एक संगठन में प्रबंधन का महत्व | Read this article in Hindi to learn about importance of management in an organization.

किसी भी क्षेत्र में चाहे वह आर्थिक, सामाजिक, व्यावसायिक या राजनीतिक हो, प्रबन्ध एवं प्रबन्धकों का एक महत्वपूर्ण स्थान है । बिना प्रबन्ध के एक औद्योगिक एवं व्यावसायिक संस्था, भूमि, पूँजी, श्रम व मशान एक निष्क्रिय समूह मात्र हैं ।


एक संगठन में प्रबंधन का महत्व | Importance of Management in Hindi

कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के शब्दों में- “प्रबन्ध से अधिक महत्वपूर्ण मानवीय किया का अन्य कोई क्षेत्र नहीं हैं । प्रबन्ध विशेषज्ञ पीटर एफ. इकर के अनुसार ग्रबन्ध प्रत्येक व्यवसाय का एक गतिशील एवं जीवनदायक तत्व है । इसके नेतृत्व के अभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन मात्र रहजाते हैं और कभी उत्पादन नहीं बनते ।”

ऊर्विक के अनुसार- “कोई भी आदर्श, कोई भी वाद अथवा राजनीतिक सिद्धान्त मानवीय एवं माल-सम्बन्धी मिश्रित प्रकृति के साधनों से अधिकतम उत्पादन नहीं करा सकता ।” ऐसा केवल कुशल प्रबन्ध से ही सम्भव हो सकता है । प्रो. रोबिन्सन के शब्दों में- “कोई भी व्यवसाय स्वयं नहीं चल सकता चाहे वह संवेग की स्थिति में ही क्यों न हो… उसके लिए इसे नियमित उद्दीपन की आवश्यकता पड़ती है ।” यह नियमित उद्दीपन व्यवसाय को केवल प्रबन्ध से ही प्राप्त होता है ।

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पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार- “जो कुछ आधुनिक विश्व है, वही प्रबन्ध है ।” आधुनिक जीवन, उच्च जीवन-स्तर, आधुनिक उपभोक्ता वस्तुएँ, बड़े-बड़े कारखाने, उद्योग-धन्धे, वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति, जल, भूतल व हवाई यातायात, सन्देशवाहन प्रणाली-ये सभी सुविधाएँ श्रेष्ठ प्रबन्ध के बिना सम्भव न होती ।

जिस प्रकार मानव शरीर मस्तिष्क के बिना हाड़-माँस का एक पुतला मात्र है उसी प्रकार बिना प्रबन्ध के एक औद्योगिक संस्था, भूमि, श्रम तथा पूँजी एक निष्क्रिय समूह मात्र हैं । अत: प्रबन्ध ही सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को गतिशील, प्रगतिशील व सुदृढ़ बना सकता है । इस प्रकार प्रबन्ध का व्यवसाय में सर्वोपरि स्थान है ।

प्रबन्ध के महत्व का निम्न शीर्षकों में अध्ययन किया जा सकता है:

(1) संस्था के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति (To Achieve Pre-Determined Objectives of the Institution):

प्रत्येक संस्था की स्थापना कुछ-न-कुछ उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए की जाती है । इन लक्ष्यों की पूर्ति का दायित्व प्रबन्धक वर्ग पर होता है । अतएव प्रबन्धक वर्ग व्यवसाय के इन लक्ष्यों की प्राप्ति की उचित योजना कर, निर्देशित, नियन्त्रित एवं समन्वित प्रयासों के द्वारा सस्था के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है ।

(2) न्यूनतम प्रयत्नों से अधिकतम परिणामों को प्राप्त करने के लिए (To Attain Maximum Results with Minimum Efforts):

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प्रबन्ध वह कला तथा विज्ञान है जिसके माध्यम से न्यूनतम प्रयत्नों से अधिकतम परिणामों को प्राप्त करना सम्भव है । प्रबन्ध का प्रयत्न सदैव न्यूनतम मानवीय एव भौतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए अधिकतम उत्पादन करना होता है । उर्वीक के शब्दों में क्तोई भी आदर्श कोई वाद अथवा राजनैतिक सिद्धान्त उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से न्यूनतम प्रयत्नों द्वारा अधिकतम उत्पादन को प्राप्त नहीं करा सकता । यह तो केवल कुशल प्रबन्ध से ही सम्भव है…|

(3) उत्पादन के विभिन्न साधनों में समन्वय स्थापित करने के लिए (To Co-Ordinate the Different Factors of Production):

कुशल प्रबन्ध उत्पादन के विभिन्न साधनों जैसे: भूमि, श्रम, पूँजी, सामग्री एवं कच्चे माल का कुशल चयन व्यवस्था तथा समन्वय करके अधिकतम उत्पादन को प्राप्त करता है । इस प्रकार प्रबन्ध उत्पादन में सहायता पहुँचाने वाली शक्तियों को एकत्रित करके उनमें समन्वय स्थापित करता है । अतएव “समन्वय प्रबन्ध का सार है” |

(4) गला-काट प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए (To Face Cut-Throat Competition):

आज उत्पादन का आकार दिनों दिन बढ़ता जा रहा है । बाजार विस्तृत होते जा रहे हैं । ग्राहकों की रुचियाँ भी बदल रही है । किस्म में निरन्तर सुधार हो रहे हैं । विज्ञापन पर व्यावसायिक संस्थाएँ अधिकाधिक धन खर्च कर रही हैं । इन सब कारणों ने तीव्र प्रतिस्पर्धा को उत्पन्न कर दिया है । संस्थाओं के सामने अपने अस्तित्व व संरक्षण का मुख्य सवाल पैदा हो गया है । अतएव इन विषम परिस्थितियों से छुटकारा केवल “अच्छा प्रबन्ध” ही दिला सकता है ।

आज निर्बाध व्यापार नीति (Laissez Faire Policy) ने प्रतिस्पर्धा को इस स्तर तक पहुँचा दिया है कि व्यवसायी को आर्थिक-तन्त्र में टिकने के लिए कम मूल्य पर अच्छी किस्म की वस्तु ग्राहकों को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है । इस आवश्यकता की पूर्ति “कुशल प्रबन्धक” की दूरदर्शिता, कल्पना शक्ति, संगठन-क्षमता तथा वैज्ञानिक तकनीकी एवं विधियों के सफल उपयोग पर निर्भर करती है ।

(5) आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी आविष्कारों का लाभ उठाने के लिए (To Take Advantage of Modern Scientific and Technical Inventions):

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वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने आज जीवन के किसी भी क्षेत्र को अछूता नहीं खेड़ा है । व्यवसाय एवं उद्योग का क्षेत्र भी वैज्ञानिक प्रगति एवं तकनीकी परिवर्तनों प्रभावों से अपने को नहीं बचा पाया है उत्पादन क क्षेत्र में वैज्ञानिक उन्नति एवं तकनीकी आविष्कारों ने उत्पादन की विधियों में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिए हैं ।

आज हाथ से चलने वाले यन्त्रों का स्थान स्वचालित यन्त्रों ने ले लिया है जिसने बेकारी जैसी समस्या को जन्म दिया है । व्यवसाय एवं उद्योग के क्षेत्र में इंजीनियरिंग (Engineering) घटकों के प्रवेश ने पुरानी प्रबन्ध व्यवस्थाओं को अनुपयोगी सिद्ध करना प्रारम्भ कर दिया है । विपणन, यातायात, हिसाब-लेखन आदि क्षेत्री में भी वैज्ञानिक एवं तकनीकी परिवर्तनों ने नियन्त्रण एवं समन्वय की नवीन समस्याओं को जन्म देना आरम्भ कर दिया है ।

इसलिए इन वैज्ञानिक एवं तकनीकी परिवर्तनों का लाभ उठने तथा उनके साथ व्यवसाय व उद्योग का तालमेल बिलने के दृष्टिकोण से प्रबन्ध का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है ।

(6) श्रम समस्याओं के समाधान के लिए (To Solve Labour Problems):

आज यह अनुभव किया जाने लगा है कि श्रम उत्पादन का एक सजीव साधन है । किसी भी संस्था का मानवीय साधन जितना अधिक विकसित व कार्यकुशल होगा, वह उतनी ही अधिक उन्नति करेगी । अत: श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि करने के लिए आधुनिक प्रबन्ध उन्हें विभिन्न वित्तीय तथा अवित्तीय प्रेरणाएँ प्रदान करता है जैसे: लाभ-भागिता, प्रबन्ध भागिता, प्रेरणात्मक मजदूरी लागू करना, कार्य करने के घंटों में कमी करना, प्रमापित कार्य की दशाएं स्थापित करना प्रशिक्षण, आवास चिकित्सा आदि की व्यवस्था करना । इस प्रकार प्रबन्ध श्रमिकों की सभी समस्याओं का संतोषजनक समाधान कर के श्रम व पूँजी के बीच की खाई को पाटता है तथा इनके बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करता है ।

(7) सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए (To Fulfill Social Responsibilities):

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व्यवसाय, समाज का एक अंग है । अत: व्यवसाय का समाज के विभिन्न अंगों के प्रति भी उत्तरदायित्व होता है । जिसको पूरा करना व्यवसाय का कर्त्तव्य है । आज विनियोक्ता अपनी पूँजी पर उचित प्रत्याय (Return) तथा पूँजी की सुरक्षा चाहता है, उपभोक्ता कम मूल्य पर अच्छी किस्म की वस्तुएं चाहता है, कर्मचारी उचित मजदूरी, कार्य सुरक्षा, कार्य की अच्छी दशाएंतथा मानवीय व्यवहार की अपेक्षा करता है; समाज उच्चतर जीवन-स्तर चाहता है, सरकार बनाए गए कानूनों के पालन की अपेक्षा करती है अत: एक कुशल प्रबन्धक ही इन सभी वर्गो के प्रति अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने में सक्षम होता है ।

(8) गैर-व्यवसायी संस्थानों के लिए महत्व (Importance of Management in Non-Trading Organisation):

प्रबन्ध का महत्व शैक्षिक, धार्मिक, धर्मार्थ, सामाजिक, राजनीतिक व अन्य गैर-व्यवसायी संस्थाओं के लिए भी उतना है जितना कि व्यवसायी सस्थाओं के लिए । हेनरी फेयोल के शब्दों में- “प्रतिष्ठानों के शासन में प्रबन्ध का महत्वपूर्ण खान है । इसकी आवश्यकता बड़े या छोटे, औद्योगिक, व्यावसायिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं अन्य सभी प्रतिष्ठानों में है ।” अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने कहा था कि- ”अच्छे प्रबन्ध के बिनाएक सरकार रेल पर बने मकानफेसमान हौप्रं अत: स्पष्ट है कि प्रबन्ध न केवल व्यवसाय के लिए बल्कि गैर-व्यवसायी सस्थानों के लिए भी महत्वपूर्ण है ।”

(9) राष्ट्र के आर्थिक विकास एवं समृद्धि के लिए (For Economic Development and Growth of a Nation):

प्रबन्धक किसी भी देश के आर्थिक विकास के उत्प्रेरक तत्व हैं । (Managers are the Catalytic agents of Economic Development of a Country) ।  कूण्ट्ज, ओ’ डोनेल तथा व्हीरिच के मतानुसार किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि कुशल प्रबन्ध पर निर्भर करती है ।

किसी देश का दूसरे देश की तुलना में तीव्र गति से विकास करना अच्छे प्रबन्ध का परिणाम है क्योंकि प्रबन्ध के माध्यम से ही सभी आर्थिक क्रियाओं को इस प्रकार निर्देशित किया जा सकता है, जिससे तीन गति से विकास सम्भव हो । प्रो. रोस्टोव के शब्दों में- “प्रबन्धक एवं साहसी किसी देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं ।”

(10) व्यक्तियों के विकास के लिए (For the Development of the People):

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प्रबन्ध व्यक्तियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । प्रशिक्षण, पदोन्नति, कार्य-विस्तार, कार्य-वृद्धि (Job Enrichment) आदि तरीके अपना कर कर्मचारियों का विकास करता हैजिससे उनको कार्य-सन्तुष्टि मिलती है, मनोबल बढ़ता है और एक स्थायी व सन्तुष्ट कर्मचारी-शक्ति का निर्माण होता है इसलिए लारेन्स एप्पले का कथन उचित है कि- “प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है ।”

(11) वृहद उपादन को कुशलतापूर्वक चलाने तथा व्यावसायिक जटिलताओं का समाधान करने के लिए (To Efficiently Run Large Scale Production and to do away with Business Complexities):

आधुनिक युग में उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है । औद्योगिक विकास और बड़े पैमाने पर उत्पादन ने व्यावसायिक क्षेत्र में कई प्रकार की जटिलताएँ पैदा कर दी है आज श्रमिक व उद्योगपति के बीच सीधे सम्पर्क का अभाव है, व्यवसाय व उद्योग में कटु प्रतिस्पर्धा चल रही है तथा विशिष्टीकरण आवश्यक हो गया है । अतएव इन तमाम जटिलताओं का समाधान एक कुशल प्रबन्ध ही कर सकता है । वह अपने विशिष्ट ज्ञान एवं कौशल से इन जटिलताओं को दूर करके, संस्था का कुशल तथा मितव्ययितापूर्ण सचालन, सम्भव बनाता है ।

(12) परिवर्तन का प्रबन्ध (Management of Change):

समाज में होने वाले आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक प्रौद्योगिक तथा सास्कृतिक परिवर्तन किसी भी संगठन की प्रणाली को प्रभावित करते हैं इस प्रकार संगठन के मार्ग में आने वाले परिवर्तनों का सामना कैसे किया जाए तथा इन परिवर्तों को कैसे अपनाया जाए ? प्रभावी प्रबन्ध द्वारा इन परिवर्तनों का प्रबन्ध किया जाता है तथा सगठन के अस्तित्व को बनाए रखा जाता है । उदाहरण के तौर पर, आज कम्प्यूटर को अपनाना एक आवश्यकता बन गयी है, परन्तु इसे अपनाने से कर्मचारियों में बेरोजगारी होने का भय होता है । अतएव प्रबन्ध उचित शिक्षण एव प्रशिक्षण के माध्यम से इस भय को दूर कर सकता है ।

(13)  संघर्षों की समाप्ति (To Remove Conflicts):

किसी भी संस्था में काम करने वाले व्यक्तियों व समूहों के अलग-अलग हित व लक्ष्य होते हैं । उनके विचार व व्यवहार में भी भिन्नता होती है । इस प्रकार उनके बीच मतभेद, विवाद तथा संघर्ष होना स्वाभाविक है । एक श्रेष्ठ प्रबन्ध इन संघर्षो व विवादों के कारणों तक पहुँचता है तथा पारस्परिक समझ-बूझ तथा तथ्यों के आधार पर संघर्षो तथा विवादों का समाधान करता है ।

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यहाँ यह बता देना भी उचित होगा कि सभी संघर्ष संगठन के लिए हानिकारक नहीं होते । प्रबन्ध रचनात्मक संघर्षो को बढ़ावा देता है ताकि संगठन के लक्ष्यों को श्रेष्ठ ढंग से प्राप्त किया जा सके ।

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