Read this article in Hindi to learn about the constituents of a good business letter.

एक अच्छे व्यापारिक पत्र के निम्नलिखित प्रमुख अंग होते हैं:

(1) शीर्षक (Heading),

(2) टेलीफोन संख्या, तार का पता, कोड व फैक्स संख्या, आदि (Telephone no., Telegraphic Address, Code and Fax no. etc),

ADVERTISEMENTS:

(3) दिनांक (Date),

(4) सन्दर्भ संख्या या पत्र संख्या (Reference No. or Letter No.),

(5) पाने वाले का नाम व पता (Name and Address of Adressee),

(6) अभिवदन (Salutation),

ADVERTISEMENTS:

(7) विषय शीर्षक (Subject Heading),

(8) पत्र का मुख्य भाग (Body of the Letter):

(a) प्रारम्भिक भाग (Introductory Part),

(b) वर्णित विषय (Subject Matter),

ADVERTISEMENTS:

(c) अन्तिम भाग (Last Part),

(9) प्रशंसात्मक वाक्य (Complimentary Clause),

(10) हस्ताक्षर व पद (Signature and Designation),

(11) संलग्न पत्र (Enclosures),

ADVERTISEMENTS:

(12) टाइपिस्ट के संक्षिप्त हस्ताक्षर (Initials of the Typist),

(13) पुनश्च (Post-script or P.S,) एवं

(14) संक्षिप्त हस्ताक्षर (Initials) ।

व्यापारिक पत्र के अंगों का वर्णन (Description of Constituents of Business Letter):

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एक व्यापारिक पत्र इस प्रकार से लिख जाना चाहिए जिससे कि उसका प्राप्तकर्त्ता उस पर एक दृष्टि डालकर यह जान सके कि पत्र कहाँ से आया है, किसने लिखा है, किस विषय में लिखा है ? आदि । लेखक को चाहिए कि पत्र लिखने का जो ढंग प्रचलित है, उसमें परिवर्तन न करें, वरन् उसका कड़ाई से पालन करें ।

श्री एल.ई.फ्रेली ने पत्र के ढांचे को मनुष्य के अस्थिपंजर के समान बताया है जिसके ऊपर मांस, चर्म या अन्य बातें अलग-अलग होने के कारण रूप परिवर्तित दिखायी पड़ता है किन्तु सभी मनुष्यों के शरीर में अस्थिपंजर एक-सा होता है ।

एक अच्छे व्यावसायिक पत्र के मुख्य भागों या अंगों का वर्णन इस प्रकार है:

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(1) शीर्षक (Heading):

शीर्षक में पत्र भेजने वाले का नाम, पता तथा व्यापार का प्रकार आदि प्राय: छपा रहता है । पत्र का शीर्षक सुन्दर व आकर्षक होना चाहिए । इसमें फर्म का नाम प्राय: मोटे अक्षरों में तथा फर्म जो व्यापार करती है, वह उससे छोटे अक्षरों में छपा रहता है । उसके बाद सीधे हाथ की ओर ऊपर पत्र-व्यवहार पता छपा रहता है, जैसे-34, लाजपत कुंज, आगरा-2; 132, मदार गेट, अलीगढ़ इत्यादि । कुछ संस्थाएँ अपने प्रबन्धक अथवा मालिक का नाम भी शीर्षक में एक ओर दे देती हैं ।

कभी-कभी फर्म पैड में ऊपर बायीं ओर अथवा बीच में ऊपर ट्रेडमार्क अथवा मोनोग्राम को भी छपवा लेती हैं । शीर्षक में इन बातों को अपने का उद्देश्य पत्र प्राप्त करने वाले को अपनी फर्म के बारे में जानकारी देना होता है । शीर्षक में कभी भी फर्म के नाम के बाद पूर्ण-विराम अथवा अर्द्ध-विराम नहीं लगाया जाता ।

शीर्षक में छपे उदाहरण इस प्रकार है:

(2) टेलीफोन संख्या, तार का पता, कोड व फैक्स संख्या आदि (Telephone Number, Telegraphs Address, Code and Fax Number etc.):

जिन संस्थाओं में टेलीफोन लगे होते हैं, वे अपना टेलीफोन नम्बर तथा जिन्होंने तार का पता रजिस्टर्ड करवा लिया होता है, वे अपने तार का रजिस्टर्ड पता तथा तार में सन्देश भेजने के लिए उन्होंने जो कोड अपना रखा है, उसका नम्बर तथा फैक्स नं. पत्र में ऊपर शीर्षक से नीचे छपवा लेते है, ताकि ग्राहकों को यदि टेलीफोन से कोई अति आवश्यक बात करनी है तो उसके नम्बर का पता चल जाये तथा यदि तार भेजना हो तो संक्षिप्त पता, पता लग जाये तथा यदि कोई सूचना लिखित में तुरन्त भेजनी हो तो फैक्स नम्बर का पता चल जाये ।

(3) दिनांक या तिथि (Date):

प्रत्येक पत्र पर पत्र भेजने की तिथि देना आवश्यक है, ताकि पत्र पाने वाले को यह पता चल जाये कि भेजने वाले ने पत्र किस तारीख को लिखा है ।

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पत्र पर तारीख लिखने के कई तरीके है, जैसे:

30.7.2009 या 30/7/2009 या 30/7/2009

30 जुलाई, 2009 (बिटिश पद्धति)

जुलाई, 30, 2009 (अमेरिकन पद्धति)

तारीख लिखने का पहला तरीका प्रचलन में नहीं है, जबकि दूसरा और तीसरा तरीका प्रचलन में हैं ।

(4) सन्दर्भ संख्या या पत्र संख्या (Reference no. or Letter no.):

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बाहर जाने वाले सभी पत्रों पर भविष्य के सन्दर्भ के लिए क्रमांक संख्या दी जाती है । क्रमांक संख्या के बाद सन् तथा पत्र किस विभाग से सम्बन्धित है, यह भी डाल दिया जाता है,

जैसे:

संदर्भ संख्या: 1234/क्रय/2009

पत्र संख्या: 435/क्रय/2009

सन्दर्भ संख्या अथवा पत्र संख्या पत्र के बायीं ओर लिखी जाती है ।

(5) पाने वाले का नाम और पता (Name and Address of the Receiver):

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पत्र में पत्र पाने वाले का नाम और पता बायीं ओर शीर्षक के नीचे लेकिन अभिवादन के ऊपर लिखा जाता है । इसको भीतरी पता (Inner Address) भी कहते हैं । इसमें पहली पंक्ति में मोटे अक्षरों में पत्र पाने वाली फर्म का नाम तथा दूसरी पंक्ति में पूरा पता (गली, मोहल्ला, मकान/दुकान नम्बर) लिखा जाता है तथा तीसरी पंक्ति में उस शहर अथवा गाँव का नाम जहाँ वह पत्र भेजा जा रहा है, लिखा जाता है ।

पत्र में पते लिखने के दो ढंग प्रचलित हैं:

(i) अंग्रेजी ढंग (English System):

मैं. मोहन लाल सोहन लाल

341, शाहगंज,

आगरा- 280 021

ADVERTISEMENTS:

(ii) अमरीकन ढंग (American System):

मै. मोहन लाल सोहन लाल

341, शाहगंज,

आगरा-280 021

व्यापारिक पत्र विभिन्न प्रकार के व्यक्ति, फर्म, संस्थाओं, कम्पनियों, सोसाइटी आदि को लिखे जाते हैं ।

इनको पत्र लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

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(a) व्यक्ति (Individual):

यदि पत्र किसी व्यक्ति को सम्बोधित करके लिखा जाता है तो उसके लिए निम प्रकार से आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए: जैसे- व्यक्ति के लिए श्री अथवा Mr.; डॉक्टर के लिए डॉक्टर (Doctor): प्रोफेसर के लिए प्रोफेसर (Professor); विवाहित स्त्री के लिए श्रीमती या Mrs. तथा अविवाहित स्सी के लिए कुमारी अथवा Miss. शब्द आ प्रयोग करना चाहिए ।

(b) फर्म (Firm):

यदि पत्र किसी फर्म को लिखा जाना है तो फर्म को मैसर्स, Messrs or M/s लिखकर उसे सम्बोधित किया जाना चाहिए ।

(c) कम्पनी अथवा सोसाइटी (Company or Society):

जब पत्र किमी कम्पनी अथवा सोमाइटी के अधिकारी को लिखा जाता है तो अंग्रेजी में उसके पद के नाम के पहले The शब्द प्रयोग करना होता है, लेकिन हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं किया जाता,

जैसे:

(i) The Registrar,

Consumer Co-operative Store,

Bara Bazar,

Meerut.

(ii) The Manager

Jindal Strips Ltd.

Raigarh.

उपरोक्त का हिन्दी अनुवाद इस तरह करेंगे:

(i) रजिस्ट्रार,

उपभोक्ता सहकारी भण्डार,

बड़ा बाजार,

मेरठ ।

(ii) प्रबन्धक,

जिन्दल स्ट्रिप्स लिमिटेड,

रायगढ़ ।

(d) सरकारी विभाग (Government Department):

जब पत्र किसी सरकारी विभाग को सम्बोधित करने के लिए लिखा जाता है, तब भी पत्र को अंग्रेजी में लिखे जाने पर The शब्द का प्रयोग किया जायेगा परन्तु हिन्दी में दी शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता ।

जैसे:

The Secretary,

Government of India,

Ministry of Health,

Shastri Bhawan

New Delhi- 110 001

हिन्दी में:

सचिव,

स्वास्थ्य मन्त्रालय,

शास्त्री भवन,

नई दिल्ली- 110 001

(6) अभिवादन (Salutation):

पत्रों में वार्ता प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ शिष्टाचार एवं आदरसूचक शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं । इन्हें पत्र पाने वाले के नाम व पते के ठीक नीचे लिखा जाता है ।

पत्रों में अभिवादन में निम्न शब्दों का प्रयोग किया जाता है:

(a) व्यक्ति को पत्र लिखते समय-प्रिय महोदय अथवा Dear Sir,

(b) किसी स्त्री को पत्र लिखते समय-प्रिय महोदया अथवा Dear Madam,

(c) सरकारी कर्मचारी को पत्र लिखते समय- श्रीमान् अथवा Sir,

(d) किसी अपने को पत्र लिखते समय-मेरे प्यारे अथवा My Dear,

(e) किसी ग्राहक को पत्र लिखते समय-प्रिय ग्राहक अथवा Dear Customer,

(f) किसी सदस्य को पत्र लिखते समय-प्रिय सदस्य अथवा Dear Member,

(g) किसी अशाधारी को पत्र लिखते समय-प्रिय अंशधारी अथवा Dear Shareholder,

(h) अभिवादन के शब्द लिखे जाने के बाद अर्द्ध-विराम (Comma) अवश्य ही लगाया जाना चाहिए ।

(7) विषय शीर्षक (Subject Heading):

कुछ व्यावसायिक संस्थाएँ अभिवादन के बाद संक्षिप्त विषय पत्र के मध्य भाग में दे देती हैं । इसे ही ‘विषय शीर्षक’ कहते हैं ।

इसका उद्देश्य:

(i) पढ़ने वाले व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करना, तथा

(ii) पत्रों को फाइनल करने में सुविधा प्रदान करना है,

जैसे:

(8) पत्र का मुख्य अंग (Main Body of the Letter):

पत्र के मुख्य अंग प्राय: तीन होते हैं:

(i) प्रारम्भिक अनुच्छेद,

(ii) द्वितीय अनुच्छेद, तथा

(iii) तृतीय अनुच्छेद ।

(i) प्रारम्भिक अनुच्छेद:

यदि पत्र किसी पत्र के उत्तर में लिखा जा रहा है तो प्रथम वाक्य में पहले के पत्र की संख्या, तिथि व विषय संक्षेप में लिख देना चाहिए । वास्तव में, पत्र का पहला वाक्य अत्यन्त सावधानी तथा व्यापारिक ढंग से लिखना चाहिए क्योंकि इसका विशेष महत्त्व होता है। कहावत प्रसिद्ध है कि “यदि प्रारम्भ अच्छा है तो आधी सफलता मिली समझिए ।”

जो पत्र लिखा जा रहा है, वह:

(i) किसी पत्र के उत्तर में होता है,

(ii) उसी विषय पर, पत्रों की शृंखला में लिखा जा रहा हो, अथवा

(iii) नये विषय पर लिखा जा रहा हो ।

नये विषय पर पत्र लिखते समय प्रारम्भिक अनुच्छेद में कुछ कठिनाई प्रतीत होती है । प्राय: इस दशा में पत्र, पाने बाले का परिचय कैसे मिला, यह बताना है या सीधे विषय सामग्री मै प्रारम्भ किया जा सकता है ।

जैसे:

(a) हम सहर्ष सूचना देते हैं हमारी स्कूटर बनानें की योजना पूर्ण हो गई है, अब हम शीघ्र ही इनका निर्माण तथा बिक्री प्रारम्भ कर देंगे ।

(b) आपके नगर के सर्वश्री रामपाल एण्ड ब्रादर्स ने हमें आपका नाम सन्दर्भ के रूप में दिखा है ।

अन्य दोनों प्रकार के पत्रों में प्रारम्भिक अनुच्छेद, का उद्देश्य पिछले पत्र-व्यवहार के साथ प्रस्तुत पत्र का सम्बन्ध जोड़ना होता है,

जैसे:

(a) हमें आपका पत्र संख्या………………दिनांक………………का मिला व धन्यवाद ।

(b) 26 मार्च, 2009 के आपके पूछताछ, पत्र के लिए धन्यवाद ।

(c) 20 अप्रैल, 2009 को हमने आपको……………….के विषय में लिखा था ।

(ii) द्वितीय अनुच्छेद:

इस भाग में वास्तविक सन्देश लिखा जाता है । यदि सन्देश अधिक है तो उसे उचित परिभागों (Paragraphs) में लिखना चाहिए । जहाँ तक सम्भव हो, भिन्न-भिन्न विषयों के लिए भिन्न-भिन्न पत्र ही लिखने चाहिए । एक पत्र में ही अधिक विषय न ही ।

(iii) तृतीय अनुच्छेद:

पत्र का अन्तिम अनुच्छेद बहुत ही प्रभावपूर्ण होना चाहिए । इस अनुच्छेद का उद्देश्य सन्देश को संक्षिप्त में दुहराकर प्राप्तकर्त्ता को कार्य के लिए प्रेरित करना होता है । इसकी भाषा विश्वासजनक, प्रभावशाली तथा प्रेरणात्मक होनी चाहिए ।

यहां दो बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए:

(a) अपूर्ण वाक्य न लिखे जायें, एवं

(b) कार्य होने से पूर्व धन्यवाद नहीं देना चाहिए ।

इसके अलावा निम्नलिखित वाक्यों से पत्र को समाप्त नहीं करना चाहिए:

‘शुभ भावनाओं के साथ’ अथवा ‘अत्यन्त आदर के साथ’ आदि ।

ये वाक्य निजी पत्रों के लिए तो उपयुक्त हो सकते हैं किन्तु व्यापारिक पत्रों के लिए उचित नहीं हैं ।

अन्तिम अनुच्छेद के वाक्यों के निम्नलिखित नमूने हैं:

आशा है आप इस ओर पर्याप्त ध्यान देंगे ।

हमें विश्वास है आप हमें सदा की भांति मेवा का अवसर देंगे ।

शीघ्र पत्रोत्तर प्राप्त होने पर हम आपके बड़े आभारी होंगे ।

यदि आप हमारे प्रस्ताव को स्वीकार करने का निर्णय करते है तो कृपया शीघ्र लिखिए ।

(9) प्रशंसात्मक वाक्य (Complimentary Clause):

जिस तरह जब हम किसी से बातचीत करते हैं और बातचीत समाप्त होने पर या आपस में चलते समय विदा लेने पर नमस्कार आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं, उसी तरह पत्रों में भी पत्र का विषय समाप्त होने पर शिष्टाचार के नाते कुछ शब्द लिखे जाते हैं जो पत्र लिखने और प्राप्त करने वाले की आपस में घनिष्ठता प्रदर्शित करते हैं । इन शब्दों को ही प्रशसनात्मक वाक्य के रूप में जाना जाता है ।

इसके लिए प्राय: निम्न शब्दों का प्रयोग किया जाता:

हिन्दी में:

भवदीय, आपका शुभचिन्तक, आपका विश्वासी, आपका अत्यन्त विश्वासी आदि ।

अंग्रेजी में:

Yours faithfully, Yours truly, Yours very truly etc.

व्यक्तिगत पत्रों में आपका सच्चा (Yours Sincerely) अथवा आपका आज्ञाकारी (Yours Obediently) एवं आपका आज्ञापालक (Yours Respectfully) इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है । अन्तिम प्रशंसात्मक वष्म के लिखे जाने के पश्चात् अर्द्ध-विराम (Comma) अवश्य ही लगाया जाना चाहिए । जब पत्र के अन्तिम पैराग्राफ को अपूर्ण वाक्य लिखकर समाप्त कर दिया गया है तो ऐसी स्थिति में प्रशसात्मक वाक्य को लिखने से पूर्व उस खाना को पूर्ण करने के लिए इस तरह लिखना चाहिए ।

We are

Yours’ Faithfully,

Ram Lal

हम हैं,

आपके शुभचिन्तक,

राम लाल

(10) हस्ताक्षर व पद (Signature and Designation):

हस्ताक्षर (Signature):

पत्र के प्रशंसात्मक अन्त के नीचे ही हस्ता क्षर का स्थान होता है । हस्ता क्षर सदैव पत्र लिखने वाले को अपने हाथ से तथा स्याही से ही करने चाहिए । हस्ताक्षर सदैव एक-से ही हों । यदि हस्ता क्षर अस्पष्ट ही तो उसके ब्रीचे हस्ताक्षरकर्त्ता का पूरा नाम टाइप कर देना चाहिए ।

इस सम्बन्ध में निम्न नियमों का पालन करना चाहिए:

(11) संलग्न पत्र (Enclosures):

जब पत्र के साथ कुछ प्रलेख भी भेजे जा रहे हैं तब उनकी संख्या व प्रकृति का उल्लेख भी पत्र में बायीं ओर किया जाना चाहिए ।

इसका एक उदाहरण इस प्रकार है:

(12) टाइपिस्ट के संक्षिप्त हस्ताक्षर (Initials of the Typist):

बड़ी-बड़ी संस्थाओं में अधिकारी व पत्र टाइप करने वाले कई व्यक्ति होते हैं । अत: इस बात का पता लगाने के लिए कि पत्र किस अधिकारी ने लिखनाया व किसने टाइप किया, पत्र के बायीं ओर दोनों के संक्षिप्त नाम टाइप कर दिये जाते हैं ।

(13) पुनश्च (Post-Script or P.S.):

कभी-कभी जब पत्र लिख जाने के बाद कोई जरूरी बात ध्यान में आती है तो उस पत्र को दोबारा नये सिरे से न लिखा जाकर पत्र के अन्त में पुनश्च लिखकर लिख देते हैं और इस तरह पत्र को दोबारा नये सिर से लिखने की आवश्यकता नहों रहती ।

इसका एक उदाहरण निम्न है:

पुनश्च:

कृपया हमारे हिसाब में Rs.767.15 निकलते है जिसे शीघ्र भेजने की कृपा करें ।

(14) सक्षिप्त हस्ताक्षर (Initials):

पुनश्च में जो भी समाचार लिखा गया है, उसके नीचे उसे प्रमाणित करने के लिए पत्र लेखक के द्वारा संक्षिप्त हस्ताक्षर अवश्य किये जाने चाहिए अन्यथा लिखा हुआ प्रमाणित नहीं माना जायेगा ।

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