Read this article in Hindi to learn about the merits and demerits of daily wage system.

दैनिक मजदूरी प्रणाली के लाभ (Merits of Daily Wage System):

इस प्रणाली के निम्नलिखित लाभ हैं:

1. सरल (Simple):

मजदूरी भुगतान की यह प्रणाली सबसे सरल है । कितनी मजदूरी देनी है, इसकी गणना बड़ी आसानी से हो जाती है- केवल इस बात की जानकारी करनी होती है कि श्रमिक ने कितने समय तक कार्य किया है और मजदूरी की दर क्या है ?

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2. श्रेष्ठ उत्पादन (Quality Production):

मजदूरी भुगतान की इस प्रणाली में श्रमिकों को कार्य करने की कोई जल्दी नहीं होती, क्योंकि उत्पादन की मात्रा से मजदूरी का सम्बन्ध नहीं होता । अत: वे धैर्य, लगन और सावधानी से कार्य करते हैं जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन अच्छी किस्म का होता है ।

3. निश्चित मजदूरी का आश्वासन:

इस प्रणाली में श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान समय के आधार पर किया जाता है अत: उन्हें यह विश्वास रहता है कि एक निश्चित समय तक कार्य करने के लिए उनको निश्चित मजदूरी अवश्य ही मिलेगी चाहे उन्होंने उस निश्चित समय में कार्य पूरा किया हो अथवा नहीं ।

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4. श्रमिकों में एकता व सहयोग (Unity and Cooperation in Workers):

समान कार्य के लिए समान मजदूरी इस प्रणाली का आधार है । किसी प्रकार का भेदभाव न होने के कारण श्रमिकों में आपस में कोई द्वेष एवं ईर्ष्या नहीं होती जिसके कारण श्रमिकों में एकता व सहयोग का वातावरण बना रहता है ।

5. सामग्री तथा यन्त्रों का उचित उपयोग (Proper Utilisation of Material and Machinery):

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मजदूरी भुगतान की इस प्रणाली में श्रमिकों को काम पूरा करने में किसी प्रकार की कोई जल्दी नहीं रहती, अत: श्रमिकों द्वारा कच्चे माल एवं यंत्रों का उपयोग सावधानी से किया जाता है तथा सामग्री भी व्यर्थ नहीं जाती ।

6. प्रशासनिक व्ययों में कमी (Reduction in Administrative Expenses):

श्रमिक अपनी जिम्मेदारी से काम करते हैं जिससे वे सन्तुष्ट रहते हैं । इसके परिणामस्वरूप उद्योगपति को निरीक्षण एवं प्रशासनिक कार्यों की आवश्यकता नहीं पड़ती ।

7. श्रम दुर्घटना में कमी (Less Labour Accidents):

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श्रमिक कार्य करने में कोई जल्दबाजी नहीं करते जिससे श्रम-दुर्घटना आदि बहुत कम होती है और श्रमिकों का स्वास्थ्य भी ठीक बना रहता है ।

8. एक लोकप्रिय प्रणाली (A Popular Method):

श्रम संघ तथा नियोक्ता सभी मजदूरी भुगतान की इस प्रणाली को पसंद करते हैं जिसके कारण इसे लोकप्रिय प्रणाली कहा जाता है ।

दैनिक मजदूरी प्रणाली के दोष (Demerits of Daily Wage System):

इस प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं:

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1. निरीक्षण व्ययों में वृद्धि (Increase in Supervisory Cost):

श्रमिकों में धीरे-धीरे कार्य करने की प्रवृत्ति व्याप्त होने के कारण श्रमिकों से काम लेने के लिए कठोर निरीक्षण की आवश्यकता होती है और समय का दुरुपयोग रोकने के लिए कड़े अनुशासन और अधिक निरीक्षण में वृद्धि हो जाती है ।

2. समय का दुरुपयोग (Wastage of Time):

मजदूरी भुगतान की इस प्रणाली में श्रमिक स्वयं को काम करने से बचाता है क्योंकि उसे मजदूरी कम मिलने का डर नहीं होता, वह जानता है कि उसकी मजदूरी तो कारखाने में व्यतीत किए समय पर निर्भर करती है । इस प्रकार वह समय का दुरुपयोग करता है ।

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3. परिश्रम में श्रम लागत की अनिश्चितता:

चूंकि मजदूरी कार्य पर निर्भर न होकर कारखाने में बिताए समय पर निर्भर करती है जिससे प्रति इकाई श्रम लागत घटती-बढ़ती रहती है, जिसके फलस्वरूप प्रति इकाई श्रम-लागत स्थिर नहीं रह पाती और किसी कार्य के सम्बन्ध में पहले से यह ज्ञात करना कठिन हो जाता है कि श्रम लागत क्या आएगी ।

4. कुशल व श्रेष्ठ श्रमिकों के मनोबल पर कुठाराघात:

इस प्रणाली में कुशल व अकुशल श्रमिकों का भेदभाव मिट जाता है और समान मजदूरी मिलने के कारण कुशल श्रमिकों के मनोबल पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूप वे स्वयं को बेकार समझकर एवं अपनी कार्यकुशलता त्यागकर कार्य में भाग लेते हैं ।

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5. धीरे-धीरे काम करने या हड़ताल करने की प्रवृत्ति का बन जाता (Tendency to Work Slow):

चूंकि इस प्रणाली में श्रमिकों पर कार्य को एक निश्चित समय में पूरा करने का न तो कोई बन्धन होता है और न ही उत्पादन के कम होने या कारखाने के बन्द होने का कोई प्रभाव पड़ता फलस्वरूप उनकी धीरे-धीरे काम करने या हड़ताल करने की आदत बन जाती है ।

6. श्रम संघों को बढ़ावा (Encourage to Labour Union):

श्रमिकों में ओर अधिक एकता आ जाने के कारण श्रम-संगठनों को बढ़ावा मिलता है जिसके परिणामस्वरूप औद्योगिक संघटन बढ़ने लगते हैं ।

7. दबी हुई योग्यता का विरोधी कार्यों को प्रोत्साहन:

कुशल श्रमिक अधिक कार्यकुशलता के कारण अपने कार्य को शीघ्र निपटा लेते हैं और अधिक कार्य न होने के कारण श्रमिकों की दबी हुई शक्ति तथा योग्यता उत्पादन करने के स्थान पर संस्था एवं उद्योगपति के प्रति विरोधी कार्य करने में प्रकट होने लगती है ।

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फ्रैंकलिन के अनुसार- “समयानुसार पद्धति में व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जिसके लिए न तो उसकी रुचि है और न योग्यता, जबकि दूसरे प्रतिस्पर्द्धात्मक कार्य में वह आगे बढ़ जाता है ।”

8. सापेक्षिक कुशलता के निर्धारण में कठिनाई (Difficulty in Fixing Comparative Skill):

सभी मजदूरों को समान मजदूरी मिलने के कारण श्रमिकों की कार्यक्षमता का अलग-अलग मूल्यांकन करना अत्यन्त कठिन है क्योंकि मजदूरी का सम्बन्ध उत्पादन की मात्रा से नहीं होता है ।

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