प्रबंधन के स्तर: शीर्ष, मध्य और निचला | Read this article in Hindi to learn about the levels of management in an organization.

प्रबन्ध के स्तर से अभिप्राय किसी व्यावसायिक सस्था के प्रबन्ध से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न अधिकारियों के वर्गीकरण से है ।

यद्यपि प्रबन्ध स्तरों की कोई निश्चित संख्या नहीं है परन्तु मुख्यत: इन्हें निम्नलिखित तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है:

1. उच्च-स्तरीय प्रबन्ध (Top Management),

ADVERTISEMENTS:

2. मध्य-स्तरीय प्रबन्ध (Middle Management),

3. निम्न-स्तरीय प्रबन्ध (Lower Management) |

अलफोर्ड एवं बीटी ने प्रबन्ध के स्तरों को निम्न पाँच भागों में विभक्त किया है:

ADVERTISEMENTS:

(i) उच्च प्रबन्ध (Top Management):

उच्च प्रबन्ध के अन्तर्गत आते हैं:

(a) अध्यक्ष,

(b) प्रबन्ध संचालक,

ADVERTISEMENTS:

(c) महा प्रबन्धक ।

(ii) उच्च मध्य प्रबन्ध (Top Middle Management):

उच्च-मध्य-स्तरीय के अन्तर्गत आते हैं: विभिन्न विभागीय प्रबन्ध जैसे: उत्पादन, वित्त व विक्रय आदि ।

(iii) मध्यम प्रबन्ध (Middle Management):

ADVERTISEMENTS:

मध्य स्तरीय प्रबन्ध के अन्तर्गत आते हैं:

(a) क्षेत्रीय प्रबन्धक,

(b) विभागीय अधीक्षक,

(c) लेखा अधिकारी ।

ADVERTISEMENTS:

(iv) पर्यवेक्षक प्रबन्ध (Supervisor or Lower Management):

पर्यवेक्षक प्रबन्ध के अन्तर्गत आते हैं:

(a) फोरमैन,

(b) प्रथम श्रेणी पर्यवेक्षक,

ADVERTISEMENTS:

(c) द्वितीय श्रेणी पर्यवेक्षक ।

(v) क्रियाशील शक्ति (Operating Force):

क्रियाशील के अन्तर्गत आते हैं श्रमिक वर्ग ।

यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो उपरोक्त दोनों श्रेणी विभाजन एक से ही है । इनके कार्यों व अधिकारी के क्षेत्रों गे कोई सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती । परन्तु अध्ययन की सुविधा के लिए प्रबन्ध के तीन स्तरों का ही वर्णन किया गया है ।

ADVERTISEMENTS:

1. उच्च स्तरीय प्रबन्ध (Top Management):

उच्च स्तरीय प्रबन्ध के अन्तर्गत वे उच्च अधिकारीगण आते हैं जो संस्था की नीतियों व उद्देश्यों का निर्माण व निर्देशन करते हैं तथा मध्य स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा भेजी गयी प्रतिवेदनों (Reports) की समीक्षा करते हैं उच्च स्तरीय प्रबन्ध में हम मुख्यतया संचालक मण्डल तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी आदि को शामिल करते हैं ।

इनका वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है:

(a) संचालन मंडल (Board of Directors):

किसी भी कम्पनी में संचालक मण्डल उस कम्पनी की नीति निर्धारित करते हैं, कम्पनी के कार्यो की समीक्षा करते हैं । वे कम्पनी के अंशधारियों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं । कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का चयन भी इन्हीं के द्वारा किया जाता है । ये कम्पनी के ट्रस्टी के रूप में कार्य करते है तथा उसके हितों की रक्षा करते हें ।

(b) मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive):

ADVERTISEMENTS:

यह संचालक मण्डल तथा अन्य प्रबन्धकों के बीच एक कड़ी का काम करता है । यह संचालक मण्डल द्वारा तैयार की गयी नीतियों तथा निर्णयों को कार्यकारी भाषा में व्याख्या करता है तथा सस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए योजनाएँ बनाता है तथा उन्हें अन्य प्रबन्धकों की सहायता से क्रियान्वयन कराता है । इस प्रकार वह उचित निर्देश देकर संगठन के कार्य को सुचारु रूप से चलाता है ।

2. मध्य स्तरीय प्रबन्ध (Middle Management):

प्रबन्ध के इस स्तर में विभागीय प्रबन्धकों तथा उप-विभागीय प्रबन्धकों आदि को शामिल किया जाता है । मेरी कुशिंग नाइल्स के शब्दों में, “मध्यस्तरीय प्रबन्ध से आशय उच्च स्तरीय तथा अन्तिम पंक्ति के बीच के अधिकारियों से है जिसे संगठन के एक अंग या हिस्से से लेकर एक दर्जन से अधिक अंगों के प्रशासन का दायित्व निभाना होता है ।”

फिफनर तथा शेरवुड तिलक, सोता (Pfiffner and Sherwood) के अनुसार मध्य स्तरीय प्रबन्ध के कार्य निम्नलिखित हैं:

(a) उच्च स्तरीय प्रबन्ध द्वारा निर्धारित नीति का क्रियान्वयन करना,

(b) उच्च स्तरीय प्रबन्ध द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए योजनाएँ बनाना,

ADVERTISEMENTS:

(c) संगठन के विभिन्न अंशों में सन्तुलन बनाये रखना; कार्यों का मूल्यांकन करना,

(d) कार्यात्मक निर्णयों में भाग लेना,

(e) दिन-प्रतिदिन के परिणामों की जानकारी रखना एवं आवश्यक एवं तत्कालिक समस्याओं के समाधान के लिये अपने साथियों से विचार-विमर्श करना ।

3. निम्न स्तरीय प्रबन्ध (Lower Management):

प्रबन्ध के इस स्तर को प्रथम रेखीय प्रबन्ध (First Line Management) अथवा पर्यवेक्षकीय प्रबन्ध (Supervisory Management) भी कहते हैं । इसके अन्तर्गत फोरमैन तथा पर्यवेक्षक शामिल किए जाते है । इनका श्रमिकों तथा कर्मचारियों से सीधा सम्पर्क होता है । इस स्तर पर श्रमिकों की क्रियाओं तथा गतिविधियों की निरन्तर देख-रेख की जाती हैतथा मध्य स्तरीय प्रबन्ध के कार्यक्रमों व दिशा निर्देशों के आधार पर उनसे कार्य लिया जाता है ।

फिफनर तथा शेरवुड (Pfiffner and Sherwood) के अनुसार इन प्रबन्धकों के कार्यों में निम्न को शामिल किया जाता है:

ADVERTISEMENTS:

(a) निर्धारित उद्देश्यों के अनुसार दैनिक योजनाओं का निर्माण;

(b) शीर्ष प्रबन्ध द्वारा निर्धारित नीतियों को सीमाओं में लागू करना;

(c) तत्कालिक जरूरतों के लिए कर्मचारियों के कार्यो का मूल्यांकन करना;

(d) जरूरत के समय कर्मचारियों से सम्पर्क करना;

(e) कर्मचारियों में कर्त्तव्यपरायणता की भावना का विकास करना;

(f) कर्मचारियों का कार्य निर्धारित करना;

ADVERTISEMENTS:

(g) त्रुटि होने पर उसका निवारण करना;

(h) कार्य दशाओं में सुधार तथा उच्च प्रबन्ध को सुझाव देना; तथा

(i) अच्छे मानवीय सम्बन्धों की स्थापना के लिए प्रयास करना ।

प्रबन्धकीय स्तर तथा कौशल (Managerial Levels and Skills):

प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर कार्य करवाने के लिए प्रबन्धकों की तकनीकी, मानवीय तथा वैचारिक कौशल की आवश्यकता होती है । किसी भी कार्य को सम्पन्न करने की योग्यताओं को ही कौशल कहा जाता है । अन्य शब्दों, में कार्य करने की विशिष्ट योग्यताओं को कौशल कहते हैं ।

प्रबन्धकीय कौशल से अभिप्राय प्रबन्ध के कार्यों के सम्पादन करने की विशिष्ट योग्यताओं से है । ये योग्यताएँ जन्मजात नहीं होती और न ही विरासत में मिलती हैं । इस प्रकार, कौशल जन्मजात न होकर शिक्षा, प्रशिक्षण तथा अनुभव द्वारा अर्जित किए जाते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

राबर्ट एल. कट्ज (Robert L. Katz) इन्हें तीन भागों में विभाजित करते हैं:

(1) वैचारिक कौशल (Conceptual Skill):

वैचारिक कौशल का अभिप्राय चिन्तन करने, विस्तृत रूप में भविष्य को देख सकने तथा समझ सकने, परिस्थितियों के प्रभाव को जान सकने तथा विभिन्न तत्वों के बची सम्बन्धों व अन्तर्क्रियाओं को पहचान कर सकने तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगा सकने तथा कार्यवाही कर सकने की योग्यता है ।

यह संगठन को सम्पूर्णता में जानने एवं देख सकने की योग्यता है जो उच्च-स्तरीय प्रबन्धकों के लिए आवश्यक है । इस प्रकार वैचारिक कौशल की आवश्यकता समस्याओं व अवसरों की पहचान करने, समूचे संगठन के हितों व आवश्यकताओं को समझने, संगठन के उद्देश्यों व व्यूह-रचनाओं का निर्माण करने तथा एकीकृत ण्घंद्दसत) तरीके से योजना बनाने के लिए पड़ती है । इस कौशल के बिना लम्बी अवधि में संगठन को सफल नहीं बनाया जा सकता । अतएव, उच्च-स्तरीय प्रबन्धकों के लिए यह कौशल अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।

वैचारिक कौशल को दो भागों में बाँटा जा सकता है:

(i) विश्लेषणात्मक कौशल (Analytical Skills):

विश्लेषणात्मक कौशल का अर्थ जटिल विषयों को समझने के लिए तार्किक ढंग से सीढ़ी-दर-सीढ़ी आगे बढ़ने तथा उनके विभिन्न पहलुओं की जाँच करने की योग्यता है । जटिल समस्याओं के समाधान करने तथा निर्णय लेने के लिए तथा निष्पादन का मूल्यांकन करने के लिए, इस योग्यता का सभी स्तरों के प्रबन्धकों में होना आवश्यक हैं ।

(ii) प्रशासनिक कौशल (Technical Skills):

दूसरों से कार्य कराने, उपलब्ध ससाधनों का अनुकूलतम उपयोग करने निर्णयों व योजनाओं को क्रियान्वित कराने, विभिन्नताओं में एकता लाने तथा संगठनात्मक कार्यो में नियमितता एवं व्यवस्था लाने की योग्यता ही प्रशासनिक कौशल है । प्रत्येक स्तर के प्रबन्धकों में ये योग्यताएँ होना आवश्यक हैं ।

(2) तकनीकी कौशल (Technical Skills):

तकनीकी कौशल उपकरणों तकनीकी एवं कार्यविधियों को उचित ढंग से काम में लाने की योग्यता है । इसका सम्बन्ध सम्पन्न किए जाने वाले कार्य के विशिष्ट ज्ञान, उपयोग में लाई जाने वाली तकनीकों एवं विधियों की समझ तथा अधीनस्थों को तकनीकी मार्गदर्शन व सलाह प्रदान करने की योग्यता है । पर्यवेक्षीय स्तर (Supervisory Level) के प्रबन्धकों के लिए यह कौशल बहुत महत्वपूर्ण है ।

(3) मानवीय कौशल (Human Skills):

यह कौशल अन्य लोगों से सहयोग प्राप्त करने तथा उनके साथ मिलकर कार्य करने की योग्यता है । यह लोगों को तथा उनकी समस्याओं आवश्यकताक्तें व भावनाओं को समझने में सहायक होती है । लोगों के साथ संचार करने उनका नेतृत्व करने उन्हें अभिप्रेरित करने, उनमें छुपी प्रतिभा एवं योग्यता का विकास करने तथा संघर्षो का समाधान करने में मानवीय कौशल की आवश्यकता पड़ती है ।

प्राय: यह कहा जाता है कि उच्च स्तरीय प्रबन्धकों के लिए वैचारिक कौशल का पर्यवेक्षकीय स्तर के प्रबन्धकों के लिए तकनीकी कौशल का अधिक महत्व है । मानवीय विश्लेषणात्मक तथा प्रशासनिक कौशल का महत्व सभी स्तरों के प्रबन्धको के लिए समान रूप में होता है ।

Home››Hindi››Management››