Read this article in Hindi to learn about:- 1. Functions of Non-Verbal Communication 2. Channels of Non-Verbal Communication 3. Advantages 4. Disadvantages. 

अशाब्दिक संचार के कार्य (Functions of Non-Verbal Communication):

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक संचार प्रक्रिया के अन्तर्गत मनुष्य को अपनी बात दूसरे व्यक्तियों तक पहुँचाने के लिए बोलने एवं शब्दों को लिखने की आवश्यकता नहीं होती वरन् इसके विपरीत वह अपनी शारीरिक भाषा इशारों या संकेतों का प्रयोग करता है ।

थिल एवं बोवी (Thill and Bovee) के अनुसार, आशाब्दिक संचार के छ: मुख्य कार्य होते हैं:

(i) सूचना उपलब्ध कराना;

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(ii) बातचीत के प्रवाह को नियन्त्रित करना;

(iii) भावनाओं को व्यक्त करना;

(iv) मौखिक सन्देश को व्यवस्थित करना;

(v) दूसरे लोगों को नियन्त्रण में लेना;

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(vi) कुछ कार्यों को सरल एवं सुगम बनाना ।

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक संचार प्रक्रिया के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:

(i) सूचना देना (To Provide Information):

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक भाषा के द्वारा व्यक्ति अपनी बात इशारों, संकेतों अथवा हाव-भाव द्वारा दूसरे व्यक्तियों तक पहुँचाकर सूचना उपलब्ध कराता है ।

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(ii) सन्देशों के प्रवाह को नियन्त्रित करना (To Control Flow of Messages):

संचार प्रक्रिया के अन्तर्गत सन्देश भेजने वाले व्यक्ति के द्वारा अपने शरीर के हाव-भावों व विभिन्न मुद्राओं एवं इशारों के द्वारा सन्देशों के प्रवाह को नियन्त्रित किया जाता है ताकि सन्देश प्रापक सन्देश को उसी अर्थ में ले जिस अर्थ में उसे भेजा गया है ।

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(iii) कार्यों को सरल करना (To Make Work Easy):

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक सन्देशों के द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले कार्यों के बारे में दूसरे को संकेतों के द्वारा बताता है कि कार्य को किस प्रकार करने से अधिकतम कार्य किया जा सकता है तथा कार्य को करना सरल हो जाता है ।

(iv) मौखिक सन्देश को पूरा करना (To Complete Verbal Message):

कभी-कभी मौखिक सन्देश देने के बाद भी सन्देश को पूरा नहीं माना जाता क्योंकि जब तक सन्देश प्रापक द्वारा सन्देश के अनुसार कार्य करने पर प्रेषक की भावनाओं की अभिव्यक्ति न हो ।

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(v) भावनाओं को व्यक्त करना (To Express Feelings):

संचार की प्रक्रिया के अन्तर्गत एक व्यक्ति, दूसरे को सन्देश के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है ।

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक संचार के माध्यम (Channels of Non-Verbal Communication):

रेमण्ड एवं जॉन (Raymond and John) के अनुसार- “सम्प्रेषण के वे सभी-माध्यम अशाब्दिक सम्प्रेषण में शामिल होने हैं जो न तो लिखित और न ही मौखिक शब्दों में व्यक्त है ।”

अशाब्दिक सम्प्रेषण का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:

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(a) दृश्य संकेत भाषा (Visual Sign Language);

(b) श्रव्य संकेत भाषा (Audio Sign Language);

(c) दैहिक भाषा (Body Language);

(d) समय एवं स्थान भाषा (Proxemics); (e) पाशर्व भाषा (Para Language) ।

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक संचार के लाभ (Advantages of Non-Verbal Communication):

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(i) विश्वसनीय (Reliable):

अशाब्दिक संचार विश्वसनीय होता है क्योंकि एक व्यक्ति के हाव-भाव यह बता देते हैं कि वह क्या सोच रहा है अथवा क्या करने जा रहा है ? शब्दों को आसानी से नियन्त्रित किया जा सकता है लेकिन भावों को नहीं ।

(ii) दक्षतापूर्ण (Efficient):

अशाब्दिक संचार भेजने वाले तथा प्राप्त करने वाले दोनों के लिए दक्षतापूर्ण है । अशाब्दिक संदेशों को आप शीघ्रता, सुगमता तथा मितव्ययिता से भेज तथा प्राप्त कर सकते हैं ।

(iii) साख (Creditability):

अशाब्दिक संचार व्यवस्था आपकी साख तथा नेतृत्व के गुण को बनाये रखने में सहायक होता है यदि आप यह सीख सके कि अपनी शारीरिक भाषा, चेहरे के भाव, आवाज तथा बाहरी रूप से अपने प्रभाव को कैसे बनाये रख सकते हैं इसके साथ ही आप लोगों को यह सन्देश भी दे सकते हैं कि आप योग्य, विश्वसनीय एवं गतिशील ।

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(iv) मितव्ययिता (Economic Communication):

अशाब्दिक संचार को अपनाने से सन्देश को भेजने में किसी भी प्रकार का व्यय नहीं करना पड़ता । अत: व्यावसायिक संस्थाओं के लिए यह अति मितव्ययी होता है ।

(v) दृष्टिकोण की सही समझ (Accurate Understanding of Attitude):

यदि कोई व्यक्ति अशाब्दिक संचार को अच्छी प्रकार से समझ सकता है तो वह व्यक्ति संचारकर्त्ता के दृष्टिकोण एवं भावनाओं को भी भली प्रकार से समझ सकता है ।

अशाब्दिक संचार की हानियाँ (Disadvantages of Non-Verbal Communication):

अशाब्दिक संचार की सीमाएँ अथवा हानियाँ निम्नलिखित हैं:

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(i) गोपनीयता का अभाव (Lack of Secrecy):

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक प्रणाली में सूचनाओं को प्रेषित करते समय विभिन्न संकेतों के माध्यम से दूसरे व्यक्ति को भी सन्देशवाहन का पता चल जाता है । अत: इसमें गोपनीयता का अभाव रहता है ।

(ii) संक्षिप्त सन्देशों में ही लागू (Applicable in Brief Message):

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक संचार केवल छोटे संदेशों के लिए ही उपयुक्त होता है । बड़े सन्देशों के होने से सन्देश प्रापक इसका गलत अर्थ लगा सकते हैं ।

(iii) गलत अर्थ (Wrong Meaning):

कभी-कभी सन्देश प्राप्तकर्त्ता सन्देश में प्रयुक्त संकेत का गलत अर्थ लगा लेते हैं । ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण सन्देश ही व्यर्थ हो जाता है ।

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(iv) लिखित प्रमाणों का न होना (No Written Proof):

अशाब्दिक अथवा सांकेतिक संचार के अन्तर्गत लिखित प्रमाणों का अभाव पाया जाता है । उसमें पूरी संचार व्यवस्था केवल संकेतों, इशारों व हाव-भावों पर ही निर्भर करती है ।

(v) वास्तविक उपस्थिति (Physical Presence):

यह प्रणाली केवल तभी सफल हो सकती है जब सन्देश प्रापक व सन्देश देने वाला दोनों आमने-सामने हों जिससे विभिन्न संकेतों द्वारा दिए गए संकेतों का पता चल सके । दोनों पक्षों के आमने-सामने न होने पर यह व्यवस्था चरमरा जाती है ।

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(vi) सूचनाओं को एकत्रित करना (To Collect Information’s):

सांकेतिक संचार व्यवस्था में अधिकतम सन्देश हाव-भावों, संकेतों तथा शारीरिक मुद्राओं के कारण सूचनाओं को एकत्रित करना कठिन होता है ।

(vii) अध्ययन में कठिन (Difficult in Studying):

सांकेतिक संचार का अध्ययन करना कठिन होता है क्योंकि इसमें सन्देश का सही अर्थ केवल उसी स्थिति में लगाया जा सकता है जब संकेतों का सही अर्थ मालूम हो ।

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