Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Bad News Letters 2. Planning Process of Bad News Letters 3. Language 4. Subject Matter 5. Objectives.  

Contents:

  1. प्रतिकूल सन्देश पत्र का अर्थ (Meaning of Bad News Letters)
  2. प्रतिकूल सन्देश पत्रों की योजना प्रक्रिया (Planning Process of Bad News Letters)
  3. प्रतिकूल सन्देश पत्रों की भाषा-शैली (Language of Bad News Letters)
  4. प्रतिकूल सन्देश पत्रों का विषय परिचय (Subject Matter of Bad News Letters)
  5. प्रतिकूल सन्देश पत्रों के उद्देश्य (Objectives of Bad News Letters)


1. प्रतिकूल सन्देश पत्र का अर्थ (Meaning of Bad News Letters):

जब पत्र में इस प्रकार की जानकारी दी जाती है कि उसके पाक उस सन्देश को सुनकर खुश न हों या वे पत्र को पढ़कर अप्रसन्न हों इन पत्रों में निहित सन्देश की प्रस्तुति इस प्रकार से की जाती है कि प्राप्तकर्त्ता की सद्‌भावना बनी रहे । यद्यपि इन पत्रों में प्रीषत सन्देश निराशाजनक व अप्रसन्न करने वाले होते है तथापि इनकी विशेषता यह होती है कि पत्र के प्रारम्भ में कम-से-कम शब्दों में तटस्थ सूचना प्रेषित कर अन्त में नकारात्मक सन्देश की प्रस्तुति की जाती है ।

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इससे यदि पाठक बहुत अच्छ महसूस नहीं करता तो उसे अधिक प्रसन्नता भी न हो अर्थात् इम पत्र में प्रेषित सन्देश प्राप्तकर्त्ता के स्वीकार्य योग्य हाना अनिवार्य है । यद्यपि इन पत्रों का मूल सम्बाद नकारात्मक संवाद पत्र भी कह सकते हैं । इसके अंतर्गत अस्वीकृत पत्र, निरसन पत्र, समायोजन पत्र, ऋण देने से इंकार सम्बन्धी पत्र, विज्ञप्तियों वाले पत्र आदि को शामिल किया जाता है ।

प्रतिकूल सन्देश पत्र नकारात्मक सन्देश को प्रेषित करने वाले पत्र होते हैं । ऐसे पत्रों का मूल संवाद नकारात्मक होता है । ऐसे पत्रों को लिखना एक कठिन कार्य होता है क्योंकि एक तरफ तो हम नकारात्मक सन्देश भेज रहे होते है तथा दूसरी तरफ प्राप्तकर्त्ता की सद्‌भावना भी बनाये रखना चाहते हैं ।

एक प्रतिकूल सन्देश पत्र लिखने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि प्रतिकूल तथ्यों को इस प्रकार घोषित किया जाये कि प्राप्तकर्त्ता को आघात भी न पहुँचे और वह संस्था के प्रति अपनी सद्‌भावना भी बनाये रखे क्योंकि इस प्रकार के पत्रों में मूल सूचना नकारात्मक होती है अत: हम इन्हें नकारात्मक सूचना वाले पत्र भी कह सकते हैं ।


2. प्रतिकूल सन्देश पत्रों की योजना प्रक्रिया (Planning Process of Bad News Letters):

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प्रतिकूल सन्देश पत्रों को तैयार करने की योजना बनाने से पहले उनके बारे में गहनता से विचार-विमर्श कर लेना चहिए क्योंकि योजनाबद्ध तरीके से किया गया कार्य हमेशा ही अच्छा रहता है ।

प्रतिकूल सन्देश पत्रों को तैयार करने के दो तरीके हैं:

(1) प्रत्यक्ष (Direct) और

(2) अप्रत्यक्ष (Indirect) ।

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दोनों तरीकों के अपने-अपने गुण व दोष हैं ।

दोनों तरीकों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है:

(1) प्रत्यक्ष बिधि (Direct Approach or Method):

प्रत्यक्ष विधि में प्रतिकूल सन्देश को स्पष्ट रूप से प्रारम्भ में ही प्रस्तुत कर दिया जाता है । इसका लाभ यह होता है कि प्राप्तकर्त्ता को प्रारम्भ में ही पता चल जाता है और इसका समय कम लगता है । इस विधि के अन्तर्गत प्रेषक नकारात्मक सन्देश को संक्षिप्त बनाकर प्रेषित करता है ।

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इस विधि का प्रयोग निम्न में से किसी प्रतिकूल सन्देश को भेजने के लिए किया जाता है:

(i) ऐसे सन्देश जो प्राप्तकर्त्ता के पास बहुत जल्दी प्रेषित करने ही;

(ii) दैनिक गतिविधियों से सम्बन्धित सन्देश, जिन पर श्रोता बहुत अधिक निराश नहीं होता और न बहुत अधिक भावुकता से सोचता है;

(iii) ऐसे अनिवार्य एवं आवश्यक सन्देश जिन पर श्रोता का ध्यान तुरन्त खींचना आवश्यक है, जैसे उगाही प्रक्रिया का अन्तिम चरण इत्यादि;

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(iv) ऐसे सन्देश प्राप्तकर्त्ता के लिए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं जिनके लिए प्राप्तकर्त्ता पहले से ही उत्सुक हों; एवं

(v) ऐसे सन्देश जो दो विभागों के बीच होने हैं ।

प्रत्यक्ष विधि में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रतिकूल सन्देश प्रेषित करते समय, प्राप्तकर्त्ता आपको निष्पक्ष समझे एवं उसको यह भी लगे कि आप उससे भविष्य में अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना चाहते हैं ।

इस विधि में सन्देश भेजने सम्बन्धी पत्र की संरचना के अग्रलिखित तीन भाग हैं:

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(i) प्रथम भाग-मुख्य विचार (First Part-Main Idea):

इस विधि के अन्तर्गत प्रथम भाग में सीधे प्रतिकूल सन्देश लिखे जाते हैं । प्रतिरोधात्मक कथन (Buffer Statement) या तो बिल्कुल नहीं लिखे जाते या फिर अत्यन्त संक्षेप में लिखे जाते हैं । जैसे कि हमारे प्रतिष्ठान की यह रीति है कि हम केवल नकद व्यापार करते हैं, उधार प्रस्ताव को विनम्रता से अस्वीकार कर देते हैं ।

(ii) द्वितीय भाग-व्याख्या (Second Part-Explanation):

द्वितीय भाग में प्रतिकूल संदेश के समर्थन में अत्यन्त सावधानीपूर्वक व्याख्या एवं विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि प्रतिकूल सन्देश का औचित्यसिद्ध हो सके । श्रोता को इस बात का विश्वास दिलाएं कि कम्पनी की नीतियाँ सभी के लिए समान रूप से लागू की गई हैं अथवा दीर्धकालीन हितों को ध्यान में रखकर कम्पनी ने ऐसी नीति बनाई है ।

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(iii) तृतीय भाग-समापन (Third Part-Ending):

प्रतिकूल सन्देश पत्र का समापन मित्रवत्, सद्‌भाव, सहयोग, शुभकामना तथा सकारात्मक भाव प्रकट करने वाला होना चाहिए । इसके समापन में श्रोता के हित तथा भविष्य में उसकी सफलता की कामना करनी चाहिए । प्रतिकूल सन्देश में न तो श्रोता की समस्या को दोहराना चाहिए और न ही उसकी समस्याओं को आमन्त्रित ही करना चाहिए ।

प्रत्यक्ष विधि में प्रतिकूल सन्देश पत्रों की नियोजन प्रक्रिया:

(2) अप्रत्यक्ष विधि (Indirect Approach or Method):

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इस विधि में प्रत्यक्ष विधि की भांति मुख्य सन्देश को सबसे पहले नहीं लिखा जाता वरन् पहले किसी सकारात्मक या श्रोता के पसन्द का कोई विचार लिखा जाता है जिससे वह पत्र का पढ़ना जारी रखे एवं प्रतिकूल सन्देश को ग्रहण करने की मानसिकता बना ले ।

अप्रत्यक्ष विधि का प्रयोग उस समय तो और भी अधिक जरूरी हो जाता है जब श्रोता की ओर से किसी प्रकार के प्रतिरोध की आशंका हो वास्तव में किसी व्यक्ति को नाराज किए बिना अपनी नकारात्मक बात को अप्रत्यक्ष तरीके से बता देना ही अप्रत्यक्ष योजना कहलाती है । इसका एक फायदा तो यह होता है कि प्राप्तकर्त्ता की नजरों में आप एक निष्पक्ष व्यक्ति बन जाते हैं तथा उसे यह विश्वास हो जाता है कि आप भविष्य में भी उसके साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाये रखना चाहते हैं ।

संक्षेप में, अप्रत्यक्ष विधि में प्रतिकूल सन्देश पत्रों का नियोजन करने के लिए उन्हें चार भागों में बांटा जाता है:

(I) प्रथम भाग-प्रतिरोधक कथन (First Part or Opening Part-Buffer Statement):

इस विधि के अन्तर्गत प्रथम भाग में कोई ऐसा प्रतिरोधक कथन (Buffer Statement) लिखा जाता है जिससे श्रोता प्रतिकूल सन्देश को ग्रहण करने के योग्य हो जाये । अंग्रेजी के शब्द Buffer का अर्थ होता है प्रतिरोधक अर्थात् झटका सहन करने वाला । इसके लिए यह आवश्यक है कि सबसे पहले कोई सुखद कथन लिखा जाये ।

प्रतिकूल संवाद वाले पत्र को शुरू करने के लिए मर्फी (Murphy) ने अपने बहुमूल्य सुझाव दिये है । इनके अनुसार प्रतिक संवाद वाले पत्र को आरम्भ करने के लिए पाठ की सहमति, सराहना, आश्वासन, प्रशंसा व सहयोग तथा आपसी समझ को विशेष महत्त्व देना चाहिए, जैसे- नये व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए ऋण हेतु आपने जो आवेदन किया है, हमें इस पर विचार करने का अवसर प्रदान किया है, उसके लिए हम आपके आभारी हैं….. ।

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(II) द्वितीय भाग-व्याख्या (Second Part-Explanation):

इस भाग में चतुराई एवं सावधानीपूर्वक आंकड़ों एवं अन्य साक्ष्यों के माध्यम से अपनी कार्यवाही को उचित सिद्ध करते हुए आवश्यक विवरण दें तथा श्रोता को इस बात का विश्वास दिलाए कि कम्पनी की नीतियाँ सभी के लिए समान हैं ।

विनम्रता के साथ सर्वप्रथम अपने निर्णय से सम्बन्धित सभी कारणों को अनुकूल से प्रतिकूल के क्रम में लिखें तथा अत्यन्त सावधानीपूर्वक यह स्पष्ट करने का प्रयास करें कि श्रोता के अनुरोध पर आपने संस्था व श्रोता दोनों के व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखकर ही यह निर्णय लिया है एवं आपका निर्णय तर्कसंगत है और आप निष्पक्ष (Fair) हैं । ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए कि श्रोता आपके सन्देश को ग्रहण भी कर ले तथा भविष्य में आपको भरपूर सहयोग भी देता रहे ।

(III) तृतीय भाग-निर्णय (Third Part-Decision):

प्रतिकूल सन्देश पत्र में यही भाग होता है जिसमें प्रतिकूल सन्देश लिखा जाता है ।

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प्रतिकूल सन्देश का निर्णय स्पष्ट, सकारात्मक तथा संक्षिप्त करने के लिए आप निम्न विकल्पी को अपना सकते हैं:

(i) यदि प्रतिकूल सन्देश का कारण अत्यन्त स्पष्ट है तो आप इसका स्वयं अनुमान लगा सकते हैं एवं किसी झंझट में न पड़कर सीधे-सीधे अपना निर्णय सुना सकते हैं;

(ii) श्रोता को अपनी नीतियों तथा सेवाओं का पुन: लाभ उठने की सलाह दे सकते हैं;

(iii) यदि यह सम्भव है कि श्रोता को कोई अन्य विकल्प सुझाया जा सकता है तो उसे यह बताना जरूरी है कि प्रतिकूल सन्देश देना आपके लिए अपरिहार्य हो गया था तथा

(iv) प्रतिकूल सन्देश लिखते समय नकारात्मक शैली का प्रयोग नहीं करना चाहिए ताकि श्रोता को किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न हो;

जैसे:

ADVERTISEMENTS:

‘आपको विश्वास दिलाया जाता है कि हम शीघ्र ही आपके मामले पर उपलब्ध सूचनाओं का विश्लेषण करेंगे भविष्य में जब आपकी स्थिति और सुदृढ़ हो जायेगी तब आपकी उधार कार्य की प्रार्थना पर पुनर्विचार करेंगे ।’

(IV) चतुर्थ भाग-समापन (Fourth Part-Ending):

प्रतिकूल पत्र के इस अन्तिम एवं समापन भाग की समाप्ति मित्रवत् व्यवहार, आश्वासन, विनम्रता एवं सहयोग के भाव को प्रकट करते हुए होना चाहिए तथा अन्त में एक सकारात्मक टिप्पणी या विचार अवश्य देना चाहिए जिसमें भविष्य में सहयोग, सुझाव, संरक्षण तथा मित्रता का भाव एवं श्रोता के हित तथा भविष्य में उसकी सफलता की कामना की गई हो तथा एक ग्राहक के रूप में श्रोता की प्रशंसा एवं आदर का आश्वासन दिया गया हो; जैसे- आप कभी भी हमारे कार्यालय आना चाहें तो आपका स्वागत है, हम आपके लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आपका सहयोग करना चाहते हैं ।

अप्रत्यक्ष विधि में प्रतिकूल सन्देश पत्रों की नियोजन प्रक्रिया:


3. प्रतिकूल सन्देश पत्रों की भाषा-शैली (Language of Bad News Letters):

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प्रतिकूल सन्देश पत्रों को अत्यन्त सावधानीपूर्वक ऐसी भाषा-शैली में लिखा जाना चाहिए, जिससे प्राप्तकर्त्ता आपको न्यायप्रिय व तर्कसंगत समझे । इससे पत्र प्राप्तकर्त्ता के साथ आपके सम्बन्ध बने रह सकते हैं इस प्रकार के पत्रों में मूल संवाद नकारात्मक होता है इसलिए इसमें आपके द्वारा चुने गए संवाद कुछ विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करेंगे; जैसे- आपका संवाद प्रेषित करने का उद्देश्य, आपके प्राप्तकर्त्ता के साथ सम्बन्ध एवं प्राप्तकर्त्ता की सम्भावित प्रतिक्रिया आदि ।

इस प्रकार के पत्रों की भाषा-शैली ऐसी होनी चाहिए जिससे प्राप्तकर्त्ता यह समझे कि:

(i) आप उसका हित चाहते हैं एवं उसके साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाना चाहते है;

(ii) यह व्यवसाय का दृढ़ निर्णय है जिसका लिया जाना व्यवसाय के हित में था, एवं

(iii) प्रतिकूल संवाद जो प्रेषित किया जाना था वह स्पष्ट व संक्षिप्त रूप में हो ।


4. प्रतिकूल सन्देश पत्रों का विषय परिचय (Subject Matter of Bad News Letters):

प्रतिकूल सन्देश पत्र जिन परिस्थितियों में लिखे जाते हैं वे अनेक हो सकती हैं परन्तु इनमें से कुछ प्रमुख परिस्थितियाँ निम्न हो सकती हैं:

(i) किसी विषय के बारे में अस्वीकृति प्रेषित करना;

(ii) माल में किसी प्रकार की त्रुटि होने पर सन्देश भेजना;

(iii) माल को नमूने के अनुसार न होने अथवा उसमें किसी भी प्रकार की कमी होने पर लौटाना;

(iv) अनुशासित कार्यवाही (Disciplinary Action) के लिए सन्देश प्रेषित करना; एवं

(v) उपभोक्ता को किसी भी प्रकार का अशुभ समाचार प्रेषित करना ।


5. प्रतिकूल सन्देश पत्रों के उद्देश्य (Objectives of Bad News Letters):

प्रतिकूल सन्देश पत्रों के दो उद्देश्य हो सकते हैं:

(i) मुख्य उद्देश्य (Main Object); एवं

(ii) सहायक उद्देश्य (Secondary Objects) ।

इस प्रकार के पत्रों को लिखने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि प्रतिकूल सन्देश को इस प्रकार से लिखा जाये कि प्राप्तकर्त्ता को किमी भी प्रकार का आघात न लगे एवं सद्‌भावना बनी रहे तथा प्राप्तकर्त्ता उसे न अच्छी तरह समझ ले व स्वीकार भी कर ले ।

प्रतिकूल सन्देश पत्र के मुख्य उद्देश्य के साथ-साथ सहायक उद्देश्यों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, जैसे- संगठन की अच्छी छवि को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि पत्र को इस प्रकार लिखा जाये कि उसका मूल उद्देश्य स्पष्ट हो जाये व उसमें किसी प्रकार के पत्र-व्यवहार की आवश्यकता न पड़े ।


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