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वैज्ञानिक प्रबन्ध विचारधारा, 1910 (Scientific Management School,1910):

फ्रेडरिक विन्सलो टेलर (Fredrick Winslow Taylor) को वैज्ञानिक प्रबन्ध का जन्मदाता कहा जाता है । प्रबन्ध के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान को वैज्ञानिक प्रबन्ध कहा जाता है । यद्यपि टेलर से पूर्व भी अनेक प्रबन्ध विचारकों ने प्रबन्ध में वैज्ञानिकता के दृष्टिकोण की बात की थी, परन्तु टेलर सबसे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने कठोर सिद्धान्त व निरन्तर प्रयास के फलस्वरूप प्रबन्ध का विधिवत् अध्ययन एवं प्रयोग की बात को सिद्ध किया ।

टेलर का जन्म 1856 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया नगर में हुआ 1874 में अध्ययन छोड़ने के बाद उन्होंने एप्रेन्टिस के रूप में जीवन शुरू किया और 1878 मं मिडलेव स्टील कम्पनी में काम करना प्रारम्भ किया जहाँ वे अपनी समझ-बूझ से 1884 तक उसी कम्पनी में श्रमिक से चीफ इन्वीनियर के पद पर पहुँच गए ।

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मिडवेल स्टील कम्पनी तथा बेथल-हेम-स्टील कम्पनी में कार्यरत रहते हुए टेलर ने कुछ ऐसे प्रयोग किए जिनका प्रभाव सारे संसार पर पड़ा टेलर ने अपने अनुभवी तथा प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि श्रमिकों की उत्पादन क्षमता बहुत कम जिसको बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि प्रबन्ध में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाए ।

उन्होंने “रूढ़िवादिता” (Rule of Thumb Method) के स्थान पर प्रबन्ध की वैज्ञानिक विधि का विकास किया । “वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत मनमाने ढंग से निर्णय लेने पर रोक लगती है और प्रत्येक बात के लिए, चाहे यह बड़ी हो या छोटी हो, वैज्ञानिक अनुसंधान किया जाता है जिससे कि नियमों के आधीन लाया जा सके ।”

इस प्रकार टेलर ने यह स्पष्ट किया कि, “वैज्ञानिक प्रबन्ध यथार्थ में यह जानने की कला है कि क्या किया जाना है और उसको करने की सर्वोत्तम विधि क्या है ?” अतएव “वैज्ञानिक प्रबन्ध एक दर्शन है, धारणा है जो कार्य और कार्मिकों के प्रबन्ध को “तीर एवं तुक्के” पर आधारित परम्परागत विधियों के स्थान पर अनुसन्धान एवं प्रयोगों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों के आधार पर अपनाई गई विधियों के प्रयोग पर बल देती है ।” वैज्ञानिक प्रबन्ध के महत्व पर अपना विचार व्यक्त करते हुए पीटर दकर लिखते हैं कि पाश्चात्य विचारों में अमेरिका का यह सबसे अधिक शक्तिशाली व सबसे अधिक स्थायी योगदान है ।

टेलर बताते हैं कि वैज्ञानिक प्रबन्ध का अर्थ किसी नवीन खोज से नहीं है अपितु प्रबन्ध तत्वों के सर्वश्रेष्ठ संयोजन (Optimum Combination of Elements) से है । टेलर के अनुसार, “उसने केवल पुराने ज्ञान को ही सिद्धान्तों एवं नियमों के रूप में इस दंग से संग्रहीत, विश्लेषित एवं वर्गीकृत किया है कि ख्से प्रबन्ध-विज्ञान का रूप प्राप्त हो गया है ।”

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वैज्ञानिक प्रबन्ध के मूलाधार (Basic Elements of Scientific Management):

वैज्ञानिक प्रबन्ध के मूल तत्व (Basic Elements) निम्नलिखित है, जिन्हें वैज्ञानिक प्रबन्ध में मूलाधार के नाम से भी जाना जाता है:

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(1) विज्ञान, न कि रूढ़िवादिता (Science, Not Rule of Thumb):

टेलर का कहना था कि प्रबन्ध अनुभव कल्पना, अन्धविश्वास व पुरानी परम्पराओं के स्थान पर विज्ञान एवं वैज्ञानिक विधियों पर आधारित होना चाहिए । वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण पद्धतियों के आधार पर किया जाना चाहिए तथा रूढ़िवादी राज्य का बहिष्कार किया जाना चाहिए । इसके अन्तर्गत वैज्ञानिक पद्धतियों का विकास प्रयोगों तथा विभिन्न अध्ययनों द्वारा किया जाना चाहिए ।

(2) एकता, न कि विरोध (Harmony, Not Discord):

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वैज्ञानिक प्रबन्ध में संस्था के प्रत्येक स्तर पर एकता होनी चाहिए न कि विरोध । टेलर का मत था कि कर्मचारियों का इस प्रकार वैज्ञानिक चयन, प्रशिक्षण तथा विकास किया जाए जिससे कार्य में विरोध के स्थान पर एकता हो ।

(3) सहयोग, न कि व्यक्तिवाद (Co-Operation, Not Individualism):

टेलर के अनुसार श्रम तथा पूंजी के घनिष्ठ सम्पर्क व सहयोगपूर्ण व्यवहार से ही वैज्ञानिक प्रबन्ध की योजना सफल हो सकती है । वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर ही कार्य हों इसके लिए व्यक्तिवाद के स्थान पर व्यक्तियों की विभिन्न क्रियाओं में आपसी सहयोग का होना आवश्यक है क्योंकि विशिष्टीकरण के कारण एक व्यक्ति का कार्य दूसरे के कार्यों का पूरक होता है यह सहयोग न केवल श्रमिकों में आपस में होयक्क श्रमिकों तथा मालिकों के बीच भी हो ।

(4) सीमित उत्पादन के स्थान पर अधिकतम उत्पादन (Maximum Output, in Place of Restricted Out-Put):

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वैज्ञानिक प्रबन्ध का चौथा तत्व अधिकतम उत्पादन पर बल देता है । इस तत्व के अनुसार उत्पादन की मात्रा पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं लगाना चाहिए क्योंकि किसी देश की अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता अधिकतम उत्पादन करने में ही निहित होती है ।

(5) प्रत्येक कर्मचारी की कुशलता तथा सम्पन्नता का चरम सीमा तक विकास (The Development of Each Man to his Greatest Efficiency and Prosperity):

वैज्ञानिक प्रबन्ध में प्रत्येक श्रमिक को उसकी अधिकतम कुशलता तथा सम्पन्नता तक पहुँचाने तक भरसक प्रयास किया जाता है । श्रमिकों तथा प्रबन्धकों के बीच इस प्रकार से कार्य विभाजन किया जाना चाहिए जिससे कि वे अपनी सम्पूर्ण दक्षता का उपयोग कर सकें तथा अपने-आप का अधिकतम विकास कर सकें ।

दूसरे शब्दों में, जो व्यक्ति जिस काम के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होता है, उसे वही कार्य दिया जाता है तथा उन्हें प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति से पारिश्रमिक दिया जाता है । उन्हें पदोन्नति के अवसर भी प्रदान किए जाते हैं । ऐसा करने से श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि होती है तथा उनकी सम्पन्नता भी अधिकतम होती है ।

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टेलर के अनुयायी (Followers of Taylor):

टेलर के प्रमुख अनुयायियों में गैन्ट, फ्रेंक व गिलब्रेथ तथा इमर्सन के नाम प्रमुख हैं, जिन्होंने वैज्ञानिक प्रबन्ध में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर इसे आगे बढ़ाया ।

(1) हैनरी गैन्ट का योगदान (Contribution of Henry Gantt):

गैन्ट ने:

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(i) प्रबन्ध और श्रमिकों के बीच आपसी हितों पर बल दिया ।

(ii) टेलर की प्रेरणात्मक पद्धति में सुधार किया तथा कार्य एवं बोनस योजना (Task and Bonus Plan) का विकास किया इसके आधार पर आगे चलकर कई प्रेरणात्मक योजनाओं का विकास किया गया । गैन्ट की प्रेरणात्मक योजना के अन्तर्गत श्रमिकों को न्यूनतम दैनिक मजदूरी तो दी जाती है चाहे वे प्रमापित कार्य करते है अथवा नहीं । किन्तु यदि वे पाँच घण्टे का कार्य चार घण्टे या इससे कम समय में पूरा करते हैं तो उन्हें पाँच घण्टे का बोनस दिया जाता है ।

(iii) गैन्ट चार्ट का आविष्कार किया जिसमें समयबद्ध कार्य-प्रगति को दर्शाया जाता है । गैन्ट चार्ट का आज भी व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है । इसके आधार पर और अधिक सुधरी तकनीकों का विकास किया गया जिन्हें पर्ट (PERT) (कार्य मूल्यांकन एवं समीक्षा तकनीक) तथा सी.पी.एम. (क्रान्तिक पथ विधि) (Critical Path Method) के नाम से जाना जाता है ।

(2) फ्रेंक व लिलियन गिलब्रेथ का योगदान (Frank and Lillian Gilbreth’s Contribution):

फ्रेंक व गिलब्रेथ ने:

(i) गति अध्ययन में रुचि ली । उन्होंने ईटों को लगाने वाले राज (Mason) की गतियों की संख्या को 18 से घटा कर 5 तक सीमित किया । इसमें भट्ठा उद्योग की उत्पादकता 120 से 250 ईंट प्रति घण्टा हो गई ।

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(ii) गिलब्रेथ के अनुसार श्रमिकों में सबसे प्रमुख असन्तुष्टि का कारण प्रबन्ध द्वारा उनमें रुचि न लेना है । उन्हीने इस बात पर बल दिया कि प्रबन्ध को श्रमिकों की आवश्यकताओं और उनके व्यक्तित्व को समझना चाहिए ।

(iii) प्रक्रिया प्रवाहचार्ट (process Flow Chart) का भी अविष्कार किया जिसमें समय व सम्बन्धित कार्यों द्वारा तमाम परिचालनों की प्रगति को दर्शाया जाता है ।

(iv) कार्य पर 18 गतियों (On-the-job Motions) की पहचान की जिसे वे थरब्लिगस (Therbligs) के नाम से पुकारते हैं ।

(3) हैरिंगटन इमर्सन का योगदान (H. Emerson’s Contribution):

इमर्सन ने कारखाना स्तरीय प्रबन्ध की बजाय समूचे उपक्रम के प्रबन्ध पर अपना ध्यान केन्द्रित किया । उन्होंने “कुशलता के बारह सिद्धान्त” (Twelve Principles of Efficiency) नामक पुस्तक लिखी इसमें उन्होंने कुशल प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जो टेलर पद्धति से बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं ।

परन्तु टेलर के क्रियात्मक संगठन (Functional Organisation) के स्थान पर इमर्सन ने विभागीय विशेषज्ञ संगठन (Line and Staff Organisation) अपनाने पर बल दिया । इमर्सन ने मजदूरी निर्धारित करने के लिए इमर्सन कार्यक्रम योजना (Emerson Efficiency Plan) का विकास किया इस योजना में बोनस श्रमिकों की कार्यकुशलता पर निर्भर करता है । इस प्रकार, इमर्सन ने “कार्यकुशलता” पर अधिक बल दिया ।

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इस प्रकार टेलर तथा उसके अनुयायियों ने उत्पादन-स्तर पर कुशल प्रबन्ध व्यवस्था में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

(A) प्रबन्ध-प्रक्रिया विचारधारा, 1910 (Management Process School, 1910):

प्रबन्ध-प्रक्रिया स्कूल के प्रथम प्रतिपादक हेनरी फेयोल माने जाते है । उनके प्रबन्ध सम्बन्धी विचारों को प्रशासनिक प्रबन्ध (Administrative Management) विचारधारा कहा जाता है । इसे आगे चलकर प्रबन्ध-प्रक्रिया विचारधारा के रूप में विकसित किया गया ।

हेनरी फेयोल, टेलर के समकालीन थे । उन्होंने समूची प्रबन्ध-प्रक्रिया का व्यवस्थित विश्लेषण किया है उनकी प्रबन्ध-विषय पर पुस्तक पहली बार फ्रेंच भाषा में “Administration Industrielle et Generale” के नाम से प्रकाशित हुई ।

यह बाद में अंग्रेजी भाषा में General and Industrial Management के नाम से प्रकाशित हुई उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से प्रबन्ध के सिद्धान्तों का विकास करने तथा अपने विचारों को सम्बद्ध तत्वज्ञान के रूप में व्यवस्थित करने का प्रयास किया । उनके विचारों को आधुनिक प्रबन्ध विचारधारा के विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान के रूप में देखा जाता है इसलिए उन्हें आधुनिक प्रबन्ध का जन्मदाता माना जाता है । प्रबन्ध के सम्बन्ध में उन्होंने क्रियात्मक दृष्टिकोण (Functional) अपनाया ।

प्रबन्ध-प्रक्रिया विचारधारा प्रबन्ध को लोगों के साथ मिलकर कार्य करने और उनके द्वारा कार्य करवाने की प्रक्रिया मानती है इसकी यह मान्यता है कि प्रबन्ध एक प्रक्रिया है और इसके कार्यों के विश्लेषण के द्वारा इसे अच्छे ढंग से समझा जा सकता है ।

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इसके अन्तर्गत सामान्यीकरण या सिद्धान्तों को विकसित करने के लिए प्रबन्धकीय अनुभवों का उपयोग किया जाता है । इसका उपयोग प्रबन्ध अध्ययन व शोध के साथ-साथ प्रबन्ध-व्यवहार को उन्नत बनाने में भी किया जा सकता है ।

यह विचारधारा प्रबन्ध को एक सार्वभौमिक प्रक्रिया मानती है, जिसे सभी प्रकार के उपक्रमों व प्रबन्ध के सभी स्तरों पर लागू किया जा सकता है । यह विचारधारा प्रबन्ध कार्य को एक प्रक्रिया मानती है नियोजन संगठन निर्देशन नियन्त्रण आदि इसके तत्व हैं ।

यह विचारधारा प्रबन्ध को कला एवं कौशल मानती है । यह विचारधारा प्रबन्ध के आधारभूत कार्यों का निर्धारण करती है । इसलिए इसे “कार्यात्मक विचारधारा” (Functional Approach) के नाम से जाना जाता है ।

प्रबन्ध के क्षेत्र में हेनरी क्रेयोल का योगदान (Contribution of Henry Fayol in the Field of Management):

हेनरी फेयोल के प्रबन्ध के क्षेत्र में योगदान को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है:

(1) औद्योगिक क्रियाओं का वर्गीकरण (Classification of the Industrial Activities):

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फेयोल के अनुसार उद्योगों के सभी कार्यों को 6 प्रमुख समूहों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) तकनीकी क्रिया: जैसे उत्पादन एवं निर्माण क्रिया;

(ii) वाणिज्यिक क्रिया: जैसे- क्रय-विक्रय तथा विनिमय सम्बन्धी क्रिया;

(iii) वित्तीय क्रिया-जैसे कि पूंजी की प्राप्ति तथा उसका अनुकूलतम उपयोग की क्रिया;

(iv) सुरक्षा सम्बन्धी क्रिया-जैसे कि जान व माल की सुरक्षा की क्रिया;

(v) लेखाकर्म की क्रिया: जैसे स्टॉक की व्यवस्था; चिट्ठा बनाना, लागत नियन्त्रण तथा साँख्यिकी सम्बन्धी आँकड़ रखने की क्रिया तथा प्रबन्धकीय क्रिया: जैसे- नियोजन, संगठन, समन्वय, आदेश तथा नियन्त्रण सम्बन्धी क्रिया ।

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(2) प्रबन्धकीय योग्यता एवं प्रशिक्षण (Managerial Qualities and Training):

हेनरी फेयोल किसी प्रबन्धक में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक मानते थे:

(i) अच्छा स्वास्थ्य एवं स्फूर्ति;

(ii) विवेक शक्ति एवं सतर्कता;

(iii) नैतिक शक्ति जैसे-दृढ़ता पहलपन एवं कौशल;

(iv) सामान्य ज्ञान;

(v) विशिष्ट ज्ञान एवं

(vi) अनुभव ।

फेयोल के अनुसार प्रबन्धकीय योग्यता प्रबन्धकों में जन्मजात नहीं होती वरन् उसे प्रशिक्षण द्वारा विकसित किया जा सकता है । इसलिए उन्होंने प्रबन्धकीय प्रशिक्षण को प्रबन्ध का एक आवश्यक अंग माना है । अत: प्रबन्धक को शिक्षा एवं प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । इस प्रकार फेयोल प्रबन्ध को “एक अर्जित प्रतिभा” मानते हैं ।

(3) प्रबन्ध के तत्व (Elements of Management):

हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध के कार्यों को पाँच भागों में बाँटा है:

(i) पूर्वानुमान एवं नियोजन;

(ii) संगठन;

(iii) समन्वय;

(iv) आदेश एवं

(v) नियन्त्रण ।

(4) प्रबन्ध के सामान्य सिद्धात (General Principles of Management):

हेनरी फेयोल ने अपनी पुस्तक General and Industrial Administration में प्रबन्ध के 14 सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है जो कि अग्रलिखित हैं:

(i) कार्य का विभाजन (Division of Work):

फेयोल के अनुसार प्रत्येक कार्य को एक से अधिक भागों में बाँटना चाहिए ऐसा करने से एक ओर कार्य में विशिष्टीकरण के लाभ होंगे वहीं दूसरी ओर संस्था के उत्पादन में वृद्धि होगी । विशिष्टीकरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिससे अच्छा और अधिक कार्य होता है । इसलिए फेयोल ने कहा है कि- “इस सिद्धान्त का मेश्य अधिक अच्छे तथा विस्तृत परिणाम प्राप्त करना है ।”

(ii) अधिकार एवं उत्तरदायित्व (Authority and Responsibility):

फेयोल के अनुसार अधिकार उत्तरदायित्व के अनुरूप होने चाहिए तथा उत्तरदायित्व अधिकार के अनुरूप होना चाहिए । अधिकार तथा उत्तरदायित्व एक ही सिक्के के दो पहलू है । अत: ये दोनों साथ-साथ चलने चाहिए यदि अधिकार कम और उत्तरदायित्व अधिक होंगे तो उत्तरदायित्वों को पूरा करना सम्भव नहीं होगा और इसके विपरीत यदि अधिकार अधिक तथा उत्तरदायित्व कम होंगे तो अधिकारों का दुरुपयोग होगा ।

(iii) अनुशासन (Discipline):

फेयोल लिखते हैं कि आज्ञा का पालन नियमों में आस्था, पूर्ण परिश्रम से कार्य तथा सम्बधित अधिकारियों के प्रति आदर करना प्रत्येक संस्था के कुशल संचालन के लिए आवश्यक है । इसी को उन्होंने अनुशासन कहा है उनके अनुसार किसी सस्था का कुशल संचालन अच्छे नेतृत्व पर निर्भर करता है अनुशासन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि,

(a) अच्छा नेतृत्व हो;

(b) अनुशासन के सर्वमान्य नियम स्पष्ट तथा उचित हों,

(c) दण्ड की उचित व्यवस्था हो तथा दृढ़तापूर्वक नियमों को लागू किया जाए ।

(iv) आदेश की एकता (Unity of Command):

फेयोल के इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक कर्मचारी को सभी आदेश एक ही अधिकारी से मिलने चाहिए क्योंकि व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक अधिकारियों के आदेशों का पालन नहीं कर सकता अनेक अधिकारियों से आदेश मिलने पर कर्मचारी न केवल भ्रमित (Confused) हो जाता है, अपितु वह अपने दायित्व से विमुख भी हो जाता है ।

(v) निर्देश की एकता (Unity of Direction):

हेनरी फेयोल के अनुसार निर्देश की एकता से अभिप्राय है: एक इकाई की एक योजना । अर्थात् एक योजना के लिए एक प्रबन्धक होना चाहिए । एक से कार्यों को एक योजना के अन्तर्गत लाया जा सकता है । (One Head and One Plan for a group of Activities Having the same Objects) । इस प्रकार इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए की जाने वाली क्रियाओं के समूह का सचालन एक व्यक्ति द्वारा ही किया जाना चाहिए तथा उसकी एक ही योजना होनी चाहिए एक ही योजना को अनेक व्यक्तियों को सौंप देने से उनके क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न हो सकती है ।

(vi) सामान्य हितों को व्यक्तिगत हितों पर प्राथमिकता (Sub-Ordination of Individual Interest to General Interest):

फेयोल के इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्तिगत हितों को कभी संस्था के हितों के ऊपर नहीं समझा जाना चाहिए जब कभी इन दोनों में संघर्ष उत्पन्न हो जाए तो व्यक्तिगत हितों के ऊपर सामान्य हितों को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए ।

इसके लिए तीन बातों का पालन किया जाए:

(a) आपसी ठहराव स्पष्ट हों;

(b) निरीक्षक दृढ़ हों तथा वे इस सिद्धान्त का पालना दृढ़ता से करें तथा

(c) निरीक्षण व्यवस्था निरन्तर रूप से चालू रहे ।

(vii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक (Remuneration to Personnel):

फेयोल के इस सिद्धान्त के अनुसार कर्मचारियों के पारिश्रमिक की दर तथा भुगतान की पद्धति उचित तथा सन्तोषप्रद होनी चाहिए । यह श्रमिकों तथा मालिक दोनों को मान्य हो । फेयोल ने कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए अवित्तीय प्रेरणाओं को भी अपनाने पर बल दिया ।

(viii) श्रेणी शृंखला (Scalar Chain):

फेयोल के अनुसार उच्चतम स्तर से लेकर निम्नतम स्तर तक अधिकारियों के अधिकारी तथा दायित्वों को मृखलाबद्ध किया जाना चाहिए अर्थात् एक अधिकार किसे आदेश देगा तथा किसे अपने काम की रिपोर्ट देगा, इस बात को पूर्णत: स्पष्ट रूप से तय कर देना चाहिए । साथ ही, आदेश देते समय इस निर्धारित क्रम को तोड़ना नहीं चाहिए ।

(ix) केन्द्रीयकरण (Centralisation):

इस सिद्धान्त के द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि प्रबन्ध के किन स्तरों तथा बिन्दुओं तक कितना केन्द्रीयकरण किया जाएगा और कौन-से स्तरों एवं बिन्दुओं तक निर्देशन तथा नियन्त्रण को विकेन्द्रित किया जाएगा । फेयोल के अनुसार छोटे पैमाने पर उत्पादन करने वाली संस्थाओं में तो केन्द्रीयकरण स्वाभाविक है, परन्तु बड़ी संस्थाओं में केन्द्रीयकरण का निर्णय लेते समय संस्था के व्यापक हितों कर्मचारियों की भावनाओं तथा कार्य की प्रकृति आदि सभी बातों पर विचार करके लिया जाना चाहिए ।

(x) व्यवस्था (Order):

व्यवस्था का तात्पर्य सही वस्तु तथा व्यक्ति का सही स्थान पर होने से है । फेयोल का विचार था कि प्रत्येक उपक्रम में सामग्री तथा सामाजिक व्यवस्था होनी चाहिए सामग्री व्यवस्था से अभिप्राय है, “प्रत्येक वस्तु के लिए निश्चित स्थान तथा हर वस्तु अपने स्थान पर हो” (Proper Place for Everything and Everything in its Right Place) ।

इसी प्रकार सामाजिक व्यवस्था से तात्पर्य है, “उचित कार्य उचित व्यक्तियों को सौंपा जाए” (Right Man in the Right Job) ।

उपरोक्त व्यवस्था होने पर किसी संगठन के संसाधनों का प्रभावशाली उपयोग किया जा सकेगा ।

(xi) समता (Equity):

समता से अभिप्राय “न्याय तथा समानता” से है । इस सिद्धान्त के अनुसार प्रबन्धकों को अपने कर्मचारियों के साथ न्यायपूर्ण तथा समानता का व्यवहार करना चाहिए । फेयोल का मत था कि किसी संस्था के कर्मचारियों में निष्ठा तथा स्वामिभक्ति (Devotion and Loyalty) जाग्रत करने के लिए समता के सिद्धात को अपनाना आवश्यक है ।

(xii) कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थिरता (Stability of Tensure of Personnel):

इस सिद्धान्त के अनुसार कुशल प्रशासन के लिए यह आवश्यक है कि कर्मचारियों को जल्दी-जल्दी हटाया नहीं जाना चाहिए उनमें सुरक्षा की भावना पैदा की जानी चाहिए । अतएव कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थिरता लाने का प्रयास करते रहना चाहिए । अस्थिरता उपक्रम को सुचारु रूप से चलाने में बाधक होती है ।

(xiii) पहलपन (Initiative):

किसी नई योजना को सोचने की शक्ति तथा उसे सफलतापूर्वक लागू करने की क्षमता को पहलपन कहते हैं । फेयोल का विचार था कि प्रत्येक पहल करने वाले कर्मचारियों को यथा सम्भव प्रोत्साहित किया जाना चाहिए इससे कर्मचारियों में उत्साह तथा कार्यक्षमता बढ़ती है । इसलिए उन्हीने प्रबन्धकों से कहा कि वे अपनी झूठी प्रतिष्ठ तथा आत्म-सम्मान को त्याग कर अपने अधीनस्थों को पहल करने का अवसर दें ।

(xiv) सहयोग की भावना (Esparto de Corps):

इस सिद्धान्त के अनुसार प्रबन्धकों को चाहिए कि वे अपने अधीनस्थों में सहयोग की भावना उत्पन्न करें । फेयोल के अनुसार पारस्परिक सहयोग ही कार्यसिद्धि का आधार है । जहाँ पर अनेक व्यक्ति एक ही उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते हों वहाँ उनमें आपसी सहयोग होना आवश्यक है । एक टीम या समूह के कर्मचारियों में फूट होना संस्था की सफलता के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है ।

(5) प्रबन्ध की सार्वभौमिकता पर बल (Emphasis upon the Universality of Management):

फेयोल ने अपने लेखों व पुस्तकों में बार-बार इस बात पर बल दिया कि प्रबन्ध सार्वभौमिक है । प्रबन्ध सभी क्षेत्रों में चाहे व्यवसाय हो, उद्योग हो, सरकारी या निजी क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो अथवा धार्मिक क्षेत्र सभी पर प्रबन्ध के सिद्धान्त समान रूप से लागू होते है । कोई भी समुदाय, वर्ग अथवा देश अपने को प्रबन्ध से अछूता नहीं रख सकता है ।

(6) नियन्त्रण का विस्तार (Span of Control):

हेनरी फेयोल के अनुसार एक अधिकारी के नियन्त्रण में कितने अधीनस्थ ही इसका निर्णय परिस्थितियों के अनुसार ही किया जाना चाहिए । सामान्यत: एक उच्च अधिकारी के नियन्त्रण में 4 या 5 अधीनस्थ होने चाहिए ।

फेयोल के अनुसार प्रबन्ध के उपरोक्त सिद्धान्त अन्तिम सिद्धान्त न होकर लोचपूर्ण हैं और ये बदलती परिस्थितियों में भी लागू किए जा सकते हैं ।

फेयोल के योगदान का मूल्यांकन (Evaluation of Fayol’s Contribution):

प्रबन्ध के क्षेत्र में फेयोल के योगदान के मूल्यांकन को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है:

(1) प्रबन्ध सिद्धान्त के विकास में सहायक (Helpful in the Development of Management Theory):

फेयोल ने प्रबन्ध सिद्धान्त के विकास के लिए रास्ता तैयार किया । थियो हैमन (Theo Haimann) ने कहा है कि, “प्रबन्ध सिद्धान्त में हेनरी फेयोल का योगदान सम्भवत: सर्वाधिक क्रान्तिकारी और रचनात्मक है ।”

(2) प्रबन्ध की सार्वभौमिकता (Universality of Management):

फेयोल ने प्रबन्ध को सार्वभौमिकता प्रदान की है । अर्थात् प्रबन्ध के सिद्धान्तों को सभी प्रकार के उपक्रमों तथा प्रबन्ध के सभी स्तरों पर लागू किया जा सकता है ।

(3) प्रबन्ध शिक्षा व प्रशिक्षण (Management Education and Training):

हेनरी फेयोल ने प्रबन्धकीय शिक्षा के महत्व पर बल दिया और सिद्ध करने का प्रयास किया है कि, “प्रबन्धक जन्मजात नहीं होते, अपितु बनाये जाते हैं ।” इस प्रकार फेयोल प्रबन्धकीय प्रशिक्षण को प्रबन्ध का एक आवश्यक अंग मानते हैं ।

(4) प्रबन्ध प्रकिया का विधिवत् विश्लेषण (Systematic Analysis of Management Process):

प्रबन्ध के विधिवत् विश्लेषण का श्रेय भी फेयोल को जाता है क्योंकि उन्होंने पहली बार संस्था के कुशल संचालन के लिए प्रबन्ध के विभिन्न कार्यों पर बल दिया था । अर्विक के अनुसार, “पृथक् कार्य के रूप में प्रबन्ध का विश्लेषण फेयोल का प्रबन्ध सिद्धान्त (Management Theory) में अद्‌भुत एवं मौलिक योगदान है ।”

(5) प्रबन्ध के सिद्धान्तों के प्रतिपादक (Father of Principles of Management):

फेयोल ने प्रबन्ध के 14 सिद्दनतों का किया जो आज भी साधता की पर खरे उतरते हैं ।

(6) प्रबन्ध एक पृथक् ज्ञान के रूप में (Management as a Separate Body of Knowledge):

फेयोल ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि प्रबन्ध का कार्य अन्य कार्यों से भिन्न है । प्रबन्धक के इस कार्य को उन्होंने सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं जटिल माना । इस प्रकार फेयोल ने प्रबन्ध को, अन्य विषयों की भांति एक पृथक् ज्ञान माना है । अत: उनका कहना है कि प्रबन्धक में विशेष कौशल की आवश्यकता होती है ।

आलोचनाएँ (Criticisms):

फेयोल के कार्यों की आलोचना भी हुई, जो निम्नलिखित है:

(i) फेयोल के कुछ सिद्धान्त परस्पर विरोधी हैं तथा उसके सिद्धान्तों, तत्वों तथा कर्त्तव्यों में दोहरापन (Overlaping) भी पाया जाता है जैसे कि एकता (Unity of Direction) का सिद्धान्त तथा कार्य-विभाजन (Division of Work) का सिद्धान्त परस्पर विरोध हैं ।

(ii) फेयोल ने आवश्यकता में अधिक प्रबन्ध-सिद्धान्त (Management Theory) पर बल दिया ।

(iii) फेयोल द्वारा प्रयोग किए गए शब्द (Terms) तथा परिभाषाएँ अस्पष्ट (Vague) लगती हैं ।

(iv) हेनरी फेयोल सभी वरिष्ठ प्रबन्धकी तथा प्रशासकों को विवेकशील (बुद्धिमान) मानते हैं, परन्तु व्यवहार में, यह आवश्यक नहीं है कि सभी प्रबन्धक तथा प्रशासक विवेकशील (बुद्धिमान) हों ।

उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद भी प्रबन्ध के क्षेत्र में हेनरी फेयोल के योगदान का महत्व कम नहीं होता ।

अन्य विद्वानों का योगदान (Contribution of Other Learned Persons):

प्रबन्ध-प्रक्रिया विचारधारा को विकसित करने में अन्य विद्वानों का योगदान निम्न प्रकार से रहा:

(i) जेम्स मूने और एलन रिले ने फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्तों को और विस्तृत किया ।

(ii) आर.सी.डेविस ने प्रबन्धकीय कार्य के रूप में नियोजन के महत्व पर प्रकाश डाला । उन्होंने व्यावसायिक उद्देश्यों के रूप में लाभ (Profit) और सेवा (Service) का उल्लेख किया । अत: इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबन्ध को नियोजन, संगठन तथा नियन्त्रण करना चाहिए ।

(iii) लूथर गुलिक और लिंडाल उर्विक ने प्रबन्ध के सात कार्यों की पहचान की-नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण निर्देशन, समन्वय प्रतिवेदन तथा बजटन । ये सात कार्य प्रबन्ध के क्षेत्र में (POSDCRB) के नाम से प्रसिद्ध हैं ।

(iv) मेरी पार्कर फोलेट ने संगठन के चार सिद्धान्तों की चर्चा की है । इन सभी ने समन्वय पर बल दिया है ।

टेलर बनाम फेयोल अथवा टेलर तथा फेयोल का तुलनात्मक अध्ययन (Taylor vs. Fayol or Taylor and Fayol- A Comparative Study):

टेलर और फेयोल दोनों का प्रबन्ध-विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है । अत: इन दोनों को प्रबन्ध के स्तम्भ कहा जा सकता है । समकालीन विचारक होने के नाते टेलर तथा फेयोल का तुलनात्मक अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है ।

दोनों के विचारों में कुछ समानताएँ हँ, जो कि निम्नलिखित हैं:

समानताएँ (Similarities):

(i) दोनों ही प्रबन्ध की दशाओं को सुधारना चाहते थे तथा प्रबन्धकीय कुशलता को प्राप्त करना चाहते थे ।

(ii) दोनों ने अपने व्यावहारिक अनुभवों के आधार पर वैज्ञानिक प्रबन्ध के विकास में अमूल्य योगदान दिया ।

(iii) दोनों ने श्रमिकों तथा नियोक्ताओं के बीच आपसी सहयोग (Mutual Cooperation) पर बल दिया ।

(iv) दोनों की यह मान्यता थी कि प्रबन्ध “अर्जित प्रतिभा” है, जन्मजात नहीं ।

(v) दोनों ने प्रबन्धकीय समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक विधियों द्वारा खोजने का प्रयास किया ।

(vi) दोनों ने प्रबन्ध की सार्वभौमिकता पर बल दिया ।

(vii) दोनों ने “मानवीय तत्व” के महत्व को समझा ।

(viii) दोनों ने प्रबन्ध को एक सामाजिक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठ दिलाने का प्रयास किया और अपने-अपने ढंग से प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया ।

असमानताएँ (Dissimilarities):

(a) टेलर की विचारधारा उपक्रम के छोटे-छोटे भागों को समझने की थी जिसे सूक्ष्म (Micro) दृष्टिकोण कहा जा सकता है, इसके विपरीत फेयोल की विचारधारा सम्पूर्णता पर एक साथ विचार करने की थी, जिसे समष्टि (Macro) दृष्टिकोण कहा जा सकता है ।

(b) टेलर के सिद्धान्त प्रयोगों (Experiments) पर आधारित है, जबकि फेयोल के सिद्धान्त सामान्य बुद्धि एवं अनुभव पर आधारित हैं ।

(c) टेलर के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु “श्रमिक” तथा “कारखाना” है, जबकि फेयोल के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु “उच्च स्तरीय प्रबन्ध” से सम्बन्धित है ।

(d) टेलर ने श्रमिकों की “कार्य-कुशलता” को बढ़ने पर बल दिया, जबकि फेयोल ने ऐसे सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जिन्हें प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों में आसानी से लागू किया जा सकता है । अनेक विद्वानों की राय में टेलर “कुशलता विशेषज्ञ” थे जबकि फेयोल “प्रशासन विशेषज्ञ” थे ।

(e) टेलर ने कारखाने के प्रबन्ध तथा इन्तीनियरिंग पक्ष (जैसे-मन्त्रों एवं औजारों का प्रमापीकरण) की ओर विशेष ध्यान दिया, वहीं फेयोल ने प्रबन्धकों के कार्यों, उनकी योग्यता तथा प्रशिक्षण की ओर विशेष ध्यान दिया ।

(f) टेलर ने “वैज्ञानिक प्रबन्ध” के सिद्धान्त बतलाए, तो फेयोल ने “प्रबन्ध के सामान्य सिद्धान्तों” पर अधिक बल दिया ।

(g) टेलर ने अपने अध्ययन में नीचे से ऊपर की ओर (अर्थात् निम्न-स्तरीय प्रबन्ध से उच्च प्रबन्ध की ओर) बढ़ने का प्रयास किया जबकि फेयोल ने ऊपर से नीचे की ओर बढ़ने का प्रयास किया अर्थात् उन्होंने अपने अध्ययन को कारखाना एवं श्रमिक से प्रशासन की ओर मोड़ा ।

(h) फेयोल की विचारधारा में सार्वभौमिकता का गुण है जबकि टेलर का दृष्टिकोण एकांगी है अर्थात् उत्पादनके क्षेत्र तक ही सीमित है ।

(i) नवीन परिस्थितियों के प्रभाव में टेलरवाद (Philosophy of Taylor) में बहुत परिवर्तन हो गया है किन्तु फेयोल के प्रबन्ध के सिद्धान्त आज भी उतने ही उपयोगी एवं उपयुक्त हैं ।

(j) टेलर को वैज्ञानिक प्रबन्ध का जन्मदाता कहा जाता है जबकि फेयोल को प्रबन्ध के सिद्धान्तों का जन्मदाता कहा जाता है । इसलिए टेलर को “कुशलता-विशेषज्ञ” (Efficiency Expert) तथा फेयोल को “प्रबन्ध-विशेषज्ञ” (Management Expert) कहा जाता है ।

(B) नौकरशाही सिद्धान्त विचारधारा (The Bureaucratic Theory School):

नौकरशाही सिद्धान्त का प्रतिपादन मेक्स वेबर (Efficiency Expert) ने किया । इस सिद्धान्त ने आधुनिक संगठन और प्रबन्ध चिन्तन पर पर्याप्त प्रभाव डाला है । वेबर जर्मनी के समाज-वैज्ञानिक (Social Scientist) थे । वे टेलर तथा फेयोल के समकालीन थे । उन्होंने संगठन के नौकरशाही प्रतिरूप (Model) का विकास किया जो कुशल संगठनों का सार्वभौमिक प्रतिरूप है ।

इसे आधुनिक समाज की आवश्यकता की पूर्ति के लिए व्यवसाय, सरकार, सैनिक आदि क्षेत्रों के जटिल सगठनों में अत्यधिक कुशलता के साथ काम में लिया जा सकता है । वेबर ने नौकरशाही को सबसे अधिक कुशल प्रारूप माना है ।

इस मॉडल की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं:

(i) विशिष्टीकरण तथा श्रम-विभाजन (Specialisation and Division of Work):

इसके अन्तर्गत कार्यों का स्पष्ट विभाजन करके व्यक्तियों को उन कार्यों के सम्बन्ध में आवश्यक दायित्व तथा अधिकार सौंपे जाते है । प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यों की सीमाएँ जानता है । इसके अन्तर्गत कार्य-विभाजन योग्यता तथा कार्यात्मक विशिष्टीकरण (Competence and Functional Specialisation) पर आधारित होता है ।

(ii) पदानुक्रमता (Position Hierarchy):

नौकरशाही में सभी पद तथा स्थितियाँ शृंखलाबद्ध होती हैं । प्रत्येक निम्न पद एक उच्च पद के नियन्त्रण तथा निर्देशन में काम करता है । अर्थात् प्रत्येक कर्मचारी किसी के नियन्त्रण में कार्य करता है । संगठन के प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञात होता है कि संगठन में उसकी स्थिति क्या है ? वह किसके नीचे है और कौन उसके अधीनस्थ है ।

(iii) नियमों की प्रणाली (System of Rules):

नौकरशाही में कार्यों का संचालन निश्चित तथा सुपरिभाषित नियमों के अन्तर्गत होता है । नियम बने रहते हैं, परन्तु व्यक्ति बदलते रहते हैं इन नियमों का कटेरता से पालन किया जाता है ।

(iv) अवैयक्तिक सम्बन्ध (Impersonal Relationship):

नौकरशाही प्रबन्ध में व्यक्तिगत सम्बन्धों का कोई महत्व नहीं होता है तथा न ही भावनात्मक सम्बन्धों को महत्व दिया जाता है । इसके अन्तर्गत एक अधिकारी बिना घृणा तथा लगाव व बिना स्नेह एवं उत्साह के केवल औपचारिक सम्बन्धों के आधार पर कार्य करता है ।

(v) भर्ती तथा पदोन्नति योग्यता पर आधारित (Recruitment and Promotion Based on Competence):

नौकरशाही प्रबन्ध के अन्तर्गत कर्मचारियों की भर्ती तथा उनकी पदोन्नति का आधार तकनीकी योग्यता (Competence) होती है । अधिकारियों को इसके लिए विशिष्ट प्रशिक्षण भी दिया जाता है ।

(vi) कैरियर सम्बन्धी पहलुओं को महत्व (Attaches Importance to Employee Careers):

नौकरशाही प्रबन्ध कर्मचारियों के केरियर सम्बन्धी पहलुओं को विशेष महत्व देता है । साथ ही, यह व्यावसायिक सुरक्षा भी प्रदान करता है ।

(vii) नौकरशाही प्रबन्ध के अन्तर्गत कर्मचारियों को एक निश्चित वेतन उनके पद के अनुसार दिया जाता है तथा वृद्धावस्था के लिए सुरक्षा के रूप में उनकी पेन्हान की व्यवस्था की जाती है ।

(viii) यह प्रबन्ध कागज़ी-कार्यवाही (Paper Work) द्वारा चलता है ।

(ix) कार्य विधि (Procedure):

कोई भी कार्य करते समय एक निश्चित कार्य विधि अपनाई जाती है ।

मूल्यांकन (Evaluation):

लाभ (Merits):

इस विचारधारा के निम्नलिखित लाभ हैं:

(i) अधिकारों तथा दायित्वों का स्पष्ट विभाजन होने से संस्था का प्रबन्ध एवं संचालन सुचारू रूप से चलता है तथा कार्यकुशलता में वृद्धि होती है ।

(ii) कर्मचारियों की भर्ती तथा पदोन्नति:

कर्मचारियों की भर्ती योग्यता के आधार पर की जाती है तथा पदोन्नति का आधार कार्य-निष्पादन (Work Performance) तथा योग्यता होता है ।

(iii) श्रम-विभाजन से विशिष्टीकरण को बढ़ावा मिलता है जिससे कर्मचारी अपने कार्य में दक्ष हो जाते हैं ।

(iv) संगठन में निरन्तरता बनी रहती है । यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी संस्था को छोड़ जाता है तो उसका स्थान अन्य अधिकारी अथवा कर्मचारी ले लेता है इस प्रकार संगठन का कार्य निरन्तर चलता रहता है ।

(v) टकराव के स्थान पर सहयोग का वातावरण बनता है तथा आपसी सम्बन्धों में मधुरता आती है ।

(vi) नियमों के होने से कर्मचारियों के कार्य व्यवहार में एकरूपता पाई जाती है ।

(vii) कार्यनिष्पादन में कुशलता आती है तथा संस्था में अनुशासन बना रहता है ।

इस विचारधारा की निम्नलिखित सीमाएँ हैं:

(i) प्रबन्ध की यह विचारधार कठोर मानी जाती है तथा इसके अन्तर्गत निजी सम्बन्धों का कोई महत्व नहीं होता है ।

(ii) इस प्रणाली के अन्तर्गत नियन्त्रण की लागत अधिक आती है ।

(iii) इस विचारधारा में लाल फीताशाही का बोलबाला होता है ।

(iv) इस विचारधारा में उच्च अधिकारियों पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है ।

(v) इसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में आनाकानी (Ignore) की जाती है ।

(vi) इसमें कागजी कार्यवाही अधिक करनी पड़ती है ।

(vii) पदानुक्रमता के कारण संगठन में संचार-वाहन की गति बड़ी धीमी होती है ।

(viii) यह प्रणाली असफलता की जिम्मेदारी से बचने का बहाना प्रस्तुत करती है ।

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