Read this article in Hindi to learn about the five main steps to be followed for selecting candidates. The steps are: 1. Interview 2. Group Discussion 3. Career Planning 4. Placement 5. Induction.   

Step # 1. साक्षात्कार (Interview):

साक्षात्कार की परिभाषाएँ निम्न प्रकार से दी गई हैं:

1. विश्वनाथ घोष के अनुसार- ”आमने-सामने बैठकर मौखिक, दृश्यात्मक व व्यक्तिगत रूप से आवेदक का मूल्यांकन करने की विधि को साक्षात्कार कहते हैं ।”

2. स्कॉट के अनुसार- “दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों के उद्देश्यपूर्ण विनिमय प्रश्नों के उत्तर तथा आपसी सम्प्रेषण को साक्षात्कार कहते हैं ।”

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इस प्रकार साक्षात्कार भावी कर्मचारियों का तकनीक द्वारा मौखिक रूप से उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने की एक विधि है ।

साक्षात्कार के उद्देश्य (Objectives of Interview):

स्ट्रोस व सेयल्स (Strauss and Sayles) के अनुसार- ”साक्षात्कार का उद्देश्य कार्य की विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ प्रार्थी को मापना अर्थात् उसका मूल्यांकन करना है और यह निश्चय करना है कि क्या वह कार्य के लिए उपयुक्त होगा यह तकनीक प्रार्थी को इस बात की भी अनुमति देती है कि वह कार्य तथा संगठन के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर कर सके ।”

दी अमेरिकन मैनेजमेन्ट एसोसियशन (The American Management Association) ने साक्षात्कार के निम्न चार उद्देश्य बताए हैं:

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(i) एक अच्छे चयन तथा नियुक्ति (Selection and Placement) के लिए प्रार्थी की योग्यताओं के परीक्षण के अवसर प्रदान करना ।

(ii) कम्पनी के उद्देश्यों के सम्बन्ध में प्रार्थी को आवश्यक तथ्यों के बारे में जानकारी देना ।

(iii) पारस्परिक समझ तथा विश्वास की भावनाओं का निर्माण करना ।

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(iv) संस्था के प्रति सद्भावना पैदा करना चाहे साक्षात्कार के फलस्वरूप प्रार्थी का चयन हो अथवा नहीं ।

इस प्रकार साक्षात्कार एक लोचपूर्ण (Flexible) उपकरण है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए एवं विभिन्न प्रकार के व्यक्तित्व वाले प्रार्थियों के चयन के लिए किया जा सकता है ।

चयन की इस तकनीक को द्विमार्गी (Two-Way) बतलाया गया है, क्योंकि इसमें आवेदकों से आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं तथा आवेदकों को आवश्यक सूचनाएँ प्रदान की जाती हैं ।

संक्षेप में साक्षात्कार को रस्साकशी (Tug of War) का खेल बतलाया गया है, जिसमें आवेदक अपनी योग्यताओं को प्रदर्शित करने के लिए सावधानीपूर्वक प्रश्नों के उत्तर देता है तथा प्रभावशील व्यवहार द्वारा व्यक्तित्व की एक छाप साक्षात्कार कर्त्ताओं पर छोड़ना चाहता है ।

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वह प्रश्नों के उत्तर इस दृष्टिकोण से देता है कि साक्षात्कारकर्त्ता उससे सन्तुष्ट हो जाए । दूसरी ओर, साक्षात्कारकर्त्ता इस प्रकार की दलीलें तथा तर्क प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है जिससे आवेदक का सही व्यक्तित्व सामने प्रकट हो जाये । सही कारण है कि साक्षात्कार को एक कला माना गया है ।

साक्षात्कार की सफलता के आवश्यक तत्व (Elements for the Success of Interview):

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सफल साक्षात्कार के लिए यह आवश्यक समझा जाता है कि साक्षात्कारकर्त्ता आवेदकों के व्यक्तित्व का निरीक्षण परीक्षण तथा अन्य योग्यताओं की जाँच-पड़ताल मैत्रीपूर्ण तथा अनैपचारिक वातावरण में करें, जिससे प्रार्थियों को किसी प्रकार की घबराहट, हिचकिचाहट व परेशानी का अनुभव न हो तथा वे अपने वास्तविक गुणों को प्रकट कर सकें ।

साक्षात्कार की सफलता निम्नलिखित मुख्य बातों पर निर्भर है:

1. किसी प्रत्याशी को साक्षात्कार के लिए बुलाने से पहले उसके आवेदन-पत्र और उसके साथ संलग्न प्रमाण-पत्रों का भली प्रकार से अध्ययन करना चाहिए, जिससे उस प्रत्याशी विशेष के सम्बन्ध में सभी आवश्यक जानकारी प्राप्त हो सकें ।

2. प्रत्याशियों से साक्षात्कार के समय किए जाने वाले प्रश्नों की सूची पूर्व-निश्चित होनी चाहिए और यथासम्भव अधिक प्रश्न उनके कार्य से सम्बन्धित होने चाहिये ।

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3. सभी प्रत्याशियों को साक्षात्कार की सूचना पूर्व-निश्चित समय पर अवश्य भेज देनी चाहिए ।

4. साक्षात्कार का स्थान एकान्त में होना चाहिए जहाँ किसी प्रकार का शोरगुल न हो ।

5. साक्षात्कार लेने वाले व्यक्तियों का दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए । उन्हें किसी पूर्व निश्चित धारणा के आधार पर कार्य नहीं करना चाहिए ।

6. साक्षात्कार का वातावरण ऐसा होना चाहिए जिसमें प्रत्याशी नि:संकोच बातचीत कर सके ।

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7. साक्षात्कार के समय की जाने वाली बातचीत स्पष्ट होनी चाहिए । अत: प्रत्याशी के मन में किसी भी प्रकार से भ्रम पैदा नहीं करना चाहिए और उसकी सभी बातें ध्यानपूर्वक सुनी जानी चाहिए ।

साक्षात्कार निर्धारण आवेदन (Interview Assessment Form):

1. गुप्तता (Confidential);

2. प्रत्याशी की योग्यताओं का आकलन (Candidate’s Abilities Rating);

3. व्यक्तिगत आंकड़े (Personnel Data); नाम, आयु, लिंग, आदि;

4. स्वास्थ्य (Health);

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5. प्रकटन (Manner and Appearance);

6. शिक्षा (Education);

7. अनुभव (Experience);

8. विवेक (Intelligence);

9. प्रशासकीय योग्यता (Administrative Ability);

10. सामाजिक योग्यता (Social Ability);

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11. भावनात्मक स्थायित्व (Emotional Stability);

12. पहल भावना (Initiative);

13. अभिप्रेरणा या उद्देश्य (Motivation or Goals);

14. विशेष (Remarks) ।

जब साक्षात्कार समाप्त हो जाता है तो प्रत्येक साक्षात्कारकर्त्ता को अपने नोट्‌स की समीक्षा करनी चाहिये तथा विचार करना चाहिये कि क्या कुछ घटित हुआ है । पूर्ण साक्षात्कार नोट्‌स एक केस रिकॉर्ड का एक महत्वपूर्ण भाग बनता है ।

वे सभी प्रकार के सन्दर्भों के लिए मूल्यवान होते हैं जैसे उसी व्यक्ति के साथ एक अन्य साक्षात्कार से पूर्व समीक्षा हेतु । साक्षात्कार समिति या चयन बोर्ड के सभी सदस्य इस विषय पर विचार-विमर्श करेंगे तथा प्राथमिकता क्रम में चयन हेतु सुझाये गये प्रत्याशियों के एक पैनल को तैयार करेंगे ।

Step # 2. ग्रुप विचार-विमर्श (Group Discussion):

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ग्रुप विचार विनिमय कुछ प्रत्याशियों के साथ-साथ सामाजिक ढाँचे, व्यक्तित्व व्यवहार, रुचियों तथा विभिन्न सामाजिक गुणों को जानने के लिए प्राथमिकत: प्रयोग किया जाता है । ऐसी परिस्थितियों में जहाँ नेतृत्व योग्यता एक महत्वपूर्ण घटक होती है ग्रुप साक्षात्कार आयोजित किये जाते हैं ।

कभी-कभी एक रिक्त आवेदन (Application Blank) से, यह सम्भव नहीं होता कि ऐसे उदाहरणों को स्पष्ट करें जहाँ प्रत्याशियों में नेतृत्व की स्थितियों तथा उत्तरदायित्वों का ज्ञान होता है ।

यह उन परिस्थितियों के कारण होता है कि आवेदक के पास ऐसी परिस्थितियों में भाग लेने के लिए या तो अवसर नहीं होते या बहुत ही कम अवसर होते हैं जिनमें नेता की भूमिका की माँग की जाती है ।

अत: एक साक्षात्कारकर्त्ता के लिए यह कठिन होता है कि अपर्याप्त साक्ष्य के आधार पर आवेदक की नेतृत्व योग्यता के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाल सके । ग्रुप साक्षात्कार तथा परिस्थिति परीक्षण में एक ग्रुप में प्रत्येक व्यक्ति के वास्तविक व्यवहार के आधार पर निर्णय लिया जा सकता है ।

इसका यह भी लाभ होता है कि व्यक्तित्व का अधिक शुद्धता के साथ आकलन किया जा सकता है क्योंकि व्यक्ति के गुण व्यापक सामाजिक स्थिति में द्विगुणित हो जाते हैं ।

लेकिन ग्रुप साक्षात्कारों के कई दोष होते हैं:

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1. अवलोकन हेतु समय सामान्यत: साधारण साक्षात्कार के लिए उपलब्ध से समय कुछ लम्बा नहीं होता ।

2. प्रत्याशियों के बीच अन्त: सम्पर्क निहित होता है तथा इस बात की संभावना होती है कि दूसरों की अपेक्षा किसी आवेदक को अधिक Commanding Position में रखा जाये । लेकिन कुल मिलाकर, ग्रुप साक्षात्कार आकलन जॉब पर वास्तव में महत्वपूर्ण प्रकार के व्यवहार को उजागर करने में कहीं अधिक वस्तुनिष्ठ तथा वैज्ञानिक होता है ।

ग्रुप साक्षात्कार द्वारा आकलित व्यवहार तदोपरान्त जॉब सफलता का एक वैध संकेतक होता है लेकिन विभिन्न साक्षात्कारकर्त्ताओं की खोजों में अनेक परिवर्तन रहे हैं । कुछ अध्ययनों ने ग्रुप साक्षात्कारों द्वारा कार्य की सफलता के पर्याप्त पूर्वानुमान को प्रदर्शित किया है ।

3. ग्रुप साक्षात्कार एक व्यवस्थित साक्षात्कार या एक मानक परीक्षण की अपेक्षा प्रशासित करने के लिए अधिक कठिन होता है ।

ग्रुप विचार विनियम की कार्यविधि (Procedure of Group Discussion):

एक ग्रुप साक्षात्कार में, 10-15 सदस्यों वाले ग्रुप को एक विशिष्ट समस्या दे दी जाती है जो प्राथमिक तौर पर स्वयं को एक विचार विनियम में लगा लेते हैं । एक कोने में बैठा Observer अपने तर्क, विचार तथा राय बिल्कुल नहीं ऑफर करता वरन् मात्र विचार विनियम का निर्देशन तथा मार्गदर्शन करता है ।

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इस स्थिति में कुछ कार्य प्रारम्भ करते हैं तथा विचार विनियम को ‘लीड’ करते हैं जब दूसरे बहुत कम भागीदारी करते हैं । ग्रुप विचार विनिमय वास्तव में अच्छा होता है जहाँ एक व्यक्ति को चुने जाने के बाद एक ग्रुप के अन्य सदस्यों के साथ सहयोग में काम करना होता है ।

अवलोकनकर्त्ता व्यक्ति को नेतृत्व गुणों, व्यवहार, निर्णयन तथा व्यक्तित्व के बारे में अपना अवलोकन बनाता है । विभिन्न व्यक्तियों द्वारा दिखाये गये आक्रामक या सहयोगपूर्ण व्यवहार की गिनती को रिकॉर्ड करने के एक वस्तुनिष्ठ तरीके में व्यवहार को रिकॉर्ड किया जाता है ।

ग्रुप साक्षात्कार की विचारधारा को समझने के लिए एक ग्रुप में किसी व्यक्ति के सम्पर्क सूत्र (Interaction) को देखना चाहिये । यह निश्चित है कि कुछ व्यक्ति सक्रिय तौर पर भाग लेते है जबकि कुछ अन्य उतने सक्रिय भागीदार नहीं होते ।

एक ग्रुप में अन्त: सम्पर्क निम्न के कारण दो तरीकों से उभरता है:

(i) वस्तुनिष्ठ नेतृत्व के कारण होने वाला अन्त: सम्पर्क तथा

(ii) व्यक्तिगत सम्बन्धों से उभरने वाला अन्त: सम्पर्क ।

अवलोकनकर्त्ता (Observer) को यह देखना होता है कि कितनी बार एक सदस्य ने ग्रुप के दूसरे सदस्यों को सम्बोधित किया । ग्रुप विचार विनियम के दौरान दिये गये कतिपय रिमार्कों की समीक्षा वास्तविक स्थिति में व्यक्तियों के व्यवहार के निर्धारण में सहायक हो सकती है ।

Step # 3. जीवन-वृत्ति योजना (Career Planning):

जीवन-वृत्ति योजना को मानव संसाधन विकास (Human Resources Development) का मुख्य एवं आवश्यक अंग समझा जाता है । जीवन-वृत्ति योजना आंकड़े ‘मानव संसाधन अंकेक्षण’ तथा ‘जीवन-वृत्ति योजना’ के लिए प्रयोग किए जाते हैं तथा संगठन विकास कार्यक्रम के लिए खोज करने में सहायता करते हैं ।

यदि कार्य जीवन की प्रक्रिया में कर्मचारी का विकास होता है तो इससे हमारा तात्पर्य यह है कि वह अपने पहले पद (Position) से काफी उच्च स्थान पर पहुँच गया है ।

पद का ऊँचा होने पर उसके वेतन तथा अन्य सुविधाओं में वृद्धि हो जाती है और उसका किसी भी अन्य अच्छे पद पर स्थानान्तरण किया जा सकता है । जीवन-वृत्ति योजना सभी कर्मचारियों से सम्बन्धित है ।

जीवन-वृत्ति योजना में सदैव पारस्परिक हित होता है तथा व्यक्तिगत आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जाता है, इसके अतिरिक्त उनके विकास के कार्य करता है ।

कुछ पेशेवर तौर पर प्रबन्धित कम्पनियों में (Professionally Managed Companies) प्रत्येक महत्वपूर्ण अधिकारी से बहुधा पूछा जाता है कि दो या तीन सर्वोत्तम जूनियर्स की पहचान करायें जो आवश्यकता पड़ने पर उसके काम को प्रतिस्थापित कर सके ।

लेकिन आन्तरिक स्रोतों पर पूरी निर्भरता तनाव पैदा कर सकती है तथा संगठन में गतिहीनता (Stagnation) आ जाती है । इसी तरह से बाहरी प्रतिभा पर पूरी निर्भरता वर्तमान कर्मचारियों के करीयर्स में जड़ाव ला सकती है जो उनमें कार्य असंतुलित तथा मनोद्वेग का भाव पैदा कर सकते हैं ।

Career Planning and Succession Planning समान प्रतीत होती है लेकिन एक-दूसरे की पर्यायवाची नहीं है । जीवन वृत्ति योजना सभी स्तर के कर्मचारियों को शामिल करती है जबकि Succession Planning सामान्यत: अपेक्षाकृत उच्च स्तरीय प्रशासकों के लिए ही अपेक्षित होती है सामान्यत: Career Plan पर आधारित होती है ।

एक Succession Plan में ऐसे रिक्त स्थानों की पहचान का समावेश होता है जो अपेक्षाकृत उच्च स्तरों पर उत्पन्न हो सकती हैं तथा साथ ही संभावित अनुगामियों (Probable Successors) की खोज भी की जाती है ।

Succession Planning संगठन में निरन्तरता को सुचारु बनाती है । जीवन वृत्ति योजना में यह दिखाते हुए कि संगठन में वे कैसे आगे बढ़ सकते हैं कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों के Career Paths का प्रदर्शन करने वाले चार्टों का समावेश हो सकता है । लेकिन एक Succession Plan में एक पदस्थिति विशेष के लिए जैसे महाप्रबन्धक के लिए, एक Runner Up Chart या Chart का समावेश होता है ।

Step # 4. कार्य पर नियुक्ति (Placement):

जब कर्मचारियों का अन्तिम रूप से चयन हो जाता है, तब उन्हें कार्य सौंपने की समस्या आती है । सही कार्य पर ही सही व्यक्ति की नियुक्ति संगठन के लिए लाभप्रद रहती है । इसलिए कार्य सौंपते समय कर्मचारियों की योग्यता क्षमता एवं अन्य आवश्यक आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए ।

अत: सही कार्यों पर नव-नियुक्त कर्मचारी को अवस्थित करना ही कार्य पर नियुक्ति कहलाती है । अन्य शब्दों में कार्य पर नियुक्ति का अर्थ नव-नियुक्त कर्मचारी को निर्धारित कार्यों को सौंपना है । डेल योडर (Dale Yoder) के अनुसार- “नव-नियुक्त कर्मचारी को विशेष कार्य की सुपुर्दगी ही कार्य पर नियुक्त है ।”

वस्तुत: कार्य पर नियुक्ति एक ऐसा व्यवहार है, जिसके अन्तर्गत कर्मचारियों को उन्हीं कार्यों पर नियुक्त किया जाता है जिसके लिए उनका चयन किया गया है । दूसरे शब्दों में, कार्य प्रथम, व्यक्ति द्वितीय (Job First, Man Next) का सिद्धान्त अपनाया जाना चाहिये ।

सही कार्य पर नियुक्ति से श्रम परिवर्तन, श्रम अनुपस्थिति दुर्घटनाओं एवं मनोबल आदि की समस्या उत्पन्न नहीं होती । कार्य पर नियुक्ति का कार्य उस विभागाध्यक्ष द्वारा किया जाता है, जिस विभाग में नये कर्मचारी की नियुक्ति की जानी है ।

विभागाध्यक्ष को चाहिए कि वह कर्मचारी को कोई कार्य विशेष सौंपने से पूर्व उसकी योग्यता, क्षमता एवं ज्ञान का मिलान कार्य की अपेक्षाओं, दायित्वों तथा विशेषताओं से कर ले और कर्मचारी की उपयुक्तता की जाँच पूरी तरह कर ले, जिससे कर्मचारी को कार्य से सन्तुष्टि (Job Satisfaction) प्राप्त हो सके और वह कार्य की स्थितियों के साथ अपना समायोजन कर सके ।

प्रारम्भ में नये कर्मचारियों की कार्य पर नियुक्ति परिवीक्षा-अवधि (Probation) पर की जाती है । यदि कर्मचारी का कार्य उक्त अवधि में सन्तोषप्रद रहता है, तो इस परिवीक्षा-अवधि की समाप्ति के उपरान्त उसे स्थायी रूप से नियुक्त कर दिया जाता है ।

इस पर नये कर्मचारी की नियुक्ति अस्थायी होती है, किन्तु थोड़े समय के पश्चात् उसकी सेवाएँ नियमित एवं स्थायी कर दी जाती हैं । बहुत ही कम स्थितियों में किसी कर्मचारी को कार्य से निकाला जाता है, जब तक कि वह कार्य के प्रति आवश्यकता से अधिक उदासीन एवं लापरवाह न हो या उसका चरित्र संदेहजनक हो ।

कार्य पर नियुक्ति के सिद्धान्त (Principles of Placement):

एक कर्मचारी को किसी कार्य पर नियुक्त करते समय कुछ सिद्धान्तों का पालन किया जाना चाहिये ।

नियुक्ति के समय जिन मूलभूत सिद्धान्तों का अनुसरण करना चाहिये, उनमें मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं:

1. कार्य प्रथम-व्यक्ति द्वितीय सिद्धान्त:

नियुक्ति का सबसे मुख्य सिद्धान्त यह है कि कार्य करने के अनुसार ही व्यक्तियों की नियुक्ति होनी चाहिए । ऐसा नहीं होना चाहिए कि पहले व्यक्तियों की नियुक्ति हो और उसके आधार पर कार्य का निर्धारण किया जाये ।

दूसरे शब्दों में कार्य प्रथम-व्यक्ति द्वितीय (Job First-Man Next) का सिद्धान्त अपनाया जाना चाहिये । इससे संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति उचित रूप से हो सकती है ।

2. योग्यता सिद्धान्त:

नियुक्ति करते समय यह सिद्धान्त इस बात को ध्यान में रखने का निर्देश देता है कि जिस व्यक्ति को नियुक्त किया जा रहा है, वह सम्बन्धित कार्य को करने के योग्य है अथवा नहीं ?

यदि व्यक्ति कार्य हेतु उचित योग्यता नहीं रखता है, तो उसकी नियुक्ति नहीं की जानी चाहिये, अर्थात् उपक्रम में केवल योग्य व्यक्ति की ही नियुक्ति के लिए यह सिद्धान्त दिशा निर्देश देता है ।

3. निर्देशन सिद्धान्त:

नियुक्ति के इस सिद्धान्त से यह आशय है कि किसी व्यक्ति को नियुक्त करते समय उसको कार्य दशाओं एवं कार्य के सम्बन्ध में भली प्रकार से सभी बातें स्पष्टत: बता देनी चाहिये ।

इसके साथ उसे यह भी आवश्यक रूप से बता देना चाहिये कि गलती करने पर उसे क्या दण्ड मिल सकता है ? इससे वह अपने उत्तरदायित्व को भी समझ जायेगा तथा कार्य के प्रति भी सतर्क रहेगा ।

4. आवश्यकता सिद्धान्त:

एक व्यक्ति को किसी कार्य पर नियुक्त करते समय उसे कार्य की आवश्यकताओं से पूर्णरूप से परिचित करा दिया जाना चाहिये । इससे वह अपने कार्य के प्रति उत्तरदायित्व को ठीक से निभा सकेगा ।

5. हित सिद्धान्त:

नियुक्ति का यह सिद्धान्त यह बताता है कि कर्मचारियों को नियुक्त करते समय उनमें इस भावना का विकास करना चाहिये कि उपक्रम व कार्य उसके अपने है, यदि वह इन्हें सुचारु रूप से चलायेगा तो उसे ही लाभ होगा अर्थात् अच्छी स्थिति प्राप्त होगी इसके विपरीत यदि वह उसे सही ढंग से नहीं चला सकेगा तो उसे हानि का सामना करना पड़ सकता है, अर्थात् उसकी नियुक्ति रद्द हो सकती है ।

Step # 5. परिचय अथवा आगमन (Induction):

नव-नियुक्त कर्मचारियों की कार्य पर नियुक्ति के पश्चात्, उनका परिचय कराया जाता है । यह परिचय की प्रक्रिया (Process of Induction) सिद्धान्त-बोध (Introduction) के नाम से भी जानी जाती है ।

आगमन एवं परिचय को एक ऐसा व्यवहार माना जाता है जिसके द्वारा कर्मचारी को रोजगार पर नियुक्त करने वाले संगठन के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती है ।

इस जानकारी का उद्देश्य कर्मचारी को संगठन का अभिन्न अंग होता है । इससे कर्मचारी स्वयं को संगठन का सदस्य समझने लगता है और कार्य के साथ उसका पूर्णतया समायोजन हो जाता है । परिचय से कर्मचारी को नये कार्य एवं नये वातावरण में किसी प्रकार की कठिनाई अनुभव नहीं होती ।

परिचय या प्रवेश की कार्यवाही कर्मचारी में कार्य के प्रति तथा संगठन के प्रति अपनत्व की भावना विकसित करती है । इस प्रकार परिचय एक प्रतिष्ठान के उद्देश्यों नीतियों एवं पद्धतियों के बारे में कर्मचारियों को शिक्षित करने का एक साधन है । ऐसा परिचय मौखिक अथवा लिखित हो सकता है ।

मौखिक परिचय में कर्मचारियों को उनके कार्यों, विभागों, पर्यवेक्षकों, अधिकारियों, उत्तरदायित्वों, कार्यस्थितियों एवं अन्य अनेक विषयों के सम्बन्ध में जानकारी एवं निर्देश दिये जाते हैं । लिखित परिचय में कर्मचारियों को लिखित सामग्री दी जाती है, जोकि उनको संगठन के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं ।

ऐसी लिखित सामग्री में गत् वर्षों की रिपोर्ट पत्रिकाएँ, आदि हो सकती हैं । कई बार कर्मचारियों को संगठन की भौगोलिक स्थिति से भी परिचित कराया जाता है और उन्हें संगठन के कार्य क्षेत्र के बारे में भी जानकारी दी जाती है । कर्मचारियों को संगठन के विभिन्न विभागों, मनोरंजन कक्ष, कैन्टीन आदि अन्य स्थानों पर ले जाया जाता है ।

संक्षेप में, परिचय की प्रक्रिया के अन्तर्गत:

(i) संगठन एवं उसके उत्पादों,

(ii) संयन्त्र की भौगोलिक स्थिति,

(iii) संगठन की संरचना एवं विभिन्न विभागों के कार्य,

(iv) रोजगार की शर्तों, सुविधाओं एवं कार्य-स्थिति,

(v) कल्याण कार्य,

(vi) स्थायी आदेश,

(vii) परिवेदना पद्धति,

(viii) दुर्घटना की रोकथाम,

(ix) कम्पनी की नीति, उद्देश्य एवं व्यवस्था आदि के सम्बन्ध में दी जाने वाली जानकारी को शामिल किया जाता है ।

इन सूचनाओं के परिणामस्वरूप कर्मचारी संस्थान के नियमों एवं व्यवस्थाओं से तो परिचित हो ही जाते हैं, साथ ही अपने विभाग एवं सहयोगियों को भी जानने लगते हैं और कार्यकारी समूह के सदस्य बन जाते हैं ।

आगमन के उद्देश्य एवं लाभ (Objectives and Advantages of Induction):

सैद्धान्तिक रूप से, आगमन की कार्यवाही का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों में संस्थान के प्रति आस्था, विश्वास एवं निष्ठा की भावना जागृत करते हुए उन्हें संस्थान का अभिन्न अंग बनाना है इस विश्वास से कर्मचारी अपने कार्य में संतुष्टि प्राप्त करते हैं और कार्य की स्थितियों के साथ अपना समायोजन कर लेते हैं ।

इन उद्देश्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैं:

1. नये कर्मचारियों में विश्वास, अपनत्व, आस्था एवं निष्ठा की भावना पैदा करना,

2. संस्थान के बारे में कर्मचारियों को आवश्यक जानकारी प्रदान करना,

3. कर्मचारियों को उनके अधिकारों, दायित्वों एवं स्थिति से अवगत कराना ।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि परिचय की कार्यवाही का एकमात्र उद्देश्य कर्मचारियों को संगठन के उद्देश्यों, नीतियों एवं पद्धतियों से परिचित कराना है ।

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