Read this article in Hindi to learn about the wage and salary policies of a company.

मजदूरी तथा वेतन नीतियों के विभिन्न स्वरूप विकसित किये जा चुके हैं जो व्यवसाय की प्रकृति तथा उसकी स्थिति जैसे घटकों के अनुसार अलग-अलग हैं । चूंकि मजदूरी तथा वेतन सामान्यत: कुल लागत के एक बड़े भाग का सृजन करते हैं अत: यह सदा ही परामर्श योग्य होता है कि नीति प्रतिस्पर्द्धियों की मजदूरी तथा वेतन स्तरों और साथ ही साथ एक भौगोलिक क्षेत्र में वेतन के स्तरों को मान्यता दे ।

यही बात Industry-Cum-Region सूत्र बताता है । मजदूरी तथा वेतन नीति की परम्परागत विधि रही है यह मानना कि मजदूरी तथा वेतन एक ऐसे स्तर पर होने चाहिये जो उनको सौंपे गये कार्यों को पूरा करने के लिए सक्षम कर्मचारियों को आकृष्ट, अनुरक्षित तथा अभिप्रेरित करने के लिए पर्याप्त हो ।

लेकिन यह तरीका स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यह मानवीय श्रम को माँग एवं पूर्ति के आर्थिक सिद्धान्त के आधार पर एक वस्तु के रूप में देखता है । यह मानवीय घटकों की अनदेखी करता है । साथ ही संगठित श्रम एवं राज्य विधानों के दबाव के साथ मौलिक आलोचना के फलस्वरूप नीति विवरणों के अन्य अनेक स्वरूप विभिन्न संगठनों द्वारा अपनाये जा चुके हैं ।

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सर्वाधिक प्रचलित मजदूरी तथा वेतन नीति वह होती है जिसे एक संगठन में मजदूरी तथा वेतन स्तरों को अपनी प्रतिस्पर्द्धियों के समान ही सम्बद्ध करता है, या तो अपने निजी उद्योग में या उनके साथ जो एक भौगोलिक क्षेत्र में श्रम हेतु प्रतिस्पर्द्धी हैं । एक कम्पनी इस तरह की एक नीति का चयन कर सकती है ।

”हम ऐसा वेतन तथा मजदूरी चुकायेंगे जो स्थानीय भौगोलिक क्षेत्र में उद्योग में अन्य कम्पनियों के औसत को सन्निकट करें ।” लेकिन यदि उस भौगोलिक क्षेत्र में उद्योग में ऐसी ही कोई कम्पनी नहीं है तो वह अपने मजदूरी तथा वेतन स्तरों को उस क्षेत्र के भीतर अन्य कम्पनियों के स्तरों से सम्बन्धित कर सकती है ।

वस्तुत: अधिकांश कम्पनियाँ मजदूरी तथा वेतन स्तर को तय करने में Followers बनाना चाहती हैं क्योंकि वे दूसरों की गतिविधियों पर निर्भर करके सामान्य मजदूरी तथा वेतन परिवर्तनों को लागू कर देती हैं ।

मजदूरी तथा वेतन नीति का एक अन्य स्वरूप है सूत्र व्यवस्था (Formula Approach) जो मजदूरी परिवर्तनों हेतु आधार के रूप में जीवन निर्वाह लागत तथा उत्पादकता में परिवर्तनों को मान्यता देती है । अनेक मजदूरी अभिप्रेरणा योजनाएँ (Wage Incentive Plans) हैं जो मजदूरी में वृद्धि हेतु श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि को मान्यता देती हैं ।

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लेकिन ट्रेड यूनियन इनका विरोध करती हैं तथा तर्क देती हैं कि श्रमिकों के जीवन निर्वाह लागत का सूचकांक देखा जाना चाहिये । यह उल्लेखनीय है कि आलोचना से बचने के लिए अनेक संगठन एक सामान्यीकृत नीति को अपनाते हैं ।

जब वे कहते हैं ”हम उतना वेतन तथा मजदूरी देना चाहते हैं जो उचित तथा साम्य तौर से उचित दिन के काम के लिए कर्मचारियों को प्रतिफल दे ।” वैसे इस तरह का एक काम जो विशिष्ट मानदण्डों से हटकर हो, विश्लेषण में अधिकतम लोच प्रदान करता है लेकिन ऐसे कर्मचारियों को स्वीकार्य नहीं हो सकता है जो नीति के कहीं अधिक दृश्य स्वरूप को प्राथमिकता देते हैं ।

मजदूरी तथा वेतन नीति के उद्देश्य उपक्रम के भीतर प्रत्येक अन्य पद के सम्बन्ध में सभी पदों के मूल्य की मान्यता देना, कर्मचारियों को स्थिर आय का आश्वासन देना, व्यक्तियों को अपनी पूर्ण आय सम्भावनाओं तक पहुँचने में समर्थ बनाने वाले होने चाहिए ।

एक उपयुक्त मजदूरी तथा वेतन नीति के सृजन के अनेक लाभ हैं । एक सामान्य मजदूरी तथा वेतन नीति का सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining) के आधार पर वास्तविक मूल्य हो सकता है क्योंकि यह केवल तभी होता है जब कर्मचारियों के नेता कम्पनी के दृष्टिकोण से परिचित हों कि इसके प्रति एक सहमति विकसित करने की कोई आशा हो सकती है ।

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कम्पनी का प्रबन्ध अपने कर्मचारियों को मना सकता है कि मजदूरी तथा वेतन पर उसकी नीति उचित तथा वस्तुनिष्ठ है । एक सामान्य मजदूरी तथा वेतन नीति श्रम कमी (Labour Shortage) की दशा में नये कर्मचारियों की भर्ती में लाभपूर्ण हो सकती है ।

सामान्य मजदूरी तथा वेतन नीति के साथ-साथ अतिरिक्त नीतियाँ भी बनाई जा सकती हैं ताकि मजदूरी तथा विशिष्ट वेतन विचारों का समावेश कर सकें जैसे पदोन्नतियाँ (Promotion) ।

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