Read this article in Hindi to learn about the process and procedure of investment to be followed in an organisation. The steps are: 1. Framing of Investment Policy 2. Security Analysis 3. Investment Valuation 4. Construction of Portfolio 5. Evaluation of Portfolio.

Step # 1. विनियोग नीति का निर्माण (Framing of Investment Policy):

निवेश प्रक्रिया की यह प्रथम अवस्था है । प्रत्येक निवेशक विनियोग करने से पहले निवेश नीति का सृजन करता है । इसमें निवेश का उद्देश्य विनियोग बाजार एवं प्रतिभूति के बारे में जानकारी निवेश के लिए उपलब्ध कोष आदि पर विचार किया जाता है ।

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(i) विनियोगीय फण्ड्स (Investible Funds):

सम्पूर्ण निवेश प्रक्रिया निवेश के लिए उपलब्ध कोषों आधारित है । विनियोग नीति का निर्माण बिना कोष की पर्याप्तता के नहीं हो सकता । कोषों का निर्माण बचत करके अथवा ऋण लेकर किया जा सकता है । यदि विनियोगकर्त्ता ऋण लेकर निवेश करना चाहता है तो उसे निवेश विकल्प का चुनाव अधिक सावधानी से करना होगा । निवेश प्राप्त होने वाली प्रत्याय, भुगतान किए जाने वाले ब्याज की राशि से अधिक होनी चाहिए ।

(ii) उद्देश्य (Objectives):

निवेश नीति के अन्तर्गत निवेशक के उद्देश्यों को प्राथमिकता दी जाती है । नियमित आय, प्रत्याय की दर, जोखिम की मात्रा, तरलता इत्यादि । निवेशक के उद्देश्य को परिभाषित करते हैं ।

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अन्य शब्दों में निवेशक का उद्देश्य नियमित आय की प्राप्ति हो सकता है इसके साथ ही साथ न्यूनतम जोखिम एवं सम्पत्ति की तरलता भी निवेश नीति का निर्माण करने के लिए विचारणीय हो सकती है ।

प्रत्येक विनियोगकर्त्ता का उद्देश्य अपने निवेश से स्थायी एवं नियमित आय न्यूनतम जोखिम पर अधिकतम प्रत्याय पूंजी की सुरक्षा आदि होता है । अत: निवेश नीति का निर्माण करते समय निवेशक के उद्देश्यों को ध्यान में रखा जाता है ।

(iii) ज्ञान (Knowledge):

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विनियोग विकल्पों एवं बाजारों के बारे में जानकारी निवेश नीति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । विनियोग विकल्प (Investment Outlets) प्रतिभूतियों से लेकर वास्तविक सम्पदा तक उपलब्ध हैं । प्रत्याय एवं जोखिम विनियोग विकल्पों के प्रकार/प्रारूप पर निर्भर करता है ।

उदाहरण के तौर समता अंशों में निवेश पर उच्च प्रत्याय दर के साथ-साथ उच्च जोखिम दर होती है जबकि स्थायी आय प्रतिभूतियों (Fixed Income Securities) में निवेश पर जोखिम की दर कम रहती है । जैसे-सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश ।

(iv) विनियोग माध्यम (Channels of Investments):

विनियोग नीति का सृजन करने से पहले निवेशक को उपलब्ध स्टॉक बाजारों, दलालों आदि के बारे में जानकारी लेनी चाहिए । विनियोग क्रियाएं सभी स्टॉक विनिमय केन्द्रों की अलग-अलग है । दलाली कमीशन भी अलग-अलग हैं ।

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स्टॉक विनिमय केन्द्रों के बारे में जानकारी निवेशक के लिए निवेश फैसले लेने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । स्टॉक विनिमय केन्द्रों के पदाधिकारियों (Functionaries) के बारे में भी निवेशक को ज्ञान होना चाहिए । अंश दलाल, उप-दलाल, पोर्टफोलियो प्रबन्धक इत्यादि निवेश प्रक्रिया को पूरा करने में सहायक है ।

Step # 2. प्रतिभूति विश्लेषण (Security Analysis):

निवेश नीति का निर्माण करने के पश्चात् क्रय की जाने वाली प्रतिभूतियों का विश्लेषण किया जाता है ।

निवेश करने से पहले अग्रलिखित विश्लेषण किए जाते हैं:

(i) बाजार विश्लेषण (Market Analysis):

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स्टॉक बाजार किसी भी देश के सामान्य आर्थिक परिदृश्य का दर्पण होता है । स्टॉक कीमतों से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि एवं मुद्रा स्फीति के बारे में जानकारी मिलती है । स्टॉक कीमतें अल्पकाल में परिवर्तनशील हो सकती है लेकिन दीर्घकालीन स्थिति में ये या तो बढ़ती है या घटती हैं ।

(Upward or Downward) अर्थात ये एक ही दिशा में चलती है ऊपर की ओर अथवा नीचे की ओर । (In long run-stock prices move in trends i.e. either upward or downward) निवेशक तकनीकी विश्लेषण द्वारा प्रतिभूतियों के क्रय अथवा विक्रय को निश्चित कर सकता है ।

(ii) उद्योग विश्लेषण (Industry Analysis):

उद्योग विश्लेषण में विश्लेषक निम्नलिखित तथ्यों (घटकों) का विश्लेषण करता है:

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(a) पिछले वर्षों में की गई बिक्री (Sales in the Past)

(b) पिछले वर्षों की उपार्जन कार्यक्षमता (Earning Performance in the Past)

(c) उद्योग का विकास स्तर (Growth Stage of the Industry)

(d) सरकार की औद्योगिक नीति (Industrial Policy of Government)

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(e) प्रतिस्पर्द्धात्मक दशाएं (Competitive Conditions)

(f) अंश मूल्य (Price of Share)

(g) प्रति अंश आय (Earning per Share)

(h) श्रम-दशाएँ (Labour Conditions)

उपर्यूक्त तथ्यों के विश्लेषण के लिए विश्लेषक सूचनाएँ एकत्रित करता है ।

सूचनाएँ निम्नलिखित स्रोतो से प्राप्त की जा सकती है:

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(I) औद्योगिक उत्पादन पर भारतीय रिजर्व बैंक का मासिक बुलेटिन ।

(II) FICCI द्वारा प्रकाशित आंकड़े ।

(III) औद्योगिक वित्तीय स्थिति भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ।

(IV) औद्योगिक सभा परिषदों (Industrial Association) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ।

किसी भी उद्योग में निवेश का फैसला उपर्युक्त विश्लेषण से प्रभावित होता है । विनियोगकर्ता उद्योग में निवेश करने से पहले उपर्युक्त का विश्लेषण करना चाहेगा ताकि उनका निवेश का उद्देश्य पूरा हो सके ।

(iii) कम्पनी विश्लेषण (Company Analysis):

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कम्पनी विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य निवेश सम्बन्धी फैसला लेने में निवेशक की सहायता करना है ।

इसके लिए निवेशक को निम्नलिखित जानकारी की आवश्यकता है:

(1) कम्पनी की उपार्जन क्षमता (Earning Capacity of Company)

(2) कम्पनी की लाभदायकता (Profitability of Company)

(3) पूंजी की संरचना (Capital Structure of Company)

(4) प्रबन्ध की कार्यकुशलता (Efficiency of management)

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(5) कम्पनी की वित्तीय स्थिति (Financial Position of Company)

उपर्युक्त के बारे में जानकारी निम्नलिखित स्रोतों से की जा सकती है:

(A) प्रविवरण (Prospectus)

(B) वार्षिक रिपोर्ट (Annual Reports of Company)

(C) अंकेक्षक की रिपोर्ट (Auditor’s Report)

(D) वित्तीय संस्थाओं की रिपोर्ट (Report of Financial Institutions)

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कम्पनी विश्लेषण, अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis), वित्तीय विवरणों की तुलना (Comparison of Financial Statements) कोष प्रवाह विश्लेषण (Funds Flow Analysis) इत्यादि की सहायता से किया जा सकता है ।

Step # 3. विनियोग मूल्यांकन (Investment Valuation):

साधारण स्टॉक में निवेश से सम्भावित प्रत्याय एवं जोखिम के निर्धारण में विनियोग मूल्यांकन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसकी सहायता से निवेशक प्रत्याय एवं जोखिम का अन्दाजा लगा सकता है ।

विनियोग का मूल्यांकन निम्न प्रकार किया जा सकता है:

(i) शेयर का यथार्थ मूल्य (Intrinsic Value):

यह शेयर का वास्तविक मूल्य होता है जो कि इसकी उपार्जन क्षमता निर्भर करता है एक निवेशक प्रतिभूति केवल उसी स्थिति में क्रय करता है । जब उसका बाजार मूल्य वास्तविक मूल्य से कम होता हे । लेकिन कुछ विश्लेषकों के मतानुसार प्रतिभूति का मूल्य उसकी माँग एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होता है । समता अंश का वास्तविक मूल्य (Intrinsic Value) कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश पर निर्भर करता है ।

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(ii) भावी फूला (Future Value):

साधारण सांख्यिकी तकनीक का प्रयोग करके प्रतिभूति के भावी मुल्य का अनुमान लगाया जा सकता है । कीमतों के ऐतिहासिक व्यवहार का विश्लेषण करके एक निवेशक प्रतिभूति के भावी मूल्य का अनुमान लगा सकता है इसके लिए सांख्यिकी तकनीक जैसे प्रवृत्ति विश्लेषण (Trend Analysis) का प्रयोग किया जा सकता है ।

Step # 4. पोर्टफोलियो का निर्माण (Construction of Portfolio):

विनियोग प्रक्रिया के इस कदम पर पोर्टफोलियो का निर्माण किया जाता है । पोर्टफोलियो प्रतिभूतियों का सम्मिश्रण कहलाता है । पोर्टफोलियो का निर्माण इस तरह से किया जाता है ताकि निवेशक का उद्देश्य पूरा हो सके । निवेशक का उद्देश्य अधिकतम प्रत्याय (न्यूनतम जोखिम के साथ) प्राप्त करना होता है ।

इसलिए निवेशक अपने फण्ड्स को किसी एक प्रतिभूति में निवेश करने की बजाय विभिन्न प्रतिभूतियों में विनियोग करता है जिसे पोर्टफोलियो कहने है । विभिन्नता (Diversification) का मुख्य उद्देश्य पूँजी एवं आय हानि के जोखिम को कम करना है । एकल पोर्टफोलियो विभेदीकृत (Diversified Portfolio) पोर्टफोलियो की अपेक्षा ज्यादा जोखिमपूर्ण होता है ।

पोर्टफोलियो के विभेदीकरण के कई तरीके निम्न हैं:

(i) शेयर एवं ऋण उपकरण (Equity and Debt Diversification):

ऋण उपकरण (Debt Instructions) जेसे ऋणपत्र, बॉण्ड्स इत्यादि सीमित पूंजी वृद्धि के साथ स्थायी प्रत्याय के स्रोत हैं । साधारण स्टॉक कुछ अनिश्चितता के साथ आय एवं पूंजी लाभ प्रदान करते हैं । लेकिन ऋण एवं ईक्विटी दोनों में एक साथ निवेश किया जाए तो निवेशक को अच्छे परिणाम मिल सकते है ।

(ii) उद्योग विविधता (Industry Diversification):

उद्योगों की विकास गति एवं उनकी सरकारी नीतियों के प्रति प्रतिक्रिया एक-दूसरे से भिन्न होती है । निवेशक बैंकिंग उद्योग में निवेश करके नियमित आय की प्राप्ति कर सकता है । इसी तरह से सूचना तकनीकी उद्योग (Information Technology Industry) के अंशों में निवेश उच्च प्रत्याय एवं पूंजी वृद्धि प्रदान करता है । इसलिए निवेशक विभिन्न उद्योगों में निवेश करके जोखिम को कम कर सकता है ।

(iii) कम्पनी विविधता (Company Diversification):

विभिन्न कम्पनियों के अंशों में निवेश करके निवेशक जोखिम कम कर सकता है । तकनीकी विश्लेषक ऐसी कम्पनियों की प्रतिभूति क्रय करने की सलाह देने है जिनकी कीमतें बढ़ रही हों, जबकि आधारभूत विश्लेषक ऐसी कम्पनियों में निवेश की सलाह देते हैं जिनकी वित्तीय स्थिति सुदृढ़ है ।

(iv) प्रतिभूतियों का चुनाव (Selection of Securities):

विभिन्न उद्योग एवं कम्पनी का विश्लेषण करने के प्रतिभूतियों का चुनाव किया जाता है । निर्धारित/चुनी हुई प्रतिभूतियों के लिए कोष का आवंटन किया जाता है । अत: हम कह सकते है कि प्रतिभूतियों के चुनाव एवं उनके कम के लिए कोष के आवंटन के साथ ही पोर्टफोलियो का निर्माण होता है ।

Step # 5. पोर्टफोलियो का मूल्यांकन (Evaluation of Portfolio):

पोर्टफोलियो (प्रतिभूति) का कुशल प्रबन्ध (Efficient Management) बहुत महत्वपूर्ण कार्य है । पोर्टफोलियो का निर्माण करने के पश्चात प्रबन्धक उसका मूल्यांकन करता है । क्योंकि इसमें बाजार दशाओं के अनुरूप परिवर्तन किया जाता है ।

प्रतिभूतियों तथा अन्य सम्पत्तियों के निवेश सम्मिश्रण में बाजार स्थिति के अनुसार परिवर्तन करके निवेशक प्रत्याय दर को बढ़ा सकता है तथा जोखिम की मात्रा को कम कर सकता है ।

पोर्टफोलियो प्रबन्धक द्वारा इसका मूल्यांकन करने के लिए वास्तविक प्रत्याय एवं जोखिम की तुलना पूर्व निर्धारित प्रत्याय दर एवं जोखिम की मात्रा से की जाती है । मूल्यांकन के पश्चात ही पोर्टफोलियो में परिवर्तन किया जाता है । (Shifting of Securities and Other Assets) ।

अत: हम कह सकते हैं कि पोर्टफोलियो का निरन्तर निरीक्षण (Monitor) किया जाना चाहिए क्योंकि निवेशक की वित्तीय स्थिति, उसकी प्राथमिकताएँ तथा बाजार स्थिति में परिवर्तन का पोर्टफोलियो पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है । पोर्टफोलियो में समायोजन (Adjustment) स्थिति में परिवर्तन के अनुसार किया जाना चाहिए ।

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