Read this article in Hindi to learn about the top eleven incentive plans of wage payment. The plans are: 1. Halsey Premium Plan 2. Halsey-Weir Plan 3. Rowan Premium Plan 4. Emerson Efficiency Plan 5. Bedeaux or Point Scheme 6. Hayne’s Plan 7. Barth Variable Sharing Plan 8. Taylor Differentiated Piece Rate System 9. Gantt Task and Bonus Plan and a Few Others.

Incentive Plan # 1. हाल्से प्रीमियम योजना (Halsey Premium Plan):

इस योजना का प्रतिपादन 1890 में अमेरिका में हुआ । इस योजना के जन्मदाता कनाडा निवासी एफ. ए. हाल्से (F. A. Halsey) थे । इस योजना में कार्य करने के प्रमापित समय तथा मजदूरी की दर भी निर्धारित कर दी जाती है । जितने समय या घण्टे श्रमिक न काम किया, उसका निश्चित दर से भुगतान कर दिया जाता है ।

यदि कोई श्रमिक प्रमापित समय से पहले ही कार्य समाप्त कर लेता है तो उसने जितने समय काम किया उसका वेतन तथा बचाए गए समय के लिए अतिरिक्त वेतन प्रीमियम के रूप में मिलता है । प्रीमियम बचाए गए समय की मजदूरी का 50% होता है ।

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इस योजना में श्रमिक को मिलने वाले कुल पारिश्रमिक की गणना का सूत्र निम्न है:

कुल पारिश्रमिक = (लिया गया समय × प्रति घाटा दर) + (बचाया गया समय × प्रति घाटा दर × 50%)

उदाहरण (Example):

निश्चित कार्य करने का प्रमापित वास्तविक समय 10 घण्टे, वेतन प्रति घण्टे के अनुसार रु 2 तथा कार्य समाप्त करने का समय 8 घण्टे है ।

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ऐसी दशा में श्रमिक को मिलने वाले कुल पारिश्रमिक की गणना निम्न प्रकार की जाएगी:

कुल पारिश्रमिक = (लिया गया समय + प्रति घण्टा दर) + (बचाया गया समय × प्रति घण्टा दर × 50%)

8 घण्टे का कुल पारिश्रमिक = (8×2) + [2×2× (50/100)]

= 16 + 2 = 18

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अब यदि श्रमिक अपने शेष घण्टों (10 – 8 = 2 घण्टे) में भी कार्य करता है तो बचे हुए समय की निम्न मजदूरी होगी:

8 घण्टे की मजदूरी = रु 18

2 घण्टे की मजदूरी = × 2 = रु 4.50 ।

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अत: 10 घण्टे की मजदूरी = रु 22.50 ।

इस प्रणाली में प्रत्येक श्रमिक को अपनी कुशलता बढ़ाकर अधिक बोनस प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है तथा कुशल श्रमिकों को उनकी योग्यता के अनुसार मजदूरी पाने का अवसर मिलता है परन्तु इसमें प्रमापित समय एवं बोनस की दर सावधानी से निश्चित करनी चाहिए जिससे उसे कम करने की स्थिति न आए ।

लाभ (Advantages):

इस योजना के निम्न लाभ हैं:

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(1) दोनों पक्षों को लाभ- इस योजना में बचाए गए समय का लाभ श्रमिक तथा नियोक्ता दोनों में बाँट लिया जाता है । अत: दोनों ही पक्षों को इससे लाभ मिलता है ।

(2) सरलता- यह योजना काफी सरल है । इसे आसानी से कार्यान्वित किया जा सकता है ।

(3) न्यूनतम मजदूरी का आश्वासन- इस योजना में प्रत्येक श्रमिक को समयानुसार निर्धारित मजदूरी हर दशा में मिलती है अत: श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का आश्वासन रहता है ।

(4) बचाए गए समय के लिए प्रीमियम- यदि कोई श्रमिक प्रमापित समय से पूर्व कार्य समाप्त कर लेता है तो उसे बचाए गए समय के लिए अतिरिक्त वेतन प्रीमियम के रूप में मिलता है, इससे श्रमिकों को अधिक कार्यकुशलता से कार्य करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है ।

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(5) न्यायोचित- इस योजना में श्रमिकों को उनकी उत्पादन-क्षमता का लाभ मिल जाता है । इसलिए यह योजना न्यायोचित योजना मानी जाती है ।

दोष (Disadvantages):

इस योजना के निम्न दोष हैं:

(1) श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव- श्रमिक अधिक मजदूरी के लालच में अपनी सामर्थ्य से अधिक कार्य करने लगते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।

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(2) वस्तुओं की किस्म में गिरावट- समय बचाने के प्रयास में श्रमिक कार्य की श्रेष्ठता की उपेक्षा करते हुए जल्दी से जल्दी कार्य पूरा करने की कोशिश करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं की किस्म में गिरावट आ जाती है ।

(3) मशीनों की अधिक टूट-फूट- तेजी तथा असावधानी से कार्य करने की होड़ का सबसे अधिक कुप्रभाव मशीनों पर पड़ता है । मशीनों तथा उपकरणों की टूट-फूट व घिसावट बढ़ जाती है ।

(4) एकता में कमी- इस योजना में कुशल श्रमिक बहुत अधिक प्रीमियम प्राप्त कर लेते हैं । अत: कुशल तथा अकुशल श्रमिकों में आपसी मनमुटाव हो जाता है । इससे उनकी एकता में कमी आ जाती है ।

(5) लाभ का गलत वितरण- नियोक्ताओं को बचाए गए समय का 50% लाभ मिलता है । श्रमिक इसका विरोध करते हैं क्योंकि अतिरिक्त लाभ प्राय: श्रमिकों की कार्यकुशलता का फल होता है । अत: नियोक्ताओं को इसमें हिस्सा न्यायोचित नहीं है ।

Incentive Plan # 2. हाल्से-वियर योजना (Halsey-Weir’s Plan):

यह योजना हाल्से योजना का ही संशोधित रूप है । इस योजना में प्रीमियम बचाए गए समय की मजदूरी का 30% होता है जबकि हाल्से योजना में यह 50% है । शेष योजना हाल्से योजना के समान है । अत: इस योजना के लाभ तथा दोष भी हाल्से योजना के समान है ।

Incentive Plan # 3. रोवन प्रीमियम योजना (Rowan’s Premium Plan):

इस योजना का प्रतिपादन ग्लैस्गो निवासी जेम्स रोवन (James Rowan) ने किया था । यह हाल्से योजना का थोड़ा-सा बदला हुआ रूप है । हाल्से योजना की भांति इसमें भी श्रमिक को जितने समय या घण्टे उसने काम किया उसका निश्चित दर से भुगतान किया जाता है ।

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इसमें प्रीमियम भी बचाए गए समय पर ही निकाला जाता है परन्तु इसमें हाल्से योजना की भांति अनुपात निश्चित नहीं होता । इस योजना में प्रीमियम निकालने के लिए वास्तविक समय का प्रमापित समय से अनुपात लिया जाता है और इसी अनुपात में बचाए गए समय के लिए श्रमिक को प्रीमियम दिया जाता है ।

प्रीमियम की गणना अग्र सूत्र के अनुसार की जाती है:

प्रीमियम =    ×  लिया गया समय ×  प्रति घाटा दर

यदि कुल पारिश्रमिक की गणना करनी हो तो निम्न सूत्र प्रयोग किया जा सकता है:

कुल पारिश्रमिक (Total Remuneration):

= लिया गया समय × प्रति घाटा दर + ————- लिया गया समय × प्रति घण्टा दर ।

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उदाहरणार्थ:

निश्चित कार्य करने का प्रमापित समय 10 घण्टे मजदूरी प्रति घण्टे के अनुसार रु 2 एवं कार्य समाप्त करने का वास्तविक समय 8 घण्टे ।

प्रीमियम = × 8 × 2 = रु 3.20

कुल पारिश्रमिक = 8 × 2 + × 8 ×2

                                   = 16 +

                                   = 16 + 3.20 = रु 19.20

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इस योजना की प्रीमियम राशि, जितना अधिक समय बचाया जाता है आनुपातिक रूप से कम हो जाती है ।

उपर्युक्त उदाहरण में यदि क्षर्मिक कार्यों को 6 घण्टे में पूरा कर लेता है तो प्रीमियम की राशि निम्न होगी:

प्रीमियम = [(6 × 6 × 2)/ 15 ] =  रु 4.80

इस प्रकार यदि श्रमिक दो घंटे बचाता है तो उसे       =      रु 1.60 प्रति घण्टे की दर से प्रीमियम मिलता है,

यदि वह 4 घण्टे बचाता है तो उसे          =       रु 1.2 प्रति घण्टे की दर से प्रीमियम मिलता है

लाभ (Advantages):

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इस योजना के निम्न लाभ हैं:

(1) न्यूनतम मजदूरी का आश्वासन- इस योजना में श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी (गारण्टी सहित) के साथ-साथ प्रीमियम भी मिलता है जिससे उन्हें अधिक कार्य करने का प्रोत्साहन मिलता है ।

(2) अधिक जल्दबाजी नहीं- इस योजना में श्रमिक अधिक जल्दबाजी नहीं करते क्योंकि प्रीमियम कार्यक्षमता बढ़ने पर घटती हुई दर से बढ़ता है ।

(3) मशीनों का दुरूपयोग- इस योजना में श्रमिक लालचवश अधिक कार्य करने की नहीं सोचता । अत: मशीनों का सही उपयोग किया जाता है ।

(4) माल की किस्म- इस योजना में श्रमिक द्वारा निर्मित वस्तु की किस्म अच्छी होती है, क्योंकि श्रमिक को कार्य करने की शीघ्रता नहीं होती ।

दोष (Disadvantages):

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इस योजना के निम्न दोष हैं:

(1) गणना में कठिनाई- इस योजना में प्रीमियम की राशि ज्ञात करना कठिन है और साधारण श्रमिक न तो आसानी से इसे समझ सकते हैं न ही अपनी मजदूरी की गणना कर सकते हैं । जिससे उनके हृदय में शंका उत्पन्न हो सकती है ।

(2) प्रीमियम की घटती दर- इस योजना में जैसे-जैसे अधिक समय बचाया जाता है वैसे-वैसे प्रीमियम की दर आनुपातिक रूप से घटती जाती है ।

Incentive Plan # 4. ईमरसन कार्यक्षमता योजना (Emerson’s Efficiency Plan):

इस योजना का प्रतिपादन हैरिंगटन ईमरसन (Harrington Emerson) ने किया । इस योजना का उद्देश्य धीरे काम करने वाले श्रमिकों को अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देना है ।

इस योजना में बोनस अधिक की कार्यकुशलता पर निर्भर करता है तथा इसमें सबसे पहले यन्त्रों का प्रमापीकरण किया जाता है और इसी के आधार पर इसकी कार्यशीलता ज्ञात कर ली जाती है ।

इस आदर्श श्रमिक ने जितने समय में निश्चित उत्पादन किया है उसको ही कार्य का प्रमापित समय मान लेते हैं जो श्रमिक इस प्रमापित समय में निश्चित उत्पादन कर लेते हैं उनकी कुशलता 100% मान ली जाती है ।

जो श्रमिक 66% कुशलता का स्तर भी प्राप्त नहीं करते, उनको केवल दैनिक मजदूरी ही मिलती है । प्रीमियम उन श्रमिकों को मिलता है, जिनकी कुशलता से 66% अधिक होती है । 66% से 100% कुशलता तक प्रीमियम का प्रतिशत पहले धीरे-धीरे बाद में अधिक दर से बढ़ता है ।

प्रीमियम की दर धीरे-धीरे इस तरह बढ़ती है कि 100% कुशलता प्राप्त करने पर प्रीमियम दैनिक मजदूरी का 20% हो जाए । 100% कुशलता से अधिक कुशलता प्राप्त कर लेने पर 20% प्रीमियम के अतिरिक्त प्रति 10% की बढ़ी हुई कुशलता पर 1% प्रीमियम और अधिक मिलता है ।

इस प्रकार 125% कुशलता पर प्रीमियम 45% (अर्थात् 20% + 25%) होगा । इसमें श्रमिकों को पहले से अधिक कार्य करने की प्रेरणा मिलती है और पारिश्रमिक का हिसाब लगाने में श्रमिकों को आसानी रहती है ।

लाभ (Advantages):

इस योजना के निम्न लाभ हैं:

(1) यह प्रणाली सरल है ।

(2) इसमें प्रीमियम की दर धीरे-धीरे बढ़ती है अत: नियोक्ता को उत्पादन के उच्च स्तरों पर श्रम की लागत कम होने के कारण लाभ होता है ।

(3) यह सभी स्तर के श्रमिकों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती है ।

दोष (Disadvantages):

इस योजना में 100% कार्यक्षमता को प्राप्त कर लेने के बाद प्रेरणा अपेक्षाकृत कम हो जाती है तथा श्रमिक वर्ग में सामूहिक भावना नहीं रहती ।

Incentive Plan # 5. बेडोक्स योजना (Bedeaux or Point Scheme):

इस योजना का प्रतिपादन चार्ल्स बेडोक्स (Charles Bedeaux) ने न्यूयार्क में 1991 में किया था । इसमें प्रमाप कार्य की इकाई एक अंक बेडो होती है जिसे संक्षेप में B कहते हैं । B वह कार्य है जिसे एक सामान्य श्रमिक 1 मिनट में कर सकता है ।

प्रत्येक उपकार्य के लिए प्रमापित समय पहले से ही निर्धारित कर लिया जाता है और उसे B अंकों में व्यक्त किया जाता है । इस योजना के अनुसार एक श्रमिक को एक घण्टे में 60 B और 10 घण्टों में 600 B काम करना चाहिए ।

जो श्रमिक कार्य प्रमाप B के 100% तक करते हैं, उन्हें केवल समय पर आधारित मजदूरी दी जाती है तथा जो श्रमिक इससे अधिक काम करते हैं उन्हें प्रीमियम मिलता है । प्रीमियम बचाए गए समय की मजदूरी के समान होता है ।

लाभ/गुण (Advantages):

इस योजना के निम्नलिखित गुण हैं:

(i) श्रमिक को न्यूनतम मजदूरी का आश्वासन रहता है ।

(ii) इस योजना में फोरमैन को भी प्रीमियम मिलता है जो न्यायपूर्ण है क्योंकि श्रमिक की कार्यक्षमता बढ़ाने में फोरमैन का भी योगदान रहता है । इस प्रणाली में उत्पादन क्रिया का अध्ययन करके यह निश्चित किया जा सकता है कि श्रमिक को कितने समय कार्य करने के बाद कितने विश्राम की आवश्यकता है ।

दोष (Disadvantages):

इस योजना के निम्नलिखित दोष भी हैं:

(i) श्रमिकों की कमाई का एक बड़ा भाग फोरमैन को दिया जाता है जिसका श्रमिक विरोध करते हैं ।

(ii) यह योजना काफी जटिल है इसलिए श्रमिक इसे आसानी से नहीं समझ सकते ।

Incentive Plan # 6. हैने योजना (Hayne’s Plan):

इस योजना के अन्तर्गत कार्य को प्रमापित मिनटों में किया जाता है । जिन्हें ‘Maints’ कहते हैं । कार्य करने में श्रमिक का जितना समय वास्तव में लगता है उतने समय की मजदूरी उसे समयानुसार निर्धारित दर के आधार पर मिलती है ।

इस योजना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यदि कार्य बार-बार दोहराये जाने वाली प्रकृति का हो तो बचाए गए समय की मजदूरी को श्रमिक तथा फौरमैन में 5:1 अनुपात में बाँट देते हैं किन्तु यदि कार्य बार-बार दोहराया जाने वाला नहीं है तो बचाए गए समय की मजदूरी को श्रमिक, नियोक्ता तथा फौरमैन के बीच क्रमश: 5 : 4 : 1 अनुपात में बाँट देते हैं ।

Incentive Plan # 7. बार्थ परिवर्तनशील भागिता योजना (Barth’s Variable Sharing Plan):

इस योजना का प्रयोग नए प्रशिक्षणार्थियों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है जब वे प्रशिक्षण लेने के बाद कार्य के योग्य हो जाते हैं तब उनके लिए कोई अन्य योजना लागू की जाती है ।

यह योजना प्रमापित कार्यक्षमता से उच्च स्तर होने पर अधिक प्रभावशाली नहीं है क्योंकि इसमें बोनस बढ़ने की दर बहुत कम होती है । अत: कुशल श्रमिक को अधिक प्रेरणा नहीं मिलती है ।

इसमें पारिश्रमिक की गणना निम्न सूत्र के द्वारा की जाती है:

उदाहरण (Example):

मान लीजिए किसी कार्य को पूरा करने का प्रमापित समय 12 घण्टे है तथा मजदूरी की दर रु 3 प्रति घण्टा है । यदि कोई श्रमिक उस कार्य को 16 घण्टों में पूरा करता है तो उसका

कुल पारिश्रमिक = रु 3 ×

                                   = रु 3 × 13.86

                                    = रु 41.58 होगा ।

Incentive Plan # 8. टेलर विभेदात्मक कार्यानुसार प्रणाली (Taylor’s Differentiated Piece Rate System):

इस प्रणाली का प्रतिपादन वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता एफ. डब्ल्यू. टेलर (F. W. Taylor) ने किया । इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य के लिए प्रमापित समय निर्धारित कर दिया जाता है तथा कार्यानुसार मजदूरी की दरें निर्धारित कर दी जाती हैं ।

यदि कोई श्रमिक निर्धारित कार्य को प्रमापित समय में पूरा कर लेता है तो उसे अधिक दर से और यदि कोई श्रमिक उस समय में पूरा न कर सकें तो उसे कम दर से मजदूरी दी जाती है । अधिक और कम दरों में भी काफी अन्तर होता है ।

उदाहरण (Example):

मान लो, प्रमापित उत्पादन 8 इकाइयाँ प्रतिदिन हैं । प्रमापित कार्य को पूरा करने वाले अथवा प्रमापित कार्य से अधिक कार्य करने वाले श्रमिक की पारिश्रमिक की दर रु 1 प्रति इकाई तथा अन्य श्रमिकों की दर 75 पैसे प्रति इकाई है ।

एक दिन में दो श्रमिक निम्नानुसार उत्पादन करते हैं:

सुभाष-7 इकाइयाँ, हरीश = 10 इकाइयाँ, तो इनकी मजदूरी की गणना इस प्रकार की जाएगी- सुभाष ने प्रमाप से कम उत्पादन किया है इसलिए उसे 75 पैसे प्रति इकाई की दर से अर्थात् रु 7 × 0.75 = रु 5.25 मजदूरी मिलेगी । हरीश ने 10 इकाइयों का उत्पादन किया है अत: उसे (10×10) अर्थात् रु 10 मजदूरी मिलेगी ।

लाभ/गुण (Advantages):

इस प्रणाली के निम्न लाभ हैं:

(1) यह प्रणाली सरल है, श्रमिक इसे आसानी से समझ लेते हैं ।

(2) कुशल श्रमिकों को पर्याप्त प्रेरणा मिलती है क्योंकि उन्हें प्रमापित उत्पादन प्रमापित समय में पूरा करने पर अधिक दर से मजदूरी मिलती है ।

(3) जो श्रमिक प्रमापित उत्पादन से कम उत्पादन करते हैं, उन्हें अकुशलता के लिए पर्याप्त दण्ड (मजदूरी की कम दर के रूप में) मिलता है ।

दोष (Disadvantages):

इस प्रणाली के निम्न दोष हैं:

(1) इसमें न्यूनतम मजदूरी की गारण्टी नहीं दी जाती ।

(2) इसमें कम कुशल श्रमिकों को बहुत हानि उठानी पड़ती है ।

(3) इसमें मजदूरी की अधिक तथा कम दरों के बीच बहुत अन्तर होने के कारण श्रमिकों में झगड़े होने का भय रहता है ।

(4) श्रम संघ भी इसे पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि यह प्रणाली श्रमिकों में आपसी मन-मुटाव पैदा कर देती है ।

उपयुक्तता (Suitability):

श्री टेलर के अनुसार, इस प्रणाली का प्रयोग जहाँ व्यावहारिक हो वहाँ ही होना चाहिए । इस प्रकार यह प्रणाली वहीं उपयोगी होती है जहाँ पर प्रतिदिन एक ही प्रकार का कार्य होता हो और अधिकतम उत्पादन वांछित हो ।

Incentive Plan # 9. गैण्ट कार्य एवं बोनस योजना (Gantt’s Task and Bonus Plan):

इस योजना का प्रतिपादन एच. एल. गैण्ट (H. L. Gantt) ने किया था, जो कि टेलर के साथी थे । यह योजना टेलर की विभेदात्मक कार्यानुसार प्रणाली से कुछ मिलती-जुलती है । इस योजना में समयानुसार मजदूरी की गारण्टी के साथ-साथ बोनस की व्यवस्था भी है ।

इस योजना में उचित समय एवं गति अध्ययन करने के पश्चात् प्रत्येक कार्य के लिए प्रमापित समय निर्धारित कर दिया जाता है । टेलर तथा गैण्ट की प्रणाली में एक यह अन्तर है कि इस प्रणाली में जो श्रमिक निर्धारित प्रमाप के अनुसार कार्य नहीं कर पाते उनकी मजदूरी में कोई कटौती नहीं की जाती और उनको मजदूरी दे दी जाती है ।

जो श्रमिक निश्चित कार्य को प्रमापित समय से या उसके पूर्व पूरा कर लेते हैं उनको प्रमापित समय की मजदूरी के अतिरिक्त निश्चित बोनस (मजदूरी का 20% से 50% तक) मिलता है ।

उदाहरण (Example):

कार्य पूरा करने का प्रमापित समय 8 घण्टे, न्यूनतम मजदूरी रु 8 । मजदूरी दर रु 1 प्रति घाटा, बोनस की दर मजदूरी का 25%, तीन श्रमिक A, B तथा C प्रमापित कार्य को क्रमश: 10, 8 और 6 घण्टे में पूरा करते हैं ।

तो इनकी मजदूरी की गणना इस प्रकार की जाएगी:

(1) A श्रमिक को, जो कार्य को 10 घण्टे में पूरा करता है, केवल न्यूनतम मजदूरी मिलेगी अथवा उसको केवल रु 8 मिलेंगे । इस प्रकार A श्रमिक की प्रति घण्टा मजदूरी दर 80 पैसे होगी ।

(2) B श्रमिक, जो कार्य को 8 घण्टे में करता है, उसकी मजदूरी की गणना निम्न प्रकार की जाएगी:

= न्यूनतम मजदूरी + प्रमापित समय की मजदूरी का 25%

= 8 + 8 × = 8 + 2 = 10

अथवा

प्रति घाटा दर रु 1.25

(3) C श्रमिक, जो कार्य को 6 घण्टे में करता है, उसकी मजदूरी की गणना निम्न प्रकार की जाएगी:

= न्यूनतम मजदूरी + प्रमापित समय की मजदूरी का 25%

= 8 + 8 × = 8 + 2 = रु 10

अर्थात् उसे 6 घण्टे में रु 10 मिलेंगे ।

अत: एक घण्टे की मजदूरी रु 1.67 होगी ।

उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि श्रमिक की कार्य क्षमता में वृद्धि होने के साथ-साथ प्रति घाटा मजदूरी की दर में भी वृद्धि होती है ।

लाभ/गुण (Advantages):

इस योजना के निम्न गुण हैं:

(1) यह योजना अधिक सरल है । इसमें टेलर द्वारा प्रतिपादित कार्यानुसार भिन्नक प्रणाली के दोषों को दूर किया गया है ।

(2) इसमें श्रमिक को अधिक से अधिक कार्य करने की प्रेरणा मिलती है क्योंकि अधिक काम करने के लिए उन्हें पर्याप्त बोनस मिल जाता है ।

(3) इसमें सभी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी मिलने की गारण्टी होती है ।

(4) नियोक्ताओं को भी इससे लाभ होता है क्योंकि अधिक उत्पादन होने पर प्रति इकाई उपरिव्यय कम हो जाते हैं ।

दोष (Disadvantages):

इस योजना के निम्न दोष हैं:

(1) इस योजना में श्रमिकों को दो भागों में विभाजित कर दिया जाता है । एक को बोनस अर्जित करने वाले तथा दूसरे बोनस अर्जित करने वाले । इससे श्रमिकों की एकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए श्रम संघ इसका विरोध करते हैं ।

(2) न्यूनतम मजदूरी मिलने का आश्वासन होने के कारण जो श्रमिक यह देखता है कि वह निश्चित कार्य प्रमापित समय में नहीं कर पायेगा तो वह कार्य की गति धीमी कर देती है ।

(3) इस प्रणाली में प्रति इकाई मजदूरी लागत बढ़ जाती है, क्योंकि श्रमिक को निर्धारित प्रमापित कार्य से कम कार्य करने पर भी प्रमापित मजदूरी अवश्य मिलती है और प्रमापित कार्य के बराबर या अधिक कार्य करने पर उसकी मजदूरी में अपार वृद्धि हो जाती है ।

Incentive Plan # 10. मैरिक की भिन्नक अथवा बहु-दर कार्य भाग योजना (Merrick’s Differential or Multiple Piece Rate System):

यह योजना टेलर प्रणाली का संशोधित रूप है । टेलर योजना में यह दोष था कि उसमें मजदूरी की दर में प्रमाप बिन्दु पर बहुत अधिक अन्तर आ जाता था । इस दोष को दूर करने के लिए मैरिक योजना में मजदूरी देने की दो दरों के स्थान पर तीन दरें निर्धारित की जाती हैं ।

जो निम्न प्रकार से हैं:

(1) प्रारम्भिक मजदूरी दर- यह सामान्य कार्य भाग दर उन श्रमिकों के लिए होती है जो, प्रमापित कार्य का 83% तक कार्य पूरा कर पाते हैं ।

(2) विकास मजदूरी दर- यह सामान्य कार्य भाग दर का 110% होती है जो उन श्रमिकों के लिए होती है जो प्रमापित कार्य का 83% से 100% तक कार्य पूरा कर पाते हैं ।

(3) अत्यधिक कुशल श्रमिक दर- यह सामान्य कार्य भाग दर का 120% होती है जो उन श्रमिकों के लिए होती है जो प्रमापित कार्य का 100% से अधिक कार्य करते हैं ।

उदाहरण (Example):

मान लीजिए मजदूरी की दर रु 2 प्रति इकाई हो तो निम्नलिखित विवरण से तीन श्रमिकों की मजदूरी की गणना इस प्रकार की जाएगी:

वास्तविक उत्पादन- कमल : 81 इकाइयाँ, हरीश : 95 इकाइयाँ, राम : 120 इकाइयाँ

मजदूरी : कमल 81 2 = रु 162

हरीश = 95 + 2 × = रु 209

राम = 120 × 2 × = रु 288

Incentive Plan # 11. प्रीस्टमैन की उत्पादन प्रणाली (Preiestmen’s Output Bonus System):

इस प्रणाली में एक सप्ताह का प्रमाप-उत्पादन निर्धारित कर दिया जाता है । यदि उस सप्ताह का वास्तविक उत्पादन, प्रमापित उत्पादन से कम या बराबर होता है तो श्रमिकों को केवल समयानुसार मजदूरी दी जाती है ।

इसके विपरीत यदि वास्तविक उत्पादन, प्रमापित उत्पादन से अधिक होता है तो इस अधिक उत्पादन को प्रमापित उत्पादन से भाग करके बोनस का प्रतिशत ज्ञात कर लिया जाता है अथवा निम्न सूत्र द्वारा बोनस का प्रतिशत ज्ञात कर लिया जाता है- इस प्रणाली के अन्तर्गत श्रमिकों को अधिक उत्पादन की प्रेरणा मिलती है ।

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