Read this article in Hindi to learn about the process of performance appraisal in a company.

मूल्यांकन प्रक्रिया (Appraisal Process):

निम्न चित्र निष्पादन मूल्यांकन प्रक्रिया की रूपरेखा स्पष्ट करता है । प्रक्रिया का प्रत्येक चरण महत्वपूर्ण होता है तथा तार्किक तौर पर व्यवस्थित किया जाता है । अनेक संगठन इस आदर्श प्रक्रिया के निकट पहुँचने का प्रयास करते हैं, जिससे First-Rate Appraisal Systems उत्पन्न हो सकें । दुर्भाग्य से अनेक अन्य संगठन एक या अधिक चरणों का विचार करने में असफल रहते हैं तथा इसलिए उनके मूल्यांकन तंत्र कम प्रभावी हो जाते हैं ।

1. मूल्यांकन का उद्देश्य (Objectives of Appraisal):

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मूल्यांकन के उद्देश्यों में पदोन्नतियाँ, स्थानान्तरण, प्रशिक्षण आवश्यकताओं का आकलन करना, वेतन वृद्धियाँ प्रदान करना तथा इसी तरह के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति करना शामिल हैं । मुख्य जोर समस्याओं को हल करने पर रहता है ।

ये उद्देश्य तब तक उपयुक्त रहते हैं जब तक मूल्यांकन व्यक्तिगत होता है । भविष्य में मूल्यांकन Systems Orientation की मान्यता ले लेगा । तंत्र विचारधारा में मूल्यांकन के उद्देश्य परम्परागत उद्देश्यों से आगे तक चले जाते हैं ।

तंत्र विचारधारा में मूल्यांकन का मात्र उसके आकलन के स्थान पर उद्देश्य निष्पत्ति में सुधार लाना होता है । इस उद्देश्य के प्रति मूल्यांकन तंत्र अवसर घटकों के मूल्यांकन का प्रयास करता है ।

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अवसर घटकों (Opportunity Factors) में मौलिक वातावरण का जैसे शोर, हवाकारी तथा प्रकाश (Noise, Ventilation and Lightings) उपलब्ध संसाधन जैसे मानवीय तथा कम्प्यूटर सहायता तथा सामाजिक प्रक्रियाएँ जैसे नेतृत्व प्रभावोत्पाकता (Leadership Effectiveness) समावेश होता है ।

ये अवसर घटक कार्य निष्पत्ति के निर्धारण में व्यक्तिगत योग्यताओं की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होते हैं । तंत्र उपगमन में महत्व व्यक्तिगत आकलन पर तथा पुरस्कारों या दण्डों पर नहीं होता । लेकिन यह होता है कि कैसे कार्य तंत्र एक व्यक्ति की निष्पत्ति को प्रभावित करता है ।

एक तंत्र उपगमन को काम लाने के लिए प्रबन्धकों को उस प्रभाव को समझना सीखना चाहिये जो तंत्र स्तर घटक व्यक्तिगत निष्पत्ति को प्रभावित करते हैं, तथा अधीनस्थों को व्यक्तियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा की कमी को समायोजित किया जाना चाहिये ।

यदि तंत्र व्यवस्था सफल होती है तो कर्मचारी को विश्वास करना चाहिये कि सामूहिक उद्देश्यों के प्रति काम करके प्रत्येक व्यक्ति लाभान्वित होगा । व्यक्ति की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं होती । व्यक्ति अपने कार्य की निष्पत्ति के एक बड़े प्रतिशत के लिए उत्तरदायी होता है ।

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कर्मचारियों को उनकी असफलताओं के लिए संगठनात्मक कारणों को पाने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए । तंत्र व्यवधानों की पहचान को विकास तथा अभिप्रेरणा को सुचारु बनाने के लिए काम लाया जाना चहिये ।

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नीचे परम्परागत व्यवस्था तथा तंत्रोंन्मुखी व्यवस्था के बीच कुछ अन्तरों को स्पष्ट किया गया है:

2. कार्य प्रत्याशाओं की स्थापना (Establish Job Expectations):

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मूल्यांकन प्रक्रिया का अगला कदम कार्य प्रत्याशाओं की स्थापना होता है । इसमें शामिल हैं कर्मचारी को सूचित करना कि कार्य पर उससे क्या अपेक्षा की जा रही है ।

सामान्यत: कार्य विवरण (Job Description) में शामिल महत्वपूर्ण कर्तव्यों की समीक्षा के लिए उसके अधिकारी के साथ विचार विनिमय किया जाता है । व्यक्तियों से यह प्रत्याशा नहीं की जानी चाहिये कि काम को तब शुरू करें जब तक वे नहीं समझ जाते कि उनसे क्या अपेक्षा की जाती है ।

3. मूल्यांकन कार्यक्रम की अभिकल्पना (Design the Appraisal Programme):

एक मूल्यांकन कार्यक्रम की अभिकल्पना अनेक प्रश्न उत्पन्न कर देती है जिनको उत्तर चाहिए:

(i) औपचारिक या अनौपचारिक अभिकल्पना (Formal Vs Informal Appraisal):

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एक मूल्यांकन कार्यक्रम की अभिकल्पना में पहला चरण यह निर्णय करना होता है कि मूल्यांकन कार्यक्रम औपचारिक होना चाहिये या अनौपचारिक । औपचारिक मूल्यांकन बहुधा निर्दिष्ट समय अवधियों में किये जाते हैं- साल में एक या दो बार । औपचारिक मूल्यांकनों की बहुधा संगठनों द्वारा कर्मचारी मूल्यांकन उद्देश्यार्थ आवश्यकता होती है ।

औपचारिक निष्पत्ति मूल्यांकन किया जा सकता है जब भी सुपरवाईजर अनुभव करें कि संचार हेतु आवश्यकता है । उदाहरण के लिए, यदि कर्मचारी निरन्तर मानदण्डों को पूरा कर रहा है तो इस बात की मान्यता देने के लिए ही अनौपचारिक मूल्यांकन किया जा सकता है ।

संगठन में प्रबन्धक के कार्यालय से लगाकर कैन्टीन तक में कहीं भी विचार विनिमय हो सकता है । लेकिन यह सुनिश्चित किये जाने के लिए पूरी सावधानी आवश्यक है कि विचार विनिमय निजी किया जाये ।

अनेक संगठन औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों मूल्यांकनों के मिश्रण को अधिक महत्व देते हैं । औपचारिक मूल्यांकन को प्राथमिक मूल्यांकन (Primary Evaluation) के रूप में ही अधिक में काम लाया जाता है ।

वैसे अनौपचारिक मूल्यांकन अपेक्षाकृत अधिक निष्पत्ति फीडबैक में सहायक होता है । अनौपचारिक मूल्यांकनों को औपचारिक मूल्यांकन का स्थान नहीं ले लेना चाहिये ।

(ii) किसकी निष्पत्ति का मूल्यांकन किया जाए ? (Whose Performance Should be Rated ?):

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इसका उत्तर पूर्ण स्पष्ट है- कर्मचारियों की (Employees) जब हम कहते हैं कर्मचारीगण तो ये व्यक्ति या टीमें (Individuals or Teams) हैं ? विशिष्टत: Ratee को Individual, Work Group, Division या Organisation के रूप में परिभाषित किया जा सकता है Ratee को अनेक स्तरों पर परिभाषित किया जा सकता है ।

(Ratee अर्थात जिसका मूल्यांकन किया जाता है) उदाहरण के लिए कुछ परिस्थतियों में यह वांछनीय हो सकता है कि Merit-Pay Increases के लिए वर्क ग्रुप स्तर पर तथा प्रशिक्षण आवश्यकताओं का पता लगाने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर निष्पत्ति का मूल्यांकन किया जाये ।

व्यक्तिगत निष्पत्तियों की पहचान में कठिनाई तथा समूह संश्लिष्टता (Group Cohesiveness) ये दो शर्तें एक ग्रुप स्तरीय मूल्यांकन की आवश्यकता अनुभव करती हैं । समूह संश्लिष्टता से वर्क टीम के सदस्यों के बीच सामूहिक अनुभूति का सन्दर्भ लिया जाता है ।

ऐसे कार्यों को करने के लिए सहयोग तथा स्पष्ट समझ होती है जो अन्त: निर्भर होते हैं । व्यक्तिगत निष्पत्ति के मूल्यांकन हेतु कोई प्रयास ग्रुप संश्लिष्टता की अनदेखी कर देगा तथा व्यक्तिनिष्ठ या प्रतिस्पर्द्धा अभिन्मुखता के विकास हेतु प्रवृत्त होगा ।

व्यक्तिगत अंशदान की पहचान में कठिनाई भी विचार हेतु महत्वपूर्ण होती है । कुछ मामलों में कार्यों की अन्त: निर्भरता इतनी पूर्ण होती है कि यह पहचानना कठिन हो जाता है कि किसने क्या कुछ योगदान दिया है ।

कार्य की एक टीम प्रयास के रूप में देखने के अतिरिक्त कोई और विकल्प है ही नहीं । लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि सभी कर्मचारियों की निष्पत्ति का मूल्यांकन किया जाना चाहिये तथा सभी को Ratees बनना चाहिये ।

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(iii) मूल्यनकर्त्ता कौन हैं ? (Who are Raters ?):

रेटर्स निकटतम सुपरवाईजर्स हो सकते हैं, मानव संसाधन विभाग से विशेषज्ञ, अधीनस्थ, सहकर्मी (Peers), समितियाँ, ग्राहक, Self-Appraisals या इनमें से अनेक का संयोजन । निकटतम सुपरवाईजर्स अपने अधीनस्थों को निष्पत्ति के मूल्यांकन हेतु सर्वाधिक ‘उचित’ प्रत्याशी होते हैं ।

इस चयन के सम्पर्क में तीन तर्क दिये जाते हैं:

(a) उसके निकटतम अधीक्षक की तुलना में अधीनस्थ की निष्पत्ति से कोई भी अधिक परिचित नहीं होता ।

(b) अधीक्षक का एक यूनिट विशेष के प्रबन्धन का दायित्व होता है । जब एक अधीनस्थ के मूल्यांकन का काम किसी अन्य व्यक्ति को सौंपा जाता है तो उच्च अधिकारी गम्भीर रूप से अपमानित सा हो सकता है ।

(c) अन्तत: अधीनस्थों का प्रशिक्षण तथा विकास प्रत्येक प्रबन्धक के काम का एक महत्वपूर्ण तत्व होता है । चूंकि मूल्यांकन-कार्यक्रम बहुधा स्पष्टत: विकास तथा प्रशिक्षण से जुड़े होते हैं । अत: निकटतम अधीक्षक निष्पत्ति मूल्यांकन के लिए यह एक तर्क पूर्ण चयन हो सकता है ।

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अधीनस्थ अपने अधिकारियों का मूल्यांकन कर सकते हैं । इस चयन का प्रयोग संचार, भारार्पण कार्य, संसाधनों के आबंटन, सूचनाओं के प्रचार प्रसार की किसी कर्मचारी की योग्यता, अन्त: कार्मिक तनावों के निदान, तथा उचित आधार पर कर्मचारियों से व्यवहार करने की क्षमता के आकलन में सहायक हो सकता है ।

लेकिन अधीनस्थ मूल्यांकन के साथ समस्या यह होती है कि अधीक्षक और अधिक लोकप्रिय होने के लिए प्रयत्नशील रहता है । सहकर्मी (Peers) कार्य निष्पत्ति के कतिपय तथ्यों के मूल्यांकन हेतु एक अच्छी स्थिति में होते हैं जो अधीनस्थ या अधीक्षक नहीं कर सकते हैं ।

ऐसे घटकों में वर्क ग्रुप प्रकल्पों के प्रति योगदान, अन्त: वैयक्तिक प्रभावोत्पादकता, संचार चातुर्य, विश्वसनीयता तथा पहल भावना शामिल हैं । वर्किंग सम्बन्धों की निकटता तथा व्यक्तिगत सम्पर्कों की मात्रा सहकर्मियों को एक अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में रखती हैं ताकि एक सही मूल्यांकन किया जा सके ।

दुर्भाग्य से, मित्रता या वैमनस्य मूल्यांकन में मतिभ्रम उत्पन्न कर सकते हैं । साथ ही जब पुरस्कार आबंटन सहकर्मी मूल्यांकन पर आधारित होते हैं तो सहकर्मियों के बीच गम्भीर टकराव उत्पन्न हो सकते हैं । अन्तत: सभी सहकर्मी प्रत्येक अन्य के उच्च मूल्यांकन के लिए एकमत हो सकते हैं ।

यद्यपि ग्राहकों को कर्मचारी निष्पत्ति के आकलन हेतु शायद ही काम लाया जाता है तो भी संगठन को इस स्रोत का प्रयोग करने से नहीं रोकता । ग्राहक संगठन के भीतर के सदस्य हो सकते हैं जिनका Ratee के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है तथा एक आऊटपुट (माल या सेवा) को प्रयोग करते हैं जिसकी यह कर्मचारी व्यवस्था करता है ।

रुचि, विनम्रता, भरोसा तथा आविष्कार क्षमता ऐसे कुछ गुण हैं जिनके लिए ग्राहक रेटिंग सूचनाएँ प्रदान कर सकते हैं । ग्राहक संगठन के प्रति बाहरी होकर इस प्रकार की अन्य सूचनाएँ भी प्रदान कर सकते हैं । जहाँ उच्च अधिकारियों, सहकर्मियों, अधीनस्थों तथा ग्राहकों द्वारा मूल्यांकन किया जाता है तो इसको 360-Degree System of Appraisal कहा जाता है ।

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यह तंत्र सर्वप्रथम 1992 में General Electricals, U.S. में विकसित किया गया जो हमारे देश में भी काफी लोकप्रिय हो चुका है- GB (India), Reliance Industries, Crompton Greaves, Godrej Soaps, Wipro, Infosys, Thermax तथा Thomas Cook विशिष्ट लाभों के साथ इस विधि को अपना रहे हैं ।

(iv) रेटिंग की समस्याएँ (Problems of Rating):

निष्पत्ति आकलन अनेक विसंगतियों तथा पक्षपातों का शिकार हो जाता है जिनको Rating Errors कहते हैं । ये गलतियाँ रेटर के अवलोकनों, निर्णयन तथा सूचना संसाधन में आती हैं तथा गम्भीर तौर पर आकलन परिणामों को प्रभावित कर सकती है ।

सर्वाधिक महत्वपूर्ण रेटिंग विभ्रम होते हैं:

(1) उदारता या कठोरता,

(2) केन्द्रीय प्रवृत्ति,

(3) Halo Error,

(4) Rater Effect,

(5) Primacy and Recency Effects,

(6) दिमागी नजरिया (Perceptual Set),

(7) निष्पत्ति आयाम व्यवहार (Performance Dimension Behavior),

(8) Spillover Effect तथा

(9) Status Effect ।

(v) रेटर की समस्या का समाधान (Solving Rater’s Problem):

रेटर्स को प्रशिक्षण दिया जाना समस्याओं से निपटने का सर्वोत्तम तरीका है । Hawlett-Packard में प्रतिवर्ष एक दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाता है ताकि प्रबन्धकों को मूल्यांकन का काम सम्भालने में निपुण बनाया जा सके । प्रशिक्षण ही मूल्यांकन तंत्रों की सभी बुराइयों का एकमात्र निदान नहीं है ।

व्यावहारिक दृष्टि से अनेक घटक, जैसे यूनियन का दबाव, आवर्त की दरें (Turnover Rates), समय बाधाएं तथा रेटिंग्स को उचित ठहराने की आवश्यकता प्रशिक्षण से अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं जो वास्तव में दी जाने वाली रेटिंग्स को प्रभावित करते हैं ।

इसका अर्थ हुआ कि रेटिंस के तंत्रों में सुधार न केवल रेटर्स के प्रशिक्षण का समावेश करता है वरन् अन्य बाहरी घटकों के सुधार की भी बात करता है जैसे यूनियन का दबाव ।

और इसका अर्थ है कि एक रेटर के प्रशिक्षण को प्रभावी होने के लिए कुछ वास्तविक जीवन घटनाओं को भी लिया जाना चाहिये जैसे यह तथ्य कि यूनियन के प्रतिनिधि प्रत्येक को ऊँची रेटिंग्स देने के लिए सुपरवाईजर्स को प्रभावित करने का प्रयास करेंगे ।

लेकिन प्रशिक्षण उस भ्रम की सीमा तक मूल्यांकन तंत्र में सुधार लाने में सहायक हो सकता है जो रेटर की गलतियों के कारण उत्पन्न हो जाते हैं जैसे हैलो, उदारता, केन्द्रीय प्रवृत्ति तथा पक्षपात । एक विशिष्ट प्रशिक्षण में, रेटर्स को किये जा रहे कार्यों के एक वीडियो टेप पर दिखाया जाता है तथा उनसे श्रमिक को रेटिंग के लिए कहा जाता है ।

प्रत्येक भागीदार द्वारा की गई रेटिंग्स को फिर एक फ्लिप चार्ट (Flip Chart) पर दिखाया जाता है तथा विभिन्न विभ्रमों को स्पष्ट किया जाता है । उदाहरण के लिए यदि एक प्रशिक्षणार्थी ने उसी के बारे में सभी मानदण्डों (जैसे गुणवत्ता तथा मात्रा) को रेट किया है तो प्रशिक्षण समझा सकता है कि हैलो विभ्रम उत्पन्न हुआ है ।

यदि दूसरी ओर प्रशिक्षणार्थी ने सभी वीडियो टेपशुदा श्रमिकों का अत्यन्त ऊँचा मूल्यांकन किया है तो इसको एक उदारता विभ्रम के रूप में बताया जा सकता है । विशेषत: प्रशिक्षक सही रेटिंग्स देता है तथा फिर भाग लेने वालों द्वारा की गई रेटिंग गलतियों के उदाहरण देता है । वास्तव में रेटर्स के प्रशिक्षण को उन घटकों को सशक्त बनाने में सहायता करनी चाहिये जो रेटिंग्स की शुद्धता को सुधारते हैं ।

शुद्धता सुधारने में सहायता प्रदान करने घटक (Factors that Help Improve Accuracy):

(a) रेटर ने अवलोकन किया है तथा मूल्यांकित किये जाने वाले व्यवहारों से वह भली प्रकार परिचित है ।

(b) रेटर ने स्मरण-शक्ति को सुधारने के लिए व्यवहारों को कागजों पर लिख लिया है ।

(c) रेटर के पास कार्य सम्बद्ध सूचनाओं को पाने तथा समीक्षा के लिए एक चैक-लिस्ट (Check-List) है ।

(d) रेटर व्यक्तिगत पक्षपातों के प्रति सतर्क तथा उनके प्रभावों को न्यूनतम करने के लिए कार्यवाही करने का इच्छुक हैं ।

(e) एक ग्रुप या संगठन के रेटर्स द्वारा रेटिंग स्कोर्स को अन्य रेटर्स के रेटिंग स्कोर्स के साथ तुलना तथा समीक्षा की जाती है ।

(f) रेटर ऐसे निष्पत्ति सम्बद्ध व्यवहारों पर ध्यान केन्द्रित करता है जिन पर रेटर का मूल्यांकन के अन्य पहलुओं की अपेक्षा कहीं अच्छा नियंत्रण है ।

(g) उच्च स्तरीय प्रबन्ध सभी रेटिंग्स की समीक्षा हेतु जवाबदेह है ।

(h) रेटर की निजी निष्पत्ति रेटिंग्स निर्दिष्ट रेटिंग की गुणवत्ता तथा यूनिटों की निष्पत्ति से सम्बन्धित हैं ।

(i) निष्पत्ति घटकों को भली प्रकार परिभाषित किया गया है ।

(vi) क्या कुछ मूल्यांकन किया जाये ? (What Should be Rated ?):

एक मूल्यांकन कार्यक्रम की अभिकल्पना में अगला चरण होता है मूल्यांकन कसौटी का निर्धारण । स्पष्ट है कि मानदण्ड कर्म-सम्बद्ध होना चाहिये ।

निष्पत्ति मूल्यांकन की निम्न छ: कसौटियाँ हो सकती हैं:

(1) गुणवत्ता (Quality):

वह मात्रा जिस तक किसी गतिविधि को पूरा करने के परिणाम या प्रक्रिया पूर्णता (Perfection) तक पहुँचे या तो गतिविधियाँ को पूरा करने के किसी आदर्श तरीके का पालन करके या गतिविधि के अभियाचित लक्ष्य को पूरा करके ।

(2) मात्रा (Quantity):

मौद्रिक तौर पर अभिव्यक्त उत्पादित राशि, इकाइयों की संख्या या पूर्ण गतिविधि चक्रों की संख्या ।

(3) कालबद्धता (Timeliness):

समय जिस तक एक गतिविधि पूर्ण होती है या एक परिणाम उत्पन्न होता है । अन्य गतिविधियों के लिए उपलब्ध समय को अधिकतम करते हुए तथा दूसरों के उत्पादनों के साथ सामंजस्य रखते हुए, दोनों ही दृष्टिकोणों से वांछनीय शीघ्रतम समय पर ।

(4) लागत प्रभावोत्पादकता (Cost Effectiveness):

किसी संगठन के संसाधनों (जैसे मानवीय, मौद्रिक, प्रौद्योगिकी तथा भौतिक) का अधिकतम लाभ पाने के लिए या एक संसाधन के उपाय या प्रत्येक यूनिट से हानि में कमी लाने के लिए अधिकतम उपयोग किया जाता है ।

(5) अधीक्षण की आवश्यकता (Need for Supervision):

वह मात्रा जिस तक कार्य निष्पादक अधीक्षकीय सहायता हेतु आवेदन किये बिना या किसी विपरीत परिणाम को रोकने के लिए अधीक्षकीय हस्तक्षेप की अपेक्षा किये बिना किसी कार्य को पूरा कर सकता है ।

(6) अन्त: वैयक्तिक प्रभाव (Interpersonal Impact):

वह मात्रा जिस तक एक निष्पादक आत्म गौरव, ख्याति तथा सह-कार्मिकों के बीच एवं अधीनस्थों सहयोग की अनुभूति विकसित कर लेता है ।

ये मानदण्ड किसी कर्मचारी के विगत व्यवहार तथा निष्पादन से सम्बन्ध रखते हैं । मूल्यांकन के लिए यह भी आवश्यक है कि भावी निष्पत्ति हेतु कर्मचारी की सम्भावनाएँ देखी जायें विशेषत: जब कर्मचारी को और अधिक उत्तरदायित्व को संभालने की बात चल रही हो ।

(vii) मूल्यांकन की कालपरकता (Timing of Evaluation):

कितने अन्तराल के बाद एक कर्मचारी का आकलन किया जाये ? सामान्य प्रवृत्ति रही है कि तीन माह या 6 माह या वर्ष में एक बार निष्पादन मूल्यांकन किया जाये । Arthur Anderson द्वारा 1997 में किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार 70% संगठनों ने वर्ष में एक बार निष्पादन मूल्यांकन आयोजित किये थे ।

नव नियुक्त कर्मचारियों का पुराने कर्मचारियों की तुलना में अधिक ज्यादा मूल्यांकन किया जाता है । निरन्तर मूल्यांकन चरणबद्ध मूल्यांकन की अपेक्षा अच्छा माना जाता है । चरणबद्ध मूल्यांकन (Phased Evaluation) में फीडबैक में देरी हो जाती है तथा कर्मचारी द्वारा सामयिक सुधारात्मक उपायों के लाभ समाप्त हो जाते हैं ।

निरन्तर मूल्यांकन Rate को निरन्तर फीडबैक प्रदान करता है, इस प्रकार उसको निष्पत्ति सुधारने में समर्थ बनाते हुए, यदि उसमें कोई खामी नजर आती है । Trainees तथा Probationers की निष्पत्ति का तत्सम्बन्धी कार्यक्रमों के अन्त में मूल्यांकन किया जाना चाहिये ।

(viii) मूल्यांकन विधियाँ (Methods of Appraisal):

मूल्यांकन कार्यक्रम की अभिकल्पना की प्रक्रिया में अन्तिम चरण आकलन की विधियों का निर्धारण होता है । अनेक विधियाँ कर्मचारी की कार्य निष्पत्ति की मात्रा तथा गुणवत्ता के मूल्यांकन हेतु सुझाई गई हैं ।

स्पष्ट की गई प्रत्येक विधि किन्हीं उद्देश्यों के लिए प्रभावी हो सकती हे । किसी को भी अस्वीकार्य या सर्वत्र उपयुक्त नहीं जाना जा सकता है जब तक वे कर्मचारियों के एक विशिष्ट प्रकार के लिए संगठन की विशिष्ट आवश्यकताओं से सम्बन्ध न रखें ।

व्यापक तौर पर सभी आकलन प्रक्रियाओं को:

(a) भूत-उन्मुखी विधियों (Past-Oriented Methods) तथा

(b) भविष्योन्मुखी विधियों (Future-Oriented Methods) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है ।

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