Read this article in Hindi to learn about the merits and demerits of piece rate wage system.

कार्यानुसार मजदूरी भुगतान प्रणाली के लाभ (Merits of Piece Rate Wage Method):

इस प्रणाली के निम्नलिखित लाभ हैं:

1. श्रमिकों को प्रोत्साहन (Incentive to Workers):

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श्रमिकों को इस प्रणाली में अधिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है क्योंकि इसमें मजदूरी का वितरण न्यायपूर्ण होता है । श्रमिक जानते हैं कि अधिक कार्य करने से अधिक मजदूरी मिलेगी । अत: वे अपनी इच्छा से अधिक काम करने की कोशिश करते हैं ।

2. उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production):

इस प्रणाली में श्रमिक अधिक मजदूरी पाने की लालसा में समय को बिल्कुल भी नष्ट नहीं करते बल्कि अधिक से अधिक कार्य करते हैं जिसके फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है ।

3. प्रति इकाई उत्पादन व्यय में कमी (Reduction in Per Unit Cost of Production):

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उत्पादन मात्रा में वृद्धि होने के कारण प्रति इकाई उत्पादन व्यय में कमी आती है क्योंकि उपरिव्यय प्राय: निश्चित रहते हैं, परिणामस्वरूप उपभोग्ताओं को सस्ती दर पर वस्तुएँ मिल जाती हैं ।

4. श्रम तथा पूँजी में मधुर सम्बन्ध (Cordial Relation between Labour and Capital):

श्रमिकों को उनकी कार्य करने की योग्यता के अनुसार एवं उत्पादकता के आधार पर मजदूरी मिलने के कारण श्रम एवं पूँजी में मधुर सम्बन्ध रहते हैं ।

5. उत्पादन विधियों तथा क्रियाओं में सुधार (Improvement in Production Techniques):

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इस प्रणाली से न केवल उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होती है बल्कि उत्पादन-विधियों व क्रियाओं में भी सुधार देखने को मिलते हैं । दोष रहित उत्पादन के लिए श्रमिक अच्छा कच्चा माल व नवीनतम मशीन एवं यन्त्रों की माँग करता है । मजदूरी की प्रेरणा उसको सर्वश्रेष्ठ उत्पादन-विधि से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है । इस प्रकार उत्पादन क्रियाओं में सुधार हो जाता है ।

6. गतिशीलता में वृद्धि (Increase in Labour Mobility):

कार्य को निरन्तर करते रहने के कारण श्रमिक अपने कार्य में कुशल हो जाते हैं जिससे उनको एक उद्योग से दूसरे समान उद्योग में कार्य सुगमता से मिल जाता है ।

7. श्रमिकों का सर्वांगीण विकास (All-Round Development to Labour):

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श्रमिक अधिक कार्य करके अधिक मजदूरी कमाते हैं जिससे उनकी क्रय-शक्ति बढ़ती है । क्रय शक्ति बढ़ने से उपभोग का स्तर उठता है जिससे उनका जीवन-स्तर भी ऊँचा हो जाता है । उनकी कार्यकुशलता तथा गतिशीलता बढ़ती है ।

8. उत्साहपूर्ण वातावरण (Encouraging Atmosphere):

उत्पादन कार्य का मिलने वाले प्रतिफल से सीधा सम्बन्ध होने के कारण श्रमिक अधिक लगन तथा परिश्रम से कार्य करता है जिससे उसको अधिक मजदूरी मिलती है । इस प्रकार वह पूर्ण आश्वस्त भी रहता है कि उसको उसके परिश्रम का उचित पुरस्कार मिल रहा है । इससे श्रमिकों में उच्च मनोबल एवं उत्साह बना रहता है ।

9. अन्य लाभ (Other Advantages):

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इस प्रणाली के अन्य लाभ हैं जैसे उत्पादन आय में वृद्धि होने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि तथा प्रति इकाई लागत कम होने से उपभोक्ताओं को सस्ती वस्तुओं की उपलब्धता आदि ।

कार्यानुसार मजदूरी भुगतान प्रणाली के हानियाँ (Demerits of Piece Rate Wage Method):

इस प्रणाली की निम्नलिखित हानियाँ हैं:

1. उत्पादन की किस्म में गिरावट (Decrease in Quality of Production):

इस प्रणाली में श्रमिक अधिक से अधिक मजदूरी प्राप्त करने के लिए उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं जिससे वे वस्तु के गुणों की ओर विशेष ध्यान नहीं देते और वस्तु का प्रमाप निरन्तर गिरता चला जाता है ।

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2. मशीन तथा यंत्रों का दुरुपयोग (Improper Use of Machines and Tools):

अधिक उत्पादन के उद्देश्य से श्रमिक मशीन व यंत्रों की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते । मशीनों तथा अन्य संयंत्रों का असंयत उपयोग करते हैं जिससे वे शीघ्र टूटते और घिसते हैं, फलत: उनके मरम्मत तथा प्रतिस्थापन व्यय बढ़ जाते हैं ।

3. श्रम संघों द्वारा विरोध (Opposition by Labour Unions):

श्रम संघ इस मजदूरी भुगतान पद्धति का विरोध करते हैं क्योंकि यह प्रणाली श्रमिकों की एकता भंग करती है और उनमें स्वार्थ एवं ईर्ष्या की भावना को जन्म देती है ।

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4. स्वास्थ्य पर कुप्रभाव एवं राष्ट्रीय हानि (Ill-Effect on Health and National Loss):

अधिक मजदूरी प्राप्त करने के उद्देश्य से श्रमिक अधिक से अधिक समय तक काम करते हैं इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, स्वास्थ्य की खराबी व बीमारी उनकी कुशलता को कम करने लगती है । कुशलता की कमी से श्रमिकों को, उत्पादकता को, उद्योग को, उपभोक्ता को तथा सम्पूर्ण राष्ट्र को हानि होती है ।

5. कार्यालय सम्बन्धी व्ययों में वृद्धि (Increase in Office Expenses):

श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी की राशि की सही-सही गणना एवं भुगतान करने के लिए उसके द्वारा उत्पादित इकाइयों का सही-सही ब्यौरा रखना पड़ता है जिसे ज्ञात करने में अधिक समय लगता है । अत: अतिरिक्त कार्यालय लिपिकों की आवश्यकता तथा खर्चा बढ़ जाता है ।

6. अनुपयुक्तता (Unfit):

यह पद्धति उन कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं होती जिसमें कला-कौशल की आवश्यकता होती है या जहाँ पर कार्य का मापन सम्भव नहीं होता है ।

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7. श्रमिकों की आय में असमानता:

भिन्न-भिन्न श्रमिकों को भिन्न-भिन्न मजदूरी मिलने के कारण उनमें आपसी ईर्ष्या, वैमनस्यता तथा असंतोष पैदा हो जाता है जिससे उनका मनोबल एवं एकता गिरती है ।

8. श्रम-श्रेणी विभाजन से हानि (Loss due to Labour Division):

श्रमिकों की कार्यक्षमता के अनुसार मजदूरी देने के लिए उनकी अलग श्रेणी बना दी जाती है जिससे उनमें गुटबाजी तथा फिर अपने दूसरे साथियों की माँग की अपेक्षा करने की भावना उत्पन्न हो जाती है ।

9. काम रुक जाने से हानि (Loss due to Work Stoppage):

यन्त्र आदि के टूट जाने, बिजली के फेल हो जाने से श्रमिक उत्पादन नहीं कर पाता है जिससे उतने समय की मजदूरी उसके बिना किसी दोष, उसको नहीं मिल पाती है जो उसके लिए एक नुकसान है ।

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10. नए व अक्षम श्रमिक को कम आय (Loss of Income to New-Comer):

श्रमिक के नए-नए आने तथा अकुशल होने के कारण उसको कम मजदूरी मिलती है जिससे वह असन्तुष्ट रहता है ।

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