Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Oral Communication Process 2. Characteristics of Oral Communication 3. Utility 4. Essentials 5. Merits 6. Limitations.   

Contents:

  1. मौखिक संचार प्रक्रिया का अर्थ (Meaning of Oral Communication Process)
  2. मौखिक संचार की विशेषताएं (Characteristics of Oral Communication)
  3. मौखिक संचार की उपयोगिता (Utility of Oral Communication)
  4. प्रभावी मौखिक संचार के आवश्यक तत्व (Essentials of Effective Oral Communication)
  5. मौखिक संचार के गुण (Merits of Oral Communication)
  6. मौखिक संचार की सीमाएँ (Limitations of Oral Communication)


1. मौखिक संचार प्रक्रिया का अर्थ (Meaning of Oral Communication Process):

जब कोई संवाद एवं सूचना मौखिक उच्चारण कर प्रेषित की जाये तो इसे मौखिक सम्प्रेषण कहते है । मौखिक सम्प्रेषण में आमने-सामने मौखिक बातचीत करके सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है । यह सम्प्रेषण प्रत्यक्ष व्यक्तिगत वार्तालाप के द्वारा भी किया जा सकता है और अप्रत्यक्ष व्यक्तिगत वार्तालाप के द्वारा भी ।

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दूसरी पद्धति में संदेश-प्रेषक टेलीफोन जैसे उपकरणों का प्रयोग करता है । मौखिक सम्प्रेषण द्वि मार्गी स्पष्टता (Two Way Clarity) पैदा करने का सबसे ज्यादा शक्तिशाली साधन है । संदेश देने वाला अधिकारी, न केवल अपने विचार की पूर्ति और सही जानकारी दे सकता है बल्कि साथ-साथ संदेश प्राप्त करने वाले अधिकारी की समझ तथा प्रतिक्रिया (Understanding and Reaction) को भी जान सकता है । साथ ही सन्देश पाने वाला भी, न केवल सन्देश को समझ सकता है, बल्कि अपने शक और संशयों का साथ ही निपटारा भी कर सकता है । संगठन में ज्यादातर सम्प्रेषण आपसी बातचीत का स्वरूप ही ग्रहण करता है ।


2. मौखिक संचार की विशेषताएं (Characteristics of Oral Communication):

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मौखिक संचार की विशेषताएँ निम्न हैं:

(i) इस प्रक्रिया में सन्देश देने वाला तथा सन्देश प्राप्त करने वाला दोनों आमने-सामने होते है अर्थात् इसमें विचारों का आदान-प्रदान मौखिक रूप से किया जाता है ।

(ii) यह एक द्वि-मार्गी संचार व्यवस्था है, क्योंकि सन्देश देने वाला तुरन्त यह जान सकता है कि सन्देश प्रापक ने सन्देश को समझा है अथवा नहीं ।

(iii) इसमें गोपनीयता भंग होने का भय नहीं रहता (सीमित होने पर) एवं लालफीताशाही को भी प्रोत्साहन नहीं मिल पाता तथा इसके संशोधन में भी सुविधा रहती है ।

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(iv) मौखिक संचार में एक-दूसरे के साथ वार्तालाप होती है, अत: इससे आपसी सम्बन्धों को बढ़ावा मिलता है ।

(v) मौखिक संचार दो प्रकार का हो सकता है:

(vi) प्रत्यक्ष वार्तालाप, तथा ब अप्रत्यक्ष वार्तालाप ।

प्रत्यक्ष वार्तालाप के अन्तर्गत आमने-सामने व सामूहिक बातचीत करना आता है जबकि अप्रत्यक्ष वार्तालाप के अन्तर्गत दूरभाष इत्यादि पर वार्तालाप करना आता है ।


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3. मौखिक संचार की उपयोगिता (Utility of Oral Communication):

मौखिक संचार की उपयोगिता निम्न दशाओं में विशेष रूप से होती है:

(i) जब सूचनाओं को लिखित रूप में देना सम्भव न हो;

(ii) जब सूचनाओं को गोपनीय रखना आवश्यक हो;

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(iii) जब कोई विशेष सन्देश किसी जन समूह को देना हो;

(iv) जब सन्देश का प्राप्तकर्ता शिक्षित न हो ।

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(A) पारस्परिक वार्तालाप (Mutual Discussion):

पारस्परिक वार्तालाप पारस्परिक वार्तालाप संदेशवाहन का सबसे अधिक सरल और सुविधाजनक साधन है क्योंकि इसमें दो व्यक्ति आमने-सामने बैठकर अपने सभी विवादों पर विचार-विमर्श कर सकते हैं और अपने निजी भावों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं । गोपनीय विषय पर वार्तालाप के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । प्रत्यक्ष व सामूहिक वार्तालाप आसानी से किया जा सकता है ।

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इस प्रकार पारस्परिक वार्तालाप में निम्न तरीके शामिल हैं:

(i) व्यक्तिगत वार्तालाप (Personal Conversation);

(ii) सामूहिक मीटिंग (Group Meeting);

(iii) विभागीय मीटिंग (Departmental Meeting);

(iv) अन्तर्विभागीय मीटिंग (Inter-Departmental Meeting);

(B) यन्त्र-चालित उपकरण (Mechanical Devices):

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मौखिक संदेशवाहक के लिए अग्रलिखित यन्त्र-चालित उपकरण का प्रयोग किया जाता है ।

(i) टेलीफोन (Telephone):

टेलीफोन आधुनिक व्यावसायिक संस्थाओं में सबसे अधिक प्रचलित एवं लोकप्रिय साधन माना जाता है । इसके प्रयोग से शीघ्र सम्पर्क प्रत्यक्ष सम्पर्क गोपनीयता, समय श्रम और लागत में बचत होती है । इसका प्रयोग एक ही विभाग में अथवा दूसरे विभागों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए अच्छा साधन माना जाता है ।

(ii) आन्तरिक टेलीफोन प्रणाली (Internal Telephone Communication):

यह साधन बड़े व्यावसायिक संस्थाओं में संदेशवाहन होने के कारण अत्यधिक सुविधाजनक तथा समय और श्रम बचाने वाला प्रभावी साधन माना जाता हे, क्योंकि इससे अधिकारीगण अपने साथियों या अधीनस्थों को अपने स्थान पर बैठे ही अपना संदेश पहुँचा सकते हैं ।

(iii) संकेत (Signals):

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किसी व्यक्ति, कर्मचारी अथवा चपरासी को बुलाने के लिए घण्टी बजाकर, गुंजक बजाकर, अथवा सांकेतिक प्रकाश करके बड़ी आसानी से सुविधापूर्वक बुलाया जा सकता है । यह संकेत केवल इस बात का प्रतीक होता है कि अमुक व्यक्ति की आवश्यकता है, लेकिन संदेश उसके आने के बाद प्रारम्भ होता है ।

(iv) श्रुतवाचक यन्त्र (Dictating Machine):

मौखिक संदेश देने के लिए भुतवाचक यन्त्रों का वर्तमान में अधिक प्रयोग किया जाता है । इस यन्त्र का प्रयोग उस समय और लाभकारी होता है जब संदेश देने वाला व्यक्ति कोई महत्त्वपूर्ण संदेश देना चाहता है और उस समय संदेश पाने वाला व्यक्ति कार्यालय में नहीं हो संदेश देने वाला अधिकारी अपनी सुविधानुसार इस यन्त्र में संदेश बोल देता है और संदेश पाने वाला कर्मचारी अपनी सुविधानुसार इस यन्त्र पर रिकार्ड चलकर अपने संदेश को प्राप्त कर लेता है ।

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मौखिक एवं अमौखिक संचार में एक मुख्य अन्तर यह है कि मौखिक संचार में हमारे सन्देश पर हमारा पूरा नियन्त्रण रहता है । हम जो चाहते हैं उसे ही संवादित करते हैं । परन्तु अमौखिक संचार में संवाद पर हमारा पूरा नियन्त्रण नहीं रहता है । अनेक बार ऐसा होता है कि हम जो संवाद करना चाहते हैं वह नहीं होता वरन् उसके स्थान पर कुछ और ही संदेश प्रसारित हो जाता है ।


4. प्रभावी मौखिक संचार के आवश्यक तत्व (Essentials of Effective Oral Communication):

यद्यपि मौखिक संचार की कई सीमाएं हैं तथापि संगठन में संचार का प्रारम्भिक व महत्त्वपूर्ण माध्यम मौखिक संचार ही है ।

प्रभावी मौखिक संचार के विद्वान् फ्रासिंस जे. बरजिन (Franscis J. Bergin) ने सात तत्त्व बताए है जिनको “Seven C” के नाम से पुकारते है जो इस प्रकार हैं:

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Clear (स्पष्ट), Complete (पूर्ण), Concise (संक्षिप्त), Corrective (सरल), Concrete (वास्तविक), Coureous (सौहार्द्रपूर्ण) ।

संकेप में, प्रभावी संचार के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित है:

(i) स्पष्ट उच्चारण एवं उचित शब्द चयन (Clear Pronunciation and Appropriate Word Choice):

मौखिक संचार में वक्ता का उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए एवं सन्देश के लिए उचित शब्द एवं शुद्ध वाक्य प्रयोग किया जाना चाहिए ।

(ii) स्वाभाविक आवाज एवं तार्किक क्रम (Natural Voice and Logical Sequence):

मौखिक संचार को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने के लिए वक्ता को सदैव अपनी स्वाभाविक आवाज का प्रयोग करना चाहिए । वक्त अपने मौखिक संचार को प्रभावी ढंग तभी प्रदान कर सकता है जबकि सन्देश के विचारों एवं सूचनाओं को व्यवस्थित क्रम में व्यक्त किया जाए ।

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(iii) संक्षिप्तता (Brevity):

मौखिक संचार की प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक है कि सन्देश को संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया जाए । अनावश्यक शब्दों का प्रयोग न किया जाए एवं दोहरे वाक्यांश (Hackneyed Phrases) एवं तकियाकलाम (Cliches) “जैसे मेरे कहने का तात्पर्य” अर्थात् “क्या आप समझ गए”, “जैसा कि मैं कहना चाहता हूँ” आदि का प्रयोग न किया जाए ।

(iv) यथार्थ (Precision):

मौखिक संचार को अधिक प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने के लिए आवश्यक है कि यथार्थ अभिव्यक्ति की जाए । जैसे- “कल कार्यालय जल्दी आएं” के स्थान पर “कल 8 बजे प्रात: कार्यालय आएं” का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

(v) विश्वासपूर्ण (Conviction):

मौखिक सन्देश को पूर्व सोच-समझकर (Careful Thinking) नियोजित रूप में, उद्देश्यों को ध्यान में रखकर, व्यक्त करना चाहिए । मौखिक सन्देश जितना विश्वासपूर्ण व निश्चयात्मक होगा उतना ही अधिक प्रभावपूर्ण होगा ।

मौखिक सम्प्रेषण को प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है कि सम्प्रेषण जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए । वक्ता को पूर्ण रूप से यह मानकर सम्प्रेषण करना चाहिए कि प्राप्तकर्त्ता को सन्देश का कोई पूर्व ज्ञान नहीं है एवं प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रिया को भी ध्यान में रखना चाहिए । यदि उसको सन्देश के सन्दर्भ में कोई भ्रम होता है तो उसको भ्रम दूर करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए ।


5. मौखिक संचार के गुण (Merits of Oral Communication):

मौखिक संचार में वे सभी गुण होते हैं जो लिखित संचार के दोष होते है ।

इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित गुणों का समावेश होता है:

(i) यह समय बचाता है (It Save Time):

इसमें समय की बहुत बचत होती है यदि किसी कार्य के सम्बन्ध में शीघ्र निर्णय लेना हो या कोई कार्य तुरन्त किया जाना हो तो सन्देश को मौखिक रूप से भेजना चाहिए । जब कार्यभार अधिक होता है तो भी प्रबन्धक टेलीफोन आदि के द्वारा सन्देश को तुरन्त देकर अपने कार्यभार से मुक्त होना चाहते हैं तथा अपने अधीनस्थों को निर्देश भी मौखिक रूप से देते हैं । इससे उन्हें भी कार्य शीघ्र पूरा करने में सहायता मिलती है । यदि यही प्रक्रिया लिखित संचार के माध्यम से की जाये तो सारा समय लिखने-पढ़ने में ही चला जायेगा ।

(ii) नियन्त्रण का शक्तिशाली साधन (Powerful Means of Control):

अधिकाश उच्चाधिकारी मौखिक रूप से ही सन्देश देना पसन्द करते हैं क्योंकि मौखिक सम्प्रेषण नियन्त्रण का अत्यन्त शक्तिशाली साधन है ।

(iii) धन की बचत में सहायक (Helpful in Saving Money):

अधिकांश स्थितियों में मौखिक संचार धन की बचत भी करता है, मुख्य रूप से उन स्थितियों में जब यह संगठन के अन्तर्गत होता है । स्थानीय फोन में बहुत कम व्यय होता है तथा सन्देश तुरन्त पहुँच जाता है ।

(iv) व्यक्तिगत प्रभाव (Personal Influence):

मौखिक संचार में व्यक्तिगत प्रभाव सन्देश का स्पष्टीकरण एवं प्रभाव का अनुमान लगाने में आसानी, परिवर्तन में सुगमता तथा कार्य की प्रेरणा आदि गुणों का लाभ उठाया जा सकता है ।

(v) आवाज एवं चेहरे के हाव-भाव की अभिव्यक्ति (Presentation of Voice and Facial Expressions):

मौखिक संचार के माध्यम से सन्देश का प्रेषक आवाज का स्वर बदलकर, ऊँची आवाज या धीमी आवाज में बोलकर गुस्से में या खुश होकर बोलकर विस्तार से समझाकर विषय को स्पष्ट कर सकता है जो लिखित संचार में सम्भव नहीं है । इससे मौखिक संचार की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है ।

(vi) सन्देश की स्पष्टता (Clarity of Communication):

मौखिक संचार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें बोलने वाला तुरन्त यह समझ सकता है कि प्राप्तकर्त्ता को अमुक सन्देश प्राप्त हुआ है या नहीं, किस रूप में प्राप्त हुआ है तथा उस पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है । यह प्रभाव धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है । यदि प्राप्तकर्त्ता की समझ में कोई बात नहीं आयी है तो वह इसे विस्तार से समझ सकता है । लिखित संचार में सन्देश को बदलना वास्तव में जटिल कार्य होता है ।

(vii) सभाओं एवं समूहों में सम्प्रेषण के लिए उपयोगी (Useful for Communication in Meeting and Groups):

मौखिक संचार मुख्य रूप से तब लाभप्रद होता है जब सभाओं में या समूहों के साथ बातचीत करनी होती है ।

(viii) कर्मचारियों का विस्वास (Faith of Employees):

यद्यपि कर्मचारी लिखित सन्देशों में स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं । परन्तु फिर भी मौखिक सन्देशों पर अधिक विश्वास करते हैं क्योंकि इसमें स्पष्टीकरण को स्थान मिल जाता है ।

(ix) आपसी सम्बन्धों की (Soundness of Mutual Relations):

मौखिक संचार में एक-दूसरे के साथ वार्तालाप होती है, अत: इससे आपसी सम्बन्धी को बढ़ावा मिलता है । मौखिक एवं अमौखिक संचार में एक मुख्य अन्तर यह है कि मौखिक संचार में हमारे सन्देश पर हमारा पूरा नियन्त्रण रहता है । हम जो चाहते हैं उसे ही संवादित करते है । परन्तु अमौखिक संचार में संवाद पर हमारा पूरा नियन्त्रण नहीं रहता है । अनेक बार ऐसा होता है कि हम जो संवाद करना चाहते है वह नहीं होता वरन् उसके स्थान पर कुछ और ही संदेश प्रसारित हो जाता है ।


6. मौखिक संचार की सीमाएँ (Limitations of Oral Communication):

मौखिक संचार की भी अनेक महत्त्वपूर्ण सीमाएं हैं जिनमें से कुछ प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

(i) मौखिक संचार करना उस समय सम्भव नहीं होता जब सन्देश का प्रेषक एवं प्राप्तकर्त्ता दोनों एक-दूसरे से दूर रहते ही तथा वहां पर कोई मौखिक संचार उपकरण भी उपलब्ध न हो ।

(ii) मौखिक सन्देशों में उत्तरदायित्य का निर्धारण करना अत्यन्त कठिन है ।

(iii) जो सन्देश बड़े एवं जटिल होते हैं उनमें मौखिक सन्देशवाहन सम्भव नहीं होता । इन सन्देशों को लिखकर ही प्रेषित किया जा सकता है । मौखिक संचार में केवल छोटे एवं सरल सन्देश ही सुविधापूर्वक दिये जा सकते हैं ।

(iv) मौखिक सन्देश कोई कानूनी वैधता नहीं रखते जब तक कि उन्हें टेप न किया गया हो या किसी स्थायी रिकार्ड के रूप में न रखे गये ही । कानूनी वैधता होने के लिए सन्देश का लिखित होना आवश्यक होता है ।

(v) मौखिक सन्देशों को दीर्घकाल तक याद नहीं रखा जा सकता । लगभग एक माह की अवधि में ही मूल सन्देश में से 20% से अधिक सन्देश भुला दिये जाते है ।

(vi) यद्यपि यह सही है कि मौखिक सन्देशों में स्पष्टीकरण का उचित अवसर मिलता है, तथापि इनमें शंका तथा सन्देह की सम्भावना बनी रहती है । मौखिक सन्देश का बाद में यह प्रमाण नहीं रहता है कि पहले क्या कहा गया था ।

(vii) मौखिक सन्देश प्रत्येक स्थिति में समय व धन की बचत नहीं कर सकते । कई बैठकें, सभाएं, सेमिनार बिना किसी परिणाम के होते हैं । इस स्थिति में समय व धन दोनों का ही अपव्यय होता है ।

(viii) मौखिक सम्प्रेषण सदैव प्रभावी नहीं होते । यह कुछ दशाओं पर निर्भर करता है जिनके न होने पर ये अप्रभावी हो जाते हैं । यह सदैव सम्प्रेषण के व्यवहार व सम्प्रेषणग्राही की सन्देश ग्राहता पर निर्भर करता है ।

(ix) मौखिक सम्प्रेषण प्राय: भ्रम को बढ़ावा देते है यदि वक्ता अपने बिचारों को चतुराई पूर्वक संगठित कर प्रस्तुत नहीं करता या सम्प्रेषणग्राही सुनने वाला सम्प्रेषण को नहीं सुन पाता ।


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