उपक्रम इन व्यक्तियों की ‘प्रतीक्षा सूची’ बनाती रहती है और जैसे ही उपक्रम में कोई पद रिक्त होता है तो उनमें से योग्यतम एवं उपयुक्त व्यक्तियों का चयन कर लिया जाता है ।

(x) श्रम ठेकेदार (Labour Contractors):

श्रम ठेकेदार भारत में कुछ उद्योगों में भर्ती का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं । श्रमिकों को ऐसे श्रम ठेकेदारों के माध्यम से भर्ती किया जाता है जो स्वयं में संगठन के कर्मचारी होते हैं । इस प्रणाली के दोष हैं कि यदि ठेकेदार संगठन छोड़कर जाता है तो उसके द्वारा नियुक्त कराये गये सभी श्रमिक भी छोड़कर चले जायेंगे ।

यही कारण है कि श्रम का स्रोत अनेक व्यवसायों में अच्छा नहीं माना जाता । सार्वजनिक निर्माणी उद्योग (Construction Industry) में यह अभ्यास काफी चलन में है ।

(xi) टैलीकास्टिंग (Telecasting):

टी. वी. पर (दूरदर्शन तथा अन्य चैनलों पर) रिक्त पदों के विषय में टेलीकास्ट करने की परम्परा आजकल काफी लोकप्रिय हो रही है । विशेष प्रोग्राम जैसे ‘Job Watch’, ‘Youth Pulse’, ‘Employment News’ आदि नौकरी के विभिन्न प्रकारों के लिए भर्ती में काफी लोकप्रिय हो चुके हैं ।

नौकरी की व्यापक अपेक्षाएँ तथा उनको करने के लिए अपेक्षित गुणवत्ताएँ, जहाँ भी पद रिक्तता विद्यमान है, के Profile के साथ-साथ प्रसारित कर दिये जाते हैं । भर्ती के एक स्रोत के रूप में टी. वी. का उपयोग अन्य स्रोत की तुलना में कम होता है ।

इसके निम्न कारण हैं:

(i) टेलीकास्टिंग एक महँगा माध्यम है ।

(ii) जॉब के लिए विज्ञापन काफी कम समय के लिए जान पड़ता है तथा इसकी पुनरावृत्ति भी नहीं होती । प्रन्यासी इसकी पूरी तरह से समझ भी नहीं सकते हैं ।

(iii) यदि प्रन्यासी जो टी. वी. नहीं देख पाते जॉब रिक्तताओं के बारे में सूचनाएँ खो देते हैं ।

(iv) यदि किसी क्षेत्र में पॉवर फेल हो जाती है तो ऐसे क्षेत्र में रहने वाले लोग पॉवर फेल होने की अवधि के दौरान Vacancies Telecast को खो देते हैं ।

बाहरी स्रोतों के गुण (Merits of External Sources):

भर्ती के बाहरी स्रोतों के निम्न गुण हो सकते हैं:

i. प्रशिक्षित कर्मचारी (Qualified Personnel):

भर्ती के बाहरी स्रोतों का प्रयोग करके प्रबन्ध संगठन में रिक्त पदों के लिए आवेदन करने के लिए योग्य तथा प्रशिक्षित लोगों को उत्साहित करता है ।

ii. व्यापक चयन (Wider Choice):

जब रिक्त पदों के लिए व्यापक तौर पर विज्ञापन किया जाता है तो संगठन के बाहर के अनेकानेक आवेदक अपना-अपना आवेदन देते हैं । रोजगार के लिए लोगों का चयन करते समय प्रबन्ध के पास अधिक व्यापक चयन होता है ।

iii. नई प्रतिभा (Fresh Talent):

अन्दर के लोगों की सीमित प्रतिभाएँ हो सकती हैं । बाहरी स्रोत उपक्रम में नये-नये विचारों के साथ युवा पीढ़ी को प्रवेश करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं । इससे उपक्रम के सर्वागीण व्यवस्था निश्चय ही सुधरेगी ।

iv. प्रतिस्पर्द्धा भावना (Competitive Spirit):

यदि एक कम्पनी बाहरी स्रोतों का दोहन कर सकती है तो विद्यमान स्टॉफ को बाहर वालों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी होगी । वे और अच्छी निष्पत्ति दिखाने के लिए अधिक परिश्रम के साथ काम करेंगे ।

v. पक्षपात रहित:

बाहर से भर्ती करने पर प्राय: सभी आवेदक प्रबन्धकों के लिए नए होते हैं और कर्मचारियों के चयन में किसी तरह के पक्षपात होने की संभावना नहीं होती ।

बाहरी स्रोतों के दोष (Demerits of External Sources):

बाहरी स्रोतों से रिक्त स्थान भरने के निम्न दोष भी हैं:

i. विद्यमान स्टॉफ में नैराश्य (Dissatisfaction among Existing Staff):

बाहरी भर्ती विद्यमान कर्मचारियों में असंतुष्टि तथा नैराश्य की भावना पैदा कर सकती है । वे महसूस कर सकते हैं कि पदोन्नति के उनके अवसर कम हो रहे हैं ।

ii. लम्बी प्रक्रिया (Lengthy Process):

बाहरी स्रोतों से भर्ती में अधिक समय लगता है । व्यवसाय को पद रिक्तताओं की अधिसूचना करनी होती है तथा फिर चयन प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है ।

iii. महँगी प्रक्रिया (Costly Process):

बाहरी स्रोतों से स्टॉफ की भर्ती काफी महँगी होती है । विज्ञापन तथा आवेदनों के प्रक्रियाकरण में धन का अनावश्यक अपव्यय करना पड़ता है ।

iv. अनिश्चित प्रत्युत्तर (Uncertain Response):

बाहर से प्रत्याशियों का जरूरी नहीं है कि वे उपक्रम के लिए सदा ही उपयुक्त रहें । इस बात की कोई गारन्टी नहीं है कि उपक्रम बाहरी स्रोतों से लोगों के सही प्रकारों को आकृष्ट करने में सफल हो जायेगा ।

v. गलत चयन की संभावना:

बाहरी लोगों के विषय में पूरी जानकारी न होने के कारण गलत चयन की संभावना बनी रहती है । यदि एक भी गलत चयन हो जाए तो यह संस्था के लिए हानिकारक हो सकता है ।

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