Read this article in Hindi to learn about the contribution of Taylor towards scientific management.

प्रबन्ध जगत में फ्रेडरिक विन्स्लाव टेलर (F.W. Taylor) का नाम ‘वैज्ञानिक प्रबन्ध दृष्टिकोण’ से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है । उनका जन्म 20 मार्च, 1856 को अमेरिका में हुआ था । सन् 1875 में 19 वर्ष की आयु में उन्होंने फिलाडेल्फिया में ‘क्रेम्प शिपयार्ड’ पर एक मशीन प्रशिक्षणार्थी के रूप में कार्य आरम्भ किया सन् 1881 में उन्हें ‘मिडवेल स्टील कम्पनी’ में श्रमिकों के एक समूह के निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया । 28 वर्ष की आयु में वह इस कम्पनी में ‘मुख्य अभियन्ता’ (Chief Engineer) बन गये थे ।

उनकी धारणा थी कि कार्य-निष्पादन की दैनिक मात्रा को मानकीकृत किया जाना चाहिये । उन्होंने कई पेपर प्रकाशित किये जो कि बाद में पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुए । सन् 1911 में टेलर की प्रसिद्ध कृति “वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त” (Principles of Scientific Management) प्रकाशित हुई । इस पुस्तक में टेलर ने ‘कारखाना प्रबन्ध’ (Scientific Management) अथवा उत्पादन प्रबन्ध (Production Management) के सिद्धान्तों का वर्णन किया है । औद्योगिक संस्थानों में कार्यकुशलता बढ़ाने के लिये टेलर ने समय-अध्ययन, गति-अध्ययन एवं थकान-अध्ययन आदि पर कई प्रयोग किए । टेलर ने संगठन के अन्तर्गत कार्यों को ‘नियोजन’ एवं ‘कार्यात्मक’ दो भागों में विभक्त किया ।

प्रबन्ध के क्षेत्र में टेलर का योगदान उल्लेखनीय रहा । उन्हें ‘वैज्ञानिक प्रबन्ध का जनक’ (Father of Scientific Management) एवं ‘कार्यकुशलता का सृजनकर्त्ता’ (Creator of Efficiency) कहा जाता है । टेलर ने प्रबन्ध को विज्ञान बनाने पर जोर दिया ।

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‘प्रबन्ध के सिद्धान्तों’ का प्रतिपादन उनका महानतम योगदान माना जाता है विश्व के अधिकांश देशों में इन सिद्धान्तों को लागू किया गया है । इन सिद्धान्तों से प्रबन्ध के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आये हैं । टेलर के अनुयायियों ने टेलर के विचारों व सिद्धान्तों को आगे बढ़ाया ।

वैज्ञानिक प्रबन्ध को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख विचारक हैं- गिल्ब्रेथ (Gilbreth), एच. एस. परसन (H.S. Parson), इमर्सन (Emerson), केण्डाल (Kendall), मौरिस कुक (Morris Cooke) एवं हेनरी फेयोल (Henry Fayol) आदि । इस प्रकार टेलर से लेकर आज तक वैज्ञानिक प्रबन्ध विकास के एक लम्बे दौर से गुजर चुका है । वर्तमान में औद्योगिक सस्थानों में ‘परम्परागत प्रबन्ध’ के स्थान पर ‘वैज्ञानिक प्रबन्ध’ को ही लागू किया जा रहा है ।