Read this article in Hindi to learn about:- 1. Objectives of HRM 2. Scope of Human Resources Management 3. Significance.
मानवीय संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्य (Objectives of Human Resource Management):
Scott, Clothier and Spriegal के अनुसार- “एक संगठन में मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्य अधिकतम व्यक्तिगत विकास सेवायोजकों तथा कर्मचारियों के बीच तथा कर्मचारियों एवं कर्मचारियों के बीच वाँछनीय कार्य सम्बन्ध प्राप्त करना है तथा भौतिक संसाधनों के विपरीत मानवीय संसाधनों को सही रूप में ढालना है ।”
Dirks के शब्दों में- ”मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्यों में प्रभावी तौर पर मानवीय संसाधनों का सदुपयोग, उत्पादकीय तथा आत्म-सम्मानित भागीदारों के बीच कार्य सम्बन्धों की स्थापना तथा अनुरक्षण तथा संगठन में सदस्यों के अधिकतम व्यक्तिगत विकास की अभिप्राप्ति शामिल है ।”
भारतीय कार्मिक प्रबन्ध संस्थान के अनुसार- कार्मिक प्रबन्ध कार्यक्षमता तथा न्याय दोनों की प्राप्ति का उद्देश्य लेकर चलता है, जिनमें से कोई भी एक-दूसरे के बिना सफलतापूर्वक आगे नहीं बढ़ा सकता है ।
यह उन पुरुषों तथा महिलाओं को एकजुट करने तथा एक प्रभावी संगठन में विकसित करने का प्रयास करता है जो एक उपक्रम का निर्माण करते हैं, एक वर्किग ग्रुप तथा एक सदस्य दोनों के रूप में उसकी सफलता के प्रति अपना सर्वोत्तम अंशदान करने के लिए एक-दूसरे को समर्थ बनाते हुए ।
यह कार्यरत लोगों के लिए रोजगार की उचित परिस्थितियों तथा शर्तों एवं संतोषजनक कार्य की व्यवस्था हेतु प्रयास करता है । मानव संसाधन प्रबन्ध का मौलिक उद्देश्य संगठनात्मक उद्देश्यों की अभिप्राप्ति हेतु अंशदान देना है ।
मानव संसाधन प्रबन्ध के विशिष्ट उद्देश्यों की निम्न रूपरेखा दी जा सकती है:
1. मानवीय संसाधनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना ।
2. संगठनात्मक कार्यों को गतिविधियों पद-स्थितियों एवं उपकार्यों में विभाजित करके तथा प्रत्येक उपकार्य के लिए उत्तरदायित्व, जवाबदेही तथा अधिसत्ता की स्पष्टत: व्याख्या करके तथा संगठन में अन्य कार्यों से उसके सम्बन्ध को स्पष्ट करके एक संगठन के सभी सदस्यों के बीच सम्बन्धों की पर्याप्त संगठनात्मक संरचना की स्थापना तथा अनुरक्षण ।
3. प्रशिक्षण तथा शिक्षा के माध्यम से कर्मचारियों को विकास हेतु अवसर प्रदान करके संगठन के भीतर मानवीय संसाधनों का अधिकतम विकास संभव बनाना ।
4. कर्मचारियों को विभिन्न सेवाएं तथा कल्याणकारी सहायताएँ प्रदान करके प्राणियों हेतु सम्मान सुनिश्चित करना ।
5. व्यक्तिगत/सामूहिक उद्देश्यों का संगठन के उद्देश्यों के साथ तालमेल सुनिश्चित करना ।
6. विभिन्न मौद्रिक तथा गैर-मौद्रिक प्रतिफलों को ऑफर करके व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पहचान करना तथा संतुष्टि करना ।
इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्मिक/मानव संसाधन प्रबन्ध को निम्न गतिविधियाँ करनी पड़ती हैं:
1. मानव संसाधन नियोजन (Human Resource or Manpower Planning) ।
2. कर्मचारियों की भर्ती, चयन तथा नियुक्ति (Recruitment, Selection and Placement of Personnel) ।
3. कर्मचारियों का प्रशिक्षण तथा विकास (Training and Development of Employees) ।
4. कर्मचारियों की निष्पत्ति का आकलन तथा सुधारात्मक कदम उठाना (Appraisal of Performance of Employees and Taking Corrective Steps Such as Transfer from One Job To Another) ।
5. श्रम-शक्ति की अभिप्रेरणा (Motivation of Work Force by Providing Financial Incentives and Avenues of Promotion) ।
6. कर्मचारियों का पारिश्रमिक (Remuneration of Employees) ।
7. सामाजिक सुरक्षा तथा कर्मचारी कल्याण (Social Security and Welfare of Employees) ।
एडविन बी. फिलिप्पो (Edwin B. Fllippo) ने अपनी पुस्तक ‘Principles of Personnel Management’ में प्रबन्ध के निम्नलिखित तीन उद्देश्य बताए है:
1. संस्था के हितों की सुरक्षा ।
2. कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा ।
3. सामाजिक हितों की सुरक्षा ।
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ पर्सनल मैनेजमैंट (Indian Institute of Personnel Management) के अनुसार कर्मचारी प्रबन्ध के निम्न तीन उद्देश्य हैं:
1. संगठन में अच्छे मानवीय सम्बन्धों की स्थापना करना ।
2. प्रत्येक कर्मचारी को इस योग्य बनाना कि वह संगठन के कार्यों में अपना अधिकतम योगदान दे सके ।
3. मानवीय व्यक्तित्व के प्रति सम्मान एवं प्रत्येक व्यक्ति के सामान कल्याण को ध्यान में रखते हुए उपर्युक्त दोनों उद्देश्यों को प्राप्त करना ।
लारेंस ए. एप्पले (Lawrence A. Appley) ने कर्मचारी प्रबन्ध के निम्न उद्देश्य बताये हैं:
1. ऐसी उचित योग्यता वाले व्यक्तियों का चयन करना जो संगठन की क्रियाओं का सफलतापूर्वक निष्पादन कर सकें ।
2. नए कर्मचारियों को संगठन तथा उनके कार्यों से परिचित कराना ।
3. न्यायोचित, पूर्ण तथा आकर्षक मजदूरी व वेतन की व्यवस्था करना ।
4. श्रमिकों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरणात्मक योजनाओं को लागू करना ।
5. समय-समय पर कर्मचारियों की उत्पादकता, योग्यता, दक्षता तथा उत्पादन विधियों का विश्लेषण करना ।
6. प्रशिक्षण की एक सुव्यवस्थित तथा सुसंगठित योजना की व्यवस्था करना ।
7. कर्मचारियों के सम्बन्ध में सभी अभिलेख (Records) रखना तथा मानवीय आचरण अनुसंधान को प्रोत्साहित करना ।
8. श्रमिकों की शिक्षा, ज्ञान तथा दक्षता में वृद्धि करना और उनमें कार्य के प्रति रुचि उत्पन्न करना ।
9. कर्मचारियों की सुरक्षा तथा कल्याणकारी क्रियाओं को सम्पादित करना ।
10. किसी भी कर्मचारी को सेवामुक्त करते समय उसे पूर्ण तथा न्यायोचित प्रतिफल दिलवाने की व्यवस्था करना ।
मानव संसाधन प्रबन्ध का क्षेत्र (Scope of Human Resource Management):
प्राचीन काल की अपेक्षा वर्तमान काल में व्यावसायिक एवं औद्योगिक इकाइयों के आकार में वृद्धि होने के साथ-साथ कर्मचारी प्रबन्ध के कार्य क्षेत्र में भी व्यापक वृद्धि हुई है ।
कर्मचारी प्रबन्ध के कार्य क्षेत्र में सामान्यत: उच्चस्तरीय व निम्न-स्तरीय कर्मचारियों का प्रबन्ध कर्मचारी नीतियों एवं कार्यक्रमों के निर्धारण और क्रियान्वयन के महत्वपूर्ण कार्यों का समावेश किया जाता है ।
कर्मचारी प्रबन्ध का विस्तृत क्षेत्र होने के कारण प्रबन्धक कर्मचारी प्रबन्धक के सारे कार्यों को स्वयं पूरा नहीं कर सकते हैं । इसी कारण अधिकांश संस्थाओं में प्रबन्धकों की सहायता के लिए कर्मचारी प्रबन्ध विभागों की स्थापना की गई है ।
कर्मचारी प्रबन्ध के कार्यक्षेत्र में निम्नलिखित कार्यों का समावेश किया जाता है:
1. श्रमिकों को भर्ती करना (Recruitment of Labourers):
नए श्रमिकों की भर्ती करने का कार्य इसी विभाग के कार्यक्षेत्र में आता है । इसके अन्तर्गत विज्ञापन तथा अन्य साधनों से श्रमिकों को आकर्षित किया जाता है तथा उनका साक्षात्कार लिया जाता है । विभिन्न वैज्ञानिक विधियों द्वारा उनकी योग्यता की जाँच की जाती है तथा बाद में उपयुक्त स्थानों एवं कार्यों पर उनको नियुक्त किया जाता है ।
2. श्रमिकों का प्रशिक्षण (Training of Labourers):
संस्था में नए कर्मचारियों की भर्ती के पश्चात् उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाता है । यह प्रशिक्षण सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दो प्रकार का होता है । प्रशिक्षण देने से उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है और साथ ही उत्पादकता में भी वृद्धि होती है । श्रमिकों की कार्यकुशलता के आधार पर भविष्य में उपयुक्त ढंग से उनकी पदोन्नति भी की जाती है ।
3. श्रम सम्बन्ध:
संस्था में उत्पादन कार्य निरन्तर बनाए रखने के लिए अच्छे श्रम सम्बन्ध बनाए रखना आवश्यक है । श्रम सम्बन्ध के अन्तर्गत श्रमिकों के साथ वार्ता करना, औद्योगिक विवादों का शान्तिपूर्वक निपटारा, श्रम न्यायालयों के निर्णयों को लागू करना, श्रमिकों की वरिष्ठता सूची (Seniority List) बनाना, परिवेदना के कारणों का पता लगाना, श्रम सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान करना आदि कार्य सम्मिलित किए जाते हैं ।
4. कर्मचारियों को पारिश्रमिक देना (Wages to Employees):
कर्मचारियों को पारिश्रमिक देने का कार्य भी इसी विभाग के अन्तर्गत आता है । विभिन्न प्रकार के कर्मचारियों के लिए पारिश्रमिक दरें निर्धारित करना, कठिन व श्रेष्ठतम कार्य करने वाले कर्मचारियों के लिए विभिन्न प्रेरणाओं की व कार्य निष्पादन का मूल्यांकन करना भी कर्मचारी प्रबन्ध के कार्य-क्षेत्र में आता है ।
5. कर्मचारियों के लिए कल्याण कार्य (Welfare Work for Employees):
संस्था में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी कार्य जैसे मनोरंजन व शिक्षा की व्यवस्था करना, कर्मचारियों की सुरक्षा व उनके स्वास्थ्य के लिए आयोजन करना, सफाई की व्यवस्था करना आदि सभी कल्याणकारी कार्य कर्मचारी प्रबन्ध के कार्यक्षेत्र में आते हैं । इन विभिन्न कल्याणकारी कार्यों की व्यवस्था से कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है ।
6. कार्य विश्लेषण (Job Analysis):
व्यावसायिक इकाई में किए जाने वाले सभी कार्यों का विस्तृत विश्लेषण करके यह पता लगाते हैं कि अमुक कार्य करने के लिए कर्मचारी में किन गुणों की आवश्यकता होनी चाहिए जिससे उपयुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति की जा सके । इस प्रकार कार्य विश्लेषण के आधार पर ही श्रम विभाजन किया जाता है और विभिन्न कार्यों के लिए मजदूरी निश्चित की जा सकती है ।
7. जन सम्पर्क (Public Relation):
समाज कल्याण संस्थाओं से सम्पर्क बनाना, संगठन के बारे में सूचना प्रसारित करना संस्था की पत्रिकाएँ निकालना, व्याख्यानों का आयोजन करना, सरकारी बैठकों में संस्था का प्रतिनिधित्व करना, जन कल्याण संस्थाओं को दान व भेंट देना आदि कार्यों को भी कर्मचारी प्रबन्ध क्षेत्र में सम्मिलित किया जाता है ।
8. श्रम सम्बन्धी लेखे रखना (To Keep Labour Records):
मानव संसाधन प्रबन्ध द्वारा संस्था के सभी कर्मचारियों से सम्बन्धित आवश्यक लेखे भी सुरक्षित रखे जाते हैं । ये लेखे श्रमिकों की संख्या, उपस्थित व अनुपस्थिति, कार्य प्रशिक्षण, कार्य निष्पादन, पदोन्नति व सेवानिवृत्ति आदि के सम्बन्ध में होते हैं ।
मानव संसाधन प्रबन्ध का महत्व (Significance of Human Resource Management):
मानव संसाधन प्रबन्ध का महत्व व्यवसाय में दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । व्यवसाय में कर्मचारियों का स्थान, शरीर में रक्त अथवा गाड़ी में चालक के समान होता है । कर्मचारीगण तन एवं मन से कार्य करके व्यवसाय को सफल बनाने में अपना योगदान देते हैं ।
वास्तव में, उद्योग रूपी भवन की नींव उसके कर्मचारी ही होते हैं । कर्मचारियों की कार्यकुशलता, लगन तथा उत्साह पर ही उपक्रम का वर्तमान तथा भविष्य निर्भर करता है । एल. ए. एप्पले के अनुसार- ”प्रबन्ध तथा सेविवर्गीय प्रशासन दोनों एक ही हैं, उन्हें कभी भी पृथक्-पृथक् नहीं किया जा सकता ।”
सेविवर्गीय प्रशासन के महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:
1. लागत में मितव्ययिता:
उत्पादन लागत में मितव्ययिता लाने के लिए यह आवश्यक है कि श्रमिक वर्ग द्वारा अपव्यय को रोका जाए । यदि श्रम की उचित व्यवस्था हो जाती है, तो अपव्यय से होने वाली हानि को काफी सीमा तक कम किया जा सकता है, परन्तु यह उसी दशा में सम्भव होगा, जबकि सेविवर्गीय प्रबन्ध का एक पृथक् विभाग हो ।
2. पदोन्नति एवं अवनति:
व्यापार की प्रगति के लिए यह न्यायोचित होता है कि कुशल कर्मचारियों की पदोन्नति की जाए एवं अकुशल कर्मचारियों को पद से हटा दिया जाये परन्तु ऐसा करने से पूर्व कर्मचारियों की सेवाओं की विस्तृत जाँच करना आवश्यक होता है, जो व्यापार में एक पृथक् सेविवर्गीय प्रबन्ध विभाग की स्थापना करने पर ही सम्भव हो सकता है ।
3. उचित ढंग से भर्ती:
श्रमिकों की भर्ती उचित एवं वैज्ञानिक आधार पर होनी चाहिए, जिसमें श्रम का पूर्ण सदुपयोग किया जा सके । यह उसी समय सम्भव हो सकती है, जबकि व्यापार में एक पृथक् सेविवर्गीय विभाग की स्थापना की जाये ।
4. अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध:
व्यापार में अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध बने रहने पर नैतिकता एवं अनुशासन का स्तर ऊँचा हो जाता है तथा श्रमिक की कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है । अत: सम्बन्धों की मधुरता के लिए सद्भावना एवं सहयोग का होना आवश्यक है, जो कि पृथक् सेविवर्गीय विभाग की स्थापना पर ही सम्भव हो सकता है ।
5. साधनों को उपयोगी बनाना:
उत्पत्ति के समस्त साधनों के उपयोग से ही उत्पादन कार्य सम्भव होता है, जिसमें श्रम को उत्पत्ति का सक्रिय साधन माना जाता है, जो अन्य साधनों को भी उपयोगी बनाने में सहायता प्रदान करता है । इस प्रकार, श्रमिक उच्च वर्गीय प्रबन्ध की सहायता के निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति में सहायता प्रदान करता है ।
उत्पत्ति के समस्त साधनों में से श्रम की सहायता से ही शेष सभी साधनों का उचित उपयोग सम्भव हो सकता है । यह समस्त लाभ केवल उसी समय सम्भव हो सकते है, जबकि व्यापार में सेविवर्गीय प्रबन्ध के लिए एक पृथक् विभाग की स्थापना की जाए, जो समस्त साधनों के उपयोग को सम्भव बनाता है ।
6. विकसित प्रशिक्षण विभाग:
व्यापार की प्रगति के लिए श्रमिकों को उचित प्रशिक्षण सुविधाएँ प्राप्त होना आवश्यक है । यदि संगठन में सेविवर्गीय प्रबन्ध का एक पृथक् विभाग हो तो प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान करके श्रमिकों को योग्य बनाया जा सकता है ।